महाभारतम्-02-सभापर्व-027
दिखावट
← सभापर्व-026 | महाभारतम् द्वितीयपर्व महाभारतम्-02-सभापर्व-027 वेदव्यासः |
सभापर्व-028 → |
|
अर्जुनदिग्वजये भगदत्तादिजयः।। 1।।
जनमेजय उवाच।। | 2-27-1x |
दिशामभिजयं ब्रह्मन्विस्तरेणानुकीर्तय। न हि तृप्यामि पूर्वेषां शृण्वानश्चरितं महत्।। | 2-27-1a 2-27-1b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-27-2x |
धनञ्जयस्य वक्ष्यामि विजयं पूर्वमेव ते। यौगपद्येन पार्थैर्हि निर्जितेयं वसुन्धरा।। | 2-27-2a 2-27-2b |
`अवाप्य राजा राज्यार्धं कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। महत्त्वे राजशब्दस्य मनश्चक्रे महामनाः।। | 2-27-3a 2-27-3b |
तदा क्षात्रं विदित्वाऽस्य पृथिवीविजयं प्रति। अमर्षात्पार्थिवेन्द्राणां तं समेयाय वारयत्।। | 2-27-4a 2-27-4b |
तत्समेत्य भुवः क्षात्रं रथनागाश्वपत्तिमत्। अभ्ययात्पार्थिवं जिष्णुं मोघं कर्तुं जनाधिप।। | 2-27-5a 2-27-5b |
तत्पार्थः पार्थिवं क्षात्रं युयुत्सुं परमाहवे। प्रत्युद्ययौ महाबाहुस्तरसा पाकशासनिः।। | 2-27-6a 2-27-6b |
तद्भग्रं पार्थिवं क्षात्रं पार्थेनाक्लिष्टकर्मणा। वायुनेव घनानीकं तूलीभूतं ययौ दिशः।। | 2-27-7a 2-27-7b |
तज्जित्वा पार्थिवं क्षात्रं समरे परवीरहा। ययौ तदा वशे कर्तुमुदीचीं पाण्डुनन्दनः'।। | 2-27-8a 2-27-8b |
पूर्वं कुलिङ्गविषये वशे चक्रे महीपतिम्। धनञ्जयो महाबाहुर्नातितीव्रेण कर्मणा।। | 2-27-9a 2-27-9b |
`तेनैव सहितः प्रायाज्जिष्णुः साल्वपुरं प्रति। स साल्वपुरमासाद्य साल्वराजं धनञ्जयटः।। | 2-27-10a 2-27-10b |
विक्रमेणोग्रधन्वानं वशे चक्रे महामनाः। तं पार्थः सहसा जित्वा द्युमत्सेनं महीश्वरम्।। | 2-27-11a 2-27-11b |
कृत्वा स सैनिकं प्रायात्कटदेशमरिन्दमः। तत्र पार्थो रणे जिष्णुः सुनाभं वसुधाधिपम्।। | 2-27-12a 2-27-12b |
विक्रमेण वशे कृत्वा कृतवाननुसैनिकम्। एतेन सहितो राजन्सव्यसाची परन्तपः'।। | 2-27-13a 2-27-13b |
विजिग्ये शाकलद्वीपे प्रतिविन्ध्यं च पार्थिवम्। कलद्वीपवासाश्च सप्तद्वीपेषु ये नृपाः।। | 2-27-14a 2-27-14b |
अर्जुनस्य च सैन्यस्थैर्विग्रहस्तुमुलोऽभवत्। तान्सर्वानजयत्पार्तो धर्मराजप्रियेप्सया।। | 2-27-15a 2-27-15b |
तैरेव सहितः सर्वैः प्रग्ज्योतिषमुपाद्रवत्।। | 2-27-16a |
तत्र राजा महानासीद्भगदत्तो विशाम्पते। तेनासीत्सुमहद्युद्धं पाण्डवस्य महात्मनः।। | 2-27-17a 2-27-17b |
स किरातैश्च चीनैश्च वृतः प्राग्ज्योतिषोऽभवत्। अन्यैश्च बहुभिर्योधैः सागरानुपवासिभिः।। | 2-27-18a 2-27-18b |
ततः स दिवसानष्टौ योधयित्वा धनञ्जयम्। प्रहसन्नब्रवीद्राजा सङ्ग्रामविगतक्रमम्।। | 2-27-19a 2-27-19b |
उपपन्नं महाबाहो त्वयि कौरवनन्दन। पाकशासनदायादे वीर्यमाहवशोभिनि।। | 2-27-20a 2-27-20b |
अहं सखा महेन्द्रस्य शक्रादनवरो रणे। न शक्ष्यामि च ते तात स्थातुं प्रमुखतो युधि।। | 2-27-21a 2-27-21b |
त्वमीप्सितं पाण्डवेयं ब्रूहि किं करवाणि ते। यद्वक्ष्यसि महाबाहो तत्करिष्यामि पुत्रक।। | 2-27-22a 2-27-22b |
अर्जुन उवाच।। | 2-27-23x |
कुरूणामृषभो राजा धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। धर्मज्ञः सत्यसन्धश्च यज्वा विपुलदक्षिणः।। | 2-27-23a 2-27-23b |
तस्य पार्थिवतामीप्से करस्तस्मै प्रदीयताम्। भवान्पितृसखश्चैव प्रीयमाणो मयापि च। ततो नाज्ञापयामि त्वां प्रीतिपूर्वं प्रदीयताम्।। | 2-27-24a 2-27-24b 2-27-24c |
भगदत्त उवाच। | 2-27-25x |
कुन्तीमातर्यथा मे त्वं तथा राजा युधिष्ठिरः। सर्वमेतत्करिष्यामि किं चान्यत्करवाणि ते।। | 2-27-25a 2-27-25b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि दिग्विजयपर्वणि सप्तविंशोऽध्यायः।। 27।। |
सभापर्व-026 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सभापर्व-028 |