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महाभारतम्-09-शल्यपर्व-010

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महाभारतम्-09-शल्यपर्व-010
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सङ्कुलयुद्धम्।। 1 ।।

सञ्जय उवाच। 9-10-1x
तस्मिन्विलुलिते सैन्ये वध्यमाने परस्परम्।
द्रवमाणेषु योधेषु विद्रवत्सु च दन्तिषु।।
9-10-1a
9-10-1b
कूजतां स्तनतां चैव पदातीनां महाहवे।
निहतेषु महाराज हयेषु बहुधा तदा।।
9-10-2a
9-10-2b
प्रक्षये दारुणे घोरे संहारे सर्वदेहिनाम्।
नानाशस्त्रसमावापे व्यतिषक्तरथद्विपे।।
9-10-3a
9-10-3b
हर्षणे युद्धशौण्डानां भीरूणां भयवर्धने।
गाहमानेषु योधेषु परस्परवधैषिषु।।
9-10-4a
9-10-4b
प्राणादाने महाघोरे वर्तमाने दुरोदरे।
सङ्ग्रामे घोररूपे तु यमराष्ट्रविवर्धने।।
9-10-5a
9-10-5b
पाण्डवास्तावकं सैन्यं व्यधमन्निशितैः शरैः।
तथैव तावका योधा जघ्नुः पाण्डवसैनिकान्।।
9-10-6a
9-10-6b
तस्मिंस्तथा वर्तमाने युद्धे भीरुभयावहे।
पूर्वाह्णे चापि सम्प्राप्ते भास्करोदयनं प्रति।।
9-10-7a
9-10-7b
लब्धलक्षाः परे राजन्रक्षितास्तु महात्मना।
अयोधयंस्तव बलं मृत्युं कृत्वा निवर्तनम्।।
9-10-8a
9-10-8b
बलिभिः पाण्डवैर्दृप्तैर्लैब्धलक्षैः प्रहारिभिः।
कौरव्यसीदत्पृतना मृगीवाग्निबयाकुला।।
9-10-9a
9-10-9b
तां दृष्ट्वा सीदतीं सेनां पङ्के गामिव दुर्बलाम्।
उज्जिहीर्षुस्तदा शल्यः प्रायात्पाण्डुसुतान्प्रति।।
9-10-10a
9-10-10b
मद्रराजः सुसङ्क्रुद्धो गृहीत्वा धनुरुत्तमम्।
अभ्यद्रवत सङ्ग्रामे पाण्डवानाततायिनः।।
9-10-11a
9-10-11b
पाण्डवा अपि भूपाल समरे जितकाशिनः।
मद्रराजं समासाद्य बिभिदुर्निशितैः शरैः।।
9-10-12a
9-10-12b
ततः शरशतैस्तीक्ष्णैर्मद्रराजो महारथः।
अर्दयामास तां सेनां धर्मराजस्य पश्यतः।।
9-10-13a
9-10-13b
प्रादुरासन्निमित्तानि नानारूपाण्यनेकशः।
चचाल शब्दं कुर्वाणा मही चापि सपर्वता।।
9-10-14a
9-10-14b
[सदण्डशूला दीप्ताग्रा दीर्यमाणाः समन्ततः।]
उल्का भूमिं दिवः पेतुराहत्य रविमण्डलम्।।
9-10-15a
9-10-15b
मृगाश्च महिषाश्चापि पक्षिणश्च विशाम्पते।
अपसव्यं तदा चक्रुः सेनां ते बहुशो नृप।।
9-10-16a
9-10-16b
[भृगुसूनुधरापुत्रौ शशिजेन समन्वितौ।
चरमं पाण्डुपुत्राणां पुरस्तात्सर्वभूभुजाम्।।
9-10-17a
9-10-17b
शस्त्राग्रेष्वभवज्ज्वाला नेत्राण्याहत्य वर्षती।
शिरः स्वलीयन्त भृशं काकोलूकाश्च केतुषु]।।
9-10-18a
9-10-18b
ततस्तद्युद्धमत्युग्रमभवत्सहचारिणाम्।
तथा सर्वाण्यनीकानि सन्निपत्य जनाधिप।।
9-10-19a
9-10-19b
अभ्यघ्नत्कौरवो राजा पाण्डवानामनीकिनीम्।
शल्यस्तु शरवर्षेण वर्षन्निव सहस्रदृक्।।
9-10-20a
9-10-20b
अभ्यवर्षत धर्मात्मा कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम्।
भीमसेनं शरैश्चापि रुक्मपुङ्खैः शिलाशितैः।।
9-10-21a
9-10-21b
