महाभारतम्-02-सभापर्व-095
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धृतराष्ट्रानुज्ञया सभ्रातृकस्य युधिष्ठिरस्य इन्द्रप्रस्थगमनम्।। 1।।
युधिष्ठर उवाच।। | 2-95-1x |
राजन्किं करवामस्ते प्रशाध्यस्मांस्त्वमीश्वरः। नित्यं हि स्थातुमिच्छामस्तव भारत शासने।। | 2-95-1a 2-95-1b |
धृतराष्ट्र उवाच।। | 2-95-2x |
अजातशत्रो भद्रं ते अरिष्टं स्वस्ति गच्छत। अनुज्ञाताः सहधनाः स्वराज्यमनुशासत।। | 2-95-2a 2-95-2b |
इदं चैवावबोद्धव्यं वृद्धस्य मम शासनम्। मया निगदितं सर्वं पथ्यं निःश्रेयसं परम्।। | 2-95-3a 2-95-3b |
वेत्थ त्वं तात धर्माणां गतिं सूक्ष्मां युधिष्ठिर। विनीतोऽसि महाप्राज्ञ वृद्धानां पर्युपासिता।। | 2-95-4a 2-95-4b |
यतो बुद्धिस्ततः शान्तिः प्रशमं गच्छ भारत। नादारुणि पतेच्छस्त्रं दारुण्येतन्निपात्यते।। | 2-95-5a 2-95-5b |
न वैराण्यभिजानन्ति गुणान्पश्यन्ति नागुणान्। विरोधं नाधिगच्छन्ति ये त उत्तमपूरुषाः।। | 2-95-6a 2-95-6b |
स्मरन्ति सुकृतान्येव न वैराणि कृतान्यपि। सन्तः परार्थं कुर्वाणा नावेक्षन्ति प्रतिक्रियाम्।। | 2-95-7a 2-95-7b |
संवादे परुषाण्याहुर्युधिष्ठिर नराधमाः। प्रत्याहुर्मध्यमास्त्वेतेऽनुक्ताः नराधमाः। | 2-95-8a 2-95-8b |
न चोक्ता नैव चानुक्तास्त्वहिताः परुषा गिरः। प्रतिजल्पन्ति वै धीराः सदा तूत्तमपुरुषाः।। | 2-95-9a 2-95-9b |
स्मरन्ति सुकृतान्येव न वैराणि कृतान्यपि। सन्तः प्रतिविजानन्तो लब्ध्वा प्रत्ययमात्मनः।। | 2-95-10a 2-95-10b |
असम्भिन्नार्यमर्यादाः साधवः प्रियदर्शनाः। तथा चरित्तंमार्येण त्वयाऽस्मिन्सत्समागमे।। | 2-95-11a 2-95-11b |
दुर्योधनस्य पारुष्यं तत्तात हृदि मा कृथाः। मातरं चैव गान्धारीं मां च त्वं गुणकाङ्क्षया।। | 2-95-12a 2-95-12b |
उपस्थितं वृद्धमन्धं पितरं पश्य भारत। प्रेक्षापूर्वं मया द्यूतमिदमासीदुपेक्षितम्।। | 2-95-13a 2-95-13b |
मित्राणि द्रष्टुकामेन पुत्राणां च बलाबलम्। अशोच्याः कुरवो राजन्येषां त्वमनुशासिता।। | 2-95-14a 2-95-14b |
मन्त्री च विदुरो धीमान्सर्वशास्त्रविशारदः। त्वयि धर्मोऽर्जुने धैर्यं भीमसेने पराक्रमः।। | 2-95-15a 2-95-15b |
शुद्धा च गुरुशुश्रूषा यमयोः पुरुषाग्र्ययोः। अजातशत्रो भद्रं ते खाण्डवप्रस्थमाविश। भ्रातृभिस्तेऽस्तु सौभ्रात्रं धर्मे ते धीयताम मनः।। | 2-95-16a 2-95-16b 2-95-16c |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-95-17x |
इत्युक्तो भरतश्रेष्ठ धर्मराजो युधिष्ठिरः। कृत्वाऽऽर्यसमयं सर्वं प्रतस्थे भ्रातृभिः सह।। | 2-95-17a 2-95-17b |
ते रथान्मेघसङ्काशानास्थाय सह कृष्णया। प्रययुर्हृष्टमनस इन्द्रप्रस्थं पुरोत्तमम्।। | 2-95-18a 2-95-18b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि द्यूतपर्वणि पञ्चनवतितमोऽध्यायः।।95 ।। |
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