महाभारतम्-02-सभापर्व-025
दिखावट
← सभापर्व-024 | महाभारतम् द्वितीयपर्व महाभारतम्-02-सभापर्व-025 वेदव्यासः |
सभापर्व-026 → |
|
जरासन्धवधः।। 1।।
जरासन्धेन बन्धीकृतानां राज्ञां कृष्णेन मोचनम्।।2।।
मोचितै राजभिः कृष्णाय रत्नादिदानम् ।।3।।
कृष्णानुज्ञया जरासन्धपुत्रेण सहदेवेन पितुरौर्ध्वदैहिककरणम्।।4।।
सहदेवं राज्येऽभिषिच्य श्रीकृष्णभीमार्जुनानामिन्द्रप्रस्थगमनम्।। 5।।
जरासन्धवधश्रवणहृष्टेन युधिष्ठिरेण पूजितस्य कृष्णस्य द्वारकागमनम्।। 6।।
वैशम्पायन उवाच। | 2-25-1x |
भीमसेनस्ततः कृष्णमुवाच यदुनन्दनम्। बुद्धिमास्थाय विपुलां जरासन्धवधोप्सया।। | 2-25-1a 2-25-1b |
नायं पापो मया कृष्ण युक्तः स्यादनुरोधितुम्। प्रायेण यदुशार्दूल बान्धवक्षयकृत्तव।। | 2-25-2a 2-25-2b |
एवमुक्तस्ततः कृष्णः प्रत्युवाच वृकोदरम्। त्वरयन्पुरुषव्याघ्रो जरासन्धवधेप्सया।। | 2-25-3a 2-25-3b |
यत्ते दैवं परं सत्वं यच्च ते मातरिश्वनः। बलं भीमं जरासन्धे दर्शयाशु तदद्य वै।। | 2-25-4a 2-25-4b |
`तवैष वध्यो दुर्बुद्धिर्जरासन्धो महारथः। इत्यन्तरिक्षे त्वश्रौषं यदा वायुरवाप्यते।। | 2-25-5a 2-25-5b |
गोमन्ते पर्वतश्रेष्ठे येनैष परिमोक्षितः। बलदेवबलं प्राप्य कोऽन्यो जीवेत्तु मागधात्।। | 2-25-6a 2-25-6b |
तदस्य मृत्युर्विहितस्त्वदृते न महाबल। वायुं चिन्त्य महाबाहो जहीमं मगधाधिपम्।। | 2-25-7a 2-25-7b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-25-8x |
एवमुक्तस्ततो भीमो मनसाऽऽचिन्त्य मारुतम्। जनार्दनं नमस्कृत्य परिष्वज्य च फल्गुनम्'।। | 2-25-8a 2-25-8b |
प्रभञ्जनबलाविष्टो जरासन्धमरिन्दमः। उत्क्षिप्य भ्रामयामास बलवन्तं महाबलः।। | 2-25-9a 2-25-9b |
भ्रामयित्वा शतगुणं जानुभ्यां भरतर्षभ। बभञ्ज पृष्टं सङ्क्षिप्य निष्पिष्य विननाद च।। | 2-25-10a 2-25-10b |
करे गृहीत्वा चरणं द्विधा चक्रे महाबलः। तस्य निष्पिष्यमाणस्य पाण्डवस्य च गर्जतः।। | 2-25-11a 2-25-11b |
अभवत्तुमुलो नादः सर्वप्राणिभयङ्करः। वित्रेसुर्मागधाः सर्वे स्त्रीणां गर्भाश्च सुस्रुवुः।। | 2-25-12a 2-25-12b |
भीमसेनस्य नादेन जरासन्धस्य चैव ह। किं नु स्याद्धिमवान्भिन्नः किंनुस्विद्दीर्यते मही।। | 2-25-13a 2-25-13b |
इति वै मागधा जज्ञुर्भीमसेनस्य निखनात्। `ततस्तु भगवान्कृष्णो जरासन्धजिघांसया।। | 2-25-14a 2-25-14b |
भीमसेनं समालोक्य नलं जग्राह पाणिना। द्विधा चिच्छेद वै तत्तु जरासन्धवधं प्रति।। | 2-25-15a 2-25-15b |
ततस्त्वाज्ञाय तस्यैव पादमुत्क्षिप्य मारुतिः। द्विधा बभञ्ज तद्गात्रं प्राक्षिपद्विननाद च।। | 2-25-16a 2-25-16b |
पुनः सन्धाय तु तदा जरान्धः प्रतापवान्। भीमेन च समागम्य बाहुयुद्धं चकार ह।। | 2-25-17a 2-25-17b |
