महाभारतम्-09-शल्यपर्व-009
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नकुकेन कर्णपुत्राणां त्रयाणां मारणम्।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 9-9-1x |
तत्प्रभग्नं बलं दृष्ट्वा मद्रराजः प्रतापवान्। उवाच सारथिं तूर्णं चोदयाश्वान्महाजवान्।। | 9-9-1a 9-9-1b |
एष तिष्ठति वै राजा पाण्डुपुत्रो युधिष्ठिरः। छत्रेण ध्रियमाणेन पाण्डुरेण विराजता।। | 9-9-2a 9-9-2b |
अत्र मां प्रापय क्षिप्रं पश्य मे सारथे बलम्। न समर्था हि मे पार्थाः स्थातुमद्य पुरो युधि।। | 9-9-3a 9-9-3b |
एवमुक्तस्ततः प्रायान्मद्रराजस्य सारथिः। यत्रा राजा सत्यसन्धो धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।। | 9-9-4a 9-9-4b |
आपतन्तं च सहसा पाण्डवानां महद्बलम्। दधारैको रणे शल्यो वेलोद्वृत्तमिवार्णवम्।। | 9-9-5a 9-9-5b |
पाण्डवानां बलौघस्तु शल्यमासाद्य मारिष। व्यतिष्ठत तदा युद्वे सिन्धोर्वेग इवाचलम्।। | 9-9-6a 9-9-6b |
मद्रराजं तु समरे दृष्ट्वा युद्धाय धिष्ठितम्। कुरवः सन्न्यवर्तन्त मृत्युं कृत्वा निवर्तनम्।। | 9-9-7a 9-9-7b |
तेषु राजन्निवृत्तेषु व्यूढानीकेषु सर्वशः। प्रावर्तत महारौद्रः सङ्ग्रामः शोणितोदकः।। | 9-9-8a 9-9-8b |
समार्च्छच्चित्रसेनं तु नकुलो युद्धदुर्मदः। तौ परस्परमासाद्य चित्रकार्मुकधारिणौ।। | 9-9-9a 9-9-9b |
मेघाविव यथोद्वृत्तौ दक्षिणोत्तरवर्षिणौ। शरतोयैः सिषिचतुस्तौ परस्परमाहवे।। | 9-9-10a 9-9-10b |
नान्तरं तत्र पश्यामः पाण्डवस्येतरस्य च। उभौ कृतास्त्रौ बलिनौ रथचर्याविशारदौ। परस्परवधे यत्तौ छिद्रान्वेषणतत्परौ।। | 9-9-11a 9-9-11b 9-9-11c |
चित्रसेनस्तु भल्लेन पीतेन निशितेन च। नकुलस्य महाराज मुष्टिदेशेऽच्छिनद्धनुः।। | 9-9-12a 9-9-12b |
अथैनं छिन्नधन्वानं रुक्मपुङ्खैः शिलाशितैः। त्रिभिः शरैरसम्भ्रान्तो ललाटे वै समार्पयत्।। | 9-9-13a 9-9-13b |
हयांश्चास्य शरैस्तीक्ष्णैः प्रेषयामास मृत्यवे। तथा ध्वजं सारथिं च त्रिभिस्त्रिभिरपातयत्।। | 9-9-14a 9-9-14b |
स शत्रुभुजनिर्मुक्तैर्ललाटस्थैस्त्रिभिः शरैः। नकुलः शुशुभे राजंस्त्रिशृङ्ग इव पर्वतः।। | 9-9-15a 9-9-15b |
स च्छिन्नधन्वा विरथः खङ्गमादाय चर्म च। रथादवातरद्वीरः शैलाग्रादिव केसरी।। | 9-9-16a 9-9-16b |
पद्मामापततस्तस्य शस्वृष्टिं समासृजत्। नकुलोऽप्यग्रसत्तां वै चर्मणा लघुविक्रमः।। | 9-9-17a 9-9-17b |
चित्रसेनरथं प्राप्य चित्रयोधी जितश्रमः। आरुरोह महाबाहुः सर्वसैन्यस्य पश्यतः।। | 9-9-18a 9-9-18b |
सकुण्डलं समुकुटं सुनसं स्वायतेक्षणम्। चित्रसेनशिरः कायादपाहरत पाण्डवः।। | 9-9-19a 9-9-19b |
स पपात रथात्तस्माद्दिवाकरसमद्युतिः।। | 9-9-20a |
चित्रसेनशिरस्तत्तु दृष्ट्वा तत्र महारथाः। साधुवादस्वनांश्चक्रुः सिंहनादांश्च पुष्कलान्।। | 9-9-21a 9-9-21b |
विशस्तं भ्रातरं दृष्ट्वा कर्णपुत्रौ महारथौ। सुशर्मा सत्यसेनश्च मुञ्चन्तौ विविधाञ्शरान्।। | 9-9-22a 9-9-22b |
