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महाभारतम्-08-कर्णपर्व-009

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महाभारतम्-08-कर्णपर्व-009
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सङ्कुलयुद्धम्।। 1 ।। भीमेन क्षेमधूर्तिवधः।। 2 ।।

सञ्जय उवाच। 8-9-1x
ते सेनेऽन्योन्यमासाद्य प्रहृष्टाश्वनरद्विपे।
बृहत्यौ सम्प्रजहाते देवासुरचमूसमे।।
8-9-1a
8-9-1b
ततो नानारथाश्वेभाः पत्तयश्चोग्रविक्रमाः।
सम्प्रहारान्भृशं चक्रुर्देहपाप्मविनाशनान्।।
8-9-2a
8-9-2b
पूर्णचन्द्रार्कपद्मानां कान्तित्विङ्गन्धतः समैः।
उत्तमाङ्गैर्नृसिंहानां नृसिंहास्तस्तरुर्महीम्।।
8-9-3a
8-9-3b
अर्धचन्द्रैस्तथा भल्लैः क्षुरप्रैरसिपट्टसैः।
परश्वथैश्चापहृतान्युत्तमाङ्गानि युध्यताम्।।
8-9-4a
8-9-4b
व्यायतायतबाहूनां व्यायतायतबाहुभिः।
वाहवः पातिता रेजुर्धरण्यां सायुधाङ्गदैः।।
8-9-5a
8-9-5b
तैः स्फुरद्भिर्मही भाति रक्ताङ्गुलितलैस्तथा।
गरुडप्रहितैरुग्रैः पञ्चास्यैरुरगैरिव।।
8-9-6a
8-9-6b
द्विरदस्यन्दनाश्वेभ्यः पेतुर्वीरा द्विषद्धताः।
विमानेभ्यो यथा क्षीणे पुण्ये स्वर्गदस्तथा।।
8-9-7a
8-9-7b
गदाभिरन्ये गुर्वीभिः परिधैर्मुसलैरपि।
पोथिताः शतशः पेतुर्वीरा वीरतरै रणे।।
8-9-8a
8-9-8b
रथा रथैर्विमथिता मत्ता मत्तैर्द्विपा द्विपैः।
सादिनः सादिभिश्चैव तस्मिन्परमसङ्कुले।।
8-9-9a
8-9-9b
रथैर्नरा रथा नागैरश्वारोहाश्च पत्तिभिः।
अश्वारोहैः पदाताश्च निहता युधि शेरते।।
8-9-10a
8-9-10b
रथाश्वपत्तयो नागै रथाश्वेभाश्च पत्तिभिः।
रथपत्तिद्विपाश्चाश्चै रथैश्चापि नरद्विपाः।।
8-9-11a
8-9-11b
रथाश्वेभनराणां तु नराश्वेभरथैः कृतम्।
पाणिपादैश्च शस्त्रैश्च रथैश्च कदनं महत्।।
8-9-12a
8-9-12b
तथा तस्मिन्बले शूरैर्वध्यमाने हतेऽपि च।
अस्मानभ्याययुः पार्था वृकोदरपुरोगमाः।।
8-9-13a
8-9-13b
वृष्टद्युम्नः शिखण्डी च द्रौपदेयाः प्रभद्रकाः।
सात्यकिश्चेकितानश्च द्राविडैः सैनिकैः सह।।
8-9-14a
8-9-14b
वृता व्यूहेन महता पाण्ड्याश्चोलाः सकेरलाः।
व्यूढोरस्का दीर्घभुजाः प्रांशवः पृथुलोचनाः।।
8-9-15a
8-9-15b
आपीडिनो रक्तदन्ता मत्तमातङ्गविक्रमाः।
नानाविरागवसाना गन्धचूर्णावचूर्णिताः।।
8-9-16a
8-9-16b
बद्धासयः पाशहस्ता वारणप्रतिवारणाः।
