महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-067
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सुभद्रया श्रीकृष्णंप्रति तन्महिमसंस्तवनपूर्वकं परिक्षिदुज्जीवनप्रार्थना।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 14-67-1x |
उत्थितायां पृथायां तु सुभद्रा भ्रातरं तदा। दृष्ट्वा चुक्रोश दुःखार्ता वचनं चेदमब्रवीत्।। | 14-67-1a 14-67-1b |
पुण्डरीकाक्ष पश्य त्वं पौत्रं पार्थस्य धीमतः। परिक्षीणेषु कुरुषु परिक्षीणां गतायुषम्।। | 14-67-2a 14-67-2b |
इषीका द्रोणपुत्रेणि भीमसेनार्थमुद्यता। सोत्तरायां निपतिता विजये मयि चैव ह।। | 14-67-3a 14-67-3b |
सेयं ज्वलन्ती हृदये मयि तिष्टति केशव। यन्न पश्यामि दुर्धर्ष सहपुत्रं तु तं प्रभो।। | 14-67-4a 14-67-4b |
किंनु वक्ष्यति धर्मात्मा धर्मराजो युधिष्ठिरः। भीमसेनार्जुनौ चापि माद्रवत्याः सुतौ च तौ।। | 14-67-5a 14-67-5b |
श्रुत्वाऽभिमन्योस्तनयं जातं च मृतमेव च। मुषिता इव वार्ष्णेय द्रोणपुत्रेण पाण्डवाः।। | 14-67-6a 14-67-6b |
अभिमन्युः प्रियः कृष्ण पितॄणां नात्र संशयः। ते श्रुत्वा किंनु वक्ष्यन्ति द्रोणपुत्रास्त्रनिर्जिताः।। | 14-67-7a 14-67-7b |
भविता नः परं दुःखं किंनु मन्ये जनार्दन। अभिमन्योः सुतं कृष्ण मृतं जातमरिंदम।। | 14-67-8a 14-67-8b |
साऽहं प्रसादये कृष्ण त्वामद्य शिरसा नता। पृथेयं द्रौपदी चैव ताः पश्य पुरुषोत्तम।। | 14-67-9a 14-67-9b |
यदा द्रोणसुतो गर्भान्पाण्डूनां हन्ति माधव। तदा किल त्वया द्रौणिः क्रुद्धेनोक्तोऽरिमर्दन।। | 14-67-10a 14-67-10b |
अकामं त्वां करिष्यामि ब्रह्मबन्धो नराधम। अहं संजीवयिष्यामि किरीटितनयात्मजम्।। | 14-67-11a 14-67-11b |
इत्येद्वचनं श्रुत्वा जानानाऽहं बलं तव। प्रसादये त्वां दुर्धर्ष जीवतामभिमन्युजः।। | 14-67-12a 14-67-12b |
यद्येतत्त्वं प्रतिश्रुत्य न करोषि वच शुभम्। सकलं वृष्णिशार्दूल मृतां मामवधारय।। | 14-67-13a 14-67-13b |
अभिमन्योः सुतो वीर न संजीवति यद्ययम्। जीवति त्वयि दुर्धर्ष किं करिष्याम्यहं त्वया।। | 14-67-14a 14-67-14b |
संजीवयैनं दुर्धर्ष मृतं त्वमभिमन्युजम्। सदृशाक्षसुतं वीर सस्यं वर्षन्निवांम्बुदः।। | 14-67-15a 14-67-15b |
त्वं हि केशव धर्मात्मा सत्यवान्सत्यविक्रमः। स तां वाचमृतां कर्तुमर्हसि त्वमरिंदम।। | 14-67-16a 14-67-16b |
इच्छन्नपि हि लोकांस्त्रीञ्जीवयेथा मृतानिमान्। किं पुनर्दयितं जातं स्वस्रीयस्यात्मजं मृतम्।। | 14-67-17a 14-67-17b |
प्रभावज्ञाऽस्मि ते कृष्ण तस्मात्त्वां याचयाम्यहम्। कुरुष्व पाण्डुपुत्राणामिमं परमनुग्रहम्।। | 14-67-18a 14-67-18b |
स्वसेति वा महाबाहो हतपुत्रेति वा पुनः। प्रपन्ना मामियं चेति दयां कर्तुमिहार्हसि।। | 14-67-19a 14-67-19b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वि सप्तषष्टितमोऽध्यायः।। 67 ।। |
14-67-4 घृतेन सिक्तैरिति शेषः।।
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