महाभारतम्-09-शल्यपर्व-019
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सात्यकिना साल्ववधः।। 1 ।।
सञ्जरा उवाच। | 9-19-1x |
सन्निवृत्तेषु सैन्येषु साल्वो म्लेच्छगणाधिपः। अभ्यद्रवत्सुसङ्क्रुद्धः पाण्डवानां महद्बलम्।। | 9-19-1a 9-19-1b |
आस्थाय सुमहानागं प्रभिन्नं पर्वतोपमम्। सप्तमैरावतप्रख्यममित्रगणमर्दनम्।। | 9-19-2a 9-19-2b |
योऽसौ महान्भद्रकुलप्रसूतः सुपूजितो धार्तराष्ट्रेण नित्यम्। सुकल्पितः शास्त्रविनिश्चयज्ञैः सदौपवाह्यः समरेषु राजन्।। | 9-19-3a 9-19-3b 9-19-3c 9-19-3d |
ऐरावतं दैत्यगणान्विमृद्र-- ञ्शक्रो यथा सञ्जनयन्भयानि। तमास्थितो राजवरो बभूव यथोदयस्थः सविता क्षपान्ते।। | 9-19-4a 9-19-4b 9-19-4c 9-19-4d |
स तेन नागप्रवरेण राज-- न्नभ्युद्ययौ पाण्डुसुतान्समेतान्। शितैः पृषत्कैर्विददार वेगै-- र्महेन्द्रवज्रप्रतिमैः सुघोरैः।। | 9-19-5a 9-19-5b 9-19-5c 9-19-5d |
ततः शरान्वै सृजतो महारणे योधांश्च राजन्नयतो यमालयम्। नास्यानत्रं ददृशुः स्वे परे वा यथा पुरा वज्रधरस्य दैत्याः।। | 9-19-6a 9-19-6b 9-19-6c 9-19-6d |
ते पाण्डवाः सोमकाः सृञ्जयाश्च तमेकनागं ददृशुः समन्तात्। सहस्रशो वै विचरन्तमेकं यथा महेन्द्रस्य गजं समीपे।। | 9-19-7a 9-19-7b 9-19-7c 9-19-7d |
सन्द्राव्यमाणं तु बलं परेषां परेतकल्पं विबभौ समन्ततः। नैवावतस्थे समरे भृशं भया-- द्विमृद्यमानं तु परस्परं तदा।। | 9-19-8a 9-19-8b 9-19-8c 9-19-8d |
ततः प्रभग्ना सहसा महाचमूः सा पाण्डवी तेन नराधिपेन। दिशश्चतस्रः सहसा विधाविता गजेन्द्रवेगं तमपारयन्ती।। | 9-19-9a 9-19-9b 9-19-9c 9-19-9d |
दृष्ट्वा च तां वेगवता प्रभग्नां सर्वे त्वदीया युधि योधमुख्याः। अपूजयंस्ते तु नराधिपं तं दध्मुश्च शङ्खाञ्शशिसन्निकाशान्।। | 9-19-10a 9-19-10b 9-19-10c 9-19-10d |
श्रुत्वा निनादं त्वथ कौरवाणां हर्षाद्विमुक्तं सह शङ्खशब्दैः। सेनापतिः पाण्डवसृञ्जयानां पाञ्चालपुत्रो ममृषे न कोपात्।। | 9-19-11a 9-19-11b 9-19-11c 9-19-11d |
ततस्तु तं वै द्विरदं महात्मा प्रत्युद्ययौ त्वरमाणो जयाय। जम्भो यथा शक्रसमागमे वै नागेन्द्रमैरावणमिन्द्रवाह्यम्।। | 9-19-12a 9-19-12b 9-19-12c 9-19-12d |
तमापतन्तं सहसा तु दृष्ट्वा पाञ्चालपुत्रं युधि राजसिंहः। तं वै द्विपं प्रेषयामास तूर्णं वधाय राजन्द्रुपदात्मजस्य।। | 9-19-13a 9-19-13b 9-19-13c 9-19-13d |
स तं द्विपेन्द्रं सहसापतन्त-- मविध्यदग्निप्रतिमैः पृषत्कैः। कर्मारधौतैर्निशितैर्ज्वलद्भि-- र्नाराचमुख्यैस्त्रिभिरुग्रवेगैः।। | 9-19-14a 9-19-14b 9-19-14c 9-19-14d |