समानमृत्यवो राजन्नात्यजन्त परस्परम्।।
8-9-17a
8-9-17b
कलापिनश्चापहस्ता दीर्घकेशाः प्रियंवदाः।
पत्तयः सायकैर्विद्धा घोररूपपराक्रमाः।।
8-9-18a
8-9-18b
अथापरे पुनः शूराश्चेदिपाञ्चालकेकयाः।
कारूशाः कोसलाः काञ्च्या मागधाश्चापि दुद्रुवुः।।
8-9-19a
8-9-19b
तेषां रथाश्वनागाश्च प्रवराश्चोग्रपत्तयः।
नानाबाणरवैर्हृष्टा नृत्यन्ति च हसन्ति च।।
8-9-20a
8-9-20b
तस्य सैन्यस्य महतो महामात्रवरैर्वृतः।
मध्ये वृकोदरोऽभ्यायात्त्वदीयान्नागधूर्गतः।।
8-9-21a
8-9-21b
स नागप्रवरोऽत्युग्रो विधिवत्कल्पितो बभौ।
उदयाग्राद्रिभवनं यथाऽभ्युदितभास्करम्।।
8-9-22a
8-9-22b
तस्यायसं वर्मवरं वररत्नविभूषितम्।
ताराव्याप्तस्य नभसः शारदस्य समं त्विषा।।
8-9-23a
8-9-23b
स तोमरव्यग्रकरश्चारुमौलिः स्वलङ्कृतः।
शरन्मध्यन्दिनार्काभस्तेजया प्रदाहद्रिपून्।।
8-9-24a
8-9-24b
तं दृष्ट्वा द्विरदं दूरात्क्षेमधूर्तिर्द्विपस्थित।
आह्वयन्नभिदुद्राव प्रहसन्पृतनामुखे।।
8-9-25a
8-9-25b
तयोः समभवद्युद्धं द्विपयोरुग्ररूपयोः।
यदृच्छया द्रुतवतोर्महापर्वतयोरिव।।
8-9-26a
8-9-26b
संसक्तनागौ तौ वीरौ तोमरैरितरेतरम्।
बलवत्सूर्यरश्म्याभैर्भित्त्वाऽन्योन्यं विनेदतुः।।
8-9-27a
8-9-27b
व्यपसृत्य तु नागाभ्यां मण्डलानि विचेरतुः।
प्रगृह्य चोभौ धनुषी जघ्नतुर्वै परस्परम्।।
8-9-28a
8-9-28b
क्ष्वेडितास्फोटितरवैर्बाणशब्दैस्तु सर्वतः।
तौ जनं हर्षयन्तौ च सिंहनादं प्रचक्रतुः।।
8-9-29a
8-9-29b
समुद्यतकराभ्यां तौ द्विपाभ्यां कृतिनावुभौ।
वातोद्वूतपताकाभ्यां युयुधाते महाबलौ।।
8-9-30a
8-9-30b
तावन्योन्यस्य धनुषी छित्त्वाऽन्योन्यं विनेदतुः।
शक्तितोमरवर्षेण प्रावृण्मेघाविवाम्बुभिः।।
8-9-31a
8-9-31b
क्षेमधूर्तिस्तदा भीमं तोमरेण स्तनान्तरे।
निर्बिभेदातिवेगेन षड्भिश्चाप्यपरैर्नदन्।।
8-9-32a
8-9-32b
स भीमसेनः शुशुभे तोमरैरङ्गमाश्रितैः।
क्रोधदीप्तवपुर्मेधैः सप्तसप्तिरिवांशमान्।।
8-9-33a
8-9-33b
ततो भास्करवर्णाभमञ्चोगतिमयस्मायम्।
ससर्ज तोमरं भीमः प्रत्यमित्राय यत्नवान्।।
8-9-34a
8-9-34b
ततः करूशाधिपतिश्चापमानम्य सायकैः।
दशभिस्तोमरं भित्त्वा षष्ट्या विव्याध पाण्डवम्।।
8-9-35a
8-9-35b
अथ कार्मुकमादाय भीमो जलदनिः स्वनम्।
