लिङ्गपुराणम् - पूर्वभागः/अध्यायः ३३

विकिस्रोतः तः
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
  1. अध्यायः १
  2. अध्यायः २
  3. अध्यायः ३
  4. अध्यायः ४
  5. अध्यायः ५
  6. अध्यायः ६
  7. अध्यायः ७
  8. अध्यायः ८
  9. अध्यायः ९
  10. अध्यायः १०
  11. अध्यायः ११
  12. अध्यायः १२
  13. अध्यायः १३
  14. अध्यायः १४
  15. अध्यायः १५
  16. अध्यायः १६
  17. अध्यायः १७
  18. अध्यायः १८
  19. अध्यायः १९
  20. अध्यायः २०
  21. अध्यायः २१
  22. अध्यायः २२
  23. अध्यायः २३
  24. अध्यायः २४
  25. अध्यायः २५
  26. अध्यायः २६
  27. अध्यायः २७
  28. अध्यायः २८
  29. अध्यायः २९
  30. अध्यायः ३०
  31. अध्यायः ३१
  32. अध्यायः ३२
  33. अध्यायः ३३
  34. अध्यायः ३४
  35. अध्यायः ३५
  36. अध्यायः ३६
  37. अध्यायः ३७
  38. अध्यायः ३८
  39. अध्यायः ३९
  40. अध्यायः ४०
  41. अध्यायः ४१
  42. अध्यायः ४२
  43. अध्यायः ४३
  44. अध्यायः ४४
  45. अध्यायः ४५
  46. अध्यायः ४६
  47. अध्यायः ४७
  48. अध्यायः ४८
  49. अध्यायः ४९
  50. अध्यायः ५०
  51. अध्यायः ५१
  52. अध्यायः ५२
  53. अध्यायः ५३
  54. अध्यायः ५४
  55. अध्यायः ५५
  56. अध्यायः ५६
  57. अध्यायः ५७
  58. अध्यायः ५८
  59. अध्यायः ५९
  60. अध्यायः ६०
  61. अध्यायः ६१
  62. अध्यायः ६२
  63. अध्यायः ६३
  64. अध्यायः ६४
  65. अध्यायः ६५
  66. अध्यायः ६६
  67. अध्यायः ६७
  68. अध्यायः ६८
  69. अध्यायः ६९
  70. अध्यायः ७०
  71. अध्यायः ७१
  72. अध्यायः ७२
  73. अध्यायः ७३
  74. अध्यायः ७४
  75. अध्यायः ७५
  76. अध्यायः ७६
  77. अध्यायः ७७
  78. अध्यायः ७८
  79. अध्यायः ७९
  80. अध्यायः ८०
  81. अध्यायः ८१
  82. अध्यायः ८२
  83. अध्यायः ८३
  84. अध्यायः ८४
  85. अध्यायः ८५
  86. अध्यायः ८६
  87. अध्यायः ८७
  88. अध्यायः ८८
  89. अध्यायः ८९
  90. अध्यायः ९०
  91. अध्यायः ९१
  92. अध्यायः ९२
  93. अध्यायः ९३
  94. अध्यायः ९४
  95. अध्यायः ९५
  96. अध्यायः ९६
  97. अध्यायः ९७
  98. अध्यायः ९८
  99. अध्यायः ९९
  100. अध्यायः १००
  101. अध्यायः १०१
  102. अध्यायः १०२
  103. अध्यायः १०३
  104. अध्यायः १०४
  105. अध्यायः १०५
  106. अध्यायः १०६
  107. अध्यायः १०७
  108. अध्यायः १०८

नंद्युवाच।।
ततस्तुतोष भगवानननुगृह्य महेश्वरः।।
स्तुतिं श्रुत्वा स्तुतस्तेषामिदं वचनमब्रवीत्।। ३३.१ ।।

यः पठेच्छृणुयाद्वापि युष्माभिः कीर्तितं स्तवम्।।
श्रावयेद्वा द्विजान्विप्रो गाणपत्यमवाप्नुयात्।। ३३.२ ।।

वक्ष्यामि वो हितं पुण्यं भक्तानां मुनिपुंगवाः।।
स्त्रीलिंगमखिलं देवी प्रकृतिर्मम देहजा।। ३३.३ ।।

पुँल्लिंगं पुरुषो विप्रा मम देहसमुद्भवः।।
उभाभ्यामेव वै सृष्टिर्मम विप्रा न संशयः।। ३३.४ ।।