ततोऽपरान्पञ्चशतान्महात्मा नाराचमुख्यान्विससर्ज कुम्भे। स तैस्तु विद्धः परमद्विपो रणे तदा परावृत्य भृशं प्रदुद्रुवे।। | 9-19-15a 9-19-15b 9-19-15c 9-19-15d |
तं नागराजं सहसा प्रणुन्नं विद्राव्यमाणं विनिवर्त्य साल्वः। तोत्राङ्कुशैः प्रेषयामास तूर्णं पाञ्चालराजस्य सुतं प्रदिश्य।। | 9-19-16a 9-19-16b 9-19-16c 9-19-16d |
दृष्ट्वा पतन्तं सहसा तु नागं धृष्टद्युम्नः स्वरथाच्छीघ्रमेव। गदां प्रगृह्योग्रजवेन वीरो भूमिं प्रपन्नो भयविह्वलाङ्गः।। | 9-19-17a 9-19-17b 9-19-17c 9-19-17d |
स तं रथं हेमविभूषिताङ्गं साश्वं ससूतं सहसा विमृद्य। उत्क्षिप्य हस्तेन नदन्महाद्विपो विपोथयामास वसुन्धरातले।। | 9-19-18a 9-19-18b 9-19-18c 9-19-18d |
पाञ्चालराजस्य सुतं च दृष्ट्वा तदार्दितं नागवरेण तेन। तमभ्यधावत्सहसा जवेन भीमः शिखण्डी च शिनेश्च नप्ता।। | 9-19-19a 9-19-19b 9-19-19c 9-19-19d |
शरैश्च वेगं सहसा निगृह्य तस्याभितो व्यापततो गजस्य। स सङ्गृहीतो रथिभिर्गजो वै चचाल तैर्वार्यमाणश्च सङ्ख्ये।। | 9-19-20a 9-19-20b 9-19-20c 9-19-20d |
ततः पृषत्कान्प्रववर्ष राजा सूर्यो यथा रश्मिजालं समन्तात्। तैराशुगैर्वध्यमाना रथौघाः प्रदुद्रुवुः सहितास्तत्रतत्र।। | 9-19-21a 9-19-21b 9-19-21c 9-19-21d |
तत्कर्म साल्वस्य समीक्ष्य सर्वे पाञ्चालपुत्रा नृप सृञ्जयाश्च। हाहाकारैर्नादयन्ति स्म युद्धे द्विपं समन्ताद्रुरुधुर्नराग्र्याः।। | 9-19-22a 9-19-22b 9-19-22c 9-19-22d |
पाञ्चालपुत्रस्त्वरितस्तु शूरो गदां प्रगृह्याचलशृङ्गकल्पाम्। ससम्भ्रमं भारत शत्रुघाती जवेन वीरोऽनुससार नागम्।। | 9-19-23a 9-19-23b 9-19-23c 9-19-23d |
ततस्तु नागं धरणीधराभं मदं स्रवन्तं जलदप्रकाशम्। गदां समातिध्य भृशं जघान पाञ्चालराजस्य सुतस्तरस्वी।। | 9-19-24a 9-19-24b 9-19-24c 9-19-24d |
स भिन्नकुम्भः सहसा विनद्य मुखात्प्रभूतं क्षतजं विमुञ्चन्। पपात नागो धरमीधराभः क्षितिप्रकम्पाच्चलितो यथाऽद्रिः।। | 9-19-25a 9-19-25b 9-19-25c 9-19-25d |
निपात्यमाने तु तदा गजेन्द्रे हाहाकृते तव पुत्रस्य सैन्ये। स साल्वराजस्य शिनिप्रवीरो जहार भल्लेन शिरः शितेन।। | 9-19-26a 9-19-26b 9-19-26c 9-19-26d |
हृतोत्तमाङ्गो युधि सात्वतेन पपात भूमौ सह नागराज्ञा। यथाऽद्रिशृङ्गं सुमहत्प्रणुन्नं वज्रेण देवाधिपचोदितेन।। | 9-19-27a 9-19-27b 9-19-27c 9-19-27d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यवधपर्वणि शल्यवधपर्वणि अष्टादशदिवसयुद्धे एकोनविंशोऽध्यायः।। 19 ।। |
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