महाभारतम्-09-शल्यपर्व-026
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कृष्णार्जुनयोः संवादः।। 1 ।।
सङ्कुलयुद्धम्।। 2 ।।
भीमेन सुदर्शननाम्नो दुर्योधनानुजस्य वधः।। 3 ।।
सञ्जय उवाच। | 9-26-1x |
दुर्योधनो महाराज सुदर्शश्चापि ते सुतः। हतशेषौ तदा सङ्ख्ये वाजिमध्ये व्यवस्थितौ।। | 9-26-1a 9-26-1b |
ततो दुर्योधनं दृष्ट्वा वाजिमध्ये व्यवस्थितम्। उवाच देवकीपुत्रः कुन्तीपुत्रं धनञ्जयम्।। | 9-26-2a 9-26-2b |
शत्रवो हतभूयिष्ठा ज्ञातयः परिपालिताः। गृहीत्वा सञ्जयं चासौ निवृत्तः शिनिपुङ्गवः।। | 9-26-3a 9-26-3b |
परिश्रान्तश्च नकुलः सहदेवश्च भारत। योधयित्वा रणे पापान्धार्तराष्ट्रान्सहानुगान्।। | 9-26-4a 9-26-4b |
दुर्योधनमतिक्रम्य त्रय एते व्यवस्थिन्ताः। कृपश्च कृतवर्मा च द्रौणिश्चैव महारथः।। | 9-26-5a 9-26-5b |
असौ तिष्ठति पाञ्चाल्यः श्रिया परमया युतः। दुर्योधनबलं हत्वा सह सर्वैः प्रभद्रकैः।। | 9-26-6a 9-26-6b |
असौ दुर्योधनः पार्थ वाजिमध्ये व्यवस्थितः। छत्रेण ध्रियामणेन प्रेक्षमाणो मुहुर्मुहुः।। | 9-26-7a 9-26-7b |
प्रतिव्यूह्य बलं सर्वं रणमध्ये व्यवस्थितः। एनं हत्वा शितैर्बाणैः कृतकृत्यो भविष्यसि।। | 9-26-8a 9-26-8b |
गजानीकं हतं दृष्ट्वा त्वां च प्राप्तमरिन्दम। यावन्न विद्रवन्त्येते तावज्जहि सुयोधन्सम्।। | 9-26-9a 9-26-9b |
यातु कश्चित्तुं पाञ्चाल्यं क्षिप्रमागम्यतामिति। परिश्रान्तबलस्तात नैष मुच्येत किल्बिषी।। | 9-26-10a 9-26-10b |
हत्वा तव बलं सर्वं सङ्ग्रमे धृतराष्ट्रजः। जितान्पाण्डुसुतान्प्रत्वा रूपं धारयते महत्।। | 9-26-11a 9-26-11b |
निहतं स्वबलं दृष्ट्वा पीडितं चापि पाण्डवैः। ध्रुवमेष्यति सङ्ग्रमे वधायैवात्मनो नृपः।। | 9-26-12a 9-26-12b |
एवमुक्तः फल्गुनस्तु कृष्णं वचनमब्रवीत्। धृतराष्ट्रसुताः सर्वे हता भीमेन माधव। यावेतावास्थितौ कृष्ण तावद्य नभविष्यतः।। | 9-26-13a 9-26-13b 9-26-13c |
हतो भीष्मो हतो द्रोणः कर्णो वैकर्तनो हतः। मद्रराजो हतः शल्यो हतः कृष्ण जयद्रथः।। | 9-26-14a 9-26-14b |
हयाः पञ्चशताः शिष्टाः शकुनेः सौबलस्य च। रथानां तु शते शिष्टे द्वे एव तु जनार्दन। दन्तिनां च शतं साग्रं त्रिसाहस्राः पदातयः।। | 9-26-15a 9-26-15b 9-26-15c |
अश्वत्थामा कृपश्चैव त्रिगर्ताधिपतिस्तथा। उलूकः शकुनिश्चैव कृतवर्मा च सात्वतः।। | 9-26-16a 9-26-16b |
एतद्बलमभूच्छेषं धार्तराष्ट्रस्य माधव। मोक्षो न नूनं कालात्तु विद्यते भुवि कस्यचित्।। | 9-26-17a 9-26-17b |
