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महाभारतम्-08-कर्णपर्व-019

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अष्टमपर्व
महाभारतम्-08-कर्णपर्व-019
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सङ्कुलयुद्धम्।। 1 ।।

सञ्जय उवाच। 8-19-1x
युधिष्ठिरं महाराज विसृजन्तं शरान्बहून्।
स्वयं दुर्योधनो राजा प्रत्यगृह्णादभीतवत्।।
8-19-1a
8-19-1b
तमापतन्तं सहसा तव पुत्रं महारथम्।
धर्मराजो द्रुतं विद्‌ध्वा तिष्ठतिष्ठेति चाब्रवीत्।।
8-19-2a
8-19-2b
स तु तं प्रतिविव्याध नवभिर्निशितैः शरैः।
सारथिं चास्य भल्लेन भृशं क्रुद्धोऽभ्यताडयत्।।
8-19-3a
8-19-3b
ततो युधिष्ठिरो राजन्स्वर्णपुङ्खाञ्शिलीमुखान्।
दुर्योधनाय चिक्षेप त्रयोदश शिलाशितान्।।
8-19-4a
8-19-4b
चतुर्भिश्चतुरो वाहांस्तस्य हत्वा महारथः।
पञ्चमेन शिरः कायात्सारथेश्च समाक्षिपत्।।
8-19-5a
8-19-5b
षष्ठेन तु ध्वजं राज्ञः सप्तमेन तु कार्मुकम्।
अष्टमेन तथा खङ्गं पातयामास भूतले।
पञ्चभिर्नृपतिं चापि धर्मराजोऽर्दयद्भृशम्।।
8-19-6a
8-19-6b
8-19-6c
हताश्वात्तु रथात्तस्मादवप्लुत्य सुतस्तव।
उत्तमं व्यसनं प्राप्तो भूमावेवावतिष्ठत।।
8-19-7a
8-19-7b
तं तु कृच्छ्रगतं दृष्ट्वा कर्णद्रौणिकृपादयः।
अभ्यवर्तन्त सहसा परीप्सन्तो नराधिपम्।।
8-19-8a
8-19-8b
अथ पाण्डुसुताः सर्वे परिवार्य युधिष्ठिरम्।
अन्वयुः समरे राजंस्ततो युद्धमवर्तत।।
8-19-9a
8-19-9b
ततस्तूर्यसहस्राणि प्रावाद्यन्त महामृधे।। 8-19-10a
क्ष्वेलाः किलकिलाशब्दाः प्रादुरासन्महीपते।
यत्राभ्यगच्छन्समरे पाञ्चालाः कौरवैः सह।।
8-19-11a
8-19-11b
नरा नरैः समाजग्मुर्वारणा वरवारणैः।
रथाश्च रथिभिः सार्धं हयाश्च हयसादिभिः।।
8-19-12a
8-19-12b
द्वन्द्वान्यासन्महाराज प्रेक्षणीयानि संयुगे।
विविधान्यप्यचिन्त्यानि शस्त्रवन्त्युत्तमानि च।।
8-19-13a
8-19-13b
ते शूराः समरे सर्वे चित्रं लघु च सुष्ठु च।
अयुध्यन्त महावेगाः परस्परवधैषिणः।।
8-19-14a
8-19-14b
अन्योन्यं समरे जघ्नुर्योधव्रतमनुष्ठिताः।
न हि ते समरं चक्रुः पृष्ठतो वै कथञ्चन।।
8-19-15a
8-19-15b
मुहूर्तमेव तद्युद्वमासीन्मधुरदर्शनम्।
तत उन्मत्तवद्राजन्निर्मर्यादमवर्तत।।
8-19-16a
8-19-16b
रथी नागं समासाद्य दारयन्निशितैः शरैः।
प्रेषयामास कालाय शरैः सन्नतपर्वभिः।।
8-19-17a
8-19-17b
नागा हयान्समासाद्य विक्षिपन्तो बहून्रणे।
दारयामासुरत्युग्रं तत्रतत्र तदातदा।।
8-19-18a
8-19-18b
हयारोहाश्च बहवः परिवार्य हयोत्तमान्।
तलशब्दरवांश्चक्रुः सम्पतन्तस्ततस्ततः।।
8-19-19a
8-19-19b
धावमानांस्ततस्तांस्तु द्रवमाणान्महागजान्।
पार्श्वतः पृष्ठतश्चैव निजघ्नुर्हयसादिनः।।
8-19-20a
8-19-20b
विद्राव्य च बहूनश्वान्नागा राजन्मदोत्कटाः।
विषाणैश्चापरे जघ्नुर्ममृदुश्चापरे भृशम्।।
8-19-21a
8-19-21b
साश्वारोहांश्च तुरगान्विषामैर्विव्यधू रुषा।
अपरे चिक्षिपुर्वेगात्प्रगृह्यातिबलास्तदा।।
8-19-22a
8-19-22b
पादातैराहता नागा विवरेषु समन्ततः।
चक्रुरार्तस्वरं घोरं दुद्रुवुश्च दिशो दश।।
8-19-23a
8-19-23b
पदातीनां तु सहसा प्रद्रुतानां महाहवे।
उत्सृज्याभरणं तूर्णमववव्रू रणाजिरे।।
8-19-24a
8-19-24b
निमित्तं मन्यमानास्तु परिणाम्य महागजाः।
जगृहुर्बिभिदुश्चैव चित्राण्याभरणानि च।।
8-19-25a
8-19-25b
तांस्तु तत्र प्रसक्तान्वै परिन्वार्य पदातयः।
हस्त्यारोहान्निजघ्नुस्ते महावेगा बलोत्कटाः।।
8-19-26a
8-19-26b