तयोः समभवद्युद्धं तुमुलं रोमहर्षणम्। सर्वलोकक्षयकरं सर्वभूतभयावहम्।। | 2-25-18a 2-25-18b |
पुनः कृष्णस्तमिरिणं द्विधा विच्छिद्य माधवः। व्यत्यस्य प्राक्षिपत्तत्तु जरासन्धवधेप्सया।। | 2-25-19a 2-25-19b |
भीमसेनस्तदा ज्ञात्वा निर्बिभेद च मागधम्। द्विधा व्यत्यस्य पादेन प्राक्षिपच्च ननाद ह।। | 2-25-20a 2-25-20b |
शुष्कमांसास्थिमेदस्त्वग्भिन्नमस्तिष्कपिण्डकटः। शवभूतस्तदा राजन्पिण्डीकृत इवाबबौ'।। | 2-25-21a 2-25-21b |
ततो राज्ञः कुलद्वारि प्रसुप्तमिव तं नृपम्। रात्रौ गतासुमुत्सृज्य निश्चक्रमुररिन्दमाः।। | 2-25-22a 2-25-22b |
जरासन्धरथं कृष्णो योजयित्वा पताकिनम्। आरोप्य भ्रातरौ चैव मोक्षयामास बान्धवान्।। | 2-25-23a 2-25-23b |
ते वै रत्नुभुजं कृष्णं रत्नार्हं पृथिवीश्वराः। राजानं चक्ररासाद्य मोक्षिता महतो भयात्।। | 2-25-24a 2-25-24b |
अक्षतः शस्त्रसम्पन्नो जितारिः सह राजभिः। रथमास्थाय तं दिव्यं निर्जगाम गिरिव्रजात्।। | 2-25-25a 2-25-25b |
यः स सोदर्यवान्नाम द्वियोधी कृष्णसारथिः। अभ्यासघाती सन्दृश्यो दुर्जयः सर्वराजभिः।। | 2-25-26a 2-25-26b |
भीमार्जुनाभ्यां योधाभ्यामास्थितः कृष्णसारथिः। शुशुभे रथवर्योऽसौ दुर्जयः सर्वधन्विभिः।। | 2-25-27a 2-25-27b |
शक्रविष्णू हि सङ्ग्रामे चेरतुस्तारकामये। रथेन तेन वै कृष्ण उपारुह्य ययौ तदा।। | 2-25-28a 2-25-28b |
`एवमेतौ महाबाहू तदा दुष्करकारिणौ। कृष्णप्रणीतौ लोकेऽस्मिन्नथे को द्रष्टुमर्हति।। | 2-25-29a 2-25-29b |
इत्यवोचन्व्रजन्तं तं जरासन्धपुरालयाः। वासुदेवं नरश्रेष्ठं युक्तं वातजवैर्हयैः'।। | 2-25-30a 2-25-30b |
तप्तचामीकराभेण किङ्किणीजालमालिना। मेघनिर्घोषनादेन जैत्रेणामित्रघातिना।। | 2-25-31a 2-25-31b |
येन शक्रो दानवानां जघान नवतीर्नव। तं प्राप्य समहृष्यन्त रथं ते पुरुषर्थभाः।। | 2-25-32a 2-25-32b |
ततः कृष्णं महाबाहुं भ्रातृभ्यां सहितं तदा। रथस्थं मागधा दृष्ट्वा समपद्यन्त विस्मिताः।। | 2-25-33a 2-25-33b |
हयैर्दिव्यैः समायुक्तो रथो वायुसमो जवे। अधिष्ठितः स शुशुभे कृष्णेनातीव भारत।। | 2-25-34a 2-25-34b |
असङ्गो देवविहितस्तस्मिन्रथवरे ध्वजः। योजनाद्ददृशे श्रीमानिन्द्रायुधसमप्रभः।। | 2-25-35a 2-25-35b |
चिन्तयामास कृष्णोऽथ गरुत्मन्तं स चाभ्ययात्। क्षणे तस्मिन्स तेनासीच्चैत्यवृक्ष इवोत्थितः।। | 2-25-36a 2-25-36b |
व्यादितास्यैर्महानादैः सह भूतैर्ध्वजालयैः। तस्मिन्रथवरे तस्थौ गुरुत्मान्पन्नगाशनः।। | 2-25-37a 2-25-37b |
दुर्निरीक्ष्यो हि भूतानां तेजसाऽऽभ्याधिकं बभौ। आदित्य इव मध्याह्ने सहस्रकिरणावृतः।। | 2-25-38a 2-25-38b |
