महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-076
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अर्जुनेन भगदत्तात्मजपराजयः।। 1 ।।
एवं त्रिरात्रमभवत्तद्युद्धं भरतर्षभ। अर्जुनस्य नरेन्द्रेण वृत्रेणेव शतक्रतोः।। | 14-76-1a 14-76-1b |
ततश्चतुर्थे दिवसे यज्ञदत्तो महाबलः। जहास सस्वनं हासं वाक्यं चेदमताब्रवीत्।। | 14-76-2a 14-76-2b |
अर्जुनार्जुन तिष्ठस्व न मे जीवन्विमोक्ष्यसे। त्वां निहत्य करिष्यामि पितुस्तोयं यथाविधि।। | 14-76-3a 14-76-3b |
त्वया वृद्धो मम पिता भगदत्तः पितुः सखा। हतो वृद्धोऽपि बाधित्वा शिशुं मामद्य योधय।। | 14-76-4a 14-76-4b |
इत्येवमुक्त्वा संक्रुद्धो यज्ञदत्तो नराधिपः। प्रेषयामास कौरव्य वारणं पाण्डवं प्रति।। | 14-76-5a 14-76-5b |
सम्प्रेष्यमाणो नागेन्द्रो यज्ञदत्तेन धीमता। उत्पतिष्यन्निवाकाशमभिदुद्राव पाण्डवम्।। | 14-76-6a 14-76-6b |
अग्रहस्तसुमुक्तेन शीकरेण स नागराट्। समौक्षति गुडाकेशं शैलं नील इवाम्बुदः।। | 14-76-7a 14-76-7b |
स तेन प्रेषितो राज्ञा मेघवद्विनदन्मुहुः। मुखाडम्बरसंह्रादैरभ्यद्रवत फल्गुनम्।। | 14-76-8a 14-76-8b |
स नृत्यन्निव नागेन्द्रो यज्ञदत्तप्रचोदितः। आससाद द्रुतं राजन्कौरवाणां महारथम्।। | 14-76-9a 14-76-9b |
तमायान्तमथालक्ष्य यज्ञदत्तस्य वारणम्। गाण्डीवमाश्रित्य बली न व्यकम्पत शत्रुहा।। | 14-76-10a 14-76-10b |
चुक्रोध बलवच्चापि पाण्डवस्तस्य भूपतेः। कार्यविघ्नमनुस्मृत्यि पूर्ववैरं च भारत।। | 14-76-11a 14-76-11b |
ततस्तं वारणं क्रुद्धः शरजालेन पाण्डवः। निवारयामास तदा वेलेव मकरालयम्।। | 14-76-12a 14-76-12b |
स नागप्रवरः श्रीमानर्जुनेन निवारितः। तस्थौ शरैर्विनुन्नाङ्गः श्वाविच्छललितो यथा।। | 14-76-13a 14-76-13b |
निवारितं गजं दृष्ट्वा भगदत्तसुतो नृपः। उत्ससर्ज शितान्बाणानर्जुने क्रोधमूर्छितः।। | 14-76-14a 14-76-14b |
अर्जुनस्तु महाबाहुः शरैररिनिघातिभिः। वारयामास तान्बाणांस्तदद्भुतमिवाभवत्।। | 14-76-15a 14-76-15b |
ततः पुनरभिक्रुद्धो राजा प्राग्ज्योतिषाधिपः। प्रेषयामास नागेन्द्रं बलवत्पर्वतोपमम्।। | 14-76-16a 14-76-16b |
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य बलवान्पाकशासनिः। नाराचमग्निसङ्काशं प्राहिणोद्वारणं प्रति।। | 14-76-17a 14-76-17b |
स तेन वारणो राजन्मर्मस्वभिहतो भृशम्। पपात सहसा भूमौ वज्ररुग्ण इवाचलः।। | 14-76-18a 14-76-18b |
स पतञ्शुशुभे नागो धनंजयशराहतः। विशन्निव महाशैलो महीं वज्रप्रपीडितः।। | 14-76-19a 14-76-19b |
तस्मिन्निपतिते नागे यज्ञदत्तस्य पाण्डवः। तं न भेतव्यमित्याह ततो भूमिगतं नृपम्।। | 14-76-20a 14-76-20b |
अब्रवीद्धि महातेजाः प्रस्थितं मां युधिष्ठिरः। राजानस्ते न हन्तव्या धनंजय कथञ्चन।। | 14-76-21a 14-76-21b |
सर्वमेतन्नरव्याघ्र भवत्येतावता कृतम्। योधाश्चापि न हन्तव्या धनंजय रणे त्वया।। | 14-76-22a 14-76-22b |
वक्तव्याश्चापि राजानः सर्वे सह सुहृज्जनैः। युधिष्ठिरस्याश्वमेधो भवद्भिरनुभूयताम्।। | 14-76-23a 14-76-23b |
इति भ्रातृवचः श्रुत्वा न हन्मि त्वां नराधिप। उत्तिष्ठ न भयं तेऽस्ति स्वस्तिमान्गच्छ पार्थिव।। | 14-76-24a 14-76-24b |
आगच्छेथा महाराज परां चैत्रीमुपस्थिताम्। तदाऽश्वमेधो भविता धर्मिराजस्य धीमतः।। | 14-76-25a 14-76-25b |
एवमुक्तः स राजा तु भगदत्तात्मजस्तदा। तथेत्वेवाब्रवीद्वाक्यं पाण्डवेनाभिनिर्जितः।। | 14-76-26a 14-76-26b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि षट्सप्ततितमोऽध्यायः।। 76 ।। |
14-76-13 शललितः शलाकाप्रोतः।।
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