महाभारतम्-02-सभापर्व-026
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युधिष्ठिराज्ञया दिग्विजयार्थं निर्गतानामर्जुनादीनां सङ्क्षेपेण दिग्विजयक थनम्।।
वैशम्पायन उवाच। | 2-26-1x |
`ऋषेस्तद्वचनं स्मृत्वा निशश्वास युधिष्ठिरः। धर्म धर्मभृतां श्रेष्ठः कर्तुमिच्छन्परन्तपः। | 2-26-1a 2-26-1b |
तस्येङ्गितज्ञो बीभत्सुः सर्वशस्त्रभृतां वरः। संविवर्तयिषुः कामं पावकात्पाकशासनिः'।। | 2-26-2a 2-26-2b |
प्राप्तं प्राप्य धनुः श्रेष्ठमक्षय्यौ च महेषुधी। रथं ध्वजं सभां चैव युधिष्ठिरमभाषत।। | 2-26-3a 2-26-3b |
अर्जुन उवाच। | 2-26-4x |
धनुरस्त्रं शरा वीर्यं पक्षो भूमिर्यशो बलम्। प्राप्तमेतन्मया राजन्दुष्प्रापं यदभीप्सितम्।। | 2-26-4a 2-26-4b |
तस्य कृत्यमहं मन्ये कोशस्य परिवर्धनम्। करमाहारयिष्यामि राज्ञः सर्वान्नृपोत्तम।। | 2-26-5a 2-26-5b |
विजयाय प्रयास्यामि दिशं धनदपालिताम्। तिथावथ मुहूर्ते च नक्षत्रे चाभिपूजिते।। | 2-26-6a 2-26-6b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-26-7x |
धनञ्जयवचः श्रुत्वा धर्मराजो युधिष्ठिरः स्निग्धगम्भीरनादिन्यां तं गिरा प्रत्यभाषत।। | 2-26-7a 2-26-7b |
स्वस्ति वाच्यार्हतो विप्रान्प्रयाहि भरतर्षभ। दुर्हृदामप्रहर्षाय सुहृदां नन्दनाय च।। | 2-26-8a 2-26-8b |
विजयस्ते ध्रुवं पार्थ प्रियं काममवाप्स्यसि। इत्युक्तः प्रययौ पार्थः सैन्येन महता वृतः।। | 2-26-9a 2-26-9b |
अग्निदत्तेन दिव्येन रथेनाद्भुतकर्मणा। तथैव भीमसेनोऽपि यमौ च पुरुषर्षभौ।। | 2-26-10a 2-26-10b |
ससैन्याः प्रययुः सर्वे धर्मराजेन पूजिताः। दिशं धनपतेरिष्टामजयत्पाकशासनिः।। | 2-26-11a 2-26-11b |
भीमसेनस्तथा प्राचीं सहदेवस्तु दक्षिणाम्। प्रतीचीं नकुलो राजन्दिशं व्यजयतास्त्रवित्।। | 2-26-12a 2-26-12b |
खाण्डवप्रस्थमध्यस्थो धर्मराजो युधिष्ठिरः। आसीत्परमया लक्ष्म्या सुहृद्गणवृतः प्रभुः।। | 2-26-13a 2-26-13b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि दिग्विजयपर्वणि षड्विंशोऽध्यायः।। 26।। |
2-26-13 खाण्डवप्रस्थं खाण्डवदाहेन ख्यापितस्थानम्।। 13।।
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