महाभारतम्-08-कर्णपर्व-081
दिखावट
← कर्णपर्व-080 | महाभारतम् अष्टमपर्व महाभारतम्-08-कर्णपर्व-081 वेदव्यासः |
कर्णपर्व-082 → |
|
पार्थपराक्रमः।। 1 ।।
भीमेन दुर्योधनचोदितस्य शकुनेः पराजयः।। 2 ।।
सञ्जय उवाच। | 8-81-1x |
श्रुत्वा तु रथनिर्घोषं सिंहनादं च संयुगे। अर्जुनः प्राह गोविन्दं शीघ्रं वाहय वाजिनः।। | 8-81-1a 8-81-1b |
अर्जुनस्य वचः श्रुत्वा गोविन्दोऽर्जुनमब्रवीत्। एष गच्छामि सुक्षिप्रं यत्र भीमो व्यवस्थितः।। | 8-81-2a 8-81-2b |
तं यान्तमश्वा हिमशङ्खवर्णाः सुवर्णमुक्तामणिजालनद्धाः। जम्भं जिघांसुं प्रगृहीतवज्रं हया यथा तत्र यथा वहंस्तदा।। | 8-81-3a 8-81-3b 8-81-3c 8-81-3d |
रथाश्वमातङ्गपदातिसङ्घा बाणस्वनैर्नेमिखुरस्वनैश्च। सन्नादयन्तो वसुधां दिशश्च क्रुद्धा नृसिंहा जयमभ्युदीयः।। | 8-81-4a 8-81-4b 8-81-4c 8-81-4d |
तेषां च पार्थस्य च मारिषासी-- द्देहासुपापक्षपणं सुयुद्धम्। त्रैलोक्यहेतोरसुरैर्यथासी-- द्देवस्य विष्णोर्जयतां वरस्य।। | 8-81-5a 8-81-5b 8-81-5c 8-81-5d |
तैरस्तमुच्चावचमायुधं त-- देकः प्रचिच्छेद किरीटमाली। क्षुरार्धचन्द्रैर्निशितैश्च भल्लैः शिरांसि तेषां बहुधा च बाहून्।। | 8-81-6a 8-81-6b 8-81-6c 8-81-6d |
छत्राणि वालव्यजनानि केतू-- नश्वान्रथान्पत्तिगणान्द्विपांश्च। ते पेतुरुर्व्यां बहुधा विकृत्ता वातप्रणुन्नानि यथा वनानि।। | 8-81-7a 8-81-7b 8-81-7c 8-81-7d |
सुवर्णजालावनता महागजाः सवैजयन्तीध्वजयोधकल्पिताः। सुवर्णपुङ्घैरिषुभिः समाचिता-- शकाशिरे प्रज्वलिता यथाचलाः।। | 8-81-8a 8-81-8b 8-81-8c 8-81-8d |
विदार्य नागाश्वरथान्धञ्जयः शरोत्तमैर्वासववज्रसन्निभैः। द्रुतं ययौ कर्णजिघांसया तथा यथा मरुत्वान्बलभेदने पुरा।। | 8-81-9a 8-81-9b 8-81-9c 8-81-9d |
ततः स पुरुषव्याघ्रस्तव सैन्यमरिन्दमः। प्रविवेश महाबाहुर्मकरः सागरं यथा।। | 8-81-10a 8-81-10b |
तं हृष्टास्तावका राजन्रथपत्तिसमन्विताः। गजाश्वसादिबहुलाः पाण्डवं समुपाद्रवन्।। | 8-81-11a 8-81-11b |
तेषामापततां पार्थमारावः सुमहानभूत्। सागरस्येव क्षुब्धस्य यथा स्यात्सलिलस्वनः।। | 8-81-12a 8-81-12b |
ते तु तं पुरुषव्याघ्रं व्याघ्रा इव महारथाः। अभ्यद्रवन्त सङ्ग्रामे त्यक्त्वा प्राणकृतं भयम्।। | 8-81-13a 8-81-13b |
तेषामापततां तत्र शरवर्षाणि मुञ्चताम्। अर्जुनो व्यधमत्सैन्यं महावातो घनानिव।। | 8-81-14a 8-81-14b |
तेऽर्जुनं सहिता भूत्वा रथवंशैः ग्रहारिणः। अभियाय महेष्वासा विव्यधुर्निशितैः शरैः।। | 8-81-15a 8-81-15b |
ततोऽर्जुनः सहस्राणि रथवारणवाजिनाम्। प्रेषयामास विशिखैर्यमस्य सदनं प्रति।। | 8-81-16a 8-81-16b |
