महाभारतम्-08-कर्णपर्व-002
दिखावट
← कर्णपर्व-001 | महाभारतम् अष्टमपर्व महाभारतम्-08-कर्णपर्व-002 वेदव्यासः |
कर्णपर्व-003 → |
|
धृतराष्ट्रेण निजसेनायां निहतानां नामनिवेदनं चोदितेन सञ्जयेन तत्कथनम्।। 1 ।।
`जनमेजय उवाच। | 8-2-1x |
तच्छ्रुत्वा कर्णहननं पुत्रांश्चैव पलायितान्। धृतराष्ट्रो नृपश्चैव द्विजश्रेष्ठ किमब्रवीत्।। | 8-2-1a 8-2-1b |
प्राप्तवान्व्यसनं घोरं पुत्रव्यसनजं महत्। काले यदुक्तवांस्तस्मिंस्तन्ममाचक्ष्व तत्त्वतः'।। | 8-2-2a 8-2-2b |
वैशम्पायन उवाच। | 8-2-3x |
एतच्छ्रुत्वा महाराज धृतराष्ट्रोऽम्बिकासुतः। अब्रवीत्सञ्जयं सूतं शोकसंविग्नमानसः।। | 8-2-3a 8-2-3b |
दुष्प्रणीतेन मे तात पुत्रस्यादीर्घजीविनः। हतं वैकर्तनं श्रुत्वा शोको मर्माणि कृन्तति।। | 8-2-4a 8-2-4b |
तस्य मे संशयं छिन्धि दुःखपारं तितीर्षतः। कुरूणां सृञ्जयानां च के जीवन्ति के मृताः।। | 8-2-5a 8-2-5b |
सञ्जय उवाच। | 8-2-6x |
हतः शान्तनवो राजन्दुराधर्षः प्रतापवान्। हत्वा पाण्डवयोधानामर्बुदं दशभिर्दिनैः।। | 8-2-6a 8-2-6b |
तथा द्रोणो महेष्वासः पाञ्चालानां रथव्रजान्। निहत्य युधि दुर्धर्षः पञ्चाद्रुक्मरथो हतः।। | 8-2-7a 8-2-7b |
हतशेषस्य भीष्मेण द्रोणेन च महात्मना। अर्धं निहत्य सैन्यस्य कर्णो वैकर्तनो हतः।। | 8-2-8a 8-2-8b |
विविंशतिर्महाराज राजपुत्रो महाबलः। आनर्तयोधाञ्शतशो निहत्य निहतो रणे।। | 8-2-9a 8-2-9b |
तथा पुत्रो विकर्णस्ते क्षत्रव्रतमनुस्मरन्। क्षीणबाणो हतः शूरः स्थितो ह्यभिमुखः परैः।। | 8-2-10a 8-2-10b |
धोररूपान्परिक्लेशान्दुर्योधनकृतान्बहून्। प्रतिज्ञां स्मरता तेन भीमसेनेन पातितः।। | 8-2-11a 8-2-11b |
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ राजपुत्रौ महारथौ। कृत्वा स्वसुकरं कर्म गतौ वैवस्वतक्षयम्।। | 8-2-12a 8-2-12b |
सिन्धुराष्ट्रमुखानीह दश राष्ट्राणि यानिह। यस्य तिष्ठन्ति वचने यः स्थितस्तव शासने।। | 8-2-13a 8-2-13b |
अक्षौहिणीर्दशैकां च विनिर्जित्य शितैः शरैः। सोऽर्जुनेन हतो राजन्महावीर्यो जयद्रथः।। | 8-2-14a 8-2-14b |
तथा दुर्योधनसुतस्तरस्वी युद्धदुर्मदः। वर्तमानः पितुः शास्त्रे सौभद्रेण निपातितः।। | 8-2-15a 8-2-15b |
तथा दौःशासनिः सूरो बाहुशाली रणोत्कटः। द्रौपदेयेन सङ्गम्य गमितो यमसादनम्।। | 8-2-16a 8-2-16b |
किरातानामधिपतिः सागरानूपवासिनाम्। देवराजस्य धर्मात्मा प्रियो बहुमतः सखा।। | 8-2-17a 8-2-17b |
भगदत्तो महीपालः क्षत्रधर्मरतः सदा। धनञ्जयेन विक्रम्य गमितो यमसादनम्।। | 8-2-18a 8-2-18b |
तथा कौरवदायादो न्यस्तशस्त्रो महायशाः। हतो भूरिश्रवा राजञ्शूरः सात्यकिना युधि।। | 8-2-19a 8-2-19b |
श्रुतायुरपि चाम्बष्ठः क्षत्रियाणां धुरन्धरः। चरन्नभीतवत्सङ्ख्ये निहतः सव्यसाचिना।। | 8-2-20a 8-2-20b |
