महाभारतम्-08-कर्णपर्व-059
दिखावट
← कर्णपर्व-058 | महाभारतम् अष्टमपर्व महाभारतम्-08-कर्णपर्व-059 वेदव्यासः |
कर्णपर्व-060 → |
|
सङ्कुलयुद्धम्।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 8-59-1x |
ततः प्रववृते भूयः सङ्ग्रामो राजसत्तम। कर्णस्य पाण्डवानां च यमराष्ट्रविवर्धनः।। | 8-59-1a 8-59-1b |
धनूंषि बाणान्परिघानसिपट्टसतोमरान्। मुसलानि भुशुण्डीश्च शक्तिरिष्टिपरश्वथान्।। | 8-59-2a 8-59-2b |
गदाः प्रासाञ्शितान्कुन्तान्भिंडिपालान्महाङ्कुशान्। प्रगृह्य क्षिप्रमापेतुः परस्परजिघांसया।। | 8-59-3a 8-59-3b |
बाणज्यातलशब्देन द्यां दिशः प्रदिशो वियत्। पृथिवीं नेमिघोषेण नादयन्तोऽभ्ययुः परान्।। | 8-59-4a 8-59-4b |
तेन शब्देन महता संहृष्टाश्चक्रुराहवम्। वीरा वीरैर्महाप्तोरकलहान्तं तितीर्षवः।। | 8-59-5a 8-59-5b |
ज्यातलत्रधनुःशब्दाञ्शस्त्राणां च निपात्यताम्। ताडितानां च पतता निनादांश्च पदातिनाम्।। | 8-59-6a 8-59-6b |
बाणशब्दांश्च विविधाञ्शूराणां चाभिगर्जताम्। श्रुत्वा गजा भृशं त्रेसुः पेतुर्मम्लुश्च सैनिकाः।। | 8-59-7a 8-59-7b |
तेषां निनदतां चैव शस्त्रवर्षं च मुञ्चताम्। बहूनाधिरथिर्वीरः प्रममाथेषुभिः परान्।। | 8-59-8a 8-59-8b |
पञ्च पाञ्चालवीराणां रथान्दश च पञ्च च। साश्वसूतध्वजान्कर्णः शरैर्निन्ये यमक्षयम्।। | 8-59-9a 8-59-9b |
योधमुख्या महावीर्याः पाण्डूनां कर्णमाहवे। शिक्षितास्तमभिद्रुत्य परिवव्रुः समन्ततः।। | 8-59-10a 8-59-10b |
ततः कर्णो द्विषत्सेनां शरवर्षैर्विलोडयन्। विजगाहाण्डजाकीर्णां पद्मिनीमिव यूथपः।। | 8-59-11a 8-59-11b |
द्विषत्सैन्यमवस्कन्द्य राधेयो धनुरुत्तमम्। विधुन्वानः शितैर्बाणैः शिरांस्युन्मथ्य पातयत्।। | 8-59-12a 8-59-12b |
`हस्तिनः समहामात्रान्साश्वारोहान्हयानपि। रथिनोऽप्येकबाणेन भ्रमतश्चावपातयत्'।। | 8-59-13a 8-59-13b |
वर्म वा चर्म वाऽश्रित्य निपातमपि देहिनः। विषेहुर्नास्य संस्पर्शं द्वितीयस्य पतत्त्रिणः।। | 8-59-14a 8-59-14b |
वर्मयुक्तेषु देहेषु धनुषोऽस्यञ्शिताञ्शरान्। मौर्व्या तलत्रे न्यहनत्कशया वाजिनो यथा।। | 8-59-15a 8-59-15b |
पाण्डुसृञ्जयपाञ्चालाञ्शरगोचरमागतान्। ममर्द तरसा कर्णः सिंहो मृगगणानिव।। | 8-59-16a 8-59-16b |
ततः पाञ्चालपुत्रश्च द्रौपदेयाश्च मारिष। यमौ च युयुधानश्च त्वरिताः कर्णमभ्ययुः।। | 8-59-17a 8-59-17b |
तेषु व्यायच्छमानेषु कुरुपाञ्चालपाण्डुषु। प्रियानसून्रणे त्यक्त्वा योधा जघ्नुः परस्परम्।। | 8-59-18a 8-59-18b |
सुसन्नद्धाः कवचिनः सशिरस्त्राणभूषणाः। गदाभिर्मुसलैश्चान्ये परिघैश्च महाबालाः।। | 8-59-19a 8-59-19b |
समभ्यधावन्त भृशं कालदण्डैरिवोद्यतैः। नर्दन्तश्चाह्वयन्तश्च प्रवल्गन्तश्च मारिष।। | 8-59-20a 8-59-20b |
