महाभारतम्-02-सभापर्व-019
दिखावट
← सभापर्व-018 | महाभारतम् द्वितीयपर्व महाभारतम्-02-सभापर्व-019 वेदव्यासः |
सभापर्व-020 → |
|
पुनर्यदृच्छागतेन चण्डकौशिकेन जरासन्धपराक्रमादौ कथिते जरासन्धं राज्येऽभिषिच्य तपोवनगतस्य सभार्यस्य बृहद्रथस्य स्वर्गगमनम्।। 1।।
कृष्णेन कंसवधात् जरासन्धस्य स्वस्मिन्वैरोदयकथनम्।। 2।।
कृष्ण उवाच।। | 2-19-1x |
कस्यचित्त्वथ कालस्य पुनरेव महातपाः। मगधेषुपजक्राम भगवांश्चण्डकौशिकः।। | 2-19-1a 2-19-1b |
तस्याऽऽगमनसंहृष्टः सामात्यः सपुरः सरः। सभार्यः सह पुत्रेण निर्जगाम बृहद्रथः।। | 2-19-2a 2-19-2b |
पाद्यार्घ्याचमनीयैस्तमर्चयामास भारत। स नृपो राज्यसहितं पुत्रं तस्मै न्यवेदयत्।। | 2-19-3a 2-19-3b |
प्रतिगृह्य च तां पूजां पार्थिवाद्भगवानृषिः। उवाच मागधं राजन्प्रहृष्टेनान्तरात्मना।। | 2-19-4a 2-19-4b |
सर्वमेतन्मया ज्ञातं राजन्दिव्येन चक्षुषा। पुत्रस्तु शृणु राजेन्द्र यादृशोऽयं भविष्यति।। | 2-19-5a 2-19-5b |
अस्य रूपं च सत्वं च बलमूर्जितमेव च। एष श्रिया समुदितः पुत्रस्तव न संशयः।। | 2-19-6a 2-19-6b |
प्रापयिष्यति तत्सर्वं विक्रमेण समन्वितः। अस्य वीर्यवतो वीर्यं नानुयास्यन्ति पार्थिवाः।। | 2-19-7a 2-19-7b |
पततो वैनतेयस्य गतिमन्ये यथा खगाः। विनाशमुपयास्यन्ति ये चास्य परिपन्थिनः।। | 2-19-8a 2-19-8b |
देवैरपि विसृष्टानि शस्त्राण्यस्य महीपते। न रुजं जनयिष्यन्ति गिरेरिव नदीरयाः।। | 2-19-9a 2-19-9b |
सर्वमूर्धाभिषिक्तानामेव मूर्ध्नि ज्वलिष्यति। प्रभाहरोऽयं सर्वेषां ज्योतिषामिव भास्करः।। | 2-19-10a 2-19-10b |
एनमासाद्य राजानः समृद्धबलवाहनाः। विनाशमुपयास्यन्ति शलभा इव पावकम्।। | 2-19-11a 2-19-11b |
एष श्रियः समुदिताः सर्वराज्ञां ग्रहीष्यति। वर्षास्विवोदीर्णजला नदीर्नदनदीपतिः।। | 2-19-12a 2-19-12b |
एष धारयित सम्यक्चातुर्वर्ण्यं महाबलः। शुभां शुभवतीं स्फीतां सर्वसस्यधरां धराम्।। | 2-19-13a 2-19-13b |
अस्याज्ञावशगाः सर्वे भविष्यन्ति नराधिपाः। सर्वभूतात्मभूतस्य वायोरिव शरीरिणः।। | 2-19-14a 2-19-14b |
एष रुद्रं महादेवं त्रिपुरान्तकरं हरम्। सर्वलोकेष्वतिबलः साक्षाद्द्रक्ष्यति मागधः।। | 2-19-15a 2-19-15b |
एवं ब्रुवन्नेव मुनिः स्वकार्यमिव चिन्तयन्। विसर्जयामास नृपं बृहद्रथमथारिहन्।। | 2-19-16a 2-19-16b |
प्रविश्य नगरीं चापि ज्ञातिसम्बन्धिभिर्वृतः। अभिषिच्य जरासन्धं मगधाधिपतिस्तदा।। | 2-19-17a 2-19-17b |
बृहद्रथो नरपतिः परां निर्वृतिमाययौ। अभिषिक्ते जरासन्धे तदा राजा बृहद्रथः। पत्नीद्वयेनानुगतस्तपोवनचरोऽभवत्।। | 2-19-18a 2-19-18b 2-19-18c |
ततो वनस्थे पितरि मातृभ्यां सह भारत। जरासन्धः स्ववीर्येण पार्थिवानकरोद्वशे।। | 2-19-19a 2-19-19b |
अथ दीर्घस्य कालस्य तपोवनचरो नृपः। सभार्यः स्वर्गमगमत्तपस्तप्त्वा बृहद्रथः।। | 2-19-20a 2-19-20b |
जरासन्धोऽपि नृपतिर्यथोक्तं कौशिकेन तत्। वरप्रदानमखिलं प्राप्य राज्यमपालयत्।। | 2-19-21a 2-19-21b |
हते चैव मया कंसे सहंसडिभिके तदा। जरासन्धस्य दुहिता रोदते पार्श्वतः पितुः। जातो वै वैरनिर्बन्धो मयासीत्तत्र भारत।। | 2-19-22a 2-19-22b 2-19-22c |
भ्रामयित्वा शतगुणमेकोनं येन भारत। गदा क्षिप्ता बलवता मागधेन गिरिव्रजात्।। | 2-19-23a 2-19-23b |
तिष्ठतो मथुरायां वै कुत्स्नस्याद्भुतकर्मणः। एकोनयोजनशते सा पपात गदा शुभा।। | 2-19-24a 2-19-24b |
दृष्ट्वा पौरैस्तदा सम्यग्गदा चैव निवेदिता। गदावसानं तत्ख्यातं मथुरायाः समीपतः।। | 2-19-25a 2-19-25b |
तस्यास्तां हंसडिभिकावशस्त्रनिधनावुभौ। मन्त्रे मतिमतां श्रेष्ठौ नीतिशास्त्रे विशारदौ।। | 2-19-26a 2-19-26b |
यौ तौ मया ते कथितौ पूर्वमेव महाबलौ। त्रयस्त्रयाणां लोकानां पर्याप्ता इति मे मतिः।। | 2-19-27a 2-19-27b |
एवमेष तदा वीर बलिभिः कुकुरान्धकैः। वृष्णिभिश्च महाराज नीतिहेतोरुपेक्षितः।। | 2-19-28a 2-19-28b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि मन्त्रपर्वणि एकोनविंशोऽध्यायः।। 19।। |
2-19-16 आह्निकाय महातपाः इति घ. पाठः।।
सभापर्व-018 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सभापर्व-020 |