महाभारतम्-09-शल्यपर्व-015
दिखावट
| ← शल्यपर्व-014 | महाभारतम् नवमपर्व महाभारतम्-09-शल्यपर्व-015 वेदव्यासः |
शल्यपर्व-016 → |
शल्ययुधिष्ठिरयोर्युद्धम्।। 1 ।।
| सञ्जय उवाच। | 9-15-1x |
|
ततः सेना तव विभो मद्रराजपुरस्कृता। पुनरभ्यद्रवत्पार्थान्वेगेन महता रणे।। | 9-15-1a 9-15-1b |
|
पीडितास्तावकाः सर्वे प्रधावन्तो रणोत्कटाः। क्षणेन चैव पार्थांस्ते बहुत्वात्समलोडयन्।। | 9-15-2a 9-15-2b |
|
ते वध्यमानाः समरे पाण्डवा नावतस्थिरे। क्षणेनैव महाराज पश्यतोः कृष्णपार्थयोः।। | 9-15-3a 9-15-3b |
|
ततो धनञ्जयः क्रुद्धः कृपं सह पदानुगैः। अवाकिरच्छरौघेण कृतवर्माणमेव च।। | 9-15-4a 9-15-4b |
|
शकुनिं सहदेवस्तु सहसैन्यमवाकिरत्। नकुलः पार्श्वतः स्थित्वा मद्रराजमयोधयत्।। | 9-15-5a 9-15-5b |
|
द्रौपदेया नरेन्द्राश्च भूयिष्ठान्समवारयन्। द्रोणपुत्रं च पाञ्चाल्यः शिखण्डी समवारयत्।। | 9-15-6a 9-15-6b |
|
भीमसेनस्तु राजानं गदापाणिरवारयत्। शल्यं तु सह सैन्येन कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।। | 9-15-7a 9-15-7b |
|
ततः समभवद्युद्धं संसक्तं तत्रतत्र ह। तावकानां परेषां च सङ्ग्रामेष्वनिवर्तिनाम्।। | 9-15-8a 9-15-8b |
|
तत्र पश्यामहे कर्म शल्यस्यातिमहद्रणे। यदेकः सर्वसैन्यानि पाण्डवानामयोधयत्।। | 9-15-9a 9-15-9b |
|
व्यदृश्यत तदा शल्यो युधिष्ठिरसमीपतः। क्रूरश्चन्द्रमसोऽभ्याशे शनैश्चर इव ग्रहः।। | 9-15-10a 9-15-10b |
|
पीडयित्वा तु राजानं शरैराशीविषोपमैः। अभ्यधावत्पुनर्भीमं शरवर्षैरवाकिरत्।। | 9-15-11a 9-15-11b |
|
तस्य तल्लाघवं दृष्ट्वा तथैव च कृतास्त्रताम्। अपूजयन्ननीकानि परेषां तावकानि च।। | 9-15-12a 9-15-12b |
|
पीड्यमानास्तु शल्येन पाण्डवा भृशाविक्षताः। प्राद्रवन्त रणं हित्वा क्रोशमाने युधिष्ठिरे।। | 9-15-13a 9-15-13b |
|
वध्यमानेष्वनीकेषु मद्रराजेन पाण्डवः। अमर्षवशमापन्नो धर्मराजो युधिष्ठिरः।। | 9-15-14a 9-15-14b |
|
ततः पौरुषमास्थाय मद्रराजमताडयत्। जयो वाऽस्तु वधो वेति कृतबुद्धिर्महारथः।। | 9-15-15a 9-15-15b |
| समाहूयाब्रवीत्सर्वान्भ्रातॄन्कृष्णं च पाण्डवः।। | 9-15-16a |
|
भीष्मो द्रोणश्च कर्णश्च ये चान्ये पृथिवीक्षितः। कौरवार्थे पराक्रान्ताः सङ्ग्रामे निधनं गताः। यथाभागं यथोत्साहं भवन्तः कृतपौरुषाः।। | 9-15-17a 9-15-17b 9-15-17c |
|
भागोऽवशिष्ट एकोऽयं मम शल्यो महारथः। सोऽहमद्य युधा जेतुमाशंसे मद्रकाधिपम्।। | 9-15-18a 9-15-18b |
|
