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लिङ्गपुराणम् - पूर्वभागः/अध्यायः १२

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सूत उवाच।।
ततस्त्रिंशत्तमः कल्पो रक्तो नाम प्रकीर्तितः।।
ब्रह्म यत्र महातेजा रक्तवर्णमधारयत्।। १२.१ ।।

ध्यायतः पुत्रकामस्य ब्रह्मणः परमेष्ठिनः।।
प्रादुर्भूतो महातेजाः कुमारो रक्तभूषणः।। १२.२ ।।

रक्तमाल्यांबरधरो रक्तनेत्रः प्रतापवान्।।
स तं दृष्ट्वा महात्मानं कुमारं रक्तवाससम्।। १२.३ ।।

परं ध्यानं समाश्रित्य बुबुधे देवमीश्वरम्।।
स तं प्रणम्य भगवान् ब्रह्मा परमयंत्रितः।। १२.४ ।।

वामदेवं ततो ब्रह्मा ब्रह्म वै समचिंतयत्।।
तथा स्तुतो महादेवो ब्रह्मणा परमेश्वरः।। १२.५ ।।

प्रतीतहृदयः सर्व इदमाह पितामहम्।।
ध्यायता पुत्रकामेन यस्मात्तेहं पितामह।। १२.६ ।।

दृष्टः परमया भक्त्या स्तुतश्च ब्रह्मपुर्वकम्।।
तस्माद्ध्यानबलं प्राप्य कल्पेकल्पे प्रयत्नतः।। १२.७ ।।

वेत्स्यसे मां प्रसंख्यातं लोकधातारमीश्वरम्।।
ततस्तस्य महात्मानश्चत्वारस्ते कुमारकाः।। १२.८ ।।

संबभूवुर्महात्मानो विशुद्धा ब्रह्मवर्चसः।।
विरजाश्च विबाहुश्च विशोको विश्वभावनः।। १२.९ ।।

ब्रह्मण्या ब्रह्मणस्तुल्या वीरा अध्यवसायिनः।।
रक्तांबरधराः सर्वे रक्तमाल्यानुलेपनाः।। १२.१० ।।

रक्तकुंकुमलिप्तांगा रक्तभस्मानुलेपनाः।।
ततो वर्षसहस्रांते ब्रह्मत्वेध्यवसायिनः।। १२.११ ।।

गृणंतश्च महात्मानो ब्रह्म तद्वामदैविकम्।।
अनुग्रहार्थं लोकानां शिष्याणां हितकाम्यया।। १२.१२ ।।

धर्मोपदेशमखिलं कृत्वा ते ब्रह्मणः प्रियाः।।
पुनरेव महादेवं प्रविष्टा रुद्रमव्ययम्।। १२.१३ ।।

येपि चान्ये द्विजश्रेष्ठा युंजाना वाममीश्वरम्।।
प्रपश्यंति महादेवं तद्भक्तास्तत्परायणाः।। १२.१४ ।।

ते सर्वे पापनिर्मुक्ता विमला ब्रह्मचारिणः।।
रुद्रलोकं गमिष्यंति पुनरावृत्तिदुर्लभम्।। १२.१५ ।।

इति श्रीलिङ्गमहापुराणे पूर्वभागे वामदेवमाहात्म्यं नाम द्वादशोध्यायः।। १२ ।।