महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-002
दिखावट
← आश्वमेधिकपर्व-001 | महाभारतम् चतुर्दशपर्व महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-002 वेदव्यासः |
आश्वमेधिकपर्व-003 → |
|
धृतराष्ट्रेण समाश्वासनेपि तूष्णीं तिष्ठन्तो युधिष्ठिरस्य कृष्णेन परिसान्त्वनम्।। 1 ।। पुनर्भीष्मद्रोणकर्णमारणानुस्मरण विषादेनारण्यगमनाय कृष्णानुज्ञानमाकाङ्क्षमाणस्य युधिष्ठिरस्य व्यासेनि परिसान्त्वनम्।। 2 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 14-2-1x |
एवमुक्तस्तु राजाऽसौ धृतराष्ट्रेण धीमता। तूष्णींबभूव मेधावी तमुवाचाथ केशवः।। | 14-2-1a 14-2-1b |
अतीव मनसा शोकः क्रियमाणो जनाधिप। सन्तपयति चैतस्य पूर्वप्रेतान्पितामहान्।। | 14-2-2a 14-2-2b |
यजस्व विविधैर्यज्ञैर्बहुभिः स्वाप्तदक्षिणैः। देवांस्तर्पय सोमेन स्वधया च पितॄनपि।। | 14-2-3a 14-2-3b |
अतिथीनन्नपानेन कामैरन्यैरकिञ्चनान्। `त्वद्विधस्य महाबुद्धे नैतदद्योपपद्यते।' विदितं वेदितव्यं ते कर्तव्यमपि ते कृतम्।। | 14-2-4a 14-2-4b 14-2-4c |
श्रुताश्च राजधर्मास्ते भीष्माद्भागीरथीसुतात्। कृष्णद्वैपायनाच्चैव नारदाद्विदुरात्तथा।। | 14-2-5a 14-2-5b |
नेमामर्हसि मूढानां वृत्तिं त्वमनुवर्तितुम्। पितृपैतामहं वृत्तमास्थाय धुरमुद्वह।। | 14-2-6a 14-2-6b |
युक्तं हि यशसा क्षात्रं स्वर्गं प्राप्तुमसंशयम्। नहि कश्चिद्धि शूरणां निहतोऽत्र पराङ्मुखः।। | 14-2-7a 14-2-7b |
त्यज शोकं महाराज भवितव्यं हि तत्तथा। न शक्यास्ते पुनर्द्रष्टुं त्वया येऽस्मिन्रणे हताः।। | 14-2-8a 14-2-8b |
एतावदुक्त्वा गोविन्दो धर्मराजं युधिष्ठिरम्। विरराम महातेजास्तमुवाच युधिष्ठिरः।। | 14-2-9a 14-2-9b |
गोविन्द मयि या प्रीतिस्तव सा विदिता मम। सौहृदेन तथा प्रेम्णा सदा मय्यनुकम्पसे।। | 14-2-10a 14-2-10b |
प्रियं तु मे स्यात्सुमहत्कृतं चक्रगदाधर। श्रीमन्प्रीतेन मनसाक सर्वं यादवनन्दन।। | 14-2-11a 14-2-11b |
यदि मामनुजानीयाद्भवान्गन्तुं तपोवनम्। `कृतकृत्यो भविष्यामि इति मे निश्चिता मतिः'।। | 14-2-12a 14-2-12b |
न हि शान्तिं प्रपश्यामि पातयित्वा पितामहम्। `नृशंसः पुरुषव्याघ्रं गुरुं वीर्यबलान्वितम्।' कर्णं च पुरुषव्याघ्नं सङ्ग्रामेष्वपलायिनम्।। | 14-2-13a 14-2-13b 14-2-13c |
कर्मणा येन मुच्येयमस्मात्क्रूरादरिंदम। कर्मणा तद्विधत्स्वेह येन शुध्यति मे मनः।। | 14-2-14a 14-2-14b |
तमेवंवादिनं पार्थं व्यासः प्रोवाच धर्मवित्। सान्त्वयन्सुमहातेजाः शुभं वचनमर्थवत्।। | 14-2-15a 14-2-15b |
सुकृता ते मतिस्तात पुनर्बाल्येन मुह्यसे। किमाकाशे वयं सर्वे प्रलपामो मुहुर्मुहुः।। | 14-2-16a 14-2-16b |
विदिताः क्षत्रधर्मास्ते येषां युद्धेन जीविका। तथा प्रवृत्तो नृपतिर्नाधिबन्धेन युज्यसे।। | 14-2-17a 14-2-17b |
मोक्षधर्माश्च निखिला याथातथ्येन ते श्रुताः। `यथा वै कामजां मायां परित्युक्तं त्वमर्हसि।।' | 14-2-18a 14-2-18b |
असकृच्चापि सन्देहाश्छिन्नास्ते कामजा मया। अश्रद्दधानो दुर्मेधा लुप्तस्मृतिरसि ध्रुवम्।। | 14-2-19a 14-2-19b |
मैवं भव न ते युक्तमिदमज्ञानमीदृशम्।। | 14-2-20a |
प्रायश्चित्तानि सर्वाणि विदितानि च तेऽनघ। राजधर्माश्च ते सर्वे दानधर्माश्च ते श्रुताः।। | 14-2-21a 14-2-21b |
स कथं सर्वधर्मज्ञः सर्वागमविशारदः। परिमुह्यसि भूयस्त्वमज्ञानादिव भारत।। | 14-2-22a 14-2-22b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अश्वमेधपर्वणि द्वितीयोऽध्यायः।। 2 ।। |
14-2-16 पुनर्बाह्मेन मुह्यसे इति क.ट.पाठः।। 16 ।।
आश्वमेधिकपर्व-001 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आश्वमेधिकपर्व-003 |