महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-038
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ब्रह्मण महर्षीन्प्रति रजोगुणकार्यनिरूपणम्।। 1 ।।
ब्रह्मोवाच। | 14-38-1x |
रजोऽहं वः प्रवक्ष्यामि याथातथ्येन सत्तमाः। निबोधत महाभागा गुणवृत्तं च राजसम्।। | 14-38-1a 14-38-1b |
संतापो रूपमायासः सुखदुःखे हिमातपौ। ऐश्वर्यं विग्रहः सिद्धिर्हेतुवादोऽरतिः क्षमा।। | 14-38-2a 14-38-2b |
बलं शौर्यं मदो रोषो व्यायामकलहावपि। ईर्ष्येप्सा पैशुनं युद्धं ममत्वं परिपालनम्।। | 14-38-3a 14-38-3b |
वधबन्धपरिक्लेशाः क्रयो विक्रय एव च। निकृन्त च्छिन्धि भिन्धीति परवर्मावकर्तनम्।। | 14-38-4a 14-38-4b |
उग्रं दारुणमाक्रोशः परवित्तानुरागिता। लोकचिन्ताऽनुचिन्ता च मत्सरः परिभाषणम्।। | 14-38-5a 14-38-5b |
वृथाशास्त्रं मृषावादो विकल्पपरिभाषणम्। निन्दा स्तुतिः प्रशंसा च प्रतापः परिधर्षणम्।। | 14-38-6a 14-38-6b |
परिचर्या च शुश्रूषा सेवा तृष्णा व्यपाश्रयः।। व्यूहो नयः प्रमादश्च परिवादः परिग्रहः।। | 14-38-7a 14-38-7b |
संस्कारा ये च लोकेषु प्रवर्तन्ते पृथक्पृथक्। नृषु नारीषु भूतेषु द्रव्येषु शरणेषु च।। | 14-38-8a 14-38-8b |
संतापोऽप्रत्ययश्चैव व्रतानि नियमाश्च ये। प्रधानमाशीर्युक्तं च सततं मे भवत्विति।। | 14-38-9a 14-38-9b |
स्वाहाकारो नमस्कारः स्वधाकारो वषट्क्रिया। याजनाध्यापने चोभे यजनाध्ययने अपि।। | 14-38-10a 14-38-10b |
दानं प्रतिग्रहश्चैव प्रायश्चित्तानि मङ्गलम्। इदं मे स्यादिदं मे स्यात्स्नेहो गुणसमुद्भवः।। | 14-38-11a 14-38-11b |
अभिद्रोहस्तथा माया निकृतिर्मान एव च। स्तैन्यं हिंसा जुगुप्सा च परितापः प्रजागरः।। | 14-38-12a 14-38-12b |
दम्भो दर्पोऽथ रागश्च भक्तिः प्रीतिः प्रमोदनम्। द्यूतं च जनवादश्च सम्बन्धाः स्त्रीकृताश्च ये।। | 14-38-13a 14-38-13b |
नृत्यवादित्रगीतानां प्रसङ्गा ये च केचन। सर्व एते गुणा विप्रा राजसाः सम्प्रकीर्तिताः।। | 14-38-14a 14-38-14b |
भूतभव्यभविष्याणां भावानां भुवि भावनाः। त्रिवर्गनिरता नित्यं धर्मोऽर्थः काम इत्यपि।। | 14-38-15a 14-38-15b |
कामवृत्ताः प्रमोदन्ते सर्वकामसमृद्धिभिः। अर्वाक्स्रोतस इत्येते मनुष्या रजसा वृताः।। | 14-38-16a 14-38-16b |
अस्मिँलोके प्रमोदन्ते जायमानाः पुनःपनः। प्रेत्यभाविकमीहन्ते हलौकिकमेव च। ददति प्रतिगृह्णन्ति तर्पयन्त्यथ जुह्वति।। | 14-38-17a 14-38-17b 14-38-17c |
रजोगुणा वो बहुधानुकीर्तिता यथावदुक्तं गुणवृत्तमेव च। नरोपि यो वेद गुणानिमान्सदा स राजसैः सर्वगुणैर्विमुच्यते।। | 14-38-18a 14-38-18b 14-38-18c 14-38-18d |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि अष्टत्रिंशोऽध्यायः।। 38 ।। |
14-38-2 संघातो रूपमायास इति क.ट.थ.पाठः।। 14-38-5 उग्रं निष्टुरं दारुणं हिंस्रत्वम्।। 14-38-6 परिभाषणं धिक्कृत्य भाषणम्।। 14-38-7 व्यूहः व्यवहाररचनाकौशलम्।। 14-38-8 शरणेषु रक्षितृषु।। 14-38-9 अप्रत्ययः अविश्वासः।। 14-38-12 परितापः स्वजनकैवल्यनिमित्तो दाहः। पाठान्तरे परिवादः सर्वनिन्दा।। 14-38-14 प्रसङ्गा येन केनचिदिति क.थ.पाठः।। 14-38-16 अर्वाक् स्वर्गादधः भूमेरुपरि स्रोतः प्रवाहो येषां ते तथा।। 14-38-17 प्रेत्यभाविकं जन्मान्तरीयं कुशलम्।।
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