ततो निजघ्नुरन्योन्यं पेतुश्चान्योन्यताडिताः। वमन्तो रुधिरं गात्रैर्विमस्तिष्केक्षमायुधाः।। | 8-59-21a 8-59-21b |
दन्तपूर्णैः सरुधिरैर्वक्रैर्दाडिमसन्निभैः। जीवन्त इव चाप्येके तस्थुः शस्त्रौघबृंहिताः।। | 8-59-22a 8-59-22b |
परश्वथैश्चाप्यपरे पट्टसैरसिभिस्तथा। शक्तिभिर्भिण्डिपालैश्च नखरप्रासतोमरैः।। | 8-59-23a 8-59-23b |
ततक्षुश्चिच्छिदुश्चान्ये बिभिदुश्चिक्षिपुस्तथा। सञ्चकर्तुश्च जघ्नुश्च राजन्योधा महारणे।। | 8-59-24a 8-59-24b |
पेतुरन्योन्यनिहता व्यसवो रुधिरोक्षिताः। क्षरन्तः स्वरसं रक्तं प्रकृत्ताश्चन्दना इव।। | 8-59-25a 8-59-25b |
रथै रथा विनिहता हस्तिभिश्चापि हस्तिनः। नरैर्नरा हताः पेतुरश्वाश्चाश्वैः सहस्रशः।। | 8-59-26a 8-59-26b |
ध्वजाः शिरांसि च्छिन्नाः पेतुर्महीतले।। `वध्यतां दारुणाः शब्दाः पततां स्तनतामपि। | 8-59-27a 8-59-27b |
क्षुरैर्भल्लार्धचन्द्रैश्च च्छिन्नाः पेतुर्महीतले।। नराश्वेभरथानां हिनराश्वेभरथैस्तथा'।। | 8-59-28a 8-59-28b |
नरांश्च नागांश्च रथान्हयान्ममृदुराहवे।। | 8-59-29a |
अश्वारोहैर्हताः शूराश्छिन्नहस्ताश्च दन्तिनः। सपताकाध्वजाः पेतुर्विशीर्णा इव पर्वताः।। | 8-59-30a 8-59-30b |
पत्तिभिश्च समाप्लुत्य द्विरदाः स्यन्दनास्तथा। हताश्च हन्यमानाश्च पतिताश्चैव सर्वशः।। | 8-59-31a 8-59-31b |
अश्वारोहाः समासाद्य त्वरिताः पत्तिभिर्हताः। सादिभिः पत्तिसङ्घाश्च निहता युधि शेरते।। | 8-59-32a 8-59-32b |
मृदितानीव पद्मानि प्रम्लाना इव च स्रजः। हतानां वदनान्यासन्गात्राणि च महाहवे।। | 8-59-33a 8-59-33b |
रूपाण्यत्यर्थकान्तानि द्विरदाश्वनृणां नृप। समुन्नानीव वस्त्राणि ययुर्दुर्दुर्शतां पराम्।। | 8-59-34a 8-59-34b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे एकोनषष्टितमोऽध्यायः।। 59 ।। |
8-59-4 द्यांस्वर्गम्। वियदन्तरिक्षम्।। 8-59-11 अण्डजैर्जलपक्षिभिः सारसादिभिराकीर्णां व्याप्ताम्।। 8-59-15 मौर्व्या मौर्वीच्युतैः शरैर्बाणैस्तलत्रे ज्याघातवारणस्थाने न्यहनत्।। 8-59-18 व्यायच्छमानेषु यतमानेषु।। 8-59-19 परिघैर्हता इति शेषः। समभ्यधावन्तेत्युत्तरेणान्वयः।। 8-59-21 मस्तिष्कं शिरोभागस्थमांसपिण्डः।। 8-59-23 परश्वथैस्ततक्षुः। पट्टशैरसिभिश्च चिच्छिदुः। शक्तिभिंर्बिभिदुः। भिन्दिपालैश्चिक्षिपुः। नखरैः सञ्चकर्तुः। प्रासतोमरैर्जघ्नुः।। 8-59-25 चन्दना रक्तचन्दनाः।। 8-59-33 पद्मानीव बदनानि। स्रजइव गात्राणि।। 8-59-34 समुन्नानि क्षारक्लिन्नानि मलिनानि।। 8-59-59 एकोनषष्टितमोऽध्यायः।।
कर्णपर्व-058 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | कर्णपर्व-060 |