महाभारतम्-02-सभापर्व-070
दिखावट
← सभापर्व-069 | महाभारतम् द्वितीयपर्व महाभारतम्-02-सभापर्व-070 वेदव्यासः |
सभापर्व-071 → |
|
कृष्णशिशुपालयोर्युद्धवर्णनम्।। 1।। शिशुपालवधः।। 2।।
वैशम्पायन उवाच।। | 2-70-1x |
ततो विष्फारयन्राजा महच्चैदिपतिर्धनुः। अभियास्यन्हृषीकेशमुवाच मधुसूदनम्।। | 2-70-1a 2-70-1b |
एकस्त्वमसि मे शत्रुस्तत्त्वां हत्वाऽद्य माधव। ततः सागरपर्यन्तां पालयिष्यामि मेदिनीम्।। | 2-70-2a 2-70-2b |
द्वैरथं काङ्क्षितं यद्वै तदिदं पर्युपस्थितम्। चिरस्य वत मे दिष्ट्या वासुदेव सह त्वया। अद्य त्वां निहनिष्यामि भीष्मं च सह पाण्डवैः।। | 2-70-3a 2-70-3b 2-70-3c |
वैशम्पायन उवाच। | 2-70-4x |
एवमुक्त्वा स तं बाणैर्निशितैरत्ततेजनैः। विव्याध युधि तीक्ष्णाग्रैश्चेदिराड्यपुङ्गवम्? | 2-70-4a 2-70-4b |
कङ्कपत्रच्छदा बाणाश्चेदिराजधनुश्च्युताः। विविशुस्ते तदा कृष्णं भुजङ्गा इव पर्वतम्? | 2-70-5a 2-70-5b |
नाददानस्य चैद्यस्य शरानत्यस्यतोपि वा। दधृशुर्विवरं केचिद्गतिं वायोरिवाम्बरे? | 2-70-6a 2-70-6b |
चेदिराजमहामेधः शरजालाम्बुमांस्तदा। अभ्यवर्षद्धृषीकेशं पयोद इव पर्वतम्? | 2-70-7a 2-70-7b |
ततः शार्ङ्गममित्रघ्नः कृत्वा सशरमच्युतः। आबभाषे महबाहुः सुनीथं परवीरहा।। | 2-70-8a 2-70-8b |
अयं त्वं भामकस्तीक्ष्णश्चेदिराज महाशरः। भेत्तुमर्हति वेगेन महाशनिरिवाचलम्।। | 2-70-9a 2-70-9b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-70-10x |
एवं ब्रुवति गोविन्दे ततश्चेदिपतिः पुनः। मुमोच निशितानन्यान्कृष्णं प्रति शरान्बहून्।। | 2-70-10a 2-70-10b |
अथ बाणार्दितः कृष्णः शार्ङ्गमायम्य दीप्तिमान्। मोच निशितान्बाणाञ्छतशोथ सहस्रशः।। | 2-70-11a 2-70-11b |
ताञ्छरांस्तु स चिच्छेद शरवर्षैस्तु चेदिराट्। षड्भिश्चान्यैर्जघानाशु केशवं चेदिपुङ्गवः।। | 2-70-12a 2-70-12b |
ततोऽस्रं सहसा कृष्णः प्रमुमोच जगद्गुरुः। अस्त्रेण तन्महाबाहुर्वारयामास चेदिराट्।। | 2-70-13a 2-70-13b |
ततः शतसहस्रेण शराणां नतपर्वणाम्। सर्वतः समवाकीर्य शौरिं दामोदरं तदा।। | 2-70-14a 2-70-14b |
ननाद बलवान्क्रुद्धः शिशुपालः प्रतापवान्। इदं चोवाच संरब्धः केशवं परवीरहा।। | 2-70-15a 2-70-15b |
शिशुपाल उवाच।। | 2-70-16x |
अद्याङ्गं मामका बाणा भेत्स्यन्ति तव संयुगे। हत्वा त्वां समुतामात्यं पाण्डवांश्च तरस्विनः।। | 2-70-16a 2-70-16b |
अनृण्यमद्यय यास्यामि जरासन्धस्य धीमतः। कंसस्य केशिनश्चैव नरकस्य तथैव ह।। | 2-70-17a 2-70-17b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-70-18x |
इत्युक्त्वा क्रोधताम्राक्षः शिशुपालो जनार्दनम्। अदृश्यं शरवर्षेण सर्वतः स चकार ह।। | 2-70-18a 2-70-18b |
ततोऽस्त्रेणैव चान्योन्यं निकृत्य च शरान्बहून्। शरवर्षैस्तदा चैद्यमन्तर्धातुं प्रचक्रमे।। | 2-70-19a 2-70-19b |
अन्तर्धानगतौ वीरौ शुशुभाते महारथौ। तौ दृष्ट्वा सर्वभूतानि साधुसाध्वित्यपूजयन्।। | 2-70-20a 2-70-20b |
