महाभारतम्-09-शल्यपर्व-007
पठन सेटिंग्स
← शल्यपर्व-006 | महाभारतम् नवमपर्व महाभारतम्-09-शल्यपर्व-007 वेदव्यासः |
शल्यपर्व-008 → |
उभयसैन्यानां व्यूहरचनापूर्वकं द्वन्द्वीभूय युद्धाय निर्गमनम्।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 9-7-1x |
व्यतीतायां रजन्यां तु राजा दुर्योधनस्तदा। अब्रवीत्तावकान्सर्वान्सन्नह्यन्तां महारथाः।। | 9-7-1a 9-7-1b |
राज्ञश्च मतमाज्ञाय समनह्यत सा चमूः। अयोजयन्रथांस्तूर्णं पर्यधावंस्तथा परे।। | 9-7-2a 9-7-2b |
अकल्प्यन्त च मातङ्गाः समनह्यन्त पत्तयः। हयानास्तरणोपेतांश्चक्रुरन्ये सहस्रशः।। | 9-7-3a 9-7-3b |
वादित्राणां च निनदः प्रादुरासीद्विशाम्पते। योधानां सैन्यमुख्यानामन्योन्यं प्रतिगर्जताम्।। | 9-7-4a 9-7-4b |
ततो बलानि सर्वाणि हतशिष्टानि भारत। सन्नद्धानि व्यदृश्यन्त मृत्युं कृत्वा निवर्तनम्।। | 9-7-5a 9-7-5b |
शल्यं सेनापतिं कृत्वा मद्रराजं महारथाः। प्रविभज्य बलं सर्वमनीकेषु व्यवस्थिताः।। | 9-7-6a 9-7-6b |
ततः सर्वे समागम्य पुत्रेण तव सैनिकाः। कृपश्च कृतवर्मा च द्रौणिः शल्योऽथ सौबलः। अन्ये च पार्थिवाः शेषाः समयं चक्रुरादृताः।। | 9-7-7a 9-7-7b 9-7-7c |
`अद्याचार्यसुतो द्रौणिर्नैको युध्येत शत्रुभिः'। न न एकेन योद्धव्यं कथञ्चिदपि पाण्डवैः।। | 9-7-8a 9-7-8c |
यो ह्येकः पाण्डवैर्युध्येद्यो वा युध्यन्तमुत्सृजेत्। स पञ्चभिर्भवेद्युक्तः पातकैश्चोपपातकैः। अन्योन्यं परिरक्षद्भिर्योद्धव्यं सहितैश्च नः।। | 9-7-9a 9-7-9b 9-7-9c |
एवं ते समयं कृत्वा सर्वे तत्र महारथाः। मद्रराजं पुरस्कृत्य तूर्णमभ्यद्रवन्परान्।। | 9-7-10a 9-7-10b |
तथैव पाण्डवा राजन्व्यूह्य सैन्यं महारणे। अभ्ययुः कौरवान्युद्धे योत्स्यमानाः समन्ततः।। | 9-7-11a 9-7-11b |
ततो बलं समभवत्क्षुब्धार्णवसमस्वनम्। समुद्भूतार्णवाकारमुदीर्णरथकुञ्जरम्।। | 9-7-12a 9-7-12b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 9-7-13x |
द्रोणस्य चैव भीष्मस्य राधेयस्य च मे श्रुतम्। पातनं शंस मे भूयः शल्यस्याथ सुतस्य मे।। | 9-7-13a 9-7-13b |
कथं रणे हतः शल्यो धर्मराजेन सञ्जय। भीमेन च महाबाहुः पुत्रो दुर्योधनो मम।। | 9-7-14a 9-7-14b |
सञ्जय उवाच। | 9-7-15x |
क्षयं मनुष्यदेहानां तथा नागाश्वसङ्क्षयम्। शृणु राजन्स्थिरो भूत्वा सङ्ग्रामं शंसतो मम।। | 9-7-15a 9-7-15b |
आशा बलवती राजन्पुत्राणां तेऽभवत्तदा।। | 9-7-16a |
हते द्रोणे च भीष्मे च सूतपुत्रे च पातिते। शल्यः पार्थान्रणे सर्वान्निहनिष्यति मारिष।। | 9-7-17a 9-7-17b |
तामाशां हृदये कृत्वा समाश्वस्य च भारत। मद्रराजं च समरे समाश्रित्य महारथम्। नाथवन्तं तदाऽऽत्मानममन्यत सुतस्तव।। | 9-7-18a 9-7-18b 9-7-18c |
यदा कर्णे हते पार्थाः सिंहनादं प्रचक्रिरे। तदा राजन्धार्तराष्ट्रान्प्रविवेश महद्भयम्।। | 9-7-19a 9-7-19b |
तान्समाश्वास्य तु तदा मद्रराजः प्रतापवान्। व्यूह्य व्यूहं महाराज सर्वतोभद्रमृद्धिमत्।। | 9-7-20a 9-7-20b |
प्रत्युद्ययौ रणे पार्थान्मद्रराजः प्रतापवान्। विधून्वन्कार्मुकं चित्रं भारघ्नं वेगवत्तरम्। रथप्रवरमास्थाय सैन्धवाश्वं महारथः।। | 9-7-21a 9-7-21b 9-7-21c |
