महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-084
दिखावट
← आश्वमेधिकपर्व-083 | महाभारतम् चतुर्दशपर्व महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-084 वेदव्यासः |
आश्वमेधिकपर्व-085 → |
|
दक्षिणां दिशमुपागतेनार्जुनेन चेदीशितुः शिशुपालात्मजस्य पूजापरिग्रहणम्।। 1 ।। तथा काशिकोसलादिदेशाधिपतिपराजयपूर्वकं गान्धारदेशगमनम्।। 2 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 14-84-1x |
मागधेनार्चितो राजन्पाण्डवः श्वेतवाहनः। दक्षिणां दिशमास्थाय चारयामास तं हयम्।। | 14-84-1a 14-84-1b |
ततः स पुनरावर्त्य हयः कामचरो बली। आससाद पुरीं रम्यां चेदीनां शुक्तिसाह्वयाम्।। | 14-84-2a 14-84-2b |
शरभेणार्चितस्तत्र शिशुपालसुतेन सः। युद्धपूर्वं तदा तेन पूजया च महाबलः।। | 14-84-3a 14-84-3b |
ततोऽर्चितो ययौ राजंस्तदा स तुरगोत्तमः। काशीनङ्गान्कोसलांश्च किरातानाथ तङ्गणात्।। | 14-84-4a 14-84-4b |
पूजां तत्र यथान्यायं प्रतिगृह्य धनंजयः। पुनरावृत्त्य कौन्तेयो दशार्णानगमत्तदा।। | 14-84-5a 14-84-5b |
तत्र चित्राङ्गदो नाम बलवानरिमर्दनः। तेन युद्धमभूत्तस्य विजयस्यातिभैरवम्।। | 14-84-6a 14-84-6b |
तं चापि वशमानीय किरीटी पुरुषर्षभः। निषादराज्ञो विषयमेकलव्यस्य जग्मिवान्।। | 14-84-7a 14-84-7b |
एकलव्यसुतश्चैनं युद्धेनि जगृहे तदा। तत्र चक्रे निषादैः स सग्रामं रोमहर्षणम्।। | 14-84-8a 14-84-8b |
ततस्तमपि कौन्तेयः समरेष्वपराजितः।। जिगाय युधि दुर्धर्षो यज्ञविघ्नार्थमागतम्।। | 14-84-9a 14-84-9b |
स तं जित्वा महाराज नैषादिं पाकशासनिः। अर्चितः प्रययौ भूयो दक्षिणं सलिलार्णवम्।। | 14-84-10a 14-84-10b |
तत्रापि द्रवीडैरान्ध्रै रौद्रैर्माहिषकैरपि। तथा कोल्लगिरेयैश्च युद्धमासीन्किरीटिनः।। | 14-84-11a 14-84-11b |
तांश्चापि विजयो जित्वा नातितीव्रेण कर्मणा। तुरङ्गमवशेनाथ सुराष्ट्रानभितो ययौ। गोकर्णमथ चासाद्य प्रभासमपि जग्मिवान्।। | 14-84-12a 14-84-12b 14-84-12c |
ततो द्वारवतीं रम्यां वृष्णिवीराभिपालिताम्। आससाद हयः श्रीमान्कुरुराजस्य यज्ञियः।। | 14-84-13a 14-84-13b |
तमुन्मथ्य हयश्रेष्ठं यादवानां कुमारकाः। प्रययुस्तांस्तदा राजन्नुग्रसेनो न्यवारयत्।। | 14-84-14a 14-84-14b |
ततः पुराद्विनिष्क्रम्य वृष्ण्यन्धकपतिस्तदा। सहितो वासुदेवेन मातुलेन किरीटिनः।। | 14-84-15a 14-84-15b |
तौ समेत्य कुरुश्रेष्ठं विधिवत्प्रीतिपूर्वकम्। परया भारतश्रेष्ठं पूजया समवस्थितौ। ततस्ताभ्यामनुज्ञातो यतयौ येन हयो गतः।। | 14-84-16a 14-84-16b 14-84-16c |
ततः स पश्चिमं देशं समुद्रस्य तदा हयः। क्रमेणि व्यचरत्स्फीतं ततः पञ्चनदं ययौ।। | 14-84-17a 14-84-17b |
तस्मादपि स कौरव्य गन्धारविषयं हयः। विचचार यथाकामं कौन्तेयानुगतस्तदा।। | 14-84-18a 14-84-18b |
ततो गान्धारराजेन युद्धमासीत्किरीटिनः। घोरं शकुनिपुत्रेण पूर्ववैरानुसारिणा।। | 14-84-19a 14-84-19b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि चतुरशीतितमोऽध्यायः।। 84 ।। |
आश्वमेधिकपर्व-083 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आश्वमेधिकपर्व-085 |