न दृष्टपूर्वमस्माभिर्युद्धमीदृशकं पुरा। ततः कृष्णं जघानाशु शुशुपालस्त्रिभिः शरैः।। | 2-70-21a 2-70-21b |
कृष्णोऽपि बाणैर्विव्याध सुनीथं पञ्चभिर्युधि। ततः सुनीथं सप्तत्या नाराचैर्दयद्बली। | 2-70-22a 2-70-22b |
ततोऽतिविद्धः कृष्णेन सुनीथः क्रोधमूर्छितः। विव्याध निशितैर्बाणैर्वासुदेवं स्तनान्तरे।। | 2-70-23a 2-70-23b |
पुनः कृष्णं त्रिभिर्विद्ध्वा ननादावसरे नृपः। तोऽतिदारुणं युद्धं सहसा चक्रतुस्तदा।। | 2-70-24a 2-70-24b |
नौ नखैरिव शार्दूलौ दन्तैरिव महागजौ। दंष्ट्राभिरिव पञ्चास्यौ चरणैरिव कुक्कुटौ।। | 2-70-25a 2-70-25b |
दारयेतां शरैस्तीक्ष्णैरन्योन्यं युधि तावुभौ। ततो मुमुचतुः क्रुद्धौ शरवर्षमनुत्तमम्।। | 2-70-26a 2-70-26b |
शरैरेव शराञ्छित्वा तावुभौ पुरुषर्षभौ। चक्रातेऽस्त्रमयं युद्धं घोरं तदतिमानुषम्।। | 2-70-27a 2-70-27b |
आग्नेयमस्त्रं मुमुचे शिशुपालः प्रतापवान्। वारुणास्त्रेण तच्छ्रीघ्रं नाशयामास केशवः।। | 2-70-28a 2-70-28b |
कौबेरमस्त्रं सहसा चेदिराट् प्रमुमोच ह। रणैव सहसाऽनाशयत्तं जगत्प्रभुः।। | 2-70-29a 2-70-29बे |
याम्यमस्त्रं ततः क्रुद्धो मुमुचे कालमोहितः। याम्येनैवास्त्रयोगेन याम्यमस्त्रं व्यनाशयत्।। | 2-70-30a 2-70-30b |
गान्धर्वेण च गान्धर्वं मानवं मानवेन च। वायव्येन च वायव्यं रौद्रं रौद्रेण चाभिभूः।। | 2-70-31a 2-70-31b |
ऐन्द्रमैन्द्रेण भगवान्वैष्णवेन च वैष्णवम्। एवमस्त्राणि कुर्वाणौ युयुधाते महाबलौ।। | 2-70-32a 2-70-32b |
ततो मायां विकुर्वाणो दमगोषसुतो बली। गदामुसलसंयुक्ताञ्छक्तितोमरसायकान्।। | 2-70-33a 2-70-33b |
परश्वथमुसण्डीश्च ववर्ष युधि केशवम्। अमोघास्त्रेण भगवान्नाशयामास केशिहा।। | 2-70-34a 2-70-34b |
शिलावर्षं महाघोरं ववर्ष युधि चेदिराट्। वज्रास्त्रेणाभिसङ्क्रुद्धश्चूर्णं तदकरोत्प्रभुः।। | 2-70-35a 2-70-35b |
जलवर्षं ततो घोरं व्यस़जच्चेदिपुङ्गवः। वायव्यास्त्रेण भगवान्व्याक्षिपच्छतशो हि तत्।। | 2-70-36a 2-70-36b |
निहत्य सर्वमायां वै सुनीतस्य जनार्दनः। स मुहूर्तं चकाराशु द्वन्द्वयुद्धं महारथः।। | 2-70-37a 2-70-37b |
स बाणयुद्धं कुर्वाणो भर्त्सयामास चेदिराट्। दमघोषसुतो धृष्टमुवाच यदुपुङ्गवम्।। | 2-70-38a 2-70-38b |
अद्य कृष्णमकृष्णं तु कुर्वन्तु मम सायकाः। इत्येवमुक्त्वा दुष्टात्मा शरवर्षं जनार्दने।। | 2-70-39a 2-70-39b |
मुमोच पुरुषव्याघ्रो घोरं वै चेदिपुङ्गवः। शरसंङ्कृत्तगात्रस्तु क्षणेन यदुनन्दनः।। | 2-70-40a 2-70-40b |
रुधिरं परिसुस्राव मदं मत्त इव द्विपः। न यन्ता न रथो वापि न चाश्वाः पर्वतोपमाः।। | 2-70-41a 2-70-41b |
दृश्यन्ते शरसञ्छन्नाः केशवस्य महात्मनः। केशवं तदवस्थं तु दृष्ट्वा भूतानि चक्रुशुः।। | 2-70-42a 2-70-42b |
दारुकस्तु तदा प्राह कृष्णं यादवनन्दनम्। नेदृशो दृष्टपूर्वो हि सङ्ग्रामो वै पुरा मया।। | 2-70-43a 2-70-43b |
स्थातव्यमिति तिष्ठामि त्वत्प्रभावेण माधव। अन्यथा न च मे प्राणा धरायेयुर्जनार्दन।। | 2-70-44a 2-70-44b |
अतः सञ्चिन्त्य गोविन्द क्षिप्रमस्य वधं कुरु। एवमुक्तस्तु सूतेन केशवो वाक्यमब्रवीत्।। | 2-70-45a 2-70-45b |