ततोऽभ्यधावतां तूर्णं पाण्डवं रथिनां वरम्। जिघांसन्तौ यथा नागं व्याघ्रौ राजन्महावने।। | 9-9-23a 9-9-23b |
तावभ्येत्य महाबाहू द्वावप्यतिमहारथौ। शरौषान्सम्यगस्यन्तौ जीमूतौ सलिलं यथा।। | 9-9-24a 9-9-24b |
स शरैः सर्वतो विद्धः प्रहृष्ट इव पाण्डवः। अन्यत्कार्मुकमादाय रथमारुह्य वेगवान्। अतिष्ठत रणे वीरः क्रुद्धरूप इवान्तकः।। | 9-9-25a 9-9-25b 9-9-25c |
तस्य तौ भ्रातरौ राजञ्शरैः सन्नतपर्वभिः। रथं विशकलीकर्तुं समारब्धौ विशाम्पते।। | 9-9-26a 9-9-26b |
ततः प्रहस्य नकुलश्चतुर्भिश्चतुरो रणे। जघान निशितैर्बाणैः सत्यसेनस्य वाजिनः।। | 9-9-27a 9-9-27b |
ततः सन्धाय नारचं रुक्मपुङ्खं शिलाशितम्। धनुश्चिच्छेद राजेन्द्र सत्यसेनस्य पाण्डवः।। | 9-9-28a 9-9-28b |
अथान्यं रथमास्थाय धनुरादाय चापरम्। सत्यसेनः सुशर्मा च पाण्डवं पर्यधावताम्।। | 9-9-29a 9-9-29b |
अविध्यत्तावसम्भ्रान्तौ माद्रीपुत्रः प्रतापवान्। द्वाभ्यां द्वाभ्यां महाराज शराभ्यां रणमूर्धनि।। | 9-9-30a 9-9-30b |
सुशर्मा तु ततः क्रुद्धः पाण्डवस्य महद्धनुः। चिच्छेद प्रहसन्युद्धे क्षुरप्रेण महारथः।। | 9-9-31a 9-9-31b |
अथान्यद्धनुरादाय नकुलः क्रोधमूच्छितः। सुशर्माणं पञ्चभिर्विद्ध्वा ध्वजमेकेन चिच्छिदे।। | 9-9-32a 9-9-32b |
सत्यसेनस्य स धनुर्हस्तावपं च मारिष। चिच्छेद तरसा युद्धे तत उच्चुक्रुशुर्जनाः।। | 9-9-33a 9-9-33b |
अथान्यद्धनुरादाय वेगघ्नं भारसाधनम्। शरैः सञ्छादयामास समन्तात्पाण्डुनन्दनम्।। | 9-9-34a 9-9-34b |
सन्निवार्य तु तान्बाणान्नकुलः परवीरहा। सत्यसेनसुशर्माणौ द्वाभ्यां द्वाभ्यामविध्यत।। | 9-9-35a 9-9-35b |
तावेनं प्रत्यविध्येतां पृथक्पृथगजिह्मगैः। सारथिं चास्य राजेन्द्र शितैर्विव्यधतुः शरैः।। | 9-9-36a 9-9-36b |
सत्यसेनो रथेषां तु नकुलस्य धनुस्तथा। पृथक् शराभ्यां चिच्छेद कृतहस्तः प्रतापवान्।। | 9-9-37a 9-9-37b |
स रथेऽतिरथस्तिष्ठन्रथशक्तिं परामृशत्।। स्वर्णदण्डामकुण्ठाग्रां तैलधौतां सुनिर्मलाम्। | 9-9-38a 9-9-38b |
लेलिहानामिव विमो नागकन्यां महाविषाम्।। | 9-9-39a |
समुद्यम्य च चिक्षेप सत्यसेनस्य संयुगे।। | 9-9-40a |
सा तस्य हृदयं गत्या विभेद शतधा नृप। स पवात रथाद्भूमिं यतसत्वोऽल्पत्तेतनः।। | 9-9-41a 9-9-41b |
भ्रातरं निहतं दृष्ट्वा सुशर्मा क्रोधमूर्च्छितः। अभ्यवर्षच्छरैस्तूर्णं पादातं पाण्डुनन्दनम्।। | 9-9-42a 9-9-42b |
चतुर्भिश्चतुरो वाहान्ध्वजं छित्त्वा च पञ्चभिः। त्रिभिर्वै सारथिं हत्वा कर्णपुत्रो ननाद ह।। | 9-9-43a 9-9-43b |
नकुलं विरथं दृष्ट्वा द्रौपदेयो महारथम्। सुतसोमोऽभिदुद्राव परीप्सन्पितरं रणे।। | 9-9-44a 9-9-44b |
ततोऽधिरुह्य नकुलः सुतसोमस्य तं रथम्। शुशुभे भरतश्रेष्ठो गिरिस्य इव केसरी।। | 9-9-45a 9-9-45b |
अन्यत्कार्मुकमादाय सुशर्माणमयोधयत्।। | 9-9-46a |
तत्र तौ शरवर्षाभ्यां समासाद्य परस्परम्। परस्परवधे यत्नं चक्रतुः सुमहारथौ।। | 9-9-47a 9-9-47b |
