महाभारतम्-02-सभापर्व-004
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ब्राह्मणान्भोजयित्वा युधिष्ठिरस्य सभाप्रवेशः।।1।।
ऋषीणां क्षत्रियाणां देवगन्धर्वादीनां च तत्रोपवेशनम्।। 2।।
वैशम्पायन उवाच।। | 2-4-1x |
`तां तु कृत्वा सभां श्रेष्ठां मयश्चार्जुनमब्रवीत्। भूतानां च महावीर्यो ध्वजाग्रे किङ्करो गणः।। | 2-4-1a 2-4-1b |
तव विष्फारघोषेण मेघवन्निनदिष्यति। अयं हि सूर्यसङ्काशो ज्वलनस्य रथो महान्।। 2।। | 2-4-2a 2-4-2b |
इमे च दिविजाः श्वेता वीर्यवन्तो हयोत्तमाः। मायामयः कृतो ह्येष ध्वजो वानरलक्षणः।। | 2-4-3a 2-4-3b |
असज्जमानो वृक्षेषु धूमकेतुरिवोच्छ्रितः। बहुवर्णं हि लक्ष्येत ध्वजं वानरलक्षणम्।। | 2-4-4a 2-4-4b |
ध्वजोत्कटं ह्यनवमं युद्धे द्रक्ष्यसि विष्ठितम्। एव वीरः सव्यसाचिन्ध्वजस्यान्ते भविष्यति।। | 2-4-5a 2-4-5b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-4-6x |
इत्युक्त्वाऽऽलिङ्ग्य वीभत्सुं विसृष्टः प्रययौ मयः'। | 2-4-6a |
ततः प्रवेशनं तस्यां चक्रे राजा युधिष्ठिरः। अयुतं भोजयित्वा तु ब्राह्मणानां नराधिपः।। | 2-4-7a 2-4-7b |
साज्येन पायसेनैव मधुना मिश्रितेन च। भक्ष्यैर्मूलैः फलैश्चैव मांसैर्वाराहहारिणैः। कृसरेणाथ जीवन्त्या हविष्येण च सर्वशः।। | 2-4-8a 2-4-8b 2-4-8c |
मांसप्रकारैर्विविधैः खाद्यैश्चापि तथा नृप। चोष्यैश्च विविधै राजन्पेयैश्च बहुविस्तरैः।। | 2-4-9a 2-4-9b |
अहतैश्चैव वासोभिर्माल्यैरुच्चावचैरपि। तर्पयामास विप्रेन्द्रान्नानादिग्भ्यः समागतान्।। | 2-4-10a 2-4-10b |
ददौ तेभ्यः सहस्राणि गवां प्रत्येकशः पुनः। पुण्याहघोषस्तत्रासीद्दिवस्पृगिव भारत।। | 2-4-11a 2-4-11b |
वादित्रैर्विविधैर्दिव्यैर्गन्धैरुच्चावचैरपि। पूजयित्वा कुरुश्रेष्ठो देवतानि निवेश्य च।। | 2-4-12a 2-4-12b |
तत्र मल्ला नटा झल्लाः सूता वैतालिकास्तथा। उपतस्थुर्महात्मानं धर्मपुत्रं युधिष्ठिरम्।। | 2-4-13a 2-4-13b |
तथा स कृत्वा पूजां तां भ्रातृभिः सह पाण्डवः। तस्यां सभायां रम्यायां रेमे शक्रो यथा दिवि।। | 2-4-14a 2-4-14b |
सभायामृषयस्तस्यां पाण्डवैः सह आसते। आसाञ्चक्रुर्नरेन्द्राश्च नानादेशसमागताः।। | 2-4-15a 2-4-15b |
असितो देवलः सत्यः सर्पिर्माली महाशिराः। अर्वा वसुः सुमित्रश्च मैत्रेयः शुनको बलिः।। | 2-4-16a 2-4-16b |
बको दाल्भ्यः स्थूलशिराः कृष्णद्वैपायनः शुकः। सुमन्तुर्जैमिनिः पैलो व्यासशिष्यास्तथा वयम् ।। | 2-4-17a 2-4-17b |
तित्तिरिर्याज्ञवल्क्यश्च ससुतो रोमहर्षणः। अप्सुहोम्यश्च धौम्यश्च अणीमाण्डव्यकौशिकौ।। | 2-4-18a 2-4-18b |
दामोष्णीपस्त्रैबलीश्च पर्णादो घटजानुकः। मौञ्जायनो वायुभक्षः पाराशर्यश्च सारिकः।। | 2-4-19a 2-4-19b |
बलिवाकः सिनीवाकः सप्तपालः कृतश्रमः। जातूकर्णः शिखावांश्च आलम्बः पारिजातकः।। | 2-4-20a 2-4-20b |
पर्वतश्च महाभागो मार्कण्डेयो महामुनिः। पवित्रपाणिः सावर्णो भालुकिर्गालवस्तथा।। | 2-4-21a 2-4-21b |
जङ्घाबन्धुश्च रैभ्यश्च कोपवेगस्तथा भृगुः। हरिबभ्रुश्च कौण्डिन्यो बभ्रुमाली सनातनः।। | 2-4-22a 2-4-22b |
काक्षीवानौशिजश्चैव नाचिकेतोऽथ गौतमः। पैङ्ग्यो वराहः शुनकः शाण्डिल्यश्च महातपाः।। | 2-4-23a 2-4-23b |