एष ह्यतिबलो दैत्यो हिरण्यकशिपुः पुरा। रिपुः सुराणामभवद्वरदानेन गर्वितः।। | 2-70-46a 2-70-46b |
तथाऽऽसीद्रावणो नाम राक्षसो ह्यतिवीर्यवान्। तेनैव बलवीर्येण बलं नागणयन्मम।। | 2-70-47a 2-70-47b |
अहं मृत्युश्च भविता काले काले दुरात्मनः। न भेतव्यं तथा सूत नैष कश्चिन्मयि स्थिते।। | 2-70-48a 2-70-48b |
इत्येवमुक्त्वा भगवान्ननर्द गरुडध्वजः। पाञ्चजन्यं महाशङ्खं पूरयामास केशवः।। | 2-70-49a 2-70-49b |
संमोहयित्वा भगवांश्चक्रं दिव्यं समाददे। चिच्छेद च सुनीथस्य शिरश्चक्रेण संयुगे'।। | 2-70-50a 2-70-50b |
स पपात महाबाहुर्वज्राहत इवाचलः। ततश्चेदिपतेर्देहात्तेजोऽग्र्यं ददृशुर्नृपाः।। | 2-70-51a 2-70-51b |
उत्पतन्तं महाराज गगनादिव भास्करम्। ततः कमलपत्राक्षं कृष्णं लोकनमस्कृतम्। ववन्दे तत्तदा तेजो विवेश च नराधिप।। | 2-70-52a 2-70-52b 2-70-52c |
तदद्भुतममन्यन्त दृष्ट्वा सर्वे महीक्षितः। यद्विवेश महाबाहुं तत्तेजः पुरुषोत्तमम्।। | 2-70-53a 2-70-53b |
अनभ्रे प्रववर्ष द्यौः पपात ज्वलिताशनिः। कृष्णेन निहते चैद्ये चचाल न वसुन्धरा।। | 2-70-54a 2-70-54b |
ततः केचिन्महीपाला नाब्रुवंस्तत्र किञ्चन। अतीतवाक्पथे काले प्रेक्षमाणा जनार्दनम्।। | 2-70-55a 2-70-55b |
हस्तैर्हस्ताग्रमपरे प्रत्यपिंषन्नमर्षिताः। अपरे दशनैरोष्ठानदशन्क्रोधमूर्छिताः।। | 2-70-56a 2-70-56b |
रहश्च केचिद्वार्ष्णेयं प्रशशंसुर्नराधिपाः। केचिदेव सुसंरब्धा मध्यस्थास्त्वपरेऽभवन्।। | 2-70-57a 2-70-57b |
प्रहृष्टाः केशवं जग्मुः संस्तुवन्तो महर्षयः। ब्राह्मणाश्च महात्मानः पार्थिवाश्च महाबलाः। शशंसुर्निर्वृताः सर्वे दृष्ट्वा कृष्णस्य विक्रमम्।। | 2-70-58a 2-70-58b 2-70-58c |
`सदेवगन्धर्वगणा राजानो भुवि विश्रुताः। प्रणामं हि हृषीकेशे प्राकुर्वत महात्मनि।। | 2-70-59a 2-70-59b |
ये त्वासुरगणाः पक्षाः सम्भूताः क्षत्रिया इह। ते निन्दन्ति हृषीकेशं दुरात्मानो गतायुषः।। | 2-70-60a 2-70-60b |
प्रजापतिगणा ये तु मध्यस्थाश्च महात्मनि। ब्रह्मर्षयश्च सिद्धाश्च गन्धर्वोरगचारणाः।। | 2-70-61a 2-70-61b |
ते वै स्तुवन्ति गोविन्दं दिव्यैर्मङ्गलसंयुतैः। परस्परं च नृत्यन्ति गीतेन विविधेन च। उपतिष्ठन्ति गोविन्दं प्रीतियुक्ता महात्मनि।। | 2-70-62a 2-70-62b 2-70-62c |
प्रहृष्टाः केशवं जग्मुः संस्तुवन्तो महर्षयः। ब्राह्मणाश्चापि सुप्रीताः पाण्डवाश्च महाबलाः।। | 2-70-63a 2-70-63b |
पाण्डवस्त्वब्रवीद्भातॄन्सत्कारेण महीपतिम्। दमघोषात्मजं शूरं संस्कारयत मा चिरम्।। | 2-70-64a 2-70-64b |
कुरुराजवचः श्रुत्वा भ्रातरस्ते त्वरान्विताः। तथा च कृतवन्तस्ते भ्रातुर्वै शासनं तदा।। | 2-70-65a 2-70-65b |
चेदीनामाधिपत्ये च पुत्रं तस्याज्ञया हरेः। अभ्यषिञ्चत तं पार्थः सहितैर्वसुधाधिपैः।। | 2-70-66a 2-70-66b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि |
सभापर्व-069 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सभापर्व-071 |