लिङ्गपुराणम् - पूर्वभागः/अध्यायः १३

विकिस्रोतः तः
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
  1. अध्यायः १
  2. अध्यायः २
  3. अध्यायः ३
  4. अध्यायः ४
  5. अध्यायः ५
  6. अध्यायः ६
  7. अध्यायः ७
  8. अध्यायः ८
  9. अध्यायः ९
  10. अध्यायः १०
  11. अध्यायः ११
  12. अध्यायः १२
  13. अध्यायः १३
  14. अध्यायः १४
  15. अध्यायः १५
  16. अध्यायः १६
  17. अध्यायः १७
  18. अध्यायः १८
  19. अध्यायः १९
  20. अध्यायः २०
  21. अध्यायः २१
  22. अध्यायः २२
  23. अध्यायः २३
  24. अध्यायः २४
  25. अध्यायः २५
  26. अध्यायः २६
  27. अध्यायः २७
  28. अध्यायः २८
  29. अध्यायः २९
  30. अध्यायः ३०
  31. अध्यायः ३१
  32. अध्यायः ३२
  33. अध्यायः ३३
  34. अध्यायः ३४
  35. अध्यायः ३५
  36. अध्यायः ३६
  37. अध्यायः ३७
  38. अध्यायः ३८
  39. अध्यायः ३९
  40. अध्यायः ४०
  41. अध्यायः ४१
  42. अध्यायः ४२
  43. अध्यायः ४३
  44. अध्यायः ४४
  45. अध्यायः ४५
  46. अध्यायः ४६
  47. अध्यायः ४७
  48. अध्यायः ४८
  49. अध्यायः ४९
  50. अध्यायः ५०
  51. अध्यायः ५१
  52. अध्यायः ५२
  53. अध्यायः ५३
  54. अध्यायः ५४
  55. अध्यायः ५५
  56. अध्यायः ५६
  57. अध्यायः ५७
  58. अध्यायः ५८
  59. अध्यायः ५९
  60. अध्यायः ६०
  61. अध्यायः ६१
  62. अध्यायः ६२
  63. अध्यायः ६३
  64. अध्यायः ६४
  65. अध्यायः ६५
  66. अध्यायः ६६
  67. अध्यायः ६७
  68. अध्यायः ६८
  69. अध्यायः ६९
  70. अध्यायः ७०
  71. अध्यायः ७१
  72. अध्यायः ७२
  73. अध्यायः ७३
  74. अध्यायः ७४
  75. अध्यायः ७५
  76. अध्यायः ७६
  77. अध्यायः ७७
  78. अध्यायः ७८
  79. अध्यायः ७९
  80. अध्यायः ८०
  81. अध्यायः ८१
  82. अध्यायः ८२
  83. अध्यायः ८३
  84. अध्यायः ८४
  85. अध्यायः ८५
  86. अध्यायः ८६
  87. अध्यायः ८७
  88. अध्यायः ८८
  89. अध्यायः ८९
  90. अध्यायः ९०
  91. अध्यायः ९१
  92. अध्यायः ९२
  93. अध्यायः ९३
  94. अध्यायः ९४
  95. अध्यायः ९५
  96. अध्यायः ९६
  97. अध्यायः ९७
  98. अध्यायः ९८
  99. अध्यायः ९९
  100. अध्यायः १००
  101. अध्यायः १०१
  102. अध्यायः १०२
  103. अध्यायः १०३
  104. अध्यायः १०४
  105. अध्यायः १०५
  106. अध्यायः १०६
  107. अध्यायः १०७
  108. अध्यायः १०८

सूत उवाच।।
एकत्रिंशत्तमः कल्पः पीतवासा इति स्मृतः।।
ब्रह्म यत्र महाभागः पीतवासा बभूव ह।। १३.१ ।।

ध्यायतः पुत्रकामस्य ब्रह्मणः परमेष्ठिनः।।
प्रादुर्भूतो महातेजाः कुमारः पीतवस्त्रधृक्।। १३.२ ।।

