महाभारतम्-08-कर्णपर्व-068
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कर्णबाणव्यथापनोदनाय युधिष्ठिरं शिबिरगतं विज्ञाय शत्रुनिग्रहे भीमनियोजनपूर्वकमर्जुनेन सह श्रीकृष्णस्य तत्समीपं प्रति गमनम्।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 8-68-1x |
ततो जनार्दनः श्रुत्वा तस्य वाक्यं विशाम्पते। रथेनापययौ क्षिप्रं सङ्ग्रामादिति भारत।। | 8-68-1a 8-68-1b |
प्रत्यनीकमवस्थाप्य भीमं भीमपराक्रमम्। अलं विषहितुं ह्येष कुरूणां सम्प्रपश्यताम्।। | 8-68-2a 8-68-2b |
कर्णं च समरे राजन्ग्राहयिष्यञ्श्रमं प्रति। विश्वमार्थं च कौरव्य पार्थस्य च महात्मनः। अपयातो रणाद्वीरो राजानं द्रष्टुमेव च।। | 8-68-3a 8-68-3b 8-68-3c |
अर्जुनं चाब्रवीत्कृष्णो भृशं राजा परिक्षतः। तमाश्वास्य कुरुश्रेष्ठ ततः कर्णं हनिष्यसि।। | 8-68-4a 8-68-4b |
ततो धनञ्जयः श्रुत्वा राजानं शल्यपीडितम्। याहियाहिति बहुशो वासुदेवमचोदयत्। राजानं प्रति वार्ष्णेय दूयते मे दृढं मनः।। | 8-68-5a 8-68-5b 8-68-5c |
स चोद्यमानः पार्थेन केशिघ्नो वृष्णिनन्दनः। रथेनापययौ क्षिप्रं सङ्ग्रामाद्धोरदर्शनात्।। | 8-68-6a 8-68-6b |
गच्छन्नेव तु कौन्तेयो धर्मराजदिदृक्षया। सैन्यमालोकयामास नापश्यत्तत्र चाग्रजम्।। | 8-68-7a 8-68-7b |
युद्धं कृत्वा तु कौन्तेयो द्रोणपुत्रेण भारत। दुःसहं वज्रिणा सङ्ख्ये पराजित्य गुरोः सुतम्।। | 8-68-8a 8-68-8b |
द्रौणिं पराजित्य ततोग्रधन्वा कृत्वा महद्दुष्करं शूरकर्म। आलोकयामास ततः स्वसैन्यं धनञ्जयः शत्रुभिरप्रधृष्यः।। | 8-68-9a 8-68-9b 8-68-9c 8-68-9d |
संयुध्यमानान्पृतनामुखस्था-- ञ्शूरः शूरान्हर्षयन्सव्यसाची। पूर्वापदानैः प्रथितैः प्रशंस-- न्स्थितांश्चकारात्मरथाननीके।। | 8-68-10a 8-68-10b 8-68-10c 8-68-10d |
अपश्यमानस्तु किरीटमाली युधिष्ठिरं भ्रातरमाजमीढम्। उवाच भीमं तरसाभ्युपेत्य राज्ञः प्रवृत्तिस्त्विह कुत्र चेति।। | 8-68-11a 8-68-11b 8-68-11c 8-68-11d |
भीमसेन उवाच। | 8-68-12x |
अपयात इतो राजा धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। कर्णबाणाभितप्ताङ्गो यदि जीवेत्कथञ्चन।। | 8-68-12a 8-68-12b |
अर्जुन उवाच। | 8-68-13x |
तस्माद्भवाञ्शीघ्रमितः प्रयातु ज्ञातुं प्रवृत्तिं पुरुषर्षभस्य। नूनं स विद्धोऽतिभृशं पृषत्कैः कर्णेन राजा शिबिरं गतोऽसौ।। | 8-68-13a 8-68-13b 8-68-13c 8-68-13d |
यः सम्प्रहारैर्युधि सम्प्रवृत्ते द्रोणेन विद्धोऽतिभृशं तरस्वी। तस्थौ स तत्रापि जयप्रतीक्षो द्रोणेन यावन्न हतः किलासीत्।। | 8-68-14a 8-68-14b 8-68-14c 8-68-14d |
स संशयं गमितः पाण्डवाग्र्यः सङ्ख्येऽद्य कर्णेन महानुभावः। ज्ञातुं प्रयाह्याशु तमद्य भीम स्थास्याम्यहं शत्रुगणान्निरुध्य।। | 8-68-15a 8-68-15b 8-68-15c 8-68-15d |
