महाभारतम्-02-सभापर्व-065
दिखावट
← सभापर्व-064 | महाभारतम् द्वितीयपर्व महाभारतम्-02-सभापर्व-065 वेदव्यासः |
सभापर्व-066 → |
|
कृष्णनिन्दाश्रवणेन शिशुपालजिघांसया उत्पततो भीमस्य भीष्मेण विनिवर्तनम्।। 1।।
शिशुपाल उवाच। | 2-65-1x |
स मे बहुमतो राजा जरासन्धो महाबलः। योऽनेन युद्धं नेयेष दाक्षोऽयमिति संयुगे।। | 2-65-1a 2-65-1b |
केशवेन कृतं कर्म जरासन्धवधे तदा। भीमसेनार्जुनाभ्यां च कस्तत्साध्विति मन्यते।। | 2-65-2a 2-65-2b |
उद्वारेण प्रविष्टेन छद्मना ब्रह्मवादिना। दृष्टः प्रभावः कृष्णेन जरासन्धस्य भूपतेः।। | 2-65-3a 2-65-3b |
येन धर्मात्मनाऽऽत्मानं ब्रह्मण्यमभिजानता। प्रेषितं पाद्यमस्मै तद्दातुमग्रे दूरात्मने।। | 2-65-4a 2-65-4b |
भुज्यतामिति तेनोक्ताः कृष्णबीमधनञ्जयाटः। जरासन्धेन कौरव्य कृष्णेन विकृतं कृतम्।। | 2-65-5a 2-65-5b |
यद्ययं जगतः कर्ता यथैनं मूर्ख मन्यसे। कस्मान्न ब्राह्मणं सम्यगात्मानमवगच्छति।। | 2-65-6a 2-65-6b |
इदं त्वाश्चर्यभूतं मे यदिभे पाण्डवास्त्वया। अपकृष्टाः सतां मार्गान्मन्यन्ते तच्च साध्विति।। | 2-65-7a 2-65-7b |
अथवा नैतदाश्चर्यं येषां त्वमसि भारत। स्त्रीसधर्मा च वृद्धश्च सर्वार्थानां प्रदर्शकः।। | 2-65-8a 2-65-8b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-65-9x |
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा रूक्षं रूक्षाक्षरं बहु। चकोप बलिनां श्रेष्ठो भीमसेनः प्रतापवान्।। | 2-65-9a 2-65-9b |
तथा पद्मप्रतीकाशे स्वभावायतविस्तृते। भूयः क्रोधाभिताम्राक्षे रक्ते नेत्रे बभूवतुः।। | 2-65-10a 2-65-10b |
त्रिशिखां भ्रकुटीं चास्य ददृशुः सर्वपार्थिवाः। ललाटस्थां त्रिकूटस्थां गङ्गां त्रिपथगामिव।। | 2-65-11a 2-65-11b |
दन्तान्सन्दशतस्तस्य कोपाद्ददृशुराननम्। युगान्ते सर्वभूतानि कालस्येव जिघत्सतः।। | 2-65-12a 2-65-12b |
उत्पतन्तं तु वेगेन जग्राहैनं मनस्विन्। भीष्म एव महाबाहुर्महासेनमिवेश्वरः।। | 2-65-13a 2-65-13b |
तस्व भीमस्य भीष्मेण वार्यमाणस्य भारत। गुरुणा विविधैर्वाक्यैः क्रोधः प्रशममागतः।। | 2-65-14a 2-65-14b |
नातिचक्राम भीष्मस्य स हि वाक्यमरिन्दमः। समुद्वृत्तो घनापाये वेलामिव महोदधिः।। | 2-65-15a 2-65-15b |
शिशुपालस्तु सङ्क्रुद्धे भीमसेने जनाधिप। नाकम्पत तदा वीरः पौरुषे व्यवस्थितः।। | 2-65-16a 2-65-16b |
उत्पतन्तं तु वेगेन पुनः पुनररिन्दमः। न स तं चिन्तयामास सिंहः क्रुद्धो मृगं यथा।। | 2-65-17a 2-65-17b |
प्रहसंश्चाब्रवीद्वाक्यं चेदिराजः प्रतापवान्। भीमसेनमभिक्रुद्धं दृष्ट्वा भीमपराक्रमम्।। | 2-65-18a 2-65-18b |
मुञ्चैनं भीष्म पश्यन्तु यावदेनं नराधिपः। मत्प्रभावविनिर्दग्धं पतङ्गमिव वह्निना।। | 2-65-19a 2-65-19b |
ततश्चेदिपतेर्वाक्यं श्रुत्वा तत्कुरुसत्तमः। भीमसेनमुवाचेदं भीष्मे मतिमतां वरः।। | 2-65-20a 2-65-20b |
`नैषा चेदिपतेर्बुद्धिर्यत्त्वामाह्वयतेऽच्युतम्। भीमसेन महाबाहो कृष्णस्यैव विनिश्चयः'।। | 2-65-21a 2-65-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि शिशुपालवधपर्वणि पञ्चषष्टितमोऽध्यायः।।65।। |
2-65-13 महासेन कार्तिकयम्।।
सभापर्व-064 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सभापर्व-066 |