तत्र यन्मानसं मह्यं तत्सर्वं निगदामि वः। चक्ररक्षाविमौ वीरौ मम माद्रवतीसुतौ।। | 9-15-19a 9-15-19b |
|
अजेयौ वासवेनापि समरे शूरसम्मतौ। साध्विमौ मातुलं युद्धे क्षत्रधर्मपुरस्कृतौ।। | 9-15-20a 9-15-20b |
|
मदर्थे प्रतियुध्येतां मानार्हौ सत्यसङ्गरौ। मां वा शल्यो रणे हन्ता तं वाऽहं भद्रमस्तु वः। इति सत्यामिमां वाणीं लोकवीरा निबोधत।। | 9-15-21a 9-15-21b 9-15-21c |
|
योत्स्येऽहं मातुलेनाद्य क्षात्रधर्मेण पार्थिवाः। स्वमंशमभिसन्धाय विजयायेतराय वा।। | 9-15-22a 9-15-22b |
|
तस्य मेऽप्यधिकं शस्त्रं सर्वोपकरणानि च। संयुज्यन्तां रथे क्षिप्रं शास्त्रवद्रथयोजकैः।। | 9-15-23a 9-15-23b |
|
शैनेयो दक्षिणं चक्रं धृष्टद्युम्नस्तथोत्तरम्। पृष्ठगोपो भवत्वद्य मम पार्थो धनञ्जयः।। | 9-15-24a 9-15-24b |
|
पुरःसरो ममाद्यास्तु भीमः शस्त्रभृतां वरः। एवमभ्यधिकः शल्याद्भविष्यामि महामृधे।। | 9-15-25a 9-15-25b |
| एवमुक्तास्तथा चक्रुस्तदा राज्ञः प्रियैषिणः।। | 9-15-26a |
|
ततः प्रहर्षः सैव्यानां पुनरासीत्तदाः मृधे। पाञ्चालानां सोमकानां मात्स्यानां च विशेषतः।। | 9-15-27a 9-15-27b |
|
प्रतिज्ञातं च सङ्ग्रामे धर्मराजस्य पूजयन्। ततः शङ्खांश्च भेरीश्च शतशश्चैव पुष्करान्। अवादयन्त पाञ्चालाः सिंहनादांश्च नेदिरे।। | 9-15-28a 9-15-28b 9-15-28c |
|
तेऽभ्यधावन्त संरब्धा मद्रराजं तरस्विनम्। महता हर्षजेनाथ नादेन कुरुपुङ्गवाः।। | 9-15-29a 9-15-29b |
|
हादेन गजघण्टानां शङ्खानां निनदेन च। तूर्यशब्देन महता नादयन्तश्च मेदिनीम्।। | 9-15-30a 9-15-30b |
|
तान्प्रत्यगृह्णात्पुत्रस्ते मद्रराजश्च वीर्यवान्। महामेघानिव बहूञ्शैलावस्तोदयावुभौ।। | 9-15-31a 9-15-31b |
|
शल्यस्तु समरश्लाघी धर्मराजमरिन्दमम्। ववर्ष शरवर्षेण शम्बरं मघवा इव।। | 9-15-32a 9-15-32b |
|
तथैव कुरुराजोऽपि प्रगृह्य रुचिरं धनुः। द्रोणोपदेशान्विविधान्दर्शयानो महामनाः। ववर्ष शरवर्षाणि चित्रं लघु च सुष्ठु च।। | 9-15-33a 9-15-33b 9-15-33c |
| न चास्य विवरं कश्चिद्ददर्श चरतो रणे।। | 9-15-34a |
|
तावुभौ विविधैर्बाणैस्ततक्षाते परस्परम्। शार्दूलावामिषप्रेप्सू पराक्रान्ताविवाहवे।। | 9-15-35a 9-15-35b |
| भीमस्तु तव पुत्रेण युद्धशौण्डेन सङ्गतः।। | 9-15-36a |
|
पाञ्चाल्यः सात्यकिश्चैव माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ। शकुनिप्रमुखान्वीरान्प्रत्यगृह्णन्समन्ततः।। | 9-15-37a 9-15-37b |
|
तदासीत्तुमुलं युद्धं पुनरेव जयैषिणाम्। तावकानां परेषां च राजन्दुर्मन्त्रिते तव।। | 9-15-38a 9-15-38b |