न सज्जति वृक्षेषु शस्त्रैश्चापि न रिष्यते। दिव्यो ध्वजवरो राजन्दृश्यते चेह मानुषैः।। | 2-25-39a 2-25-39b |
तमास्थाय रथं दिव्यं पर्जन्यसमनिः स्वनम्। निर्ययौ पुरुषव्याघ्रः पाण्डवाभ्यां सहाच्युतः।। | 2-25-40a 2-25-40b |
यं लेभे वासवाद्राजा वसुस्तस्माद्बृहद्रथः। बृहद्रथात्क्रमेणैव प्राप्तो बार्हद्रथो रथम्।। | 2-25-41a 2-25-41b |
स निर्याय महाबाहुः पुण्डरीकेक्षणस्ततः। गिरिव्रजाद्बहिस्तस्थौ समदेशे महायशाः।। | 2-25-42a 2-25-42b |
तत्रैनं नागराः सर्वे सत्कारेणाभ्ययुस्तदा। ब्राह्मणप्रमुखा राजन्विधिदृष्टेन कर्मणा।। | 2-25-43a 2-25-43b |
बन्धनाद्विप्रमुक्ताश्च राजानो मधुसूदनम्। पूजयामासुरूचुश्च स्तुतिपूर्वमिदं वचः।। | 2-25-44a 2-25-44b |
नैतच्चित्रं महाबाहो त्वयि देवकिनन्दने। भीमार्जुनबलोपेते धर्मस्य प्रतिपालनम्।। | 2-25-45a 2-25-45b |
जरासन्धह्रदे घोरे दुःखपङ्के निमज्जताम्। राज्ञां समभ्युद्धरमं यदिदं कृतमद्य वै।। | 2-25-46a 2-25-46b |
विष्णो समवसन्नानां गिरिदुर्गे सुदारुणे। दिष्ट्या मोक्षाद्यशो दीप्तमाप्तं ते यदुनन्दन।। | 2-25-47a 2-25-47b |
किं कर्मः पुरुषव्याघ्र शाधि नः प्रणतिस्थितान्। कृतमित्येव तद्विद्वि नृपैर्ययद्यपि दुष्करम्।। | 2-25-48a 2-25-48b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-25-49x |
तानुवाच हृम्पीकेशः समाश्चास्य महामनाः। यिधिष्ठिरो राजसूयं क्रतुमार्हतुमिच्छति।। | 2-25-49a 2-25-49b |
तस्य धर्मप्रवृत्तस्य पार्थिवत्वं चिकीर्षतः। सर्वैर्भवद्भिर्विज्ञाय साहाय्यं क्रियतामिति।। | 2-25-50a 2-25-50b |
ततः सुप्रीतमनसस्ते नृपा नृपसत्तम। तथेत्येवाब्रुवन्सर्वे प्रतिगृह्यास्य तां गिरम्।। | 2-25-51a 2-25-51b |
रत्नभाजं च दाशार्हं चक्रुस्ते पृथिवीश्वराः। कृच्छ्राञ्जग्राह गोविन्दस्तेषां तदनुकम्पया।। | 2-25-52a 2-25-52b |
जरासन्धात्मजश्चैव सहदेवो महामनाः। निर्ययौ सजनामात्यः पुरस्कृत्य पुरोहितम्।। | 2-25-53a 2-25-53b |
स नीचैः प्रणतो भूत्वा बहुरत्नपुरोगमः। सहदेवो नृणां देवं वासुदेवमुपस्थितः।। | 2-25-54a 2-25-54b |
भयार्ताय ततस्तस्मै कृष्णो दत्त्वाऽभयं तदा। आददेऽस्य महार्हाणि रत्नानि पुरुषोत्तमः।। | 2-25-55a 2-25-55b |
सददेव उवाच। | 2-25-56x |
यत्कृतं पुरुषव्याघ्र मम पित्रा जनार्दन। तत्ते हृदि महाबाहो न कार्यं पुरुषोत्तम।। | 2-25-56a 2-25-56b |
त्वां प्रपन्नोऽस्मि गोविन्द प्रासदं कुरु मे प्रभो। पितुरिच्छामि संस्कारं कर्तुं देवकिनन्दन।। | 2-25-57a 2-25-57b |
त्वत्तोऽभ्यनुज्ञां सम्प्राप्य भीमसेनात्तथार्जुनात्। निर्भयो विचरिष्यामि यथाकामं यथासुखम्।। | 2-25-58a 2-25-58b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-25-59x |
