लिङ्गपुराणम् - पूर्वभागः/अध्यायः १४

विकिस्रोतः तः
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
  1. अध्यायः १
  2. अध्यायः २
  3. अध्यायः ३
  4. अध्यायः ४
  5. अध्यायः ५
  6. अध्यायः ६
  7. अध्यायः ७
  8. अध्यायः ८
  9. अध्यायः ९
  10. अध्यायः १०
  11. अध्यायः ११
  12. अध्यायः १२
  13. अध्यायः १३
  14. अध्यायः १४
  15. अध्यायः १५
  16. अध्यायः १६
  17. अध्यायः १७
  18. अध्यायः १८
  19. अध्यायः १९
  20. अध्यायः २०
  21. अध्यायः २१
  22. अध्यायः २२
  23. अध्यायः २३
  24. अध्यायः २४
  25. अध्यायः २५
  26. अध्यायः २६
  27. अध्यायः २७
  28. अध्यायः २८
  29. अध्यायः २९
  30. अध्यायः ३०
  31. अध्यायः ३१
  32. अध्यायः ३२
  33. अध्यायः ३३
  34. अध्यायः ३४
  35. अध्यायः ३५
  36. अध्यायः ३६
  37. अध्यायः ३७
  38. अध्यायः ३८
  39. अध्यायः ३९
  40. अध्यायः ४०
  41. अध्यायः ४१
  42. अध्यायः ४२
  43. अध्यायः ४३
  44. अध्यायः ४४
  45. अध्यायः ४५
  46. अध्यायः ४६
  47. अध्यायः ४७
  48. अध्यायः ४८
  49. अध्यायः ४९
  50. अध्यायः ५०
  51. अध्यायः ५१
  52. अध्यायः ५२
  53. अध्यायः ५३
  54. अध्यायः ५४
  55. अध्यायः ५५
  56. अध्यायः ५६
  57. अध्यायः ५७
  58. अध्यायः ५८
  59. अध्यायः ५९
  60. अध्यायः ६०
  61. अध्यायः ६१
  62. अध्यायः ६२
  63. अध्यायः ६३
  64. अध्यायः ६४
  65. अध्यायः ६५
  66. अध्यायः ६६
  67. अध्यायः ६७
  68. अध्यायः ६८
  69. अध्यायः ६९
  70. अध्यायः ७०
  71. अध्यायः ७१
  72. अध्यायः ७२
  73. अध्यायः ७३
  74. अध्यायः ७४
  75. अध्यायः ७५
  76. अध्यायः ७६
  77. अध्यायः ७७
  78. अध्यायः ७८
  79. अध्यायः ७९
  80. अध्यायः ८०
  81. अध्यायः ८१
  82. अध्यायः ८२
  83. अध्यायः ८३
  84. अध्यायः ८४
  85. अध्यायः ८५
  86. अध्यायः ८६
  87. अध्यायः ८७
  88. अध्यायः ८८
  89. अध्यायः ८९
  90. अध्यायः ९०
  91. अध्यायः ९१
  92. अध्यायः ९२
  93. अध्यायः ९३
  94. अध्यायः ९४
  95. अध्यायः ९५
  96. अध्यायः ९६
  97. अध्यायः ९७
  98. अध्यायः ९८
  99. अध्यायः ९९
  100. अध्यायः १००
  101. अध्यायः १०१
  102. अध्यायः १०२
  103. अध्यायः १०३
  104. अध्यायः १०४
  105. अध्यायः १०५
  106. अध्यायः १०६
  107. अध्यायः १०७
  108. अध्यायः १०८

सूत उवाच।।
ततस्तस्मिन्गते कल्पे पीतवर्णे स्वयंभुवः।।
पुनरन्यः प्रवृत्तस्तु कल्पो नाम्नाऽसितस्तु सः।। १४.१ ।।

एकार्णवे तदा वृत्ते द्विव्ये वर्षसहस्रके।।
स्रष्टुकामः प्रजा ब्रह्मा चिंतयामास दुःखितः।। १४.२ ।।

तस्य चिंतयमानस्य पुत्रकामस्य वै प्रभोः।।
कृष्णः समभवद्वर्णो ध्यायतः परमेष्ठिनः।। १४.३ ।।

अथापश्यन्महातेजाः प्रादुर्भूतं कुमारकम्।।
कृष्णवर्णं महावीर्यं दीप्यमानं स्वतेजसा।। १४.४ ।।

कृष्णांबरधरोष्णीषं कृष्णयज्ञोपवीतिनम्।।
कृष्णेन मौलिना युक्तां कृष्णस्रगनुलेपनम्।। १४.५ ।।

स तं दृष्ट्वा महात्मानमघोरं घोरविक्रमम्।।
ववंदे देवदेवेशमद्भुतं कृष्णपिंगलम्।। १४.६ ।।

प्राणायामपरः श्रीमान् हृदि कृत्वा महेश्वरम्।।
मनसा ध्यानुयुक्तेन प्रपन्नस्तुतमीश्वरम्।। १४.७ ।।

अघोरं तु ततो ब्रह्मा ब्रह्मरूपं व्यचिंतयत्।।
तथा वै ध्यायमानस्य ब्रह्मणः परमेष्ठिनः।। १४.८ ।।

प्रददौ दर्शनं देवो ह्यघोरो घोरविक्रमः।।
अथास्य पार्श्वतः कृष्णाः कृष्णस्रगनुलेपनाः।। १४.९ ।।

चत्वारस्तु महात्मानः संबभूवुः कुमारकाः।।
कृष्णः कृष्णशिखश्चैव कृष्णास्यः कृष्णवस्त्रधृक्।। १४.१೦ ।।

ततो वर्षसहस्रं तु योगतः परमेश्वरम्।।
उपासित्वा महायोगं शिष्येभ्यः प्रददुः पुनः।। १४.११ ।।

योगेन योगसंपन्नाः प्रविश्य मनसा शिवम्।।
अमलं निर्गुणं स्यानं प्रविष्टा विश्वमीश्वरम्।। १४.१२ ।।

एवमेतेन योगेन येपि चान्ये मनीषिणः।।
चिंतयंति महादेवं गंतारो रुद्रमव्ययम्।। १४.१३ ।।

इति श्रीलिंगमहापुराणे पूर्वभागे अघोरोत्पत्तिवर्णनं नाम चतुर्दशोऽध्यायः।। १४ ।।