महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-012
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कृष्णेन युधिष्ठिरंप्रति शारीरमानसभेदनेन व्याधेर्द्वैविध्याभिधानपूर्वकं तत्परिहारोपायकथनम्।। 1 ।।
वासुदेव उवाच। | 14-12-1x |
द्विवोधो जायते व्याधिः शारीरो मानसस्तथा। परस्परं तयोर्जन्म निर्द्वन्द्वं नोपपद्यते।। | 14-12-1a 14-12-1b |
शरीरे जायते व्याधिः शरीरः स निगद्यते। मानसे जायते व्याधिर्मानसस्तु निगद्यते।। | 14-12-2a 14-12-2b |
शीतोष्णे चैव वायुश्च गुणा राजञ्शरीरजाः। तेषां गुणानां साम्यं चेत्तदाहुः स्वस्थलक्षणम्।। | 14-12-3a 14-12-3b |
उष्णेन बाध्यते शीतं शीतेनोष्णं च बाध्यते।। | 14-12-4a |
सत्वं रजस्तमश्चेति त्रय आत्मगुणाः स्मृताः। तेषां गुणानां साम्यं चेत्तदाहुः स्वस्थलक्षणम्।। | 14-12-5a 14-12-5b |
तेषामन्यतमोत्सेके विधानमुपदिश्यते। हर्षेण बाध्यते शोको हर्षः शोकेन बाध्यते।। | 14-12-6a 14-12-6b |
कश्चिद्दुःखे वर्तमानः सुखस्य स्मर्तुमिच्छति। कश्चित्सुखे वर्तमानो दुःखस्य स्मर्तुमिच्छति।। | 14-12-7a 14-12-7b |
स त्वं न दुःखी दुःखस्य न सुखी सुसुखस्य वा। स्मर्तुमिच्छसि कौन्तेय दैवं हि बलवत्तरम्। अथवा ते स्वभावोऽयं येन पार्थावकृष्यसे।। | 14-12-8a 14-12-8b 14-12-8c |
दृष्ट्वा सभागतां कृष्णामेकवस्त्रां रजस्वलाम्। मिषतां पाण्डवेयानां न तस्य स्मर्तुमिच्छसि।। | 14-12-9a 14-12-9b |
प्रव्राजनं च नगरादजिनैश्च विवासनम्। महारण्यनिवासश्च न तस्य स्मर्तुमिच्छसि।। | 14-12-10a 14-12-10b |
जटासुरात्परिक्लेशश्चित्रसेनेन चाहवः। सैन्धवाच्च परिक्लेशो न तस्य स्मर्तुमिच्छसि।। | 14-12-11a 14-12-11b |
पुनरज्ञातचर्यायां कीचकेन पदा वधः। याज्ञसेन्यास्तथा पार्थ न तस्य स्मर्तुमिच्छसि।। | 14-12-12a 14-12-12b |
यच्च ते द्रोणभीष्माभ्यां युद्धमासीदरिंदम। मनसैकेन योद्धव्यं तत्ते युद्धमुपस्थितम्।। | 14-12-13a 14-12-13b |
तस्मादभ्युपगन्तव्यं युद्धाय भरतर्षभ। परमव्यक्तरूपस्य पारं युक्त्या स्वकर्मभिः।। | 14-12-14a 14-12-14b |
यत्र नैव शरैः कार्यं न भृत्यैर्न च बन्धुभिः। आत्मनैकेन योद्धव्यं तत्ते युद्धमुपस्थितम्।। | 14-12-15a 14-12-15b |
तस्मिन्ननिर्जिते युद्धे कामवस्थां गमिष्यसि। एतज्ज्ञात्वा तु कौन्तेय कृतकृत्यो भविष्यसि।। | 14-12-16a 14-12-16b |
एथां बुद्धिं विनिश्चित्य भूतानामागतिं गतिम्। पितृपैतामहे वृत्ते शाधि राज्यं यथोचितम्।। | 14-12-17a 14-12-17b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अश्वमेधपर्वणि द्वादशोऽध्यायः।। 12 ।। |
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