लिङ्गपुराणम् - पूर्वभागः/अध्यायः ९९

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ऋषयः ऊचुः।।
संभवः सूचितो देव्यास्त्वया सूत महामते।।
सविस्तरं वदस्वाद्य सतीत्वे च यथातथम्।। ९९.१ ।।

मेनाजत्वं महादेव्या दक्षयज्ञविमर्दनम्।।
विष्णुना च कथं दत्ता देवदेवाय शंभवे।। ९९.२ ।।

कल्याणं वा कथं तस्य वक्तुमर्हसि सांप्रतम्।।
तेषां तद्वचनं श्रुत्वा सूतः पौराणिकोत्तमः।। ९९.३ ।।

संभवं च महादेव्याः प्राह तेषां महात्मनाम्।।
सूत उवाच।।
ब्रह्मणा कथितं पूर्व दंडिने तत्सुविस्तरम्।। ९९.४ ।।

युष्माभिर्वै कुमाराय तेन व्यासाय धीमते।।
तस्मादहमुपश्रुत्य प्रवदामि सुविस्तरम्।। ९९.५ ।।

वचनाद्वो महाभागाः प्रणम्योमां तथा भवम्।।
सा भगाख्या जगद्धात्री लिंगमूर्तेस्त्रिवेदिका।। ९९.६ ।।

लिंगस्तु भगवान्द्वाभ्यां जगत्सृष्टिर्द्विजोत्तमाः।।
लिंगमूर्तिः शिवो ज्योतिस्तमसश्चोपरि स्थितः।। ९९.७ ।।

लिंगवेदिसमायोगादर्धनारीश्वरोभवत्।।
ब्रह्माणं विदधे देवमग्रे पुत्रं चतुर्मुखम्।। ९९.८ ।।

प्राहिणोति स्म तस्यैव ज्ञानं ज्ञानमयो हरः।।
विश्वाधिकोसौ भगवानर्धनारीश्वरो विभुः।। ९९.९ ।।

हिरण्यगर्भं तं देवो जायमानमपश्यत।।
सोपि रुद्रं महादेवं ब्रह्मापश्यत शंकरम्।। ९९.१० ।।

तं दृष्ट्वा संस्थितं देवमर्धनारीश्वरं प्रभुम्।।
तुष्टाव वाग्भिरिष्टाभिर्वरदं वारिजोद्भवः।। ९९.११ ।।

विभजस्वेति विश्वेशं विश्वात्मानमजो विभुः।।
ससर्जदेवीं वामांगात्पत्नीं चैवात्मनः समाम्।। ९९.१२ ।।

श्रद्धा ह्यस्य शुभा पत्नी ततः पुंसः सुरातनी।।
सैवाज्ञया विभोर्देवी दक्षपुत्री बभूव ह।। ९९.१३ ।।

सतीसंज्ञा तदा सा वै रुद्रमेवाश्रिता पतिम्।।
दक्षं विनिंद्य कालेन देवी मैना ह्यभूत्पुनः।। ९९.१४ ।।

नारदस्यैव दक्षोपि शापादेवं विनिंद्यच।।
अवज्ञादुर्मदो दक्षो देवदेवमुमापतिम्।। ९९.१५ ।।

अनादृत्य कृतिं ज्ञात्वा सती दक्षेण तत्क्षणात्।।
भस्मीकृत्वात्मनो देहं योगमार्गेणसा पुनः।। ९९.१६ ।।

बभूव पार्वती देवी तपसा च गिरेः प्रभोः।।
ज्ञात्वैतद्भगवान् भर्गो ददाह रुषितः प्रभुः।। ९९.१७ ।।

दक्षस्य विपुलं यज्ञंध्यावनेर्वचनादपि।।
च्यवनस्य सुतो धीमान् दधीच इति विश्रुतः।। ९९.१८ ।।

विजित्य विष्णुं समरे प्रसादात्त त्र्यंबकस्य च।।
विष्णुना लोकपालंश्च शशाप च मुनीश्वरः।। ९९.१९ ।।

रुद्रस्य क्रोधजेनैव वह्निना हविषा सुराः।।
विनाशोवै क्षणादेव मायया शंकरस्य वै।। ९९.२० ।।

इति श्रीलिंगमहापुराणे पूर्वभागे देवीसंभवो नाम नवनवतितमोऽध्यायः।। ९९ ।।