एवं विज्ञाप्यमानस्य सहदेवस्य मारिष। प्रहृष्टो देवकीपुत्रः पाण्डवै च महारथौ।। | 2-25-59a 2-25-59b |
क्रियतां संस्क्रिया राजन्पितुस्त इति चाब्रुवन्। तच्छ्रुत्वा वासुदेवस्य पार्थयोश्च स मागधः।। | 2-25-60a 2-25-60b |
प्रविश्य नगरं तूर्णं सह मन्त्रिभिरप्युत। चितां चन्दनकाष्ठैश्च कालेयसरलैस्तथा।। | 2-25-61a 2-25-61b |
कालागरुसुनगन्धैश्च तैलैश्च विविधैरपि। घृतधाराशतैश्चैव सुमनोभिश्च भारत।। | 2-25-62a 2-25-62b |
समन्तादेव कीर्यन्तोऽदहन्त मगधाधिपम्। उदकं तस्य चक्रेऽथ सहदेवः सहानुजः।। | 2-25-63a 2-25-63b |
कृत्वा पितुः स्वर्गगतिं निर्ययौ यत्र केशवः। पाण्डवौ च महाभागौ भीमसेनार्जुनावुभौ ।। | 2-25-64a 2-25-64b |
स प्रह्वः प्राञ्जलिर्भूत्वा व्यज्ञापयत माधवम्। | 2-25-65a |
सहदेव उवाच। | 2-25-65x |
इमे रत्नानि भूरिणी गोजाविमहिषादयः।। | 2-25-65b |
हस्तिनोऽश्वाश्च गोविन्द वासांसि विविधानि च। दीयतां धर्मराजाय यथा वा मन्यते भवान्।। | 2-25-66a 2-25-66b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-25-67x |
भयार्ताय ततस्तस्मै कृत्वा कृष्णोऽभयं तदा। अभ्यषिञ्चत राजानं सहदेवं जनार्दनः।। | 2-25-67a 2-25-67b |
मागधानां महीपालं जरासन्धात्मजं तदा। आददे च महार्हाणि रत्नानि पुरुषोत्तमः।। | 2-25-68a 2-25-68b |
गत्वैकत्वं स कृष्णेन पार्थाभ्यां चापि सत्कृतः। विवेश मतिमान्त्राजा पुनर्बार्हद्रथं पुरम्।। | 2-25-69a 2-25-69b |
पार्थाभायं सहितः कृष्णः सर्वैश्च वसुधाधिपैः। यथावयः समागम्य विससर्ज नराधिपान्।। | 2-25-70a 2-25-70b |
विसृज्य सर्वान्नृपतीन्राजसूये महात्मभिः। आगन्तव्यं भवद्भिश्च धर्मराजप्रियेप्सुभिः। | 2-25-71a 2-25-71b |
एवमुक्ता माधवेन सर्वे ते वसुधाधिपाः। एवमस्त्विति चाप्युक्त्वा समेताः परया मुदा।। | 2-25-72a 2-25-72b |
भीमार्जुनहृषीकेशैः प्रहृष्टाः प्रययुस्तदा। रत्नान्यादाय भूरीणी ज्वलन्तो रिपुसूदनाः'।। | 2-25-73a 2-25-73b |
कृष्णस्तु सह पार्थाभ्यां श्रिया परमया युतः। रत्नान्यादाय भूरिणी प्रययौ पुरुषर्षभः।। | 2-25-74a 2-25-74b |
इन्द्रप्रस्थमुपागम्य पाण्डवाभ्यां सहाच्युतः। समेत्य धर्मराजानं प्रीयमाणोऽभ्यभाषत।। | 2-25-75a 2-25-75b |
दिष्ट्या भीमेन बलवाञ्जरासन्धो निपातितः। राजानो मोक्षिताश्चेमे बन्धनान्नृपसत्तम।। | 2-25-76a 2-25-76b |
दिष्ट्या कुशलिनौ चेमौ भीमसेनधनञ्जयौ। पुनः स्वनगरं प्राप्तावक्षताविति भारत।। | 2-25-77a 2-25-77b |
ततो युधिष्ठिरः कृष्णं पूजयित्वा यथार्हतः। भीमसेनार्जुनौ चैव प्रहृष्टः परिषस्वजे।। | 2-25-78a 2-25-78b |