द्रौपदेयांस्तथा सर्वान्माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ।
धृष्टद्युम्नं च शैनेयं शिखण्डिनमथापि च।।
9-10-22a
9-10-22b
एकैकं दशभिर्बाणैर्विव्याध स महाबलः।
ततोऽसृजद्बाणवर्षं घर्मान्ते मघवानिव।।
9-10-23a
9-10-23b
ततः प्रभद्रका राजन्सोमकाश्च सहस्रशः।
पतिताः पात्यमानाश्च दृश्यन्ते शल्यसायकैः।।
9-10-24a
9-10-24b
भ्रमराणामिव व्राताः शलभानामिव व्रजाः।
हादिन्य इव मेघेभ्यः शल्यस्य न्यपतञ्शराः।।
9-10-25a
9-10-25b
द्विरदास्तुरगाश्चार्ताः पत्तयो रथिनस्तथा।
शल्यस्य बाणैरपतन्बभ्रमुर्व्यनदंस्तथा।।
9-10-26a
9-10-26b
आविष्ट इव मद्रेशो मन्युना पौरुषेण च।
प्राच्छादयदरीन्सङ्ख्ये कालसृष्ट इवान्तकः।
विनर्दमानो मद्रेशो मेघहादो महाबलः।।
9-10-27a
9-10-27b
9-10-27c
सा वध्यमाना शल्येन पाण्डवानामनीकिनी।
अजातशत्रुं कौन्तेयमभ्यधावद्युधिष्ठिरम्।।
9-10-28a
9-10-28b
तां सम्मर्द्य शतैः सङ्ख्ये लघुहस्तः शितैः शरैः।
बाणवर्षेण महता युधिष्ठिरमताडयत्।।
9-10-29a
9-10-29b
तमापतन्तं जात्यश्वैः क्रुद्धो राजा युधिष्ठिरः।
अवारयच्छरैस्तीक्ष्णैर्महाद्विपमिवाङ्कुशैः।।
9-10-30a
9-10-30b
तस्य शल्यः शरं घोरं मुमोचाशीविषोपमम्।
सोऽभ्यविध्यन्महात्मानं वेगेनाभ्यपतच्च गाम्।।
9-10-31a
9-10-31b
ततो वृकोदरः क्रुद्धः शल्यं विव्याध सप्तभिः।
पञ्चभिः सहदेवस्तु नकुलो दशभिः शरैः।।
9-10-32a
9-10-32b
द्रौपदेयाश्च शत्रुघ्नं शूरमार्तायनिं शरैः।
अभ्यवर्षन्महाराज मेघा इव महीधस्म्।।
9-10-33a
9-10-33b
ततो दृष्ट्वा वार्यमाणं शल्यं पार्थैः समन्ततः।
कृतवर्मा कृपश्चैव सङ्क्रुद्धावभ्यधावताम्।।
9-10-34a
9-10-34b
उलूकश्च महावीर्यः शकुनिंश्चापि सौबलः।
समागम्याथ शनकैरश्वत्थामा महाबलः।
तव पुत्राश्च कार्त्स्न्येन जुगुपुः शल्यमाहवे।।
9-10-35a
9-10-35b
9-10-35c
भीमसेनं त्रिभिर्विद्धा कृतवर्मा शिलीमुखैः।
बाणवर्षेण महता क्रुद्धरूपमवारयत्।
धृष्टद्युम्नं ततः क्रुद्धो बाणवर्षैरपीडयत्।।
9-10-36a
9-10-36b
9-10-36c
द्रौपदेयांश्च शकुनिर्यमौ च द्रौणिरभ्ययात्।। 9-10-37a
दुर्योधनो युधांश्रेष्ठ आहवे केशवार्जुनौ।
समभ्ययादुग्रतेजाः शरैश्चाप्यहनद्बली।।
9-10-38a
9-10-38b
एवं द्वन्द्वशतान्यासंस्त्वदीयानां परैः सह।
घोररूपाणि चित्राणि तत्रतत्र विशाम्पते।।
9-10-39a
9-10-39b
ऋक्षवर्णाञ्जघानाश्वान्भोजो भीमस्य संयुगे।
सोऽवतीर्य रथोपस्थाद्धताश्वात्पाण्डुनन्दनः।
कालो दण्डमिवोद्यम्य गदापाणिरयुध्यत।।
9-10-40a
9-10-40b
9-10-40c
प्रमुखे सहदेवस्य जघानाश्वान्स मद्रराट्।
ततः शल्यस्य तनयं सहदेवोऽसिनावधीत्।।
9-10-41a
9-10-41b
गौतमः पुनराचार्यो धृष्टद्युम्नमयोधयत्।
असम्भ्रान्तमसम्भ्रान्तो यत्नवान्यत्नवत्तरम्।।
9-10-42a
9-10-42b
द्रौपदेयांस्तथा वीरानेकैकं दशभिः शरैः।
अविद्ध्यदाचार्यसुतो नातिक्रुद्धो हसन्निव।।
9-10-43a
9-10-43b
[पुनश्च भीमसेनस्य जघानाश्वांस्तथाऽऽहवे।