ते वध्यमानाः समरे पार्थचापच्युतैः शरैः। तत्रतत्र स्म लीयन्ते भये जाते महारथाः।। | 8-81-17a 8-81-17b |
तेषां चतुःशतान्वीरान्यतमानान्महारथान्। अर्जुनो निशितैर्बाणैरनयद्यमसादनम्।। | 8-81-18a 8-81-18b |
ते वध्यमानाः समरे नानालिङ्गैः शितैः शरैः। अर्जुनं समभित्यज्य दुद्रुवुर्वै दिशो दश।। | 8-81-19a 8-81-19b |
तेषां शब्दो महानासीद्द्रवतां वाहिनीमुखे। मेघौघस्येव भद्रं ते गिरिमासाद्य दीर्यतः।। | 8-81-20a 8-81-20b |
तां तु सेनां भृशं विद्ध्वा द्रावयित्वाऽर्जुनः शरैः। प्रायादभिमुखः पार्थः सूतानीकं हि मारिष।। | 8-81-21a 8-81-21b |
तस्य शब्दो महानासीत्परानभिमुखस्य वै। गरुडस्येव पततः पन्नगार्थे यथा पुरा।। | 8-81-22a 8-81-22b |
तं तु शब्दमभिश्रुत्य भीमसेनो महाबलः। बभूव परमप्रीतः पार्थदर्शनलालसः।। | 8-81-23a 8-81-23b |
श्रुत्वैव पार्थमायान्तं भीमसेनः प्रतापवान्। त्यक्त्वा प्राणान्महाराज सेनां तव ममर्द ह।। | 8-81-24a 8-81-24b |
स वायुवीर्यप्रतिमो वायुवेगसमो जवे। वायुवद्व्यचरद्भीमो वायुपुत्रः प्रतापवान्।। | 8-81-25a 8-81-25b |
तेनाद्यमाना राजेन्द्र सेना तव विशाम्पते। व्यभ्रश्यत महाराज भिन्ना नौरिव सागरे।। | 8-81-26a 8-81-26b |
तां तु सेनां तदा भीमो दर्शयन्पाणिलाघवम्। शरैरवचकर्तोग्रैः प्रेपयिष्यन्यमक्षयम्।। | 8-81-27a 8-81-27b |
तत्र भारत भीमस्य बलं दृष्ट्वातिमानुषम्। व्यत्रस्यन्त रणे योधाः कालस्येव युगक्षये।। | 8-81-28a 8-81-28b |
तथाऽर्दितान्भीमबलान्भीमसेनेन भारत। दृष्ट्वा दुर्योधनो राजा इदं वचनमब्रवीत्।। | 8-81-29a 8-81-29b |
सैनिकांश्च महेष्वासान्योधांश्च भरतर्षभ। समादिशन्रणे सर्वान्हत भीममिति स्म ह।। | 8-81-30a 8-81-30b |
तस्मिन्हते हतं मन्ये पाण्डुसैन्यमशेषतः।। | 8-81-31a |
प्रतिगृह्य च तामाज्ञां तव पुत्रस्य पार्थिवाः। भीमं प्रच्छादयामासुः शरवर्षैः समन्ततः।। | 8-81-32a 8-81-32b |
गजाश्च बहुला राजन्नराश्च जयगृद्धिनः। रथे स्थिताश्च राजेन्द्र परिवव्रुर्वृकोदरम्।। | 8-81-33a 8-81-33b |
स तैः परिवृतः शूरैः शूरो राजन्समन्ततः। शुशुभे भरतश्रेष्ठो नक्षत्रैरिव चन्द्रमाः।। | 8-81-34a 8-81-34b |
परिवेषी यथा सोमः परिपूर्णो विराजते। स रराज तथा सङ्ख्ये दर्शनीयो नरोत्तमः। निर्विशेषो महाराज विजयेनैव संयुगे।। | 8-81-35a 8-81-35b 8-81-35c |
तस्य ते पार्थिवाः सर्वे शरवृष्टिं समासृजन्। क्रोधरक्तेक्षणाः शूरा हन्तुकामा वृकोदरम्।। | 8-81-36a 8-81-36b |
तां विदार्य महासेनां शरैः सन्नतपर्वभिः। निश्चक्राम रणाद्भीमो मत्स्यो जालादिवाम्भसि।। | 8-81-37a 8-81-37b |
हत्वा दशसहस्राणि गजानामनिवर्तिनाम्। नृणां शतसहस्रे द्वे द्वे शते चैव भारत।। | 8-81-38a 8-81-38b |
