महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-073
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अर्जुनेन युधिष्ठिरनियोगाद्ब्राह्मणैः क्षत्रियैश्च सह प्रथममुत्तरदिश्यश्वसञ्चारणेन रक्षणाय तदनुसरणम्।। 1 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 14-73-1x |
दीक्षाकाले तु सम्प्राप्ते ततस्ते सुमहर्त्विजः। विधिवद्दीक्षयामासुरश्वमेधाय पार्थिवम्।। | 14-73-1a 14-73-1b |
कृत्वा स पशुमेधांश्च दीक्षितः पाण्डुनन्दनः। धर्मराजो महातेजाः सहर्त्विग्भिर्व्यरोचत।। | 14-73-2a 14-73-2b |
हयश्च हयमेधार्थं स्वयं स ब्रह्मवादिना। उत्सृष्टः शास्त्रविधिना व्यासेनामिततेजसा।। | 14-73-3a 14-73-3b |
स राजा राजधर्मेण दीक्षितो विबभौ तदा। हेममाली रुक्मकण्ठः प्रदीप्त इव पावकः।। | 14-73-4a 14-73-4b |
कृष्णाजिनी दण्डपाणिः क्षौमवासाः स धर्मजः। विबभौ द्युतिमान्भूयः प्रजापतिरिवाध्वरे।। | 14-73-5a 14-73-5b |
तथैवास्यर्त्विजः सर्वे तुल्यवेषा विशांपते। बभूवुरर्जुनश्चापि प्रदीप्त इव पावकः।। | 14-73-6a 14-73-6b |
श्वेताश्वः कपिकेतुश्च ससाराश्वं धनञ्जयः। विधिवत्पृथिवीपाल धर्मराजस्य शासनात्।। | 14-73-7a 14-73-7b |
**क्षिपन्गाण्डिवं राजन्बद्धगोधाङ्गुलित्रवान्। तमश्वं पृथिवीपाल मुदा युक्तः ससार च।। | 14-73-8a 14-73-8b |
अनुमार्गं तदा राजन्नागमत्तत्पुरं विभो। द्रष्टुकामं कुरुश्रेष्ठं प्रयास्यनतं धनञ्जयम्।। | 14-73-9a 14-73-9b |
तेषामन्योन्यसम्मर्दादूष्मेव समाजायत। दिदृक्षूणां हयं तं च तं चैव हयसारिणम्।। | 14-73-10a 14-73-10b |
ततः शब्दो महाराज दिशः खं प्रतिपूरयन्। बभूव प्रेक्षतां नॄमां कुन्तीपुत्रं धनंजयम्।। | 14-73-11a 14-73-11b |
एष गच्छति कौन्तेयस्तुरगश्चैव दीप्तिमान्। समन्वेति महाबाहुः संस्पृशन्धनुरुत्तमम्।। | 14-73-12a 14-73-12b |
एवं शुश्राव वदतां गिरो जिष्णुरुदारधीः। स्वस्ति तेऽस्तु व्रजारिष्टं पुनश्चैहीति भारत।। | 14-73-13a 14-73-13b |
अथापरे मनुष्येन्द्र पुरुषा वाक्यमब्रुवन्। नैनं पश्याम सम्मर्दे धनुरेतत्प्रदृश्यते।। | 14-73-14a 14-73-14b |
एतद्धि भीमनिर्ह्रादं विश्रुतं गाण्डिवं धनुः। स्वस्ति गच्छत्वरिष्टो वै पन्थानमकुतोभयम्। निवृत्तमेनं द्रक्ष्यामः पुनरेष्यति च ध्रुवम्।। | 14-73-15a 14-73-15b 14-73-15c |
एवमाद्या मनुष्याणां स्त्रीणां च भरतर्षभ। शुश्राव मधुरा वाचः पुनःपुनरुदारधीः।। | 14-73-16a 14-73-16b |
याज्ञवल्क्यस्य शिष्यश्च कुशलो यज्ञकर्मणि। प्रायात्पार्थेन सहितः शान्त्यर्थं वेदपारगः।। | 14-73-17a 14-73-17b |
ब्राह्मणाश्च महीपाल बहवो वेदपारगाः। अनुजग्मुर्महात्मानं क्षत्रियाश्च विशाम्पते। विधिवत्पृथिवीपाल धर्मराजस्य शासनात्।। | 14-73-18a 14-73-18b 14-73-18c |
पाण्डवैः पृथिवीमश्वो निर्जितामस्त्रतेजसा। चचार स महाराज यथादेशं च सत्तम।। | 14-73-19a 14-73-19b |
तत्र युद्धानि वृत्तानि यान्यासन्पाण्डवस्य ह। तानि वक्ष्यामि ते वीर विचित्राणि महान्ति च।। | 14-73-20a 14-73-20b |
स हयः पृथिवीं राजन्प्रदक्षिणमवर्तत। ससारेत्तरतः पूर्वं तन्निबोध महीपते।। | 14-73-21a 14-73-21b |
अवमृद्रन्स राष्ट्राणि पार्थिवानां हयोत्तमः। शनैस्तदा परिययौ श्वेताश्वश्च महारथः।। | 14-73-22a 14-73-22b |
तत्र सङ्गणना नास्ति राज्ञामयुतशस्तदा। येऽयुध्यन्त महाराज क्षत्रिया हतबान्धवाः।। | 14-73-23a 14-73-23b |
किराता यवना राजन्बहवोऽसिधनुर्धराः। म्लेच्छाश्चान्ये बहुविधाः पूर्वं ये निकृता रणे।। | 14-73-24a 14-73-24b |
आर्याश्च पृथिवीपालाः प्रहृष्टनरवाहनाः। समीयुः पाण्डुपुत्रेण बहवो युद्धदुर्मदाः।। | 14-73-25a 14-73-25b |
एवं वृत्तानि युद्धानि तत्रतत्र महीपते। अर्जुनस्य महीपालैर्नानादेशसमागतैः।। | 14-73-26a 14-73-26b |
यान्यत्र हयतो राजन्प्रवृत्तानि महान्ति च। तानि युद्धानि वक्ष्यामि कौन्तेयस्य तवानघ।। | 14-73-27a 14-73-27b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि त्रिसप्ततितमोऽध्यायः।। 73 ।। |
14-73-9 आकुमारं तदा राजन् इति झ.पाठः।। 14-73-17 शिष्यः सोमश्रवाः।।
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