महाभारतम्-02-सभापर्व-058
दिखावट
← सभापर्व-057 | महाभारतम् द्वितीयपर्व महाभारतम्-02-सभापर्व-058 वेदव्यासः |
सभापर्व-059 → |
|
कृष्णदर्शनाय वसुदेवादीनामागमनम्।।1।। रामकृष्णाभ्यां पित्रादिवन्दनपूर्वकं बन्धुभ्यो रत्नादिवितरणम्।। 2।। इन्द्रस्य कृष्णचरितप्रशंसनपूर्वकं स्वलोकगमनम्।। 3।।
भीष्म उवाच। | 2-58-1x |
एवमालोकयाञ्चक्रुर्द्वारकामृषभास्त्रयः। उपेन्द्रबलदेवौ च वासवश्च महायशाः।। | 2-58-1a 2-58-1b |
ततस्तं पाण्डरं शौरिर्मूर्ध्नि तिष्ठन्गरुत्मतः। प्रीतः शङ्खमुपाध्मासीद्द्विषतां रोमहर्षणम्।। | 2-58-2a 2-58-2b |
तस्य शङ्खस्य शब्देन सारश्चुक्षुभे भृशम्। ररास च नभः सर्वं तच्चित्रमभवत्तदा।। | 2-58-3a 2-58-3b |
पाञ्चजन्यस्य निर्घोषं निशम्य कुकुरान्दकाः। प्रीयमाणाः समाजग्मुरालोक्य मधुसूदनम्।। | 2-58-4a 2-58-4b |
वसुदेवं पुरस्कृत्य वेणुशङ्खरवैः सह। उग्रसेनो ययौ राजा वासुदेवनिवेशनम्।। | 2-58-5a 2-58-5b |
आनन्दितुं पर्यचन्स्वेषु वेश्मसु देवकी। रोहिणी च ययौ देशमाहुकस्य च याः स्त्रियः।। | 2-58-6a 2-58-6b |
हता ब्रह्मद्विषः सर्वे जयन्त्यन्धकवृष्णयटः। एवमुक्तः सह स्त्रीभिरक्षतैर्मधुसूदनः।। | 2-58-7a 2-58-7b |
ततः शौरिः सुपर्णेन स्वं निवेशनमभ्ययात्। चकाराथ यथोद्देशमीश्वरो मणिपर्वतम्।। | 2-58-8a 2-58-8b |
ततो धनानि रत्नानि सभायां मधुसूदनः। निधाय पुण्डरीकाक्षः पितुर्दर्शनलालसः।। | 2-58-9a 2-58-9b |
ततः सान्दीपिनिं पूर्वं ब्राह्मणं चापि भारत। यथान्यायं वासुदेव उपस्पृष्ट्वा महायशाः।। | 2-58-10a 2-58-10b |
ववन्दे पृथुताम्राक्षः प्रीयमाणो महायशाः। तथाऽश्रुपरिपूर्णाक्षमानन्दभृतचेतसम्।। | 2-58-11a 2-58-11b |
ववन्दे सह रामेण पितरं वासवानुजः। ताभ्यां च मूर्ध्न्युपाघ्रातः केशवः परवीरहा।। | 2-58-12a 2-58-12b |
यथाश्रेष्ठमुपागम्य सात्वतान्यदुनन्दनः। सर्वेषां नाम जग्राह दाशार्हाणामधोक्षजः।। | 2-58-13a 2-58-13b |
ततः सर्वाणि वित्तानि सर्वरत्नमयानि च। व्यभजत्तानि तेभ्योऽथ सर्वेभ्यो यदुनन्दनः।। | 2-58-14a 2-58-14b |
सा केशवमहामात्रैर्महेन्द्रप्रतिमैः सभा। शुशुभे वृष्णिशार्दूलैः सिंहैरिव गिरेर्गुहा।। | 2-58-15a 2-58-15b |
अथासनगतान्सर्वानुवाच विबुधाधिपः। शुभया हर्षयन्वाचा महेन्द्रस्तान्महायशाः। कुकुरान्धकमुख्यांश्च तं च राजानमाहुकम्।। | 2-58-16a 2-58-16b 2-58-16c |