पञ्च चाश्वसहस्राणि रथानां शतमेव च। हत्वा प्रास्यन्दयद्भीमो नदीं शोणितवाहिनीम्।। | 8-81-39a 8-81-39b |
शोणितोदां रथावर्तां हस्तिग्राहसमाकुलाम्। नरमीनाश्वनक्रान्तां केशशैवलशाद्वलाम्।। | 8-81-40a 8-81-40b |
सञ्छिन्नभुजनागेन्द्रां बहुरत्नापहारिणीम्। ऊरुग्राहां मज्जपङ्कां शीर्षोपलसमावृताम्।। | 8-81-41a 8-81-41b |
धनुःकाशां शरावापां गदापरिघकेतनाम्। हंसछत्रध्वजोपेतामुष्णीषवरफेनिलाम्।। | 8-81-42a 8-81-42b |
हारपद्माकरां चैव भूमिरेणूर्मिमालिनीम्। आर्यवृत्तवतीं सङ्ख्ये सुतरां भीरुदुस्तराम्।। | 8-81-43a 8-81-43b |
योधग्राहवतीं सङ्ख्ये वहन्तीं पितृसादनम्। क्षणेन पुरुषव्याघ्रः प्रावर्तयत निम्नगाम्।। | 8-81-44a 8-81-44b |
यथा वैतरणीमुग्रां दुस्तरामकृतात्मभिः। तथा दुस्तरणीं घोरां भीरूणां भयवर्धनीम्।। | 8-81-45a 8-81-45b |
यतोयतः पाण्डवेयः प्रविष्टो रथसत्तमः। ततस्ततः प्रापतन्वै योधाः शतसहस्रशः।। | 8-81-46a 8-81-46b |
एवं दृष्ट्वा कृतं कर्म भीमसेनेन संयुगे। दुर्योधनो महाराज शकुनिं वाक्यमब्रवीत्।। | 8-81-47a 8-81-47b |
जहि मातुल सङ्ग्रामे भीमसेनं महाबलम्। अस्मिञ्जिते जितं मन्ये पाण्डवेयं महाबलम्।। | 8-81-48a 8-81-48b |
ततः प्रायान्महाराज सौबलेयः प्रतापवान्। रणाय महते युक्तो भ्रातृभिः परिवारितः।। | 8-81-49a 8-81-49b |
स समासाद्य सङ्ग्रामे भीमं भीमपराक्रमम्। वारयामास तं वीरो वेलेव मकरालयम्।। | 8-81-50a 8-81-50b |
सन्न्यवर्तत तं भीमो वार्यमाणः शितैः शरैः। शकुनिस्तस्य राजेन्द्र वामपार्श्वे स्तनान्तरे। प्रेषयामास नाराचान्रुक्मपुङ्खाञ्शिलाशितान्।। | 8-81-51a 8-81-51b 8-81-51c |
वर्म भित्त्वा तु ते घोराः पाण्डवस्य महात्मनः। न्यम़ञ्जन्त महाराज कङ्कबर्हिणवाससः।। | 8-81-52a 8-81-52b |
सोऽतिविद्धो रणे भीमः शरं रुक्मविभूषितम्। प्रेषयामास स रुषा सौबलं प्रति भारत।। | 8-81-53a 8-81-53b |
तमायान्तं शरं घोरं शकुनिः शत्रुतापनः। चिच्छेद सप्तधा राजन्कृतहस्तो महाबलः।। | 8-81-54a 8-81-54b |
तस्मिन्निपतिते भूमौ भीमः क्रुद्धो विशाम्पते। धनुश्छिच्छेद भल्लेन सौबलस्य हसन्निव।। | 8-81-55a 8-81-55b |
तदपास्य धनुश्छिन्नं सौबलेयः प्रतापवान्। अन्यदादाय वेगेन धनुर्भल्लांश्च षोडश। तैस्तस्य तु महाराज भल्लैः सन्नतपर्वभिः।। | 8-81-56a 8-81-56b 8-81-56c |
द्वाभ्यां स सारथिं ह्यार्च्छद्भीमं सप्तभिरेव च। ध्वजमेकेन चिच्छेद द्वाभ्यां छत्रं विशाम्पते। चतुर्भिश्चतुरो वाहान्विव्याध सुबलात्मजः।। | 8-81-57a 8-81-57b 8-81-57c |
ततः क्रुद्धो महाराज भीमसेनः प्रतापवान्। शक्तिं चिक्षेप समरे रुक्मदण्डामयस्मयीम्।। | 8-81-58a 8-81-58b |
