महाभारतम्-08-कर्णपर्व-020
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युधिष्ठिरेण दुर्योधनपराजयः।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 8-20-1x |
अतितीव्राणि दुःखानि दुःसहानि बहूनि च। त्वत्तोऽहं सञ्जयाश्रौषं पुत्राणां चैव सङ्क्षयम्।। | 8-20-1a 8-20-1b |
यथा त्वं मे कथयसे यथा युद्वमवर्तत। न सन्ति सूत कौरव्या इति मे निश्चिता मतिः।। | 8-20-2a 8-20-2b |
दुर्योधनश्च विरथः कृतस्तत्र महारथः। धर्मपुत्रः कथं चक्रे तस्य वा नृपतिः कथम्।। | 8-20-3a 8-20-3b |
अपराह्णे कथं युद्वमभवद्रोमहर्षणम्। तन्ममाचक्ष्व तत्त्वेन कुशलो ह्यसि सञ्जय।। | 8-20-4a 8-20-4b |
सञ्जय उवाच। | 8-20-5x |
संसक्तेषु तु सैन्येषु वध्यमानेषु भागशः। रथमन्यं समास्थाय पुत्रस्तव विशाम्पते।। | 8-20-5a 8-20-5b |
क्रोधेन महता युक्तः सविषो भुजगो यथा। दुर्योधनः समालक्ष्य धर्मराजं युधिष्ठिरम्। प्रोवाच सूतं त्वरितो याहियाहीति भारत।। | 8-20-6a 8-20-6b 8-20-6c |
तत्र मां प्रापय क्षिप्रं सारथे यत्र पाण्डवः। ध्रियमाणातप्रतेण राजा राजति दंशितः।। | 8-20-7a 8-20-7b |
स सूतश्चोदितो राज्ञा राज्ञः स्यन्दनमुत्तमम्। युधिष्ठिरस्याभिमुखं प्रेषयामास संयुगे।। | 8-20-8a 8-20-8b |
ततो युधिष्ठिरः क्रुद्वः प्रभिन्न इव कुञ्जरः। सारथिं चोदयामास याहि यत्र सुयोधनः।। | 8-20-9a 8-20-9b |
तौ समाजग्मतुर्वीरौ भ्रातरौ रथसत्तमौ।। | 8-20-10a |
समेत्य च महावीरौ संरब्धौ युद्वदुर्मदौ। ववर्षतुर्महेष्वासौ शरैरन्योन्यमाहवे।। | 8-20-11a 8-20-11b |
ततो दुर्योधनो राजा धर्मशीलस्य मारिष। शिलाशितेन भल्लेन धनुश्चिच्छेद संयुगे।। | 8-20-12a 8-20-12b |
तं नामृष्यत सङ्क्रुद्धो ह्यवमानं युधिष्ठिरः। अपविध्य धनुश्छिन्नं क्रोधसंरक्तलोचनः।। | 8-20-13a 8-20-13b |
अन्यत्कार्मुकमादाय धर्मपुत्रश्चमूमुखे। दुर्योधनस्य चिच्छेद ध्वजं कार्मुकमेव च।। | 8-20-14a 8-20-14b |
अथान्यद्वनुरादाय पुत्रस्ते भरतर्षभ। `युधिष्ठिरस्य चिक्षेप शरान्कनकभूषणान्। रुक्मपुङ्खान्प्रसन्नाग्रान्सविषानिव पन्नगान्'।। | 8-20-15a 8-20-15b 8-20-15c |
तावन्योन्यं सुसङ्क्रुद्धौ शस्त्रवर्षाण्यमुञ्चताम्। सिंहाविव सुसंरब्धौ परस्परजिगीषया।। | 8-20-16a 8-20-16b |
जघ्नतुस्तौ रणेऽन्योन्यं नर्दमानौ वृषाविव। अन्तरं मार्गमाणौ च चेरतुस्तौ महारथौ।। | 8-20-17a 8-20-17b |
ततः पूर्णायतोत्सृष्टैः शरैस्तौ तु कृतव्रणौ। विरेजतुर्महाराज किंशुकाविव पुष्पितौ।। | 8-20-18a 8-20-18b |
ततो राजन्विमुञ्चन्तौ सिंहनादान्मुहुर्मुहुः। तलयोश्च तथा शब्दान्धनुषश्च महाहवे।। | 8-20-19a 8-20-19b |
शङ्खशब्दवरांश्चैव चक्रतुस्तौ नरेश्वरौ। अन्योन्यं तौ महाराज पीडयांचक्रतुर्भृशम्।। | 8-20-20a 8-20-20b |
