महाभारतम्-02-सभापर्व-086
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विदुरेण धृतराष्ट्रं प्रति दुर्योधननिन्दापूर्वकं द्यूतोपरमचोदनम्।।1।।
वैशम्पायन उवाच।। | 2-86-1x |
एवं प्रवर्तिते द्यूते घोरे सर्वापहारिणि। सर्वसंशयनिर्मोक्ता विदुरो वाक्यमब्रवीत्।। | 2-86-1a 2-86-1b |
महाराज विजानीहि यत्त्वां वक्ष्यामि भारत। मुमूर्षोरौषधमिव न रोचेतापि ते श्रुतम्।। | 2-86-2a 2-86-2b |
यद्वै पुरा जातमात्रो रुराव गोमायुवद्विस्वरं पापचेताः। दुर्योधनो भारतानां कुलघ्नः सोऽयं युक्तो भवतां कालहेतुः।। | 2-86-3a 2-86-3b 2-86-3c 2-86-3d |
गृहे वसन्तं गोमायुं त्वं वै मोहान्न बुध्यसे। दुर्योधनस्य रूपेण शृणु काव्यां गिरं मम।। | 2-86-4a 2-86-4b |
मधु वै माध्विको लब्ध्वा प्रपातं नैव बुध्यते। आरुह्य तं मज्जति वा पतनं चाधिगच्छति।। | 2-86-5a 2-86-5b |
सोऽयं मत्तोऽक्षद्यूतेन मधुवन्न पीरक्षते। प्रपातं बुध्यते नैव वैरं कृत्वा महारथैः।। | 2-86-6a 2-86-6b |
विदितं मे महाप्राज्ञ भोजेष्वेवासमञ्जसम्। पुत्रं संत्यक्तवान्पूर्वं पौराणां हितकाम्यया।। | 2-86-7a 2-86-7b |
अन्धका यादवा भोजाः समेताः कंसमत्यजन्। नियोगात्तु हते तस्मिन्कृष्णेनामित्रघातिना।। | 2-86-8a 2-86-8b |
एवं ते ज्ञातयः सर्वे मोदमानाः शतं समाः। त्वन्नियुक्तः सव्यसाची निगृह्णातु सुयोधनम्।। | 2-86-9a 2-86-9b |
निग्रहादस्य पादस्य मोदन्तां कुरवः सुखम्। काकेनेमांश्चित्रवर्हाञ्शार्दूलान्क्रोष्टुकेन च। क्रीणीष्व पाण्डवान्राजन्मा मज्जीः शोकसागरे।। | 2-86-10a 2-86-10b 2-86-10c |
त्यजेत्कुलार्थे पुरुषं ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्। ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्।। | 2-86-11a 2-86-11b |
सर्वज्ञः सर्वभावज्ञः सर्वशत्रुभयङ्करः। इति स्म भाषते काव्यो जम्भत्यागे महाऽसुरान्।। | 2-86-12a 2-86-12b |
हिरण्यष्ठीविनः कांश्चित्पक्षिणो वनगोचरान्। गृहे किल कृतावासाँल्लोभाद्राजा न्यपीडयत्। स चोपभोगलोभान्धो हिरण्यार्थी परन्तप।। | 2-86-13a 2-86-13b 2-86-13c |
आयतिं च तदात्वं च उभे सद्यो व्यनाशयत्। तदर्थकामस्तद्वत्त्वं माद्रुहः पाण्डवान्नृप।। | 2-86-14a 2-86-14b |
मोहात्मा तप्स्यसे पश्चात्पत्रिहा पुरुषो यथा। जातञ्जातं पाण्डवेभ्यः पुष्पमादत्स्व भारत।। | 2-86-15a 2-86-15b |
मालाकार इवारामे स्नेहं कुर्वन्पुनः पुनः। वृक्षानङ्गारकारीव मैनाद्याक्षीः समूलकान्। मा गमः समुतामात्यः सबलश्च यमक्षयम्।। | 2-86-16a 2-86-16b 2-86-16c |
