महाभारतम्-08-कर्णपर्व-021
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सङ्कुलयुद्धम्।। 1 ।। षोडशदिवसयुद्धोपसंहारः।। 2 ।।
सञ्जय उवाच। | 8-21-1x |
ततः कर्णं पुरस्कृत्य त्वदीया युद्वदुर्मदाः। पुनरावृत्य सङ्ग्रामं चक्रुर्देवासुरोपमम्।। | 8-21-1a 8-21-1b |
द्विरदनररथाश्वशङ्खशब्दैः परिहृषिता विविधैश्च शस्त्रपातैः। द्विरदरथपदातिसादिसङ्घाः परिकुपिताभिमुखाः प्रजघ्निरे ते।। | 8-21-2a 8-21-2b 8-21-2b 8-21-2b |
शितपरश्वथसासिपट्टसै-- रिषुभिरनेकविधैश्च सूदिताः। द्विरदरथहया महाहवे वरपुरुषैः पुरुषाश्च वाहनैः।। | 8-21-3a 8-21-3b 8-21-3b 8-21-3b |
कमलदिनकरेन्दुसन्निभैः सितदशनैः सुमुखाक्षिनासिकैः। रुचिरमकुटकुण्डलैर्मही पुरुषशिरोभिरुपस्तृता बभौ।। | 8-21-4a 8-21-4b 8-21-4b 8-21-4b |
परिघमुसलशक्तितौमरै-- र्नखरभुशुण्डिगदाशतैर्हताः। द्विरदनरहयाः सहस्रशो रुधिरनदीप्रवहास्तदाऽभवन्।। | 8-21-5a 8-21-5b 8-21-5b 8-21-5b |
प्रहतरथनराश्वकुञ्जरं प्रतिभयदर्शनमुल्बणव्रणम्। तदहितहतमाबभौ बलं पितृपतिराष्ट्रमिव प्रजाक्षये।। | 8-21-6a 8-21-6b 8-21-6b 8-21-6b |
अथ तव नरदेव सैनिका-- स्तव च सुताः सुरसूनुसन्निभाः। अमितबलपुरः सरा रणे कुरुवृषभाः शिनिपुत्रमभ्ययुः।। | 8-21-7a 8-21-7b 8-21-7b 8-21-7b |
तदतिरुधिरभीममाबभौ पुरुषवराश्वरथद्विपाकुलम्। लवणजलसमुद्वतस्वनं बलमसुरामरसैन्यसप्रभम्।। | 8-21-8a 8-21-8b 8-21-8b 8-21-8b |
सुरपतिसमविक्रमस्तत-- स्त्रिदशवरावरजोपमं युधि। दिनकरकिरणप्रभैः पृषत्कै रवितनयोऽभ्यहनच्छिनिप्रवीरम्।। | 8-21-9a 8-21-9b 8-21-9b 8-21-9b |
तमपि सरथवाजिसारथिं शिनिवृषभो विविधैः शरैस्त्वरन्। भुजगविषसमप्रभै रणे पुरुषवरं समवास्तृणोत्तदा।। | 8-21-10a 8-21-10b 8-21-10b 8-21-10b |
शिनिवृषभशरैर्निपीडितं तव सुहृदो वसुषेणमभ्ययुः। त्वरितमतिरथा रथर्षभं द्विरदरथाश्वपदातिभिः सह।। | 8-21-11a 8-21-11b 8-21-11b 8-21-11b |
तदुदधिनिभमाद्रवद्बलं त्वरिततरैः समभिद्रुतं परैः। द्रुपदसुतमुखैस्तदाऽभवत् पुरुषरथाश्वगजक्षयो महान्।। | 8-21-12a 8-21-12b 8-21-12b 8-21-12b |
अथ पुरुषवरौ कृताह्निकौ भवमभिपूज्य यथाविधि प्रभुम्। अरिवधकृतनिश्चयौ द्रुतं तव बलमर्जुनकेशवौ सृतौ।। | 8-21-13a 8-21-13b 8-21-13b 8-21-13b |
जलदनिनदनिःस्वनं रथं पवनविधूतपताककेतनम्। सितहयमुपयान्तमन्तिकं कृतमनसो ददृशुस्तदाऽरयः।। | 8-21-14a 8-21-14b 8-21-14b 8-21-14b |
अथ विष्फार्य गाण्डीवं रथे नृत्यन्निवार्जुनः। शरसम्बाधमकरोत्खं दिशः प्रदिशस्तथा।। | 8-21-15a 8-21-15b |
रथान्विमानप्रतिमान्मज्जयन्सायुधध्वजान्। ससारथींस्तदा बाणैरभ्राणीवानिलोऽवधीत्।। | 8-21-16a 8-21-16b |
गजान्गजप्रयन्तॄंश्च वैजयन्त्यायुधध्वजान्। सादिनोऽश्वांश्च पत्तींश्च शरैर्निन्ये यमक्षयम्।। | 8-21-17a 8-21-17b |
तमन्तकमिव क्रुद्धमनिवार्यं महारथम्। दुर्योधनोऽभ्ययादेको निघ्नन्बाणैरजिह्मगैः।। | 8-21-18a 8-21-18b |
तस्यार्जुनो धनुः सूतमश्वान्केतुं च सायकैः। हत्वा सप्तभिरेकेन च्छत्रं चिच्छेद पत्रिणा।। | 8-21-19a 8-21-19b |
नवमं च समाधाय व्यसृजत्प्राणघातिनम्। दुर्योधनायेषुवरं तं द्रौणिः सप्तधाऽच्छिनत्।। | 8-21-20a 8-21-20b |
ततो द्रौणेर्धनुश्छित्वा हत्वा चाश्वरथाञ्शरैः। कृपस्यापि तदत्युग्रं धनुश्चिच्छेद पाण्डवः।। | 8-21-21a 8-21-21b |