तथा विनिहते सैन्ये पश्य दुर्योधनं स्थितम्। अद्याह्ना हि महाराजो हतामित्रो भविष्यति। न हि मे मोक्ष्यते कश्चित्परेषामिह चिन्तये।। | 9-26-18a 9-26-18b 9-26-18c |
ये त्वद्य समरं कृष्ण न हास्यन्ति मदोत्कटाः। तान्वै सर्वान्हनिष्यामि यद्यपि स्युरमानुषाः।। | 9-26-19a 9-26-19b |
अद्य युद्धे समुत्पन्नं दीर्घं राज्ञः प्रजागरम्। अपनेष्यामि गान्धारिं घातयित्वा शितैः शरैः।। | 9-26-20a 9-26-20b |
निकृत्या वै दुराचारो यानि रत्नानि सौबलः। सभायामहरद्द्यूते पुनस्तान्याहराम्यहम्।। | 9-26-21a 9-26-21b |
अद्य वेत्स्यन्ति मच्छक्तिं सर्वा नागपुरे स्त्रियः। श्रुत्वा पतींश्च पुत्रांश्च पाण्डवैर्निहतान्युधि।। | 9-26-22a 9-26-22b |
समाप्तमद्य वै कर्म सर्वं कृष्ण भविष्यति। अद्य दुर्योधनो दीप्तां श्रियं प्राणांश्च मोक्ष्यति।। | 9-26-23a 9-26-23b |
नापयाति भयात्कृष्ण सङ्ग्रामाद्यदि चेन्मम। निहतं विद्धि वार्ष्णेय धार्तराष्ट्रं सुबालिशम्।। | 9-26-24a 9-26-24b |
मम ह्येतदपर्याप्तं वाजिबृन्दमरिन्दम। सोढुं ज्यातलनिर्घोषं याहि यावन्निहन्म्यहम्।। | 9-26-25a 9-26-25b |
सञ्जय उवाच। | 9-26-26x |
एवमुक्तस्तु दाशार्हः पाण्डवेन यशस्विना। अचोदयद्धायन्राजन्दुर्योधनबलं प्रति।। | 9-26-26a 9-26-26b |
तदनीकमभिप्रेक्ष्य त्रयः सज्जा महारथाः। भीमसेनोऽकर्जुनश्चैव सहदेवश्च मारिष। प्रययुः सिंहनादेन दुर्योधनजिघांसया।। | 9-26-27a 9-26-27b 9-26-27c |
तान्प्रेक्ष्य सहितान्सर्वाञ्जवेनोद्यतकार्मुकान्। सौबलोऽभ्यद्रवद्युद्धे पाण्डवानाततायिनः।। | 9-26-28a 9-26-28b |
सुदर्शनस्त्व मतो भीमसेनं समभ्ययात्। सुशर्मा शकुनिश्चैव युयुधाते किरीटिना।। | 9-26-29a 9-26-29b |
सहदेवं तव सुतो हयपृष्ठगतोऽभ्ययात्।। | 9-26-30a |
ततो हि यत्नतः क्षिप्रं तवं पुत्रो जनाधिप। प्रासेन सहदेवस्य शिरसि प्राहरद्भृशम्।। | 9-26-31a 9-26-31b |
सोपाविशद्रथोपस्थे तव सुत्रेण ताडितः। रुधिराप्लुतसर्वाङ्ग आशीविष इव श्वसन्।। | 9-26-32a 9-26-32b |
प्रतिलभ्य ततः सञ्ज्ञां सहदेवो विशाम्पते। दुर्योधनं शरैस्तीक्ष्णैः सङ्क्रुद्धः समवाकिरत्।। | 9-26-33a 9-26-33b |
पार्थोऽपि युधि विक्रम्य कुन्तीपुत्रो धनञ्जयः। शूराणामश्वपृष्ठेभ्यः शिरांसि निचकर्त ह।। | 9-26-34a 9-26-34b |
तदनीकं तदा पार्थो व्यधमद्बहुभिः शरैः। पातयित्वा हयान्सर्वांस्त्रिगर्तानां रथान्ययौ।। | 9-26-35a 9-26-35b |
ततस्ते सहिता भूत्वा त्रिगर्तानां महारथाः। अर्जुनं वासुदेवं च शरवर्षैरवाकिरन्।। | 9-26-36a 9-26-36b |
सत्यकर्माणमाक्षिप्य क्षुरप्रेण महायशाः। ततोऽस्य स्यन्दनस्येषां चिच्छिदे पाण्डुनन्दनः।। | 9-26-37a 9-26-37b |