ततो युधिष्ठिरो राजा पुत्रं तव शरैस्त्रिभिः। आजघानोरसि क्रुद्धो वज्रवेगैर्दुरासदैः।। | 8-20-21a 8-20-21b |
प्रतिविव्याध तं तूर्णं तव पुत्रो महीपतिः। पञ्चभिर्निशितैर्बाणैः स्वर्णपुङ्खैः शिलाशितैः।। | 8-20-22a 8-20-22b |
ततो दुर्योधनो राजा शक्तिं चिक्षेप भारत। सर्वपारशवीं तीक्ष्णां महोल्काप्रतिमां तदा।। | 8-20-23a 8-20-23b |
तामापतन्तीं सहसा धर्मराजः शितैः शरैः। त्रिभिश्चिच्छेद सहसा तं च विव्याध पञ्चभिः।। | 8-20-24a 8-20-24b |
निपपात ततः साऽथ स्वर्णदण्डा महास्वना। निपतन्ती महोल्केव व्यराजच्छिखिसन्निभा।। | 8-20-25a 8-20-25b |
शक्तिं विनिहतां दृष्ट्वा पुत्रस्तव विशाम्पते। नवभिर्निशितैर्भल्लैर्निजघान युधिष्ठिरम्।। | 8-20-26a 8-20-26b |
सोऽतिविद्वो बलवता शत्रुणआ शत्रुतापनः। दुर्योधनं समुद्दिश्य बाणं जग्राह सत्वरः।। | 8-20-27a 8-20-27b |
समाधत्त च तं बाणं धनुर्मध्ये महाबलः। चिक्षेप च महाराज ततः क्रुद्वः पराक्रमी।। | 8-20-28a 8-20-28b |
स तु बाणः समासाद्य तव पुत्रं महारथम्। व्यामोहयत राजानं धरणीं च ददार ह।। | 8-20-29a 8-20-29b |
ततो दुर्योधनः क्रुद्धो गदामुद्यम्य वेगितः। विधित्सुः कलहस्यान्तं धर्मराजमुपाद्रवत्।। | 8-20-30a 8-20-30b |
तमुद्यतगदं दृष्ट्वा दण्डहस्तमिवान्तकम्। धर्मराजो महाशक्तिं प्राहिणोत्तव सूनवे।। | 8-20-31a 8-20-31b |
दीप्यमानां महावेगां महोल्कां ज्वलितामिव। यमदण्डनिभां घोरां कालरात्रिमिवापराम्।। | 8-20-32a 8-20-32b |
रथस्थः स तया विद्वो वर्म भित्त्वा स्तनान्तरे। भृशं संविग्नहृदयः पपात च मुमोह च।। | 8-20-33a 8-20-33b |
नभस्तमाह च ततः प्रतिज्ञामनुपालय। नायं वध्यस्तव नृप इत्युक्तः स न्यवर्तत।। | 8-20-34a 8-20-34b |
ततस्त्वरितमागम्य कृतवर्मा तवात्मजम्। प्रत्यपद्यत राजानं निम्नं व्यसनार्णवे।। | 8-20-35a 8-20-35b |
गदामादाय भीमोऽपि हेमपट्टपरिष्कृताम्। अभिदुद्राव वेगेन कृतवर्माणमाहवे।। | 8-20-36a 8-20-36b |
एवं तदभवद्युद्धं त्वदीयानां परैः सह। अपराह्णे महाराज काङ्क्षतां विजयं युधि।। | 8-20-37a 8-20-37b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि षोडशदिवसयुद्धे विंशोऽध्यायः।। 20 ।। |
8-20-1 अतितीव्राणि युद्धानीति क.ट.ड.पाठः।। 8-20-3 तस्य तं च नृपतिर्दुर्योधनः कथमयुध्यत इति शेषः।। 8-20-13 अपविध्य त्यक्त्वा।। 8-20-23 सर्वपारशवीं सर्वपारशवीं सर्वविनाशिनीं गौरादिः। तिरस्कारे विनाशे च पुंसि पारशवः इति मेदिनी।।३ 8-20-25 दीपयन्ती महोल्काभा राजञ्शक्तिर्दिशो दश इति ड.पाठः।। 8-20-34 भीमस्तमाह च ततः प्रतिज्ञामनुचिन्तयन् इति झ.पाठः।। 8-20-20 विंशोऽध्यायः।।
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