लिङ्गपुराणम् - पूर्वभागः/अध्यायः १९

विकिस्रोतः तः
  1. अध्यायः १
  2. अध्यायः २
  3. अध्यायः ३
  4. अध्यायः ४
  5. अध्यायः ५
  6. अध्यायः ६
  7. अध्यायः ७
  8. अध्यायः ८
  9. अध्यायः ९
  10. अध्यायः १०
  11. अध्यायः ११
  12. अध्यायः १२
  13. अध्यायः १३
  14. अध्यायः १४
  15. अध्यायः १५
  16. अध्यायः १६
  17. अध्यायः १७
  18. अध्यायः १८
  19. अध्यायः १९
  20. अध्यायः २०
  21. अध्यायः २१
  22. अध्यायः २२
  23. अध्यायः २३
  24. अध्यायः २४
  25. अध्यायः २५
  26. अध्यायः २६
  27. अध्यायः २७
  28. अध्यायः २८
  29. अध्यायः २९
  30. अध्यायः ३०
  31. अध्यायः ३१
  32. अध्यायः ३२
  33. अध्यायः ३३
  34. अध्यायः ३४
  35. अध्यायः ३५
  36. अध्यायः ३६
  37. अध्यायः ३७
  38. अध्यायः ३८
  39. अध्यायः ३९
  40. अध्यायः ४०
  41. अध्यायः ४१
  42. अध्यायः ४२
  43. अध्यायः ४३
  44. अध्यायः ४४
  45. अध्यायः ४५
  46. अध्यायः ४६
  47. अध्यायः ४७
  48. अध्यायः ४८
  49. अध्यायः ४९
  50. अध्यायः ५०
  51. अध्यायः ५१
  52. अध्यायः ५२
  53. अध्यायः ५३
  54. अध्यायः ५४
  55. अध्यायः ५५
  56. अध्यायः ५६
  57. अध्यायः ५७
  58. अध्यायः ५८
  59. अध्यायः ५९
  60. अध्यायः ६०
  61. अध्यायः ६१
  62. अध्यायः ६२
  63. अध्यायः ६३
  64. अध्यायः ६४
  65. अध्यायः ६५
  66. अध्यायः ६६
  67. अध्यायः ६७
  68. अध्यायः ६८
  69. अध्यायः ६९
  70. अध्यायः ७०
  71. अध्यायः ७१
  72. अध्यायः ७२
  73. अध्यायः ७३
  74. अध्यायः ७४
  75. अध्यायः ७५
  76. अध्यायः ७६
  77. अध्यायः ७७
  78. अध्यायः ७८
  79. अध्यायः ७९
  80. अध्यायः ८०
  81. अध्यायः ८१
  82. अध्यायः ८२
  83. अध्यायः ८३
  84. अध्यायः ८४
  85. अध्यायः ८५
  86. अध्यायः ८६
  87. अध्यायः ८७
  88. अध्यायः ८८
  89. अध्यायः ८९
  90. अध्यायः ९०
  91. अध्यायः ९१
  92. अध्यायः ९२
  93. अध्यायः ९३
  94. अध्यायः ९४
  95. अध्यायः ९५
  96. अध्यायः ९६
  97. अध्यायः ९७
  98. अध्यायः ९८
  99. अध्यायः ९९
  100. अध्यायः १००
  101. अध्यायः १०१
  102. अध्यायः १०२
  103. अध्यायः १०३
  104. अध्यायः १०४
  105. अध्यायः १०५
  106. अध्यायः १०६
  107. अध्यायः १०७
  108. अध्यायः १०८

सूत उवाच।।
अथोवाच महादेवः प्रीतोहं सुरसत्तमौ।।
पश्यतां मां महादेवं भयं सर्वं विमुच्यताम्।। १९.१ ।।

युवां प्रसूतौ गात्राभ्यां मम पूर्वं महाबलौ।।
अयं मे दक्षिणे पार्श्वे ब्रह्मा लोकपितामहः।। १९.२ ।।

वामे पार्श्वे च मे विष्णुर्विश्वात्मा हृदयोद्भवः।।
प्रीतोहं युवयोः सम्यग्वरं दद्मि यथेप्सितम्।। १९.३ ।।

एवमुक्त्वा तु तं विष्णुं कराभ्यां परमेश्वरः।।
पस्पर्श सुभगाभ्यां तु कृपया तु कृपानिधिः।। १९.४ ।।

ततः प्रहृष्टमनसा प्रणिपत्य महेश्वरम्।।
प्राह नारायणो नाथं लिंगस्थं लिंगवर्जितम्।। १९.५ ।।

यदि प्रीतिः समुत्पन्ना यदि देयो वरश्च नौ।।
भर्क्तिर्भवतु नौ नित्यं त्वयि चाव्यभिचारिणी।। १९.६ ।।

देवः प्रदत्तवान् देवाः स्वात्मन्यव्यभिचारिणीम्।।
ब्रह्मणे विष्णवे चैव श्रद्धां शीतांशुभूषणः।। १९.७ ।।

जानुभ्यामवनीं गत्वा पुनर्नारायणः स्वयम्।।
प्रणिपत्य च विश्वेशं प्राह मंदतरं वशी।। १९.८ ।।

आवयोर्देवदेवेश विवादमतिशोभनम्।।
इहागतो भवान् यस्माद्विवादशमनाय नौ।। १९.९ ।।

तस्य तद्वचनं श्रुत्वा पुनः प्राह हरो हरिम्।।
प्रणिपत्य स्थितं मूर्ध्ना कृतांजलिपुटं स्मयन्।। १९.१೦ ।।

श्रीमहादेव उवाच।।
प्रलयस्थितिसर्गाणां कर्ता त्वं धरणीपते।।
वत्सवत्स हरे विष्णो पालयैतच्चराचरम्।। १९.११ ।।

त्रिधा भिन्नो ह्यहं विष्णो ब्रह्मविष्णुभवाख्यया।।
सर्गरक्षालयगुणैर्निष्कलः परमेश्वरः।। १९.१२ ।।

संमोहं त्यज भो विष्णो पालयैनं पितामहम्।।
पाद्मे भविष्यति सुतः कल्पे तव पितामहः।। १९.१३ ।।

तदा द्रक्ष्यसि मां चैवं सोपि द्रक्ष्यति पद्मजः।।
एवमुक्त्वा स भगवांस्तत्रैवांतरधीयत।। १९.१४ ।।

तदाप्रभृति लोकेषु लिंगार्च्चा सुप्रतिष्ठिता।।
लिंगवेदी महादेवी लिंगं साक्षान्महेश्वरः।। १९.१५ ।।

लयनाल्लिंगमित्युक्तं तत्रैव निखिलं सुराः।।
यस्तु लैंगं पठेन्नित्यमाख्यानं लिंगसन्निधौ।। १९.१६ ।।

स याति शिवतां विप्रो नात्र कार्या विचारणा।। १९.१७ ।।
इति श्रीलिंगमहापुराणे पूर्वभागे विष्णुप्रबोधो नामैकोनाविंशोऽध्यायः।। १९ ।।