महाभारतम्-02-सभापर्व-006
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उत्तमसभालाभगर्वितेन युधिष्ठिरेण सभाविषयकप्रश्ने नारदस्य इन्द्रादिसभावर्ण नप्रतिज्ञानम्।।
वैशमापायन उवाच। | 2-6-1x |
सम्पूज्याथाभ्यनुज्ञातो महर्षेर्वचनात्परम्। प्रत्युवाचानुपूर्व्येण धर्मराजो युधिष्ठिरः।। | 2-6-1a 2-6-1b |
भगवत्याय्यमाहैतं यथावद्धर्मनिश्चयम्। यथाशक्ति यथान्यायं क्रियतेऽयं विधिर्मया।। | 2-6-2a 2-6-2b |
राजभिर्यद्यथा कार्यं, पुरा वै तन्न संशयः। यथान्यायोपनीतार्थं कृतं हेतुमदर्थवत्।। | 2-6-3a 2-6-3b |
वयं तु सत्पथं तेषां यातुमिच्छामहे प्रभो। न तु शक्यं तथा गन्तुं यथा तैर्नियतात्मभिः।। | 2-6-4a 2-6-4b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-6-5x |
एकमुक्त्वा स धर्मात्मा वाक्यं तदभिपूज्य च। ` तं तु विश्रान्तमासीनं देवर्षिममितद्युतिम्'।। मुहूर्तात्प्राप्तकालं च दृष्ट्वा लोकचरं मुनिम्।। | 2-6-5a 2-6-5b 2-6-5c |
नादरदं सुस्थमासीनमुपासीनो युधिष्ठिरः। अपृच्छत्पाण्डवस्तत्र राजमध्ये माहद्युतिः।। | 2-6-6a 2-6-6b |
भवात्सञ्चरते लोकान्सदा नानाविधान्बहून्। ब्रह्मणा निर्मितान्पूर्वं प्रेक्षमाणो मनोजवः। | 2-6-7a 2-6-7b |
ईदृशी भविता काचिद्दृष्टपूर्वा सभा क्वचित्। इतो वा श्रेयसी ब्रह्मंस्तन्ममाचक्ष्व पृच्छतः।। वैशम्पायन उवाच। | 2-6-8a 2-6-8b 2-6-9x |
तच्छ्रुत्वा नारदस्तस्य धर्मराजस्य भाषितम्। पाण्डवं प्रत्युवाचेदं स्मयन्मधुरया गिरा।। | 2-6-9a 2-6-9b |
नारद उवाच। | 2-6-10x |
मानुषेषु न मे तात दृष्टपूर्वा न च श्रुता। सभा मणिमयी राजन्यथेयं तव भारत।। | 2-6-10a 2-6-10b |
सभां तु पितृराजस्य वरुणस्य च धीमतः। कथयिष्ये तथेन्द्रस्य कैलासनिलयस्य च।। | 2-6-11a 2-6-11b |
ब्रह्मणश्च सभां दिव्यां कथयिष्ये गतक्लमाम्। दिव्यादिव्यैरभिप्रायैरुपेतां विश्वरूपिणीम्।। | 2-6-12a 2-6-12b |
देवैः पितृगणैः साध्यैर्यज्वभिर्नियतात्मभिः। जुष्टां मुनिगणैः शान्तैर्वेदयज्ञैः सदक्षिणैः।। यदि ते श्रवणे बुद्धिर्वर्तते भरतर्षभ।। | 2-6-13a 2-6-13b 2-6-13c |
नारदेनैवमुक्तस्तु धर्मराजो युधिष्ठिरः। प्राञ्जलिर्भ्रातृभिः सार्धं तैश्च सर्वैर्द्विजोत्तमैः।। | 2-6-14a 2-6-14b |
नारदं प्रत्यवाचेदं धर्मराजो महामनाः। सभाः कथय ताः सर्वाः श्रोतुमिच्छामहे वयम्।। | 2-6-15a 2-6-15b |
किन्द्रव्यास्ताः सभा ब्रह्मन्किंविस्ताराः किमायताः। पितामहं च के तस्यां सभायां पर्युपासते।। | 2-6-16a 2-6-16b |
वासवं देवराजं च यमं वैवस्वतं च के। वरुणं च कुबेरं च सभायां पर्युपासते।। | 2-6-17a 2-6-17b |
एतत्सर्वं यथान्यायं ब्रह्मर्षे वदतस्तव। श्रोतुमिच्छाम सहिताः परं कौतूहलं हि नः।। | 2-6-18a 2-6-18b |
एवमुक्तः पाण्डवेन नारदः प्रत्यभाषत। क्रमेण राजन्दिव्यास्ताः श्रूयन्तामिह नः सभाः।। | 2-6-19a 2-6-19b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि मन्त्रपर्वणि षष्ठोऽध्यायः।। 6।। |
2-6-11 कैलासनिलयस्य कुबेरस्य।।
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