सुशर्मा तु तः क्रुद्धः पाण्डवं विशिखैस्त्रिभिः। सुतसोमं तु विंशत्या वाह्वोरुरसि चार्पयत्।। | 9-9-48a 9-9-48b |
ततः क्रुद्धो महाराज नकुलः परवीरहा। शरैस्तस्य दिशः सर्वाश्छादयामास वीर्यवान्।। | 9-9-49a 9-9-49b |
ततो गृहीत्वा तीक्ष्णाग्रमर्धचन्द्रं सुतेजनम्। आकर्णपूर्णं चिक्षेप कर्णपुत्राय संयुगे।। | 9-9-50a 9-9-50b |
तस्य तेन शिरः कायाज्जहार नृपसत्तम। पश्यतां सर्वसैन्यानां तदद्भुतमिवाभवत्।। | 9-9-51a 9-9-51b |
स हतः प्रापतद्राजन्नकुलेन महात्मना। नदीपेxxxxxxxणस्तीरजः पादपो महान्।। | 9-9-52a 9-9-52b |
कर्णपुत्रवचं दृष्ट्वा नकुलस्य च विक्रमम्। प्रदुद्राव भवात्सेना तावकी भरतर्वभ।। | 9-9-53a 9-9-53b |
तां तु सेनां महाराज्ञ मद्रराजः प्रतापवान्। xxxxxx शूरः सेनापतिररिन्दमः।। | 9-9-54a 9-9-54b |
xxxxxx व्यवस्याप्य च वाहिनीम्। xxxxxxx भूशं कृत्वा धनुःशब्दं च दारुणम्।। | 9-9-55a 9-9-55b |
xxxxxx सगरे राजन्रांक्षेता दृढधन्वना। प्रत्युद्ययुश्च तांस्ते तु समन्ताद्विगतव्यथाः।। | 9-9-56a 9-9-56b |
मद्रराजं महेष्वासं परिवार्य समन्ततः। स्थिता राजन्महासेना योद्वुकामा समन्ततः।। | 9-9-57a 9-9-57b |
सात्यकिर्भीमसेनश्च माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ। युधिष्ठिरं पुरस्कृत्य हीनिषेवमरिन्दमम्।। | 9-9-58a 9-9-58b |
परिवार्य रणे वीराः सिंहनादं प्रचक्रिरे। बाणशङ्खरवांस्तीव्रान्क्ष्वेलाश्च विविधा दधुः।। | 9-9-59a 9-9-59b |
तथैव तावकाः सर्वे मद्राधिपतिमञ्जसा। परिवार्य सुसंरब्धाः पुनर्युद्धमरोचयन्।। | 9-9-60a 9-9-60b |
ततः प्रववृते युद्धं भीरूणां भयवर्धनम्। तावकानां परेषां च मृत्युं कृत्वा निबर्तनम्।। | 9-9-61a 9-9-61b |
यथा देवासुरं युद्धं पूर्वमासीद्विशाम्पते। अभीतानां तथाऽऽसीत्तद्यमराष्ट्रविवर्धनम्।। | 9-9-62a 9-9-62b |
ततः कपिध्वजो राजन्हत्वा संशप्तकान्रणे। अभ्यद्रवत तां सेनां कौरवीं पाण्डुनन्दनः।। | 9-9-63a 9-9-63b |
तथैव पाण्डवाः सर्वे धृष्टद्युम्नपुरोगमाः। अभ्यधावन्ततां सेनां विसृजन्तः शिताञ्शरान्।। | 9-9-64a 9-9-64b |
पाण्डवैरवकीर्णानां सम्मोहः समजायत। न च जज्ञुस्त्वनीकानि दिशो वा विदिशस्तथा।। | 9-9-65a 9-9-65b |
आपूर्यमाणा निशितैः शरैः पाण्डवचोदितैः। हतप्रवीरा विध्वस्ता वार्यमाणा समन्ततः। कौरव्यवध्यत चमूः पाण्डुपुत्रैर्महारथैः।। | 9-9-66a 9-9-66b 9-9-66c |
तथैव पाण्डवं सैन्यं शरै राजन्समन्ततः। रणेऽहन्यत पुत्रैस्ते शतशोऽथ सहस्रशः।। | 9-9-67a 9-9-67b |
ते सेने भृशसन्तप्ते वध्यमाने परस्परम्। व्याकुले समपद्येतां वर्षासु सरिताविव।। | 9-9-68a 9-9-68b |
आविवेश ततस्तीव्रं तावकानां महद्भयम्। पाण्डवानां च राजेन्द्र तथाभूते महाहवे।। | 9-9-69a 9-9-69b |
।। इति श्रीमन्महाभारतेयथा शल्यपर्वणि शल्यवधपर्वणि अष्टादशदिवसयुद्धे नवमोऽध्यायः।। 9 ।। |
9-9-9 चित्रसेनः कर्णपुत्रः।। 9-9-9 नवमोऽध्यायः।। 9 ।।
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