पीतगंधानुलिप्तांगः पीतमाल्यांबरो युवा।।
हेमयज्ञोपवीतश्च पीतोष्णीषो महाभुजः।। १३.३ ।।

तं दृष्ट्वा ध्यानसंयुक्तो ब्रह्मा लोकमहेश्वरम्।।
मनसा लोकधातारं प्रपेदे शरणं विभुम्।। १३.४ ।।

ततो ध्यानगतस्तत्र ब्रह्मा माहेश्वरीं वराम्।।
गां विश्वरूपां ददृशे महेश्वरमुखाच्च्युताम्।। १३.५ ।।

चतुष्पदां चतुर्वक्त्रां चतुर्हस्तां चतुःस्तनीम्।।
चतुर्नेत्रां चतुःश्रृंगीं चतुर्दंष्ट्रां चतुर्मखीम्।। १३.६ ।।

द्वात्रिंशद्गुणसंयुक्तामीश्वरीं सर्वतोमुखाम्।।
स तां दृष्ट्वा महातेजा महादेवीं महेश्वरीम्।। १३.७ ।।

पुनराह महादेवः सर्वदेवनमस्कृतः।।
मतीः स्मृतिर्बुद्धिरिति गायमानः पुनः पुनः।। १३.८ ।।

एह्येहीति महादेवी सातिष्ठत्प्रांजलिर्विभुम्।।
विश्वमावृत्य योगेन जगत्सर्वं वशीकुरु।। १३.९ ।।

अथ तामाह देवेशो रुद्राणी त्वं भविष्यसि।।
ब्राह्मणानां हितार्थाय परमार्थाय भविष्यसि।। १३.१० ।।

तथैनां पुत्रकामस्य ध्यायतः परमेष्ठिनः।।
प्रददौ देवदेवेशः चतुष्पादां जगद्गुरुः।। १३.११ ।।
ततस्तां ध्यानयोगेन विदित्वा परमेश्वरीम्।।
ब्रह्मा लोकगुरोः सोथ प्रतिपेदे महेश्वरीम्।। १३.१२ ।।

गायत्रीं तु ततो रौद्रीं ध्यात्वा ब्रह्मानुयंत्रितः।।
इत्येतां वैदीकीं विद्यां रौद्रीं गायत्रिमीरिताम्।। १३.१३ ।।

जपित्वा तु महादेवीं ब्रह्मा लोकनमस्कृताम्।।
प्रपन्नस्तु महादेवं ध्यानयुक्तेन चेतसा।। १३.१४ ।।

ततस्तस्य महादेवो दिव्ययोगं बहुश्रुतम्।।
ऐश्वर्यं ज्ञानसंपत्तिं वैराग्यं च ददौ प्रभुः।। १३.१५ ।।

ततोस्य पार्श्वतो दिव्याः प्रदुर्भूताः कुमारकाः।।
पीतमाल्यांबरधराः पीतस्रगनुलेपनाः।। १३.१६ ।।

पीताभोष्णीषशिरसः पीतास्याः पीतमूर्धजाः।
ततो वर्षसहस्रांत उषित्वा विमलौजसः।। १३.१७ ।।

योगात्मानस्तपोह्लादाः ब्राह्मणानां हितैषिणः।।
धर्मयोगबलोपेता मुनीनां दीर्घसत्त्रणाम्।। १३.१८ ।।

उपदिश्य महायोगं प्रविष्टास्ते महेश्वरम्।।
एवमेतेन विधिना ये प्रपन्ना महेश्वरम्।। १३.१९ ।।

अन्येपि नियतात्मानो ध्यानयुक्ता जितेंद्रियाः।।
ते सर्वे पापमुत्सृज्य विमला ब्रह्मवर्चसः।। १३.२० ।।

प्रविशन्ति महादेवं रुद्रं ते त्वपुनर्भवाः।। १३.२१ ।।

इति श्रीलिङ्गमहापुराणे पूर्वभागे तत्पुरुषमाहात्म्यं नाम त्रयोदशोध्यायः।। १३ ।।