तव पुत्रः सदामर्षी कृतास्त्रो युद्धदुर्मदः। दुःशासनो महाराज भीमसेनेन पातितः।। | 8-2-21a 8-2-21b |
यस्य राजन्गजानीकं बहुसाहस्रमद्भुतम्। सुदक्षिणः स सङ्ग्रामे निहतः सव्यसाचिना।। | 8-2-22a 8-2-22b |
कोसलानामधिपतिर्हत्वा बहुमतान्परान्। सौभद्रेणेह विक्रम्य गमितो यमसादनम्।। | 8-2-23a 8-2-23b |
बहुशो योधयित्वा तु भीमसेनं महारथम्। चित्रसेनस्तव सुतो भीमसेनेन पातितः।। | 8-2-24a 8-2-24b |
मद्रराजात्मजः शूरः परेषां भयवर्धनः। असिचर्मधरः श्रीमान्सौभद्रेण निपातितः।। | 8-2-25a 8-2-25b |
समः कर्णस्य समरे यः स कर्णस्य पश्यतः। वृषसेनो महातेजाः शीघ्रास्त्रो दृढविक्रमः।। | 8-2-26a 8-2-26b |
अभिमन्योर्वधं स्मृत्वा प्रतिज्ञामपि चात्मनः। धनञ्जयेन विक्रम्य गमितो यमसादनम्।। | 8-2-27a 8-2-27b |
नित्यं प्रसक्तवैरो यः पाण्डवैः पृथिवीपतिः। विश्राव्य वैरं पार्थेन श्रुतायुः स निपातितः।। | 8-2-28a 8-2-28b |
शल्यपुत्रस्तु विक्रान्तः सहदेवेन मारिष। हतो रुक्मरथो राजञ्श्यालो मातुलजो युधि।। | 8-2-29a 8-2-29b |
राजा भागीरथो वृद्धो बृहत्क्षत्रश्च केकयः। पराक्रमन्तौ विक्रान्तौ निहतौ वीर्यवत्तरौ।। | 8-2-30a 8-2-30b |
भगदत्तसुतो राजन्कृतप्रज्ञो मंहाबलः। श्येनवच्चरता सङ्ख्ये नकुलेन निपातितः।। | 8-2-31a 8-2-31b |
पितामहस्तव तथा बाह्लीकः सह बाह्लिकैः। निहतो भीमसेनेन महाबालपराक्रमः।। | 8-2-32a 8-2-32b |
जयत्सेनस्तथा राजञ्जारासन्धिर्महाबलः। मागधो निहतः सङ्ख्ये सौभद्रेण महात्मना।। | 8-2-33a 8-2-33b |
पुत्रस्ते दुर्मुखो राजन्दुःसहश्च महारथः। गदया भीमसेनेन निहतौ शूरमानिनौ।। | 8-2-34a 8-2-34b |
दुर्मर्षणो दुर्विषहो दुर्जयश्च महारथः। कृत्वा त्वसुकरं कर्म गता वैवस्वतक्षयम्।। | 8-2-35a 8-2-35b |
उभौ कलिङ्गवृषकौ भ्रातरौ युद्धदुर्मदौ। कृत्वा चासुकरं कर्म गतौ वैवस्वतक्षयम्।। | 8-2-36a 8-2-36b |
सचिवो वृषपर्वा ते शूरः परमवीर्यवान्। भीमसेनेन विक्रम्य गमितो यमसादनम्।। | 8-2-37a 8-2-37b |
तथैव पौरवो राजा नागायुतबलो महान्। समरे पाण्डुपुत्रेण निहतः सव्यसाचिना।। | 8-2-38a 8-2-38b |
वसातयो महाराज द्विसाहस्राः प्रहारिणः। शूरसेनाश्च विक्रान्ताः सर्वे युधि निपातिताः।। | 8-2-39a 8-2-39b |
अभीषाहाः कवचिनः प्रहरन्तो रणोत्कटाः। शिबयश्च रथोदाराः कालिङ्गसहिता हताः।। | 8-2-40a 8-2-40b |
गोकुले नित्यसंवृद्धा युद्धे परमकोपनाः। गोपालाः कृतवीरास्ते निहताः सव्यसाचिना।। | 8-2-41a 8-2-41b |
श्रेणयो बहुसाहस्राः संशप्तकगणाश्च ये। ते सर्वे पार्थमासाद्य गदा वैवस्वतक्षयम्।। | 8-2-42a 8-2-42b |
श्यालौ तव महाराज राजानौ वृषकाचलौ। त्वदर्थमतिविक्रान्तौ निहतौ सव्यसाचिना।। | 8-2-43a 8-2-43b |
उग्रकर्मा महेष्वासो नामतः कर्मतस्तथा। साल्वराजो महाबाहुर्भीमसेनेन पातितः।। | 8-2-44a 8-2-44b |