सोऽवतीर्य रथात्तूर्णं हताश्वः पाण्डुनन्दनः।।
9-10-44a
9-10-44b
कालो दण्‍डमिवोद्यम्य गदां क्रुद्धो महाबलः।
पोथयामास तुरगान्रथं च कृतवर्मणः।
कृतवर्मा त्ववप्लुत्य रथात्तस्मादपाक्रमत्।।]
9-10-45a
9-10-45b
9-10-45c
शल्योऽपि राजन्सङ्क्रुद्धो निघ्नन्सोमकपाण्डवान्।
पुनरेव शितैर्बाणैर्युधिष्ठिरमपीडयत्।।
9-10-46a
9-10-46b
तस्य भीमो रणे क्रुद्धः सन्दश्य दशनच्छदम्।
विनाशायाभिसन्धाय गदामादाय वीर्यवान्।।
9-10-47a
9-10-47b
यमदण्डप्रतीकाशां कालरात्रिमिवोद्यताम्।
गजवाजिमनुष्याणां देहान्तकरणीमति।।
9-10-48a
9-10-48b
हेमपट्टपरिक्षिप्तामुल्कां प्रज्वलितामिव।
शैक्यां व्यालीमिवात्युग्रां वज्रकल्पामयोमयीम्।।
9-10-49a
9-10-49b
चन्दनागुरुपङ्काक्तां प्रमदामीप्सितामिव।
वसामेदोपदिग्धाङ्गीं जिह्वां वैवस्वतीमिव।।
9-10-50a
9-10-50b
पटुघण्टाशतरवां वासवीमशनीमिव।
निर्मुक्ताशीविषाकारां पृक्तां गजमदैरपि।।
9-10-51a
9-10-51b
त्रासनीं सर्वभूतानां स्वसैन्यपरिहर्षिणीम्।
मनुष्यलोके विख्यातां गिरिशृङ्गविदारणीम्।।
9-10-52a
9-10-52b
यया कैलासभवने महेश्वरसखं बली।
आह्वयामास कौन्तेयः सङ्क्रुद्धमलकाधिपम्।।
9-10-53a
9-10-53b
यया मायामयान्दृप्तान्सुबहून्धनदालये।
जघान गुह्यकान्क्रुद्धो मन्दारार्थे महाबलः।
निवार्यमाणो बहुभिर्द्रौपद्याः प्रियमास्थितः।।
9-10-54a
9-10-54b
9-10-54c
तां वज्रमणिरत्नौघकल्माषां वज्रगौरवाम्।
समुद्यम्य महाबाहुः शल्यमभ्यपतद्रणे।।
9-10-55a
9-10-55b
गदया युद्धकुशलस्तया दारुणनादया।
पोथयामास शल्यस्य चतुरोऽश्वान्महाजवान्।।
9-10-56a
9-10-56b
ततः शल्यो रणे क्रुद्धः पीने वक्षसि तोमरम्।
निचखान नदन्वीरोवर्म भित्त्वा च सोभ्ययात्।।
9-10-57a
9-10-57b
वृकोदरस्त्वसम्भ्रान्तस्तमेवोद्धृत्य तोमरम्।
यन्तारं मद्रराजस्य निर्बिभेद तदा हृदि।।
9-10-58a
9-10-58b
स भिन्नवर्मा रुधिरं वमन्वित्रस्तमानसः।
पपाताभिमुखो भीमं मद्रराजस्त्वपाक्रमत्।।
9-10-59a
9-10-59b
कृतप्रतिकृतं दृष्ट्वा शल्यो विस्मितमानसः।
गदामाश्रित्य धर्मात्मा प्रत्यमित्रमवैक्षत।।
9-10-60a
9-10-60b
ततः सुमनसः पार्था भीमसेनमपूजयन्।
ते दृष्ट्वा कर्म सङ्ग्रामे घोरमक्लिष्टकर्मणः।।
9-10-61a
9-10-61b
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि
शल्यवधपर्वणि अष्टादशदिवसयुद्धे
दशमोऽध्यायः।। 10 ।।

9-10-17 भृग्विति। सर्वभूभुजां कृत्स्नपृथ्वीपतीनां पाण्डुपुत्राणां पाण्डवानां चरमं विलोमगणनया प्रथमं युधिष्ठिरमभिलक्ष्य शक्रभौमबुधाः सप्तमस्थाने बलावहाः आसन्। एतच्च सर्वभूभुजामिति फलस्य जनकमित्यर्थः।। 9-10-18 आहत्य स्पृष्ट्वा। वर्षती भुवि पतन्ती।। 9-10-49 परिक्षिप्तां परिच्छन्नाम्।। 9-10-51 वासवीमैन्द्रीम्। रासनीमिति पाठे शब्दवतीम्।। 9-10-53 महेश्वरसखं कुबेरम्।। 9-10-10 दशमोऽध्यायः।।

शल्यपर्व-009 पुटाग्रे अल्लिखितम्। शल्यपर्व-011