महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-028
दिखावट
← आश्वमेधिकपर्व-027 | महाभारतम् चतुर्दशपर्व महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-028 वेदव्यासः |
आश्वमेधिकपर्व-029 → |
|
कृष्णने युधिष्ठिरंप्रति विद्याब्रह्मणोररण्यत्वरूपणपरब्राह्मणदंपतिसंवादानुवादः।। 1 ।।
ब्राह्मण उवाच। | 14-28-1x |
संकल्पदंशमशकं शोकहर्षहिमातपम्। मोहान्धकारतिमिरं लोभव्याधिसरीसृपम्।। | 14-28-1a 14-28-1b |
विषयैकात्ययाध्वानं कामक्रोधकिरातकम्। तदतीत्य महादुर्गं प्रविष्टोस्मि महद्वनम्।। | 14-28-2a 14-28-2b |
ब्राह्मण्युवाच। | 14-28-3x |
क्व तद्वनं महाप्राज्ञ के वृक्षाः सरितश्च काः। कियन्तः पर्वताश्चैव कियत्यध्यनि तद्वनम्।। | 14-28-3a 14-28-3b |
ब्राह्मण उवाच। | 14-28-4x |
नैतदस्ति पृथग्भावः किञ्चिनद्यत्ततः सुखम्। नैतदस्त्यपृथग्भावः किञ्चिद्दुःखतरं ततः।। | 14-28-4a 14-28-4b |
तस्माद्ध्रस्वतरं नास्ति न ततोस्ति महत्तरम्। नास्ति तस्माद्दुःखतरं नास्त्यन्यत्तत्समं सुखम्।। | 14-28-5a 14-28-5b |
न तत्राविश्यि शोचन्ति न प्रहृष्यन्ति च द्विजाः। न च बिभ्यति केभ्यश्चिन्नैभ्यो बिभ्यति केचन।। | 14-28-6a 14-28-6b |
तस्मिन्वने सप्त महाद्रुमाश्च फलानि सप्तातिथयश्च सप्त। सप्ताश्रमाः सप्त समाधयश्च दीक्षाश्च सप्तैतदरण्यरूपम्।। | 14-28-7a 14-28-7b 14-28-7c 14-28-7d |
पञ्चवर्णानि दिव्यानि पुष्पाणि च फलानि च। सृजन्तः पादपास्तत्र व्याप्य तिष्ठन्ति तद्वन्म्।। | 14-28-8a 14-28-8b |
सुवर्णानि द्विवर्णानि पुष्पाणि च फलानि च। सृजन्तः पादपास्तत्र व्याप्य तिष्ठन्ति तद्वनम्।। | 14-28-9a 14-28-9b |
`शङ्कराणि त्रिवर्णानि पुष्पाणि च फलानि च। सृजन्तः पादपास्तत्र व्याप्य तिष्ठन्ति तद्वनम्' | 14-28-10a 14-28-10b |
सुरभीणि द्विवर्णानि पुष्पाणि च फलानि च। सृजन्तः पादपास्तत्र व्याप्य तिष्ठन्ति तद्वनम्।। | 14-28-11a 14-28-11b |
सुरभीण्येकवर्णानि पुष्पाणि च फलानि च। सृजन्तः पादपास्तत्र व्याप्य तिष्ठन्ति तद्वनम्।। | 14-28-12a 14-28-12b |
बहून्यव्यक्तवर्णानि पुष्पाणि च फलानि च। विसृजन्तौ महावृक्षौ तद्वनं व्याप्य तिष्ठतः।। | 14-28-13a 14-28-13b |
एको वह्निः सुमना ब्राह्मणोत्र पञ्चेन्द्रियाणि समिधश्चात्र सन्ति। तेभ्यो वृक्षाःक सप्त फलन्ति दीक्षा गुणाः फलान्यतिथयः फलाशाः।। | 14-28-14a 14-28-14b 14-28-14c 14-28-14d |
आतिथ्यं प्रतिगृह्णन्ति तत्र सप्त महर्षयः। अर्चितेषु प्रलीनेषु तेष्वन्यद्रोचते वनम्।। | 14-28-15a 14-28-15b |
प्रज्ञावृक्षं मोक्षफलं शान्तिच्छायासमन्वितम्। ज्ञानाश्रयं तृप्तितोयमन्तःक्षेत्रज्ञभास्करम्।। | 14-28-16a 14-28-16b |
येऽधिगच्छन्ति तत्सन्तस्तेषां नास्ति पुनर्भवः। ऊर्ध्वं चाधश्च तिर्यक्च तस्य नान्तोऽधिगम्यते।। | 14-28-17a 14-28-17b |
सप्त स्त्रियस्तत्र चरन्ति सत्या- स्त्ववाङ्मुखा भानुमत्यो जनित्र्यः। ऊर्ध्वं रसानाददते प्रजाभ्यः सर्वान्यथा नित्यमनित्यता च।। | 14-28-18a 14-28-18b 14-28-18c 14-28-18d |
तत्रैव प्रतितिष्ठन्ति पुनस्तत्रोदयन्ति च। सप्त सप्तर्षयः सिद्धा वसिष्ठप्रमुखैः सह।। | 14-28-19a 14-28-19b |
यशो वर्चो भगश्चैव विजयः सिद्धतेजसः। एतमेवानुवर्तन्ते सप्त ज्योतींषि भास्करम्।। | 14-28-20a 14-28-20b |
ऋषयः पर्वताश्चैव सन्ति तत्र समासतः। नद्यश्च परितो वारि वहन्त्यो ब्रह्मिसम्भवम्।। | 14-28-21a 14-28-21b |
नदीनां सङ्गमश्चैव वैताने समुपहरे। स्वात्मतृप्ता यतो यान्ति साक्षादेव पितामहम्।। | 14-28-22a 14-28-22b |
कृशाशाः सुव्रताः शान्तास्तपसा दग्धकिल्बिषाः। आत्मन्यात्मानमावेश्य ब्राह्मणास्तमुपासते।। | 14-28-23a 14-28-23b |
शमिमप्यत्र शंसन्ति विद्यारण्यविदो जनाः। तदरण्यमभिप्रेत्य यथातत्वमजायत।। | 14-28-24a 14-28-24b |
एतदेवेदृशं पुण्यमरण्यं ब्राह्मणा विदुः। विदित्वा चानुतिष्ठन्ति क्षेत्रज्ञेनानुदर्शिना।। | 14-28-25a 14-28-25b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि अष्टाविंशोऽध्यायः।। 28 ।। |
14-28-7 सप्तर्षयः सप्त तथेन्धनानि इति क.थ.पाठः।।
14-28-9 चतुर्वर्णानि दिव्यानीति क.थ.पाठः।।
14-28-13 सृजन्तः पादपास्तत्र व्याप्य तिष्ठन्ति तद्वनमिति क.ट.थ.पाठः।।
14-28-19 तत्रोपयन्ति चेति झ.पाठः। तेच सप्तर्षयः सिद्धा इति क.थ.पाठः।।
14-28-20 भगश्चोजो विजयः सिद्धितेजसी इति क.थ.पाठः।।
14-28-24 ऋचमप्यत्र पश्यन्ति विद्यारण्येति क.थ.पाठः।। , शममप्यत्र शंसन्ति विद्यारण्यविदो जनाः। इति पाठः
14-28-25 विदित्वा नानुपश्यन्ति क्षेत्रज्ञा नानुदर्शनमिति क.थ.पाठः।।
आश्वमेधिकपर्व-027 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आश्वमेधिकपर्व-029 |