ततः क्षीणे जरासन्धे भ्रातृभ्यां विहितं जयम्। अजातशत्रुरासाद्य मुमुदे भ्रातृभिः सह।। | 2-25-79a 2-25-79b |
`हृष्टश्च धर्मराड्वाक्यं जनार्दनमभाषत। त्वां प्राप्य पुरुषव्याघ्र भीमसेनेन पातितः।। | 2-25-80a 2-25-80b |
मागधोऽसौ बलोन्मत्तो जरासन्धः प्रतापवान्। राजसूयं क्रतुश्रेष्ठं प्राप्स्यामि विगतज्वरः।। | 2-25-81a 2-25-81b |
त्वद्बुद्धिबलमाश्रित्य यागार्होऽस्मि जनार्दन। पीतं पृथिव्याः क्रुद्धेन यशस्ते पुरुषोत्तम।। | 2-25-82a 2-25-82b |
जरासन्धवधेनैव प्राप्तास्ते विपुलाः श्रियः।। | 2-25-83a |
वैशम्पायन उवाच। | 2-25-83x |
एवं सम्भाष्य कौन्तेयः प्रादाद्रथवरं प्रभोः।। | 2-25-83b |
प्रतिगृह्य तु गोविन्दो जरासन्धस्य तं रथम्।। | 2-25-84a |
प्रहृष्टस्तस्य मुमुदे फल्गुनेन जनार्दनः। प्रीतिमानभवद्राजन्धर्मराजपुरस्कृतः'।। | 2-25-85a 2-25-85b |
यथावयः समागम्य भ्रातृभिः सह पाण्डवः। सत्कृत्य पूजयित्वा च विससर्ज नराधिपान्।। | 2-25-86a 2-25-86b |
युधिष्ठिराभ्यनुज्ञातास्ते नृपा हृष्टमानसाः। जग्मुः स्वदेशांस्त्वरिता यानैरुच्चावचैस्ततः।। | 2-25-87a 2-25-87b |
एवं पुरुषशार्दूलो महाबुद्धिर्जनार्दनः। पाण्डवैर्घातयामास जरासन्धमरिं तदा।। | 2-25-88a 2-25-88b |
घातयित्वा जरासन्धं बुद्धिपूर्वमरिन्दमः। धर्मराजमनुज्ञाप्य पृथां कृष्णां च भारत।। | 2-25-89a 2-25-89b |
सुभद्रां भीमसेनं च फाल्गुनं यमजौ तथा। धौम्यमामन्त्रयित्वा च प्रययौ स्वां पुरीं प्रति।। | 2-25-90a 2-25-90b |
`पाण्डवैरनुधावद्भिर्युधिष्ठिरपुरोगमैः। हर्षेण महता युक्तः प्राप्य चानुत्तमं यशः। जगाम हृष्टः कृष्णस्तु पुनर्द्वारवतीं पुरीम्'।। | 2-25-91a 2-25-91b 2-25-91c |
तेनैव रथमुख्येन मनसस्तुल्यगामिना। धर्मराजविसृष्टेन दिव्येनानादयन्दिशः।। | 2-25-92a 2-25-92b |
ततो युधिष्ठिरमुखाः पाण्डवा भरतर्षभ। प्रदक्षिणमकुर्वन्त कृष्णमक्लिष्टकारिणम्।। | 2-25-93a 2-25-93b |
ततो गते भगवति कृष्णे देवकिनन्दने। जयं लब्ध्वा सुविपुलं राज्ञां दत्त्वाऽभयं तदा।। | 2-25-94a 2-25-94b |
संवर्धितं यशो भूयः कर्मणा तेन भारत। द्रौपद्याः पाण्डवा राजन्परां प्रीतिमवर्धयन्।। | 2-25-95a 2-25-95b |
तस्मिन्काले तु यद्युक्तं धर्मकामार्थसंहितम्। तद्राजा धर्मतश्चक्रे प्रजापालनकीर्तनम्।। | 2-25-96a 2-25-96b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि जरासन्धवधपर्वणि पञ्चविंशोऽध्यायः।। 25।। |
2-25-5 अवाप्यते प्राप्तः।।
2-25-8 एवमुक्तस्तदा भीभो जरासन्धमिति झ. पाठः ।। 2-25-15 नलं इरिणनामकं तृणविशेषम्।। 2-25-22 कुलद्वारि गृहद्वारि।। 2-25-35 असङ्गो रथस्पर्शहीनः।।
सभापर्व-024 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सभापर्व-026 |