समवेतान्हि कः पार्थान्प्रतियुध्येत भारत। मरुद्भिः सहितो राजन्नपि साक्षान्मरुत्पतिः।। | 2-86-17a 2-86-17b |
द्यूतं मूलं कलहस्याभ्युपैति मिथो भेदं महते दारुणाय। तदा स्थितोऽयं धृतराष्ट्रस्य पुत्रो दुर्योधनः सृजते वैरमुग्रम्।। | 2-86-18a 2-86-18b 2-86-18c 2-86-18d |
प्रातिपेयाः शान्तनवा भीमसेनाः सबाह्निकाः। दुर्योधनापराधेन कृच्छ्रं प्राप्स्यन्ति सर्वशः।। | 2-86-19a 2-86-19b |
दुर्योधनो मदेनैव क्षेमं व्यपोहति। विषाणं गौरिव मदात्स्वयमारुजतेत्मनः।। | 2-86-20a 2-86-20b |
यश्चित्तमन्वेति परस्य राजन् वीरः कविः स्वामवमत्य दृष्टिम्। नावं समुद्र इव बालनेत्रा- मारुह्य घोरे व्यसने निमज्जेत्।। | 2-86-21a 2-86-21b 2-86-21c 2-86-21d |
दुर्योधनो ग्लहते पाण्डवेन प्रीयायसे त्वं जयतीति तच्च। अतिनर्मा जायते संप्रहारो यतो विनाशः समुपैति पुंसाम्।। | 2-86-22a 2-86-22b 2-86-22c 2-86-22d |
आकर्षस्तेऽवाक्फलः सुप्रणीतो हृदि प्रौढो मन्त्रपदः समाधिः। युधिष्ठिरेण कलहस्तवाय- मचिन्तितोऽभिमतः स्वबन्धुना।। | 2-86-23a 2-86-23b 2-86-23c 2-86-23d |
प्रातिपेयाः शान्तनवाः शृणुध्वं काव्यां वाचं संसदि कौरवाणाम्। वैश्वानरं प्रज्वलितं सुघोरं मा यास्यध्वं मन्दमनुप्रपन्नः।। | 2-86-24a 2-86-24b 2-86-24c 2-86-24d |
यदा मन्युं पाण्डवोऽजातशत्रु- र्न संयच्छेदक्षमदाभिभूतः। वृकोदरः सव्यसाची यमौ च कोऽत्र द्वीपः स्यात्तुमुले वस्तदानीम्।। | 2-86-25a 2-86-25b 2-86-25c 2-86-25d |
महाराज प्रभवस्त्वं धनानां पुरा द्यूतान्मनसा यावदिच्छेः। बहुवित्तान्पाण्डवांश्चेज्जयस्त्वं किं ते तत्स्याद्वसु विन्देह पार्थान्।। | 2-86-26a 2-86-26b 2-86-26c 2-86-26d |
जानीमहे देवितं सौबलस्य वेद द्यूते निकृतिं पार्वतीयः। यतः प्राप्तः शकुनिस्तत्र यातु मा यूयुधो भारत पाण्डवेयान्।। | 2-86-27a 2-86-27b 2-86-27c 2-86-27d |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि द्यूतपर्वणि षडशीतितमोऽध्यायः।। 86।। |
2-86-4 काव्यं कविना शुक्रेणोक्तां नीतिगिरम्।।
2-86-5 माध्विको मधुपण्यवान्। प्रपातं भृगुम् ।। 2-86-8 नियोगाद्दैवयोगात्।। 2-86-10 चित्रवर्हान् मयूरान्।। 2-86-14 आयतिमुत्तरकालम्। तदात्वं सांप्रतम्। तत्तस्मात्। अर्थकामो धनकामः।। 2-86-15 पत्रिहा पक्षिहा ।। 2-86-21 बालनेत्रामव्युत्पन्ननेतृकाम्।। 2-86-22 ग्लहते पणं करोति। प्रीयायसे अतिशयेन प्रीयसे।। 2-86-23 आकर्षो द्यूतम् ।। 2-86-26 जयः अजयः।।
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