|
दुर्योधनस्तु भीमस्य शरेणानतपर्वणा। चिच्छेदादिश्य सङ्ग्रामे ध्वजं हेमपरिष्कृतम्।। | 9-15-39a 9-15-39b |
|
स किङ्किणीकजालेन महता चारुदर्शनः। पपात रुचिरः सिंहो भीमसेनस्य पश्यतः।। | 9-15-40a 9-15-40b |
|
पुनश्चास्य धनुश्चित्रं गजराजकरोपमम्। क्षुरेण शितधारेण प्रचकर्त नराधिपः।। | 9-15-41a 9-15-41b |
|
स च्छिन्नधन्वा तेजस्वी रथशक्त्या सुतं तव। बिभेदोरसि विक्रम्य स रथोपस्थ आविशत्।। | 9-15-42a 9-15-42b |
|
तस्मिन्मोहमनुप्राप्ते पुनरेव वृकोदरः। यन्तुरेव शिरः कायात्क्षुरप्रेणाहरत्तदा।। | 9-15-43a 9-15-43b |
|
हतसूता हयास्तस्य रथमादाय भारत। व्यद्रवन्त दिशो राजन्हाहाकारस्तदाऽभवत्।। | 9-15-44a 9-15-44b |
|
तमभ्यधावंस्त्राणार्थं द्रोणपुत्रो महारथः। कृपश्च कृतवर्मां च पुत्रं ते हि परीप्सवः।। | 9-15-45a 9-15-45b |
|
तस्मिन्विलुलिते सैन्ये त्रस्तांस्तस्य पदानुगान्। गाण्डीवधन्वा विस्फार्य धनुस्तानहनच्छरैः।। | 9-15-46a 9-15-46b |
|
युधिष्ठिरस्तु मद्रेशमभ्यधावदमर्षितः। स्वयं सन्नोदयन्नश्वान्दन्तवर्णान्मनोजवान्।। | 9-15-47a 9-15-47b |
|
तत्राश्चर्यपमश्याम कुन्तीपुत्रे युधिष्ठिरे। पुरा भूत्वा मृदुर्दान्तो यत्तदा दारुणोऽभवत्।। | 9-15-48a 9-15-48b |
|
विवृताक्षश्च कौन्तेयो वेपमानश्च मन्युना। चिच्छेद योधान्निशितैः शरैः शतसहस्रशः।। | 9-15-49a 9-15-49b |
|
यांयां प्रत्युद्ययौ सेनां तांतां ज्येष्ठः स पाण्डवः। शरैरपातयद्राजन्गिरीन्वज्रैरिवोत्तमैः।। | 9-15-50a 9-15-50b |
|
साश्वसूतध्वजरथान्रथिनः पातयन्बहून्। अक्रीडदेको बलवान्पवनस्तोयदानिव।। | 9-15-51a 9-15-51b |
|
साश्वारोहांश्च तुरगान्पत्तींश्चैव सहस्रधा। व्यपोथयत सङ्ग्रामे क्रुद्धो रुद्रः पशूनिव।। | 9-15-52a 9-15-52b |
|
शून्यमायोधनं कृत्वा शरवर्षैः समन्ततः। अभ्यद्रवत मद्रेशं तिष्ठतिष्ठेति चाब्रवीत्।। | 9-15-53a 9-15-53b |
|
तस्य तच्चरितं दृष्ट्वा संग्रामे भीमकर्मणः। वित्रेसुस्तावकाः सर्वे शल्यस्त्वेनं समभ्ययात्।। | 9-15-54a 9-15-54b |
|
ततस्तौ भृशसङ्क्रुद्धौ प्रध्माय सलिलोद्भवौ। समाहूय तदाऽन्योन्यं भर्त्सयन्तौ समीयतुः।। | 9-15-55a 9-15-55b |
|
शल्यस्तु शरवर्षेण पीडयामास पाण्डवम्। मद्रराजं तु कौन्तेयः शरवर्षैरवाकिरत्।। | 9-15-56a 9-15-56b |
|
अदृश्येतां तदा राजन्कङ्कपत्रिभिराचितौ। उद्भिन्नरुधिरौ शूरौ मद्रराजयुधिष्ठिरौ। पुष्पिताविव रेजाते वने शाल्मलिकिंशुकौ।। | 9-15-57a 9-15-57b 9-15-57c |