अपरे हस्तिभिर्हस्तैः खं विक्षिप्ता महाहवे।
निपतन्तो विषाणाग्रैर्भृशं विद्वाः सुशिक्षितैः।।
8-19-27a
8-19-27b
अपरे सहसा गृह्य विषाणैरेव सूदिताः।
सेनान्तरं समासाद्य केचित्तत्र महागजैः।।
8-19-28a
8-19-28b
क्षुण्णगात्रा महाराज विक्षिप्य च पुनःपुनः।
अपरे व्यजनानीव विभ्राम्य निहता मृधे।।
8-19-29a
8-19-29b
पुरःसराश्च नागानामपरेषां विशाम्पते।
शरीराण्यतिविद्वानि तत्रतत्र रणाजिरे।।
8-19-30a
8-19-30b
प्रतिमानेषु कुम्भेषु दन्तवेष्टेषु चापरे।
निगृहीता भृशं नागाः प्रासतोमरशक्तिभिः।।
8-19-31a
8-19-31b
निगृह्य च गजाः केचित् पार्श्वस्थैर्भृशदारुणैः।
रथाश्वसादिभिस्तत्र सम्भिन्ना न्यपतन्भुवि।।
8-19-32a
8-19-32b
सहयाः सादिनस्तत्र तोमरेण महामृधे।
भूमावमृद्रन्वेगेन सचर्माणं पदातिनम्।।
8-19-33a
8-19-33b
चछा सावरणान्कांश्चित्तत्रतत्र विशाम्पते।
रथान्नागाः समासाद्य परिगृह्य च मारिष।
व्याक्षिपन्सहसा तत्र घोररूपे भयानके।।
8-19-34a
8-19-34b
8-19-34c
नाराचैर्निहताश्चापि गजाः पेतुर्महाबलाः।
पर्वतस्येव शिखरं वज्ररुग्णं महीतले।।
8-19-35a
8-19-35b
योधा योधान्समासाद्य मुष्टिभिर्व्यहनन्युधि।
केशेष्वन्योन्यमाक्षिप्य चिक्षिपुर्बिभिदुश्च ह।।
8-19-36a
8-19-36b
उद्यम्य च भुजानन्ये निक्षिप्य च महीतले।
पदा चोरः समाक्रम्य स्फुरतोऽपाहरच्छिरः।।
8-19-37a
8-19-37b
पततश्चापरो राजन्विजहारासिना शिरः।
`मृतमन्यो महाराज पदा ताडितवांस्तदा'।।
8-19-38a
8-19-38b
जीवतश्च तथैवान्यः शस्त्रं काये न्यमज्जयत्।
मुष्टियुद्धं महच्चासीद्योधानां तत्र भारत।
तथा केशग्रहश्चोग्रो बाहुयुद्धं च भैरवम्।।
8-19-39a
8-19-39b
8-19-39c
समासक्तस्य चान्येन अविज्ञातस्तथाऽपरः।
जहार समरे प्राणान्नानाशस्तैरनेकधा।।
8-19-40a
8-19-40b
संसक्तेषु च योधेषु वर्तमाने च सङ्कुले।
कबन्धान्युत्थितानि स्युः शतशोऽथ सहस्रशः।।
8-19-41a
8-19-41b
शोणितैः सिच्यमानानि शस्त्राणि कवचानि च।
महारागानुरक्तानि वस्त्राणीव चकाशिरे।।
8-19-42a
8-19-42b
एवमेतन्महद्युद्वं दारुणं शस्त्रसङ्कुलम्।
उन्मत्तगङ्गाप्रतिमं शब्देनापूरयज्जगत्।।
8-19-43a
8-19-43b
नैव स्वे न परे राजन्विज्ञायन्ते शरातुराः।
योद्वव्यमिति युध्यन्ते राजानो जयगृद्विनः।।
8-19-44a
8-19-44b
स्वान्स्वे जघ्नुर्महराज परांश्चैव समागतान्।
उभयोः सेनयोर्वीरैर्व्याकुलं समपद्यत।।
8-19-45a
8-19-45b
रथैर्भग्नैर्महाराज वारणैश्च निपातितैः।
हयैश्च पतितैस्तत्र नरैश्च विनिपातितैः।।
8-19-46a
8-19-46b
अगम्यरूपा पृथिवी क्षणेन समपद्यत।
क्षणेनासीन्महीपाल क्षतजौघप्रवर्तिनी।।
8-19-47a
8-19-47b
पाञ्चालानहतत्कर्णस्त्रिगर्तांश्च धनञ्जयः।
भीमसेनः कुरून्राजन्हस्त्यनीकं च सर्वशः।।
8-19-48a
8-19-48b
एवमेष क्षयो वृत्तः कुरुपाण्डवसेनयोः।
अपराह्णे गते सूर्ये काङ्क्षतां विपुलं यशः।।
8-19-49a
8-19-49b
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि
षोडशदिवसयुद्धे एकोनविंशोऽध्यायः।। 19 ।।

8-19-24 आभरणमववव्रुः अवगत्य वृतवन्तः।। 8-19-25 निमित्तं जयहेतुम्। महान्ता गजा येषां ते महागजा गजारोहा जगृहुर्हस्तिभिर्ग्राहयामासुः। परिणाम्य हस्तिनमिति शेषः। बिभि दुश्च शत्रून्गजैरेव।। 8-19-31 प्रतिमानेषु गजदन्तान्तरालेषु। प्रासैः कुम्भेषु तोमरैर्दन्तवेष्टेषु शक्तिमिश्च निगृहीताः। प्रतिमानं प्रतिच्छाया गजदन्तान्तरालयोरिति मेदिनी।। 8-19-19 एकोनविंशोऽध्यायः।।

कर्णपर्व-018 पुटाग्रे अल्लिखितम्। कर्णपर्व-020