भीमसेन उवाच। | 8-68-16x |
त्वमेव जानीहि महानुभाव राज्ञः प्रवृत्तिं भरतर्षभस्य। अहं हि यद्यर्जुन याम्यमित्रा वदन्ति मां भीत इति प्रवीराः।। | 8-68-16a 8-68-16b 8-68-16c 8-68-16d |
ततोऽब्रवीदर्जुनो भीमसेनं संशप्तकाः प्रत्यनीकस्थिता मे। एतानहत्वाद्य मया न शक्य-- मितोपयातुं रिपुसङ्खमध्यात्।। | 8-68-17a 8-68-17b 8-68-17c 8-68-17d |
अथाब्रवीदर्जुनं भीमसेनः स्ववीर्यमासाद्य कुरुप्रवीर। संशप्तकान्प्रतियोत्स्यामि सङ्ख्ये सर्वानहं याहि धनञ्जय त्वम्।। | 8-68-18a 8-68-18b 8-68-18c 8-68-18d |
तद्भीमसेनस्य वचो निशम्य धनञ्जयो भ्रातुरमित्रमध्ये। द्रष्टुं कुरुश्रेष्ठमभिप्रयास्य-- न्प्रोवाच वृष्णिप्रवरं तदानीम्।। | 8-68-19a 8-68-19b 8-68-19c 8-68-19d |
अर्जुन उवाच। | 8-68-20x |
`राजानं प्रति वार्ष्णेय दूयते मे दृढं मनः'। चोदयाश्वान्हृषीकेश विहायैतद्बलार्णवम्। अजातशत्रुं राजानं द्रष्टुमिच्छामि केशव।। | 8-68-20a 8-68-20b 8-68-20c |
सञ्जय उवाच। | 8-68-21x |
`तं रथ चोदयामास बीभत्सोर्वचनाद्धरिः'।। | 8-68-21a |
ततो हयान्सर्वदाशार्हमुख्यः प्रचोदयन्भीममुवाच चेदम्। नैतच्चित्रं तव कर्माद्य भीम यास्यावहे जहि पार्थारिसङ्घान्।। | 8-68-22a 8-68-22b 8-68-22c 8-68-22d |
ततो ययौ हृषीकेशो यत्र राजा युधिष्ठिरः। शीघ्राच्छीघ्रतरो राजन्वाजिभिर्गरुडोपमैः।। | 8-68-23a 8-68-23b |
प्रत्यनीके त्ववस्थाप्य भीमसेनमरिन्दमम्। सन्दिश्य चैनं राजेन्द्र युद्धं प्रति वृकोदरम्।। | 8-68-24a 8-68-24b |
ततस्तु गत्वा पुरुषप्रवीरौ राजानमासाद्य शयानमेकम्। रथादुभौ प्रत्यवरुह्य तस्मा-- द्ववन्दतुर्धर्मराजस्य पादौ।। | 8-68-25a 8-68-25b 8-68-25c 8-68-25d |
`इत्येवमुपसङ्गृह्य उभौ तु पाञ्जली स्थितौ। शस्त्रक्षतौ महाराज रुधिरेण समुक्षितौ। निहत्य वाहिनीं तुभ्यमपयातौ रणाजिरात्'।। | 8-68-26a 8-68-26b 8-68-26c |
तं दृष्ट्वा पुरुषव्याघ्रं क्षेमिणं पुरुषर्षभम्। मुदाभ्यनन्दतां कृष्णावश्विनाविव वासवम्।। | 8-68-27a 8-68-27b |
तावभ्यनन्दद्राजापि विवस्वानश्विनाविव। हते महासुरे जम्भे शक्रविष्णू यथा गुरुः।। | 8-68-28a 8-68-28b |
मन्यमानो हतं कर्णं प्रीतः परपुरञ्जयः। `स भूत्वा पुरुषव्याघ्रो राजा तत्र युधिष्ठिरः'। हर्षगद्गदया वाचा प्रीतः प्राह परन्तपः।। | 8-68-29a 8-68-29b 8-68-29c |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे अष्टषष्टितमोऽध्यायः।। 68 ।। |
8-68-9 ततोग्रधन्वा विस्तारितोग्रचापः।। 8-68-11 उवाच तं पप्रच्छ।। 8-68-24 प्रत्यनीके शत्रुसैन्यरामीपे।। 8-68-68 अष्टषष्टितमोऽध्यायः।।
कर्णपर्व-067 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | कर्णपर्व-069 |