रिपोरभ्यर्दयन्नागमुन्नदन्पाण्डवाः शरैः।।
8-9-36a
8-9-36b
स शरौघार्दितो नागो भीमसेनेन संयुगे।
गृह्यमाणोऽपि नातिष्ठद्वातोद्धूत इवाम्बुदः।।
8-9-37a
8-9-37b
तमभ्यधावद्द्विरदं भीमो भीमस्य नागराट्।
महावातेरितं मेघं वातोद्धूत इवाम्बुदः।।
8-9-38a
8-9-38b
सन्निवार्यात्मनो नागं क्षेमधूर्तिः प्रतापवान्।
विव्याधाभिद्रुतं बाणैर्भीमसेनस्य कुञ्जरम्।।
8-9-39a
8-9-39b
ततः साधुविसृष्टेन क्षुरेणानतपर्वणा।
छित्त्वा शरासनं शत्रोर्नागं चापि प्रमार्दयत्।।
8-9-40a
8-9-40b
ततः क्रुद्धो रणे भीमं क्षेमधूर्तिः पराभिनत्।
जघान चास्य द्विरदं नाराचैः सर्वमर्मसु।।
8-9-41a
8-9-41b
स पपात महानागो भीमसेनस्य भारत।
पुरा नागस्य पतनादवप्लुत्य स्थितो महीम्।।
8-9-42a
8-9-42b
भीमसेनोऽपि तन्नागं गदया समपोथयत्।
तस्मात्प्रमथितान्नागात्क्षेमधूर्तिरवप्लुतः।।
8-9-43a
8-9-43b
`उद्धृत्य स्वङ्गं निशितमभ्यधावत्स पाण्डवम्'।
उद्यतायुधमायान्तं सदयाऽहन्वृकोदरः।।
8-9-44a
8-9-44b
स पपात हतः सासिर्व्यसुस्तमभितो द्विपम्।
वज्रप्रभग्नमचलं सिंहो वज्रहतो यथा।।
8-9-45a
8-9-45b
तं हतं नृपतिं दृष्ट्वा करूशानां यशस्करम्।
प्राद्रावद्व्यथिता सेना त्वदीया भरतर्षभ।।
8-9-46a
8-9-46b
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि
षोडशदिवसयुद्धे नवमोऽध्यायः।। 9 ।।

8-9-3 तस्तरुः आस्तीर्णवन्तः।। 8-9-5 व्यायताः पुष्टाः आयताः दीर्घाः।। 8-9-6 प्रहितैः निरस्तैः। ओहाक् त्यागे।। 8-9-16 आपिडिनः भूषावन्तः। नाना पृथक् विविधरागाणि वसनानि येषां ते विरागवसनाः।। 8-9-21 नागधूर्गतः गजस्कन्धगतः।। 8-9-22 उदयाग्राद्रिभवनं उदयाद्रेरप्रभवनम्। अग्राद्रीत्यग्रशब्दस्य पूर्वनिपात आर्षः। उदयनामा अग्राद्रिः पूर्वपर्वतः स एव भवनमिति वा।। 8-9-23 शारदस्य शरदा उपलक्षितस्य।। 8-9-24 चारुमौलिः रम्यकिरीटः।। 8-9-33 स भीमसेनः मेघैः सप्तसप्तिरिवांशुमान्। यथा मेघान्तर्हितस्य सूर्यस्य मरीचयः रश्मिरूपेण सर्वतः प्रचरन्ति एवं रश्मिस्थानीयास्तोमराः।। 8-9-34 अञ्जोगतिं ऋजुगतिम्।। 8-9-37 गृह्यमाणः निगृह्य माणः क्षेमधूर्तिना।। 8-9-44 अहन्हतवान्।। 8-9-45 हतः गदया शकलीकृताः। अतएव अभितोद्विपं द्विपस्याभितः पपात।। 8-9-9 नवमोऽध्यायः।।

कर्णपर्व-008 पुटाग्रे अल्लिखितम्। कर्णपर्व-010