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महाभारतम्-09-शल्यपर्व-054

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महाभारतम्-09-शल्यपर्व-054
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दलभद्राय महर्षिभिः कुरुक्षेत्रमहिमानुवर्णनम्।। 1 ।।

ऋषय ऊचुः। 9-54-1x
प्रजापतेरुत्तरवेदिरुच्यते
सनातनं राम समन्तपञ्चकम्।
समीजिरे यत्र पुरा दिवौकसो
वरेण सत्रेण महावरप्रदाः।।
9-54-1a
9-54-1b
9-54-1c
9-54-1d
पुरा च राजर्षिवरेण धीमता
बहूनि वर्षाण्यमितेन तेजसा।
प्रकृष्टमेतत्कुरुणा महात्मना
ततः कुरुक्षेत्रमितीह पप्रथे।।
9-54-2a
9-54-2b
9-54-2c
9-54-2d
राम उवाच। 9-54-3x
किमर्थं कुरुणा कृष्टं क्षेत्रमेतन्महात्मना।
एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं कथ्यमानं तपोधनाः।।
9-54-3a
9-54-3b
ऋषय ऊचुः। 9-54-4x
पुरा किल कुरुं राम कर्षन्तं सततोत्थितम्।
अभ्येत्य शक्रस्त्रिदिवात्पर्यपृच्छत कारणम्।।
9-54-4a
9-54-4b
इन्द्र उवाच। 9-54-5x
किमिदं वर्तते कर्म प्रयत्नेन परेण च।
राजर्षे किमभिप्रेत्य येनेयं कृष्यते क्षितिः।।
9-54-5a
9-54-5b
कुरुरुवाच। 9-54-6x
इह ये पुरुषाः क्षेत्रे जनिष्यन्ति शतक्रतो।
ते गमिष्यन्ति सुकृतां लोकान्पापविवर्जितान्।।
9-54-6a
9-54-6b
अपहास्य तु तं शक्रो जगाम त्रिदिवं पुनः।
राजर्षिरप्यनिर्विण्णः कर्षत्येव वसुन्धराम्।।
9-54-7a
9-54-7b
आगम्यागम्य चैवैनं भूयोभूयोऽपहास्य च।
शत्रक्रतुरनिर्विण्णं पृष्ट्वापृष्ट्वा जगाम ह।।
9-54-8a
9-54-8b
यदा तु तपसोग्रेण चकर्ष वसुधां नृपः।
ततः शक्रोऽब्रवीद्देवान्राजर्षेर्यच्चिकीर्षितम्।।
9-54-9a
9-54-9b
एतच्छ्रुत्वाऽब्रुवन्देवाः सहस्राक्षमिदं वचः।
वरेण च्छन्द्यतां शक्र राजर्षिर्यदि शक्यते।।
9-54-10a
9-54-10b
यदि ह्यत्र प्रसूता वै स्वर्गं गच्छन्ति मानवाः।
अस्माननिष्ट्वा क्रतुभिर्भागो नो न भविष्यति।।
9-54-11a
9-54-11b
आगम्य च ततः शक्रस्तदा राजर्षिमब्रवीत्।
अलं खेदेन भवतः क्रियतां वचनं मम।।
9-54-12a
9-54-12b
मानवा ये निराहारा देहं त्यक्ष्यन्त्यतन्द्रिताः।
युधि वा निहताः सम्यगपि तिर्यग्गता नृप।।
9-54-13a
9-54-13b
ते स्वर्गभाजो राजेन्द्र भवन्त्विह हतास्तु ये।
तथास्त्विति ततो राजा कुरुः शक्रमुवाच ह।।
9-54-14a
9-54-14b
ततस्तमभ्यनुज्ञाप्य प्रहृष्टेनान्तरात्मना।
जगाम त्रिदिवं भूयः क्षिप्रं बलनिषूदनः।।
9-54-15a
9-54-15b
एवमेतद्यदुश्रेष्ठ कृष्टं राजर्षिणा पुरा।
शक्रेण चाभ्यनुज्ञातः पुण्ये प्राणान्मुमोच ह।।