कुक्कुरो वेणुजङ्घोऽथ कालापः कठ एव च। मुनयो धर्मविद्वांसो धृतात्मानो जितेन्द्रियाः।। | 2-4-24a 2-4-24b |
एते चान्ये च बहवो वेदवेदाङ्गपारगाः। उपासते महात्मानं सभायामृषिसत्तमाः।। | 2-4-25a 2-4-25b |
कथयन्तः कथाः पुण्या धर्मज्ञाः शुचयोऽमलाः। तथैव क्षत्रियश्रेष्ठा धर्मराजमुपासते।। | 2-4-26a 2-4-26b |
श्रीमान्महात्मा धर्मात्मा मुञ्जकेतुर्विवर्धनः। सङ्ग्रामजिद्दुर्मुखश्च उग्रसेनश्च वीर्यवान्। | 2-4-27a 2-4-27b |
कक्षसेनः क्षितिपतिः क्षेमकश्चापराजितः। कम्बोजराजः कमठः कम्पनश्च महाबलः।। | 2-4-28a 2-4-28b |
सततं कम्पयामास यवनानेक एव यः। बलपौरुषसम्पन्नान्कृतास्त्रानमितौजसः। यथाऽसुरान्कालकेयान्देवो वज्रधरस्तथा।। | 2-4-29a 2-4-29b 2-4-29c |
जटासुरो मद्रकानां च राजा कुन्तिः पुलिन्दश्च किरातराजः। तथाङ्गवाङ्गौ सहपुण्ड्रकेण पाण्ड्योड्रराजौ च सहान्ध्रकेण ।। | 2-4-30a 2-4-30b 2-4-30c 2-4-30d |
अङ्गो वङ्गः सुमित्रश्च शैब्यश्चामित्रकर्शनः। किरातराजः सुमना यवनाधिपतिस्तथा।। | 2-4-31a 2-4-31b |
चाणूरो देवरातश्च भोजो भीमरथश्च यः। श्रुतायुधश्च कालिङ्गो जयसेनश्च मागधः।। | 2-4-32a 2-4-32b |
सुकर्मा चेकितानश्च पुरुश्चामित्रकर्शनः। केतुमान्वसुदानश्च वैदेहोऽथ कृतक्षणः।। | 2-4-33a 2-4-33b |
सुधर्मा चानिरुद्धश्च श्रुतायुश्च महाबलः। अनूपराजो दुर्धर्पः क्रमजिच्च सुदर्शनः।। | 2-4-34a 2-4-34b |
शिशुपालः सहसुतः करूपाधिपतिस्तथा। वृष्णीनां चैव दुर्धर्पाः कुमारा देवरूपिणः।। | 2-4-35a 2-4-35b |
आहुको विपृथुश्चैव गदः सारण एव च। अक्रूरः कृतवर्मा च सत्यकश्च शिनेः सुतः।। | 2-4-36a 2-4-36b |
भीष्मकोऽथाकृतिश्चैव द्युमत्सेनश्च वीर्यवान्। केकयाश्च महेष्वासा यज्ञसेनश्च सोमकिः।। | 2-4-37a 2-4-37b |
केतुमान्वसुमांश्चैव कृतास्त्रश्च महाबलः। एते चान्ये च बहवः क्षत्रिया मुख्यसंमताः। | 2-4-38a 2-4-38b |
उपासते सभायां स्म कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम्। अर्जुनं ये व संश्रित्य राजपुत्रा महाबलाः।। | 2-4-39a 2-4-39b |
अशिक्षन्त धनुर्वेदं रौरवाजिनवाससः। तत्रैव शिक्षिता राजन्कुमारा वृष्णिनन्दनाः। | 2-4-40a 2-4-40b |
रौक्मिणेयश्च साम्बश्च युयुधानश्च सात्यकिः। सुधर्मा चानिरुद्धश्च शैव्यश्च नरपुङ्गवः।। | 2-4-41a 2-4-41b |
एते चान्ये च बहवो राजानः पृथिवीपते। धनञ्जयसखा चात्र नित्यमास्ते स्म तुम्बुरुः।। | 2-4-42a 2-4-42b |
उपासते महात्मानमासीनं सप्तविंशतिः। चित्रसेनः सहामात्यो गन्धर्वाप्सरसस्तथा।। | 2-4-43a 2-4-43b |
गीतवादित्रकुशलाः साम्यतालविशारदाः। प्रमाणोऽथ लये स्थाने किन्नराः कृतनिश्रमाः।। | 2-4-44a 2-4-44b |
सञ्चोदितास्तुम्बुरुणा गन्धर्वसहितास्तदा। गायन्ति दिव्यतानैस्ते यथान्यायं मनस्विनः।। | 2-4-45a 2-4-45b |
पाण्डुपुत्रानृषींश्चैव रमयन्त उपासते। तस्यां सभायामासीनाः सुव्रताः सत्यसङ्गराः।। | 2-4-46a 2-4-46b |
दिवीव देवा ब्रह्माणं युधिष्ठिरमुपासते।। | 2-4-47a |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि मन्त्रपर्वणि चतुर्थोऽध्यायः।। 4।। |
2-4-29 कालकेयाः कालकाया अपत्यान्यसुराः।।
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