शिलाशितेन च विभो क्षुरप्रेण महायशाः। शिरश्चिच्छेद सहसा तप्तकुण्डलभूषणम्।। | 9-26-38a 9-26-38b |
सत्येषुमथ चादत्त योधानां मिषतां ततः। यथा सिंहो वने राजन्मृगं परि बुभुक्षितः।। | 9-26-39a 9-26-39b |
तं निहत्य ततः पार्थः सुशर्माणं त्रिभिः शरैः। विद्ध्वा तानहनत्सर्वान्रथान्रुक्मविभूओषितान्।। | 9-26-40a 9-26-40b |
ततः प्रायात्त्वरन्पार्थो दीर्घकालं सुसंवृतम्। मुञ्जन्क्रोधविषं तीक्ष्णं प्रस्थलाधिपतिं प्रति।। | 9-26-41a 9-26-41b |
तमर्जुनः पृषत्कानां शतेन भरतर्षभ। पूरयित्वा ततो वाहान्प्राहरत्तस्य धन्विनः।। | 9-26-42a 9-26-42b |
ततः शरं समादाय यमदण्डोपमं तदा। सुशर्माणं समुद्दिश्य चिक्षेपाशु हसन्निव।। | 9-26-43a 9-26-43b |
स शरः प्रेषितस्तेन क्रोधदीप्तेन धन्विना। सुशर्माणं समासाद्य बिभेद हृदयं रणे।। | 9-26-44a 9-26-44b |
स गतासुर्महाराज पपात धरणीतले। नन्दयन्पाण्डवान्सर्वान्व्यथयंश्चापि तावकान्।। | 9-26-45a 9-26-45b |
सुशर्माणं रणे हत्वा पुत्रानस्य महारथान्। सप्त चाष्टौ च त्रिंशच्च सायकैरनयत्क्षयम्।। | 9-26-46a 9-26-46b |
ततोऽस्य निशितैर्बाणैः सर्वान्हत्वा पदानुगान्। अभ्यगाद्भारतीं सेनां हतशेषां महारथः।। | 9-26-47a 9-26-47b |
भीमस्तु समरे क्रुद्धः पुत्रं तव जनाधिप। सुदर्शनमदृश्यन्तं शरैश्चक्रे हसन्निव।। | 9-26-48a 9-26-48b |
ततोऽस्य प्रहसन्क्रुद्धः शिरः कायादपाहरत्। क्षुरप्रेण सुतीक्ष्णेन स हतः प्रापतद्भुवि।। | 9-26-49a 9-26-49b |
तस्मिंस्तु निहते वीरे ततस्तस्य पदानुगाः। परिवव्रू रमे भीमं किरन्तो विविधाञ्शरान्।। | 9-26-50a 9-26-50b |
ततस्तु निशितैर्बाणैस्तवानीकं वृकोदरः। इन्द्राशनिसमस्पर्शैः समन्तात्पर्यवाकिरत्।। | 9-26-51a 9-26-51b |
ततः क्षणेन तद्भीमो न्यहनद्भरतर्षभ।। | 9-26-52a |
तेषु तूत्साद्यमानेषु सेनाध्यक्षा महारथाः। भीमसेनं समासाद्य ततोऽयुध्यन्त भारत।। | 9-26-53a 9-26-53b |
स तान्सर्वाञ्शरैर्घोरैरवाकिरत पाण्डवः। तथैव तावका राजन्पाण्डवेयान्महारथान्। शरवर्षेण महता समन्तात्पर्यवारयन्।। | 9-26-54a 9-26-54b 9-26-54c |
व्याकुलं तदभूत्सर्वं पाण्डवानां परैः सह। तावकानां च समरे पाण्डवेंयैर्युयुत्सताम्।। | 9-26-55a 9-26-55b |
तत्र योधास्तदा पेतुः परस्परसमाहताः। उभयोः सेनयो राजन्संशोचन्तः स्म बान्धवान्।। | 9-26-56a 9-26-56b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि शल्यवधपर्वणि अष्टादशदिवसयुद्धे षड्विंशोऽध्यायः।। 26 ।। |
9-26-17 मोक्षो नूनं कालसृष्टः इति क.पाठः।। 9-26-26 षड्विंशोऽध्यायः।।
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