9-54-16a
9-54-16b
[शक्रेण चाभ्यनुज्ञातं ब्राह्मद्यैश्च सुरैस्तथा।
नातः परतरं पुण्यं भूमेः स्थानं भविष्यति।।
9-54-17a
9-54-17b
इह तप्स्यन्ति ये केचित्तपः परमकं नराः।
देहत्यागेन ते सर्वे यास्यन्ति ब्रह्मणः क्षयम्।।
9-54-18a
9-54-18b
ये पुनः पुण्यभाजो वै दानं दास्यन्ति मानवाः।
तेषां सहस्रगुणितं भविष्यत्यचिरेण वै।।
9-54-19a
9-54-19b
ये चेह नित्यं मनुजा निवत्स्यन्ति शुभैषिणः।
यमस्य विषयं ते तु न द्रक्ष्यन्ति कदाचन।।
9-54-20a
9-54-20b
यक्ष्यन्ति ये च क्रतुभिर्महद्भिर्मनुजेश्वराः।
तेषां त्रिविष्टपे वासो यावद्भूमिर्धरिष्यति।।]
9-54-21a
9-54-21b
अपि चात्र स्वयं शक्रो जगौ गाथां सुराधिपः।
कुरुक्षेत्रनिबद्धां वै तां शृणुष्व हलायुध।।
9-54-22a
9-54-22b
पांसवोऽपि कुरुक्षेत्राद्वायुना समुदीरिताः।
अपि दुष्कृतकर्माणं नयन्ति परमां गतिम्।।
9-54-23a
9-54-23b
`कुरुक्षेत्रं गमिष्यामि कुरुक्षेत्रे वसाम्यहम्।
इत्येवं निश्चितो भूत्वा तेन स्वर्गं गमिष्यति।।
9-54-24a
9-54-24b
कुरुक्षेत्रं गमिष्यामि कुरुक्षेत्रे वसाम्यहम्।
तथा स्थानं च मौनं च वीरासनमुपास्महे।।
9-54-25a
9-54-25b
एवं प्रलपमानोऽपि चिन्तयंश्च मुहुर्मुहुः।
दूरस्थो यदि वा तिष्ठँल्लभेत्स्वर्गं सुनिश्चितम्'।।
9-54-26a
9-54-26b
सुरर्षभा ब्राह्मणसत्तमाश्च
तथा नृगाद्या नरदेवमुख्याः।
इष्ट्वा महार्हैः क्रतुभिर्नृसिंह
सन्त्यज्य देहान्सुगतिं प्रपन्नाः।।
9-54-27a
9-54-27b
9-54-27c
9-54-27d
तंरन्तुकारन्तुकयोर्यदन्तरं
रामहदानां च मचक्रुकस्य च।
एतत्कुरुक्षेत्रसमन्तपञ्चकं
प्रजापतेरुत्तरवेदिरुच्यते।।
9-54-28a
9-54-28b
9-54-28c
9-54-28d
शिवं महापुण्यमिदं दिवौकसां
सुसम्मतं स्वर्गगुणैः समन्वितम्।
अतश्च सर्वे निहता नृपा रणे
यास्यन्ति पुण्यां गतिमक्षयां सदा।।
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9-54-29c
9-54-29d
[इत्युवाच स्वयं शक्रः सह ब्रह्मादिभिस्तदा।
तच्चानुमोदितं सर्वं ब्रह्मविष्णुमहेष्वरैः]।।
9-54-30a
9-54-30b
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि
ह्रदप्रवेशपर्वणि चतुःपञ्चाशत्तमोऽध्यायः।। 54 ।।

9-54-2 पप्रथे प्रसिद्धं बभूव।। 9-54-3 परिष्यन्ति शतक्रतो इति झ. पाठः।। 9-54-11 प्रमीता वै इति झ.पाठः।। 9-54-18 ब्रह्मणः क्षयं निवासम्।। 9-54-28 आरुन्दुकारुन्दकयोर्यदन्तरं रामह्रदाना च समन्दुकस्य इति क.पाठः। परमन्दुकस्येति ङ.छ.पाठः।। 9-54-54 चतुःपञ्चाशत्तमोऽध्यायः।।

शल्यपर्व-053 पुटाग्रे अल्लिखितम्। शल्यपर्व-055