महाभारतम्-08-कर्णपर्व-084
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सङ्कुतxxxxx ।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 8-84-1x |
xxxxxxxxxxxप्रबरैर्वलैर्भीममभिद्रुतम्। xxxxxxxxxx कौन्तेयमुस्थिहीर्षुर्धनञ्जयः।। | 8-84-1a 8-84-1b |
xxxxxxxxx सेनां मारत सायकैः। xxxxxxxxxx परवीरान्धनञ्जयः।। | 8-84-2a 8-84-2b |
xxxxxxxxxxx शरजालानि भागशः। अदृश्यन्त तथान्ये च निजघ्नुस्तव वाहिनीम्।। | 8-84-3a 8-84-3b |
स पक्षिसङ्घाचरितमाकाशं पूरयञ्शरैः। धनञ्जयो महाबाहुः कुरूणामन्तकोऽमयत् | 8-84-4a 8-84-4b |
ततो भल्लैः क्षुरप्रैश्च नाराचैर्विमलैरपि। गात्राणि प्राच्छिनत्पार्थः शिरांसि च चकर्त ह।। | 8-84-5a 8-84-5b |
छिन्नगात्रैर्विकवचैर्विशिरस्कैः समन्ततः। पातितैश्च पतद्भिश्च योधैरासीत्समावृता।। | 8-84-6a 8-84-6b |
धनञ्जयशराभ्यस्तैः स्यन्दनाश्वरथद्विपैः। सञ्छिन्नभिन्नविध्वस्तैर्व्यङ्गाङ्गावयवैः स्तृता। गतसत्वैः ससत्वैश्च संवृताऽऽसीद्वसुन्धरा।। | 8-84-7a 8-84-7b 8-84-7c |
सुदुर्गमा सुविषमा घोराऽत्यर्थं सुदुर्दृशा। रणभूमिरभूद्राजन्महावैतरणी यथा।। | 8-84-8a 8-84-8b |
ईषाचक्राक्षभल्लैश्च व्यश्वैः साश्वैश्च युध्यताम्। ससूतैर्हतसूतैश्च रथैः स्तीर्णाऽभवन्मही।। | 8-84-9a 8-84-9b |
सुवर्णवर्मसन्नाहैर्योधैः कनकमालिभिः। आस्थिताः क्लृप्तवर्माणो भद्रा नित्यमदा द्विपाः।। | 8-84-10a 8-84-10b |
क्रुद्धाः क्रुरैर्महामात्रैः प्रेषितार्जुनमभ्ययुः। चतुः शता रथवरा हताः पेतुः किरीटिना।। | 8-84-11a 8-84-11b |
पर्यस्तानीव शृङ्गाणि ससत्वानि महागिरेः। धनञ्जयशराभ्यस्तैः स्तीर्णा भूर्वरवारणैः।। | 8-84-12a 8-84-12b |
समन्ताज्जलदप्रख्यान्वारणान्मदवर्षिणः। अभिपेदेऽर्जुनरथो घनान्भिन्दन्निवांशुमान्।। | 8-84-13a 8-84-13b |
हतैर्गजमनुष्याश्वैर्भिन्नैश्च बहुधा रथैः। विशस्त्रयन्त्रकवचैर्युद्धशौण्डैर्गतासुभिः। उपविद्धायुधैर्मार्गः स्तीर्णोऽभूत्फल्गुनेन वै।। | 8-84-14a 8-84-14b 8-84-14c |
विस्फारितं च गाण्डीवमत्यासीद्भैरवस्वनम् सुघोषं वज्रनिष्पेषं स्तनयन्निव तोयदः।। | 8-84-15a 8-84-15b |
ततः प्रादीर्यत चमूर्धनञ्जयशराहता। महावातसमाविद्धा महानौरिव सागरे।। | 8-84-16a 8-84-16b |
नानारूपाः प्राणहराः शरा गाण्डीवचोदिताः। अलातोल्काशनिप्रख्यास्तव सैन्यं विनिर्दहन्।। | 8-84-17a 8-84-17b |
महागिरौ वेणुवनं निशि प्रज्वलितं यथा। तथा तव महासैन्यं प्रास्फुरच्छरपीडितम्।। | 8-84-18a 8-84-18b |
तद्विनष्टं सुविध्वस्तं तव सैन्यं किरीटिना। हतप्रविहतं बाणैः सर्वतः प्रद्रुतं दिशः।। | 8-84-19a 8-84-19b |
सश्वापदा मृगगणा दावाग्नित्रासिता यथा। कुरवः पर्यवर्तन्त निर्दग्धाः सव्यसाचिना।। | 8-84-20a 8-84-20b |
उत्सृज्य च महाबाहुं भीमसेनं तथा रणे। बलं कुरूणामुद्विग्नं सर्वमासीत्पराङ्मुखम्।। | 8-84-21a 8-84-21b |
ततः कुरुषु भग्नेषु बीभत्सुरपराजितः। भीमसेनं समासाद्य मुहूर्तं सोऽभ्यवर्तत।। | 8-84-22a 8-84-22b |
समागम्य च भीमेन मन्त्रयित्वा च फल्गुनः। विशल्यमरुजं चास्मै कथयित्वा युधिष्ठिरम्।। | 8-84-23a 8-84-23b |
भीमसेनाभ्यनुज्ञातस्ततः प्रायाद्धनञ्जयः। नादन्रथघोषेण पृथिवीं द्यां च भारत।। | 8-84-24a 8-84-24b |
ततः परिवृतो वीरैर्दशभिः शत्रुतापनः। दुःशासनादवरजैस्तव पुत्रैर्धनञ्जयः।। | 8-84-25a 8-84-25b |
ते तमभ्यर्दयन्बाणैरुल्काभिरिव कुञ्जरम्। आततेष्वसना वीरा नृत्यन्त इव भारत।। | 8-84-26a 8-84-26b |
अपसव्यांस्तु तांश्चक्रे रथेन मधुसूदनः। नियुक्तान्हि स तान्मेने यमायाशु किरीटिना।। | 8-84-27a 8-84-27b |
तथान्ये प्राणदन्मूढाः पराङ्मुखमिवार्जुनम्।। | 8-84-28a |
तेषां नानदतां केतूनश्वांश्चापानि सारथीन्। नाराचैरर्धचन्द्रैश्च क्षिप्रं पार्थो न्यकृन्तत।। | 8-84-29a 8-84-29b |
*अथान्यैर्दशभिर्भल्लैः शिरांस्येषामपातयत्। रोषसंरक्तनेत्राणि सन्दष्टौष्ठानि भूतले।। | 8-84-30a 8-84-30b |
तेषां वक्राणि विबभुर्व्योम्नि तारागणा इव।। | 8-84-31a |
तांस्तु भल्लैर्महावेगैर्दशभिर्दश कौरवान्। रुक्माङ्गदाव्रुक्मपुङ्खैर्हत्वा प्रायादमित्रहा।। | 8-84-32a 8-84-32b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे चतुरशीतितमोऽध्यायः।। 84 ।। |
8-84-* अत्रार्जुनकृतं दशधृतराष्ट्रपुत्रहननं विचारणीयम्। 8-84-17 विनिर्दहन्नित्यत्राडभाव आषेः।। 8-84-84 चतुरशीतितमोऽध्यायः।।
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