ओघवांश्च महाराज बृहन्तः सहितौ रणे। पराक्रमन्तौ मित्रार्थे गतौ वैवस्वतक्षयम्।। | 8-2-45a 8-2-45b |
तथैव रथिनां श्रेष्ठः क्षेमधूर्तिर्विशाम्पते। निहतो गदया राजन्भीमसेनेन संयुगे।। | 8-2-46a 8-2-46b |
तथा राजन्महेष्वासो जलसन्धौ महाबलः। सुमहत्कदनं कृत्वा हतः सात्यकिना रणे।। | 8-2-47a 8-2-47b |
अलम्बुसो राक्षसेन्द्रः खरबन्धुरयानवान्। घटोत्कचेन विक्रम्य गमितो यमसादनम्।। | 8-2-48a 8-2-48b |
राधेयः सूतपुत्रश्च भ्रातरश्च महारथाः। केकयाः सर्वशश्चापि निहताः स्व्यसाचिना।। | 8-2-49a 8-2-49b |
मालवा मद्रकाश्चैव द्राविडाश्चोग्रकर्मिणः। यौधेयाश्च ललित्थाश्च क्षुद्रकाश्चाप्युशीनराः।। | 8-2-50a 8-2-50b |
मावेल्लकास्तुण्डिकेराः सावित्रीपुत्रकाश्च ये। प्राच्योदीच्याः प्रतीच्याश्च दाक्षिणात्याश्च मारिष।। | 8-2-51a 8-2-51b |
पत्तीनां निहताः सङ्घा हयानां प्रयुतानि च। रथव्रजाश्च निहता हताश्च वरवारणाः।। | 8-2-52a 8-2-52b |
सध्वजाः सायुधाः शूराः सवर्माम्बरभूषणाः। कालेन महताऽऽयस्ताः कुशलैर्ये च वर्धिताः।। | 8-2-53a 8-2-53b |
ते हताः समरे राजन्पार्थेनाक्लिष्टकर्मणा। अन्ये तथाऽमितबलाः परस्परवधैषिणः।। | 8-2-54a 8-2-54b |
एते चान्ये च बहवो राजानः सगणा रणे। हताः सहस्रशो राजन्यन्मां त्वं परिपृच्छसि।। | 8-2-55a 8-2-55b |
एवमेष क्षयो वृत्तः कर्णार्जुनसमागमे। महेन्द्रेण यथा वृत्रो यथा रामेण रावणः।। | 8-2-56a 8-2-56b |
यथा कृष्णेन नरको मुरुश्च निहतो रणे। कार्तवीर्यश्च रामेण भार्गवेण यथा हतः।। | 8-2-57a 8-2-57b |
सज्ञातिबान्धवः शूरः समरे युद्धदुर्मदः। रणे कृत्वा महद्युद्धं घोरं त्रैलोक्यमोहनम्।। | 8-2-58a 8-2-58b |
यथा स्कन्देन महिषो यथा रुद्रेण चान्धकः। तथाऽर्जुनेन स हतो द्वैरथे युद्धदुर्मदः।। | 8-2-59a 8-2-59b |
सामात्यबान्धवो राजन्कर्णः प्रहरतां वरः। जयाशा धार्तराष्ट्राणां वैरस्य च मुखं नृपः।। | 8-2-60a 8-2-60b |
तीर्णं तत्पाण्डवै राजन्यत्पुरा नावबुध्यसे। उच्यमानो महाराज बन्धुभिर्हितकाङ्क्षिभिः।। | 8-2-61a 8-2-61b |
`न कृतं च त्वया पूर्वं दैवेन विधिना बलात्'। तदिदं समनुप्राप्तं व्यसनं सुमहात्ययम्।। | 8-2-62a 8-2-62b |
गाणां राज्यकामानां त्वया राजन्हितैषिणा। अहितान्येव चीर्णानि तेषां ते फलमागतम्।। | 8-2-63a 8-2-63b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि द्वितीयोऽध्यायः।। 2 ।। |
8-2-35 दुर्मनाश्च महारथः इति क.ख.ङ.पाठः। विकर्णश्च महाबलः इति ङ. पाठः।। 8-2-48 खरबन्धुरयानवान् गर्दभसंयुतरथवान्। अलायुधो राक्षसेन्द्रो बकबन्धुरयानवान् इति क.ख.ङ.पाठः।। 8-2-59 कर्णस्तथा हत इत्यनुकृष्यते।। 8-2-2 द्वितीयोऽध्यायः।।
कर्णपर्व-001 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | कर्णपर्व-003 |