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महाभारतम्-09-शल्यपर्व-025

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महाभारतम्-09-शल्यपर्व-025
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भीमेनावशिष्टानां दुर्योधनानुजानां वधः।। 1 ।।

सञ्जय उवाच। 9-25-1x
गजानीके हते तस्मिन्पाण्डुपुत्रेण भारत।
वध्यमाने बले चैव भीमसेनेन संयुगे।।
9-25-1a
9-25-1b
चरन्तं च प्रपश्यामो भीमसेनमरिन्दमम्।
दण्डहस्तं यथा क्रुद्वमन्तकं प्राणहारिणम्।।
9-25-2a
9-25-2b
समेत्य समरे राजन्हतशेषाः सुतास्तव।
अदृश्यमाने कौरव्ये पुत्रे दुर्योधने तव।
सोदर्याः सहिता भूत्वा भीमसेनमुपाद्रवन्।।
9-25-3a
9-25-3b
9-25-3c
श्रुतर्वा सञ्जयश्चैव जयत्सेनः श्रुतान्तकः।
दुर्विमोचनकश्चैव तथा दुर्विषहो बली।।
9-25-4a
9-25-4b
दुर्मर्षणः सुजातश्च जैत्रो भूरिबलो रविः।
इत्येते सहिता भूत्वा तव पुत्राः समन्ततः।
भीमसेनमभिद्रुत्य रुरुधुः सर्वतो दिशम्।।
9-25-5a
9-25-5b
9-25-5c
ततो भीमो महाराज स्वरथं पुनरास्थितः।
मुमोच निशितान्बाणान्पुत्राणां तव मर्मसु।।
9-25-6a
9-25-6b
ते कीर्यमाणा भीमेन पुत्रास्तव महारणे।
भीमसेनमुपासेदुः प्रवाता इव कुञ्जरम्।।
9-25-7a
9-25-7b
ततः क्रुद्धो रणे भीमः शिरो दुर्मर्षणस्य ह।
क्षुरप्रेण प्रमथ्याशु पातयामास भूतले।।
9-25-8a
9-25-8b
ततोऽपरेण भल्लेन सर्वावरणभेदिना।
श्रुतान्तमवधीद्बीमस्तव पुत्रं महारथः।।
9-25-9a
9-25-9b
जयत्सेनं ततो विद्वा नाराचेन हसन्निव।
पातयामास कौरव्यं रथोपस्थादरिन्दमः।
स पपात रथाद्राजन्भूमौ तूर्णं ममार च।।
9-25-10a
9-25-10b
9-25-10c
श्रुतर्वा तु ततो भीमं क्रुद्धो विव्याध मारिष।
शतेन गृघ्रवाजानां शराणां नतपर्वणाम्।।
9-25-11a
9-25-11b
ततः क्रुद्धो रणे भीमो जैत्रं भूरिबलं रविम्।
त्रीनेतांस्त्रिभिरानर्च्छद्विषाग्निप्रतिमैः शरैः।।
9-25-12a
9-25-12b
ते हता न्यपतन्भूमौ स्यन्दनेभ्यो महारथाः।
वसन्ते पुष्पशबला निकृत्ता इव किंशुकाः।।
9-25-13a
9-25-13b
ततोऽपरेण भल्लेन तीक्ष्णेन च परन्तपः।
दुर्विमोचनमाहत्य प्रेषयामास मृत्यवे।।
9-25-14a
9-25-14b
स हतः प्रापतद्भूमौ स्वरथाद्रथिनां वरः।
गिरेस्तु कूटजो भग्नो मारुतेनेव पादपः।।
9-25-15a
9-25-15b
दुष्प्रधर्षं ततश्चैव सुजातं च सुतं तव।
एकैकं न्यहनत्सङ्ख्ये द्वाभ्यांद्वाभ्यां चमूमुखे।
तौ शिलीमुखविद्धाङ्गौ पेततू रथसत्तमौ।।
9-25-16a
9-25-16b
9-25-16c
ततः पतन्तं समरे अभिवीक्ष्य सुतं तव।
भल्लेन पातयामास भीमो दुर्विपहं रणे।।
9-25-17a
9-25-17b
स पपात हतो बाहात्पश्यतां सर्वधन्विनाम्।। 9-25-18a
दृष्ट्वा तु निहतान्भ्रातॄन्वहूनेकेन संयुगे।
अमर्षधशमापसः श्रुतर्वा भीममभ्ययात्।।
9-25-19a
9-25-19b