न निंदेद्यतिनं तस्माद्दिग्वाससमनुत्तमम्।।
बालोन्मत्तविचेष्टं तु मत्परं ब्रह्मावादिनम्।। ३३.५ ।।

ये हि मां भस्मनिरता भस्मना दग्धकिल्बिषाः।।
यथोक्तकारिणो दांता विप्रा ध्यानपरायणाः।। ३३.६ ।।

महादेवपरा नित्यं चरंतो ह्यूर्ध्वरेतसः।।
अर्चयंति महादेवं वाङ्मनः कायसंयताः।। ३३.७ ।।

रुद्रलोकमनुप्राप्य न निवर्तंति ते पुनः।।
तस्मादेतद्व्रतं दिव्यमव्यक्तं व्यक्तलिंगिनः।। ३३.८ ।।

भस्मव्रताश्च मुंडाश्च व्रतिनो विश्वरूपिणः।।
न तान्परिवदेद्विद्वान्न चैतान्नाभिलंघयेत्।। ३३.९ ।।

न हसेन्नाप्रियं ब्रूयादमुत्रेह हितार्थवान्।।
यस्ता न्निंदति मूढात्मा महादेवं स निंदति।। ३३.१೦ ।।

यस्त्वेतान्पूजयोन्नित्यं स पूजयति शंकरम्।।
एवमेष महादेवो लोकानां हितकाम्यया।। ३३.११ ।।

युगेयुगे महायोगी क्रीडते भस्मगुण्ठितः।।
एवं चरत भद्रं वस्ततः सिद्धिमवाप्स्यथ।। ३३.१२ ।।

अतुलमिह महाभयप्रणाशहेतुं शिवकथितं परमं पदं विदित्वा।।
व्यापगतभवलोभमोहचित्ताः प्रणिपतिताः सहसा शिरोभिरुग्रम्।। ३३.१३ ।।

ततः प्रमुदिता विप्राः श्रुत्वेवं कथितं तदा।।
गंधोदकैः सुशुद्धैश्च कुशपुष्पविमिश्रितैः।। ३३.१४ ।।

स्नापयंति महाकुंभैरद्भिरेव महेश्वरम्।।
गायंति विविधैर्गुह्यैर्हुकारैश्चापि सुस्वरैः।। ३३.१५ ।।

नमो देवाधि देवाय महादेवाय वै नमः।।
अर्धनारीशरीराय सांख्ययोगप्रवर्तिने।। ३३.१६ ।।

मेघवाहनकृष्णाय गजचर्मनिवासिने।।
कृष्णाजिनोत्तरीयाय व्याल यज्ञोपवीतिने।। ३३.१७ ।।

सुरचितसुविचित्रकुंडलाय सुरचितमाल्यविभूषणाय तुभ्यम्।।
मृगपतिवरचर्मवाससे च प्रथितयशसे नमोऽस्तु शंकराय।। ३३.१८ ।।

ततस्तान्स मुनीन्प्रीतः प्रत्युवाच महेश्वरः।।
प्रीतोस्मि तपसा युष्मान्वरं वृणुत सुव्रताः।। ३३.१९ ।।

ततस्ते मुनयः सर्वे प्रणिपत्य महेश्वरम्।।
भृग्वंगिरा वसिष्ठश्च विश्वामित्रस्तथैव च।। ३३.२೦ ।।

गौतमोऽत्रिः सुकेशश्च पुलस्त्यः पुलहः क्रतुः।।
मरीचिः कश्यपः कण्वः संवर्तश्च महातपाः।। ३३.२१ ।।

ते प्रणम्य महादेवमिदं वचनमब्रुवन्।।
भस्मस्नानं च नग्नत्वं वामत्वं प्रतिलोमता।। ३३.२२ ।।

सेव्यासेव्यत्वमेवं च ह्येतदिच्छाम वेदितुम्।।
ततस्तेषां वचः श्रुत्वा भगवान्परमेश्वरः।। ३३.२३ ।।

सस्मितं प्राह संप्रेक्ष्य सर्वान्मुनिवरांस्तदा।। ३३.२४ ।।

इति श्रीलिंगमहापुराणे पूर्वबागे ऋषिवाक्यंनाम त्रयस्त्रिंशोऽध्यायः।। ३३ ।।