तस्य सूतो महाराज रथस्थोऽशोभयद्रथम्। स तेन संवृतो वीरो रथेनामित्रकर्शनः। तस्थौ शूरो महाराज पुत्राणां ते भयप्रणुत्।। | 9-7-22a 9-7-22b 9-7-22c |
प्रयाणे मद्रराजोऽभून्मुखं व्यूहस्य दंशितः। मद्रकैः सहितो वीरैः कर्णपुत्रैश्च दुर्जयैः।। | 9-7-23a 9-7-23b |
सव्येऽभूत्कृतवर्मा च त्रिगर्तैः परिवारितः। गौतमो दक्षिणे पार्श्वे शकैश्च यवनैः सह।। | 9-7-24a 9-7-24b |
अश्वत्थामा पृष्ठतोऽभूत्काम्भोजैः परिवारितः। दुर्योधनोऽभवन्मध्ये रक्षितः कुरुपुङ्गवैः।। | 9-7-25a 9-7-25b |
हयानीकेन महता सौबलश्चापि संवृतः। प्रययौ सर्वसैन्येन कैतव्यश्च महारथः।। | 9-7-26a 9-7-26b |
पाण्डवाश्च महेष्वासा व्यूह्य सैन्यमरिन्दमाः। त्रिधाभूता महाराज तव सैन्यमुपाद्रवन्।। | 9-7-27a 9-7-27b |
धृष्टद्युम्नः शिखण्डी च सात्यकिस्च महारथः। शल्यस्य वाहिनीं हन्तुमभिदुद्रुवुराहवे।। | 9-7-28a 9-7-28b |
ततो युधिष्ठिरो राजा स्वेनानीकेन संवृतः। शल्यमेवाभिदुद्राव जिघांसुर्भरतर्षभः।। | 9-7-29a 9-7-29b |
हार्दिक्यं च महेष्वासमर्जुनः शत्रुपूगहा। संशप्तकगणांश्चैव वेगितोऽभिविदुद्रुवे।। | 9-7-30a 9-7-30b |
गौतमं भीमसेनो वै सोमकाश्च महारथाः। अभ्यद्रवन्त राजेनद्र जिघांसन्तः परान्युधि।। | 9-7-31a 9-7-31b |
माद्रीपुत्रौ तु शकुनिमुलूकं च महारथम्। ससैन्यौ सहसैन्यौ तावुपतस्थतुराहवे।। | 9-7-32a 9-7-32b |
तथैवायुतशो योधास्तावकाः पाण्डवान्रणे। अभ्यवर्तन्त सङ्क्रुद्धा विविधायुधपाणयः।। | 9-7-33a 9-7-33b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 9-7-34x |
हते भीष्मे हमेष्वासे द्रोणे कर्णे जयद्रथे। कुरुष्वल्पावशिष्टेषु पाण्डवेषु च संयुगे।। | 9-7-34a 9-7-34b |
संरब्धेषु च पार्थेषु पराक्रान्तेषु सञ्जय। मामकानां परेषां च किं शिष्टमभवद्बलम्।। | 9-7-35a 9-7-35b |
सञ्जय उवाच। | 9-7-36x |
यथा वयं परे राजन्युद्धाय समुपस्थिताः। यावच्चासीद्बलं शिष्टं सङ्ग्रामे तन्निबोध मे।। | 9-7-36a 9-7-36b |
एकादश सहस्राणि रथानां भरतर्षभ। दश दन्तिसहस्राणि सप्त चैव शतानि च।। | 9-7-37a 9-7-37b |
पूर्णे शतसहस्रे द्वे हयानां तत्र भारत। पत्तिकोट्यस्तथा तिस्रो बलमेतत्तवाभवत्।। | 9-7-38a 9-7-38b |
रथानां षट्सहस्राणि षट्सहस्राश्च कुञ्जराः। दश चाश्वसहस्राणि पत्तिकोटी च भारत।। | 9-7-39a 9-7-39b |
एतद्बलं पाण्डवानामभवच्छेषमाहवे। एत एव समाजग्मुर्युद्वाय भरतर्षभ।। | 9-7-40a 9-7-40b |
एवं विभज्य राजेन्द्र मद्रराजमते स्थिताः। पाण्डवान्प्रत्युदीयाम जयगृद्धाः प्रमन्यवः।। | 9-7-41a 9-7-41b |
तथैव पाण्डवाः शूराः समरे जितकाशिनः। उपयाता नरव्याघ्राः पाञ्चालाश्च यशस्विनः।। | 9-7-42a 9-7-42b |
एवमेते बलौघेन परस्परवधैषिणः। उपयाता नरव्याघ्राः पूर्वां सन्ध्यां प्रति प्रभो।। | 9-7-43a 9-7-43b |
ततः प्रववृते युद्धं घोररूपं भयानकम्। तावकानां परेषां च निघ्नतामितरेतरम्।। | 9-7-44a 9-7-44b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि शल्यवधपर्वणि सप्तमोऽध्यायः।। 7 ।। |
9-7-39 पत्तिकोटी इति द्विवचनम्।। 9-7-7 सप्तमोऽध्यायः।।
शल्यपर्व-006 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शल्यपर्व-008 |