विक्षिपन्सुमहच्चापं कार्तखरविभूषितम्।
विमृजन्सायकांश्चैव विषाग्निप्रतिमान्वहून्।।
9-25-20a
9-25-20b
स तु राजन्धनुश्छित्त्वा पाण्डवस्य महामृधे।
अथैनं छिन्नधन्वानं विंशत्या समवाकिरत्।।
9-25-21a
9-25-21b
ततोऽन्यद्धनुरादाय भीमसेनो महाबलः।
अवाकिरत्तव सुतं तिष्ठतिष्ठेति चाब्रवीत्।।
9-25-22a
9-25-22b
महदासीत्तयोर्युद्धं चित्ररूपं भयानकम्।
बादृशं समरे पूर्वं तम्भवासवयोर्युधि।।
9-25-23a
9-25-23b
तयोस्तत्र शितैर्गुक्तैर्यमदण्डनिभैः शरैः।
समाच्छकाधारा सर्वा त्वं दिशो विदिशस्तथा।।
9-25-24a
9-25-24b
अतः श्रुतर्वा सङ्क्रुद्धो धनुरादाय सायकैः।
भीमसेनं रणे राजन्बाह्वोरुरसि चार्पयत्।।
9-25-25a
9-25-25b
सोऽतिविद्धो महाराज तव पुत्रेण धन्विना।
भीमः सञ्चुक्षुभे क्रुद्धः पर्वणीव महोदधिः।।
9-25-26a
9-25-26b
ततो भीमो रुषाविष्टः पुत्रस्य तव मारिष।
सारथिं चतुरश्चाश्वाञ्शरैर्निन्ये यमक्षयम्।।
9-25-27a
9-25-27b
विरथं तं समालक्ष्य विशिखैर्लोमवाहिभिः।
अवाकिरदमेयात्मा दर्शयन्पाणिलाघवम्।।
9-25-28a
9-25-28b
श्रुतर्वा विरथो राजन्नाददे खङ्गचर्मणी।
अथास्याददतः खह्गं शतचन्द्रं च भानुमत्।
क्षुरप्रेणं शिरः कायात्पातयामास पाण्डवः।।
9-25-29a
9-25-29b
9-25-29c
छिन्नोत्तमाङ्गस्य ततः क्षुरप्रेण महात्मना।
पपात कायः स्वरथाद्वसुधामनुनादयन्।।
9-25-30a
9-25-30b
तस्मिन्निपतिते वीरे तावका भयमोहिताः।
अभ्यद्रवन्त सङ्ग्रामे भीमसेनं युयुत्सवः।।
9-25-31a
9-25-31b
तानापतत एवाशु हतशेषाद्बलार्णवात्।
दंशितान्प्रतिजग्राह भीमसेनः प्रतापवान्।।
9-25-32a
9-25-32b
ते तु तं वै समासाद्य परिवव्रुः समन्ततः।। 9-25-33a
ततस्तु संवृतो भीमस्तावकान्निशितैः शरैः।
पीडयामास तान्सर्वान्सहस्राक्ष इवासुरान्।।
9-25-34a
9-25-34b
ततः पञ्चशतान्हत्वा सवरूथान्महारथान्।
जघान कुञ्जरानीकं पुनः सप्तशतं युधि।।
9-25-35a
9-25-35b
हत्वा शतसहस्राणि पत्तीनां परमेषुभिः।
वाजिनां च शतान्यष्टौ पाण्डवः स्म विराजते।।
9-25-36a
9-25-36b
भीमसेनस्तु कौन्तेयो हत्वा युद्धे सुतांस्तव।
मेने कृतार्थमात्मानं सफलं जन्म च प्रभो।।
9-25-37a
9-25-37b
तं तथा युध्यमानं च विनिघ्नन्तं च तावकान्।
ईक्षितुं नोत्सहन्ते स्म तव सैन्या नराधिप।।
9-25-38a
9-25-38b
विद्राव्य च कुरून्सर्वांस्तांश्च हत्वा पदानुगान्।
दोर्भ्यां शब्दं ततश्चक्रे त्रासयानो महाद्विपान्।।
9-25-39a
9-25-39b
हतभूयिष्ठयोधा तु तव सेना विशामम्पते।
किञ्चिच्छेषा महाराज कृपणं समपद्यत।।
9-25-40a
9-25-40b
।। इति श्रीमन्महाभारते
शल्यपर्वणि शल्यवधपर्वणि
अष्टादशदिवसयुद्धे पञ्चविंशोऽध्यायः।। 25 ।।

9-25-7 प्रवणादिव कुञ्जरमिति झ.पाठः।। 9-25-25 पञ्चविंशोऽध्यायः।।

शल्यपर्व-024 पुटाग्रे अल्लिखितम्। शल्यपर्व-026