हार्दिक्यस्य धनुश्छित्त्वा ध्वजं चाश्वांस्तदाऽवधीत्। दुःशासनस्येष्वसनं छित्त्वा राधेयमभ्ययात्।। | 8-21-22a 8-21-22b |
अथ सात्यकिमुत्सृज्य त्वरन्कर्णोऽर्जुनं त्रिभिः। विद्व्वा विव्याध विंशत्या कृष्णं पार्थं पुनःपुनः।। | 8-21-23a 8-21-23b |
न ग्लानिरासीत्कर्णस्य क्षिपतः सायकान्बहून्। रणे विनिघ्नतः शत्रून्क्रुद्धस्येव शतक्रतोः।। | 8-21-24a 8-21-24b |
अथ सात्यकिरागत्य कर्णं विद्द्वा शितैः शरैः। नवत्या नवभिश्चोग्रैः शतेन पुनरार्पयत्।। | 8-21-25a 8-21-25b |
ततः प्रवीराः पार्थानां सर्वे कर्णमपीडयन्। युधामन्युः शिखण्डी च द्रौपदेयाः प्रभद्रकाः।। | 8-21-26a 8-21-26b |
उत्तमौजा युयुत्सुश्च यमौ पार्षत एव च। चेदिकारूशमात्स्यानां केकयानां च यद्बलं।। | 8-21-27a 8-21-27b |
चेकितानश्च बलवान्धर्मराजश्च सुव्रतः। एते रथाश्वद्विरदैः पत्तिभिश्चोग्रविक्रमैः।। | 8-21-28a 8-21-28b |
परिवार्य रणे कर्णं नानाशस्त्रैरवाकिरन्। भाषन्तो वाग्भिरुग्राभिः सर्वे कर्णवधे धृताः।। | 8-21-29a 8-21-29b |
तां शस्त्रवृष्टिं बहुधा कर्णश्छित्त्वा शितैः शरैः। अपोवाहास्त्रवीर्येण द्रुमं भङ्क्त्वेव मारुतः।। | 8-21-30a 8-21-30b |
रथिनः समहामात्रान्गजानश्वान्ससादिनः। पत्तिव्रातांश्च सङ्क्रुद्वो निघ्नन्कर्णो व्यदृश्यत।। | 8-21-31a 8-21-31b |
तद्वध्यमानं पाण्डूनां बलं कर्णास्त्रतेजसा। विशस्त्रपत्रदेहासु प्राय आसीत्पराङ्मुखम्।। | 8-21-32a 8-21-32b |
अथ कर्णास्त्रमस्त्रेण प्रतिहत्यार्जुनः स्मयन्। दिशं खं चैव भूमिं च प्रावृणोच्छरवृष्टिभिः।। | 8-21-33a 8-21-33b |
मुसलानीव सम्पेतुः परिघा इव चेषवः। शतघ्न्य इव चाप्यन्ये वज्राण्युग्राणि चापरे।। | 8-21-34a 8-21-34b |
तैर्वध्यमानं तत्सैन्यं सपत्त्यश्वरथद्विपम्। निमीलिताक्षमत्यर्थं बभ्राम च ननाद च।। | 8-21-35a 8-21-35b |
निष्कैवल्यं तदा युद्वं प्रापुरश्वनरद्विपाः। हन्यमानाः शरैरार्तास्तदा भीताः प्रदुद्रुवुः।। | 8-21-36a 8-21-36b |
त्वदीयानां तदा युद्वे संसक्तानां जयैषिणाम्। गिरिमस्तं समासाद्य प्रत्यपद्यत भानुमान्।। | 8-21-37a 8-21-37b |
तमसा च महाराज रजसा च विशेषतः। न किञ्चित्प्रत्यपश्याम शुभं वा यदि वाऽशुभम्।। | 8-21-38a 8-21-38b |
ते त्रस्यन्तो महेष्वासा रात्रियुद्वस्य भारत। अपयानं ततश्चक्रुः सहिताः सर्वयोधिभिः।। | 8-21-39a 8-21-39b |
कौरवेष्वपयातेषु तदा राजन्दिनक्षये। जयं सुमनसः प्राप्य पार्थाः स्वशिबिरं ययुः।। | 8-21-40a 8-21-40b |
वादित्रशब्दैर्विविधैः सिंहनादैः सगर्जितैः। परानुवहन्तश्च स्तुवन्तश्चाच्युतार्जुनौ।। | 8-21-41a 8-21-41b |
कृतेऽवहारे तैर्वीरैः सैनिकाः सर्व एव ते। आशीर्वाचः पाण्डवेषु प्रायुञ्जन्त नरेश्वराः।। | 8-21-42a 8-21-42b |
ततः कृतेऽवहारे च प्रहृष्टास्तत्र पाण्डवाः। निशायां शिबिरं गत्वा न्यवसन्त नरेश्वराः।। | 8-21-43a 8-21-43b |
ततो रक्षः पिशाचाश्च श्वापदाश्चैव सङ्घशः। जग्मुरायोधनं घोरं रुद्रस्याक्रीडसन्निभम्।। | 8-21-44a 8-21-44b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि षोडशदिवसयुद्धे एकविंशोऽध्यायः।। 21 ।। |
8-21-8 लवणजलः क्षारसमुद्रः।। 8-21-9 त्रिदशवरावरजोपमं विष्णुतुल्यम्।। 8-21-13 सृतावागतौ।। 8-21-36 निष्कैवल्यं निश्चितं कैवल्यं मरणं यस्मिंस्तत्तथा।। 8-21-37 प्रत्यपद्यत प्रविष्टः।। 8-21-21 एकविंशोऽध्यायः।।
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