सा भीमभुजनिर्मुक्ता नागजिह्वेन चञ्चला। निपपात रणे तूर्णं सौबलस्य महात्मनः।। | 8-81-59a 8-81-59b |
ततस्तामेव संगृह्य शक्तिं कनकभूषणाम्। भीमसेनाय चिक्षेप क्रुद्धरूपो विशाम्पते।। | 8-81-60a 8-81-60b |
सा निर्भिद्य भुजं सव्यं पाण्डवस्य महात्मनः। निपपात तदा भूमौ यथा विद्युन्नभश्च्युता।। | 8-81-61a 8-81-61b |
अथोत्क्रुष्टं महाराज धार्तराष्ट्रैः समन्ततः। न तु तं ममृषे भीमः सिंहनादं तरस्विनाम्।। | 8-81-62a 8-81-62b |
अन्यद्गृह्य धनुः सज्यं त्वरमाणो महाबलः। मुहूर्तादिव राजेन्द्र च्छादयामास सायकैः। सौबलस्य बलं सङ्ख्ये त्यक्त्वा नादं महाबलः।। | 8-81-63a 8-81-63b 8-81-63c |
तस्याश्वांश्चतुरो हत्वा सूतं चैव विशाम्पते। ध्वजं चिच्छेद भल्लेन त्वरमाणः पराक्रमी।। | 8-81-64a 8-81-64b |
हताश्वं रथमुत्सृज्य त्वरमाणो नरोत्तमः। तस्थौ विस्फारयंश्चापं क्रोधरक्तेक्षणः श्वसन्।। | 8-81-65a 8-81-65b |
शरैश्च बहुधा राजन्भीममार्च्छत्समन्ततः।। | 8-81-66a |
प्रतिहत्य तु वेगेन भीमसेनः प्रतापवान्। धनुश्चिच्छेद सङ्क्रुद्धो विव्याध च शितैः शरैः।। | 8-81-67a 8-81-67b |
सोऽतिविद्धो बलवता शत्रुणा शत्रुकर्शनः। निपपात तदा भूमौ किञ्चित्प्राणो नराधिपः।। | 8-81-68a 8-81-68b |
ततस्तं विह्वलं ज्ञात्वा पुत्रस्तव विशाम्पते। अपोवाह रथेनाजौ भीमसेनस्य पश्यतः।। | 8-81-69a 8-81-69b |
शकुनिं विह्वलं दृष्ट्वा धार्तराष्ट्राः पराङ्मुखाः। प्रदुद्रुवुर्दिशो भीता भीमसेनभयात्प्रभो।। | 8-81-70a 8-81-70b |
सौबले निर्जिते राजन्भीमसेनेन धन्विना। भयेन महताऽऽविष्टः पुत्रो दुर्योधनस्तव। अपायाज्जवनैरश्वैः सापेक्षो मातुलं प्रति।। | 8-81-71a 8-81-71b 8-81-71c |
पराङ्मुखं तु राजानं दृष्ट्वा सैन्यानि भारत। विप्रजग्मुः समुत्सृज्य द्वैरथानि समन्ततः।। | 8-81-72a 8-81-72b |
तान्दृष्ट्वा विद्रुतान्सर्वान्धार्तराष्ट्रान्पराङ्मुखान्। जवेनाभ्यापतद्भीमः किरञ्शरशतान्बहून्।। | 8-81-73a 8-81-73b |
ते वध्यमाना भीमेन धार्तराष्ट्राः पराङ्मुखाः। कर्णमासाद्य समरे स्थिता राजन्समन्ततः।। | 8-81-74a 8-81-74b |
स हि तेषां महावीर्यो द्वीपोऽभूत्सुमहाबलः। भिन्ननौका यथा राजन्द्वीपमासाद्य निर्वृताः।। | 8-81-75a 8-81-75b |
भवन्ति पुरुषव्याघ्र नाविकाः कालपर्यये। तथा कर्णं समासाद्य तावकाः पुरुषर्षभ।। | 8-81-76a 8-81-76b |
समाश्वस्ताः स्थिता राजन्सम्प्रहृष्टाः परस्परम्। समाजग्मुश्च युद्धाय मृत्युं कृत्वा निवर्तनम्।। | 8-81-77a 8-81-77b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे एकाशीतितमोऽध्यायः।। 81 ।। |
कर्णपर्व-080 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | कर्णपर्व-082 |