इन्द्र उवाच। | 2-58-17x |
यदर्थं जन्म कृष्णस्य मानुषेषु महात्मनः। यत्कृतं वासुदेवेन तद्वक्ष्यामि समासतः।। | 2-58-17a 2-58-17b |
अयं शतसहस्राणि दानवानामरिन्दमः। निहय् पुण्डरीकाक्षः पातालविवरं ययौ।। | 2-58-18a 2-58-18b |
यच्च नाधिगतं पूर्वैः प्रह्लादबलिशम्बरैः। तदिदं शौरिणा वित्तं प्रापितं भवतामिह।। | 2-58-19a 2-58-19b |
सपाशं मुरमाक्रमय् पाञ्चजन्यं च धीमता। शिलासङ्घानतिक्रम्य निशुम्भः सगणो हतः।। | 2-58-20a 2-58-20b |
हयग्रीवश्च विक्रान्तो दानवो निहतो बली। मथितश्च मृधे भौमः कुण्डले चाहृते पुनः।। | 2-58-21a 2-58-21b |
पुनर्बाणवधे शौरिमादित्या वसुभिः सह। मन्मुखा आगमिष्यन्ति साध्याश्च मधुसूदनम्।। | 2-58-22a 2-58-22b |
एवमुक्त्वा ततः सर्वानामन्त्र्य कुकुरान्धकान्। सस्वजे रामकृष्णौ च वसुदेवं च वासवः।। | 2-58-23a 2-58-23b |
प्रद्युम्नसाम्बप्रमुखाननिरूद्धं च सारणम्। बभ्रुं झल्लिं गदं भानुं चारुदेष्णं च वृत्रहा।। | 2-58-24a 2-58-24b |
सत्कृत्य सारणाक्रूरौ पुनराभाष्य सात्यकिम्। सस्वजे वृष्णिराजानमाहुकं कुकुराधिपम्। भोजं च कृतवर्णाणमन्यांश्चान्दकवृष्णिषु।। | 2-58-25a 2-58-25b 2-58-25c |
आमन्त्र्य देवप्रवरैर्वासवो वासवानुजम्। ततः श्वेताचलप्रख्यं गजमैरावतं प्रभुः।। | 2-58-26a 2-58-26b |
पश्यतां सर्वभातानामारुरोह शचीपतिः। पृथिवीं चान्तरिक्षं च दिवं च वरवारणम्।। | 2-58-27a 2-58-27b |
मुखाडम्बरनिर्घोषैः पूरयन्तमिवासकृत्। हैमयन्त्रमहाकक्ष्यं हिरण्मयविषाणिनम्।। | 2-58-28a 2-58-28b |
मनोहरकुथास्तीर्णं सर्वरत्नविभूषितम्। नित्यस्रुतमदस्रावं क्षरन्तमिव तोयदम्।। | 2-58-29a 2-58-29b |
दिशागजं महामात्रं काञ्चनस्रजमास्थितः। प्रबभौ मन्दराग्रस्थः प्रतपन्भानुमानिव।। | 2-58-30a 2-58-30b |
ततो वज्मयं भीमं प्रगृह्य परामाङ्कुशम्। ययौ बलवता सार्धं पावकेन शचीपतिः।। | 2-58-31a 2-58-31b |
तं करेणुगजव्रातैर्विमानैश्च मरुद्गणाः। पृष्ठतोऽनुययुः प्रीताः कुबेरवरुणग्रहाः।। | 2-58-32a 2-58-32b |
स वायुपक्षमास्थाय वैश्वानरपथं गतः। प्राप्य सूर्यपथं देवस्तत्रैवान्तरधीयत।। | 2-58-33a 2-58-33b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि अर्घाहरणपर्वणि अष्टपञ्चाशोऽध्यायः।। 58।। |
सभापर्व-057 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सभापर्व-059 |