|
दीव्यमानौ महात्मानौ प्राणद्यूतेन दुर्मदौ। दृष्ट्वा सर्वाणि सैन्यानि नाध्यवस्यंस्तयोर्जयम्।। | 9-15-58a 9-15-58b |
|
हत्वा मद्राधिपं पार्थो भोक्ष्यतेऽद्य वसुन्धराम्। शल्यो वा पाण्डवं हत्वा दद्याद्दुर्योधनाय गाम्।। | 9-15-59a 9-15-59b |
|
इतीव निश्चयो नाभूद्योधानां तत्र भारत। प्रदक्षिणमभूत्सर्वं धर्मराजस्य युध्यतः।। | 9-15-60a 9-15-60b |
|
ततः शरशतं शल्यो मुमोचाशु युधिष्ठिरे। धनुश्चास्य शिताग्रेण बाणेन निरुकृन्तत।। | 9-15-61a 9-15-61b |
|
सोऽन्यत्कार्मुकमादाय शल्यं शरशतैस्त्रिभिः। अविध्यत्कार्मुकं चास्य क्षुरेण निरकृन्तत।। | 9-15-62a 9-15-62b |
|
अथास्य निजघानाश्वांश्चतुरो नतपर्वभिः। द्वाभ्यामतिशिताग्राभ्यामुभौ तत्पार्ष्णिसारथी।। | 9-15-63a 9-15-63b |
|
ततोऽस्य दीप्यमानेन पीतेन निशितेन च। प्रमुखे वर्तमानस्य भल्लेनापाहरद्वृजम्।। | 9-15-64a 9-15-64b |
| ततः प्रभग्नं तत्सैन्यं दौर्योधनमरिन्दम।। | 9-15-65a |
|
ततो मद्राधिपं द्रौणिरभ्यधावत्तथा कृतम्। आरोप्य चैनं स्वरथं त्वरमाणः प्रदुद्रुवे।। | 9-15-66a 9-15-66b |
|
मुहूर्तमिव तौ गत्वा नर्दमाने युधिष्ठिरे। गत्वा ततो मद्रपतिरन्यं स्यन्दनमास्थितः।। | 9-15-67a 9-15-67b |
|
विधिवत्कल्पितं शुभ्रं महाम्बुदनिनादिनम्। सज्जयन्त्रोपकरणं द्विषतां रोमहर्षणम्।। | 9-15-68a 9-15-68b |
|
तथान्यद्धनुरादाय बलवान्वेगवत्तरम्।। युधिष्ठिरं मद्रपतिर्भित्त्वा सिंह इवानदत्।। | 9-15-69a 9-15-69b |
|
ततः स शरवर्षेण पर्जन्य इव वृष्टिमान्। अभ्यवर्षदमेयात्मा क्षत्रियान्क्षत्रियर्षभः।। | 9-15-70a 9-15-70b |
|
सात्यकिं दशभिर्विद्ध्वा भीमसेनं त्रिभिः शरैः। सहदेवं त्रिभिर्विद्धा युधिष्ठिरमपीडयत्।। | 9-15-71a 9-15-71b |
|
तांस्तानन्यान्महेष्वासान्साश्वान्सरथकूबरान्। अर्दयामास विशिखैरुल्काभिरिव कुञ्जरान्।। | 9-15-72a 9-15-72b |
|
कुञ्जरान्कुञ्जरारोहानश्वप्रयायिनः। रथांश्च रथिभिः सार्धं जघान रथिनां वरः।। | 9-15-73a 9-15-73b |
|
बाहूंश्चिच्छेद तरसा सायुधान्केतनानि च। चकार च महीं योधैः स्तीर्णां वेदीं कुशैरिव।। | 9-15-74a 9-15-74b |
|
तथा तमरिसैन्यानि घ्नन्तं मृत्युमिवान्तकम्। परिवव्रुर्भृशं क्रुद्धाः पाण्डुपाञ्चालसोमकाः।। | 9-15-75a 9-15-75b |
|
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि शल्यवधपर्वणि अष्टादशदिवसयुद्धे पञ्चदशोऽध्यायः।। 15 ।। |
9-15-42 रथशक्त्या रथस्थया शक्त्या।। 9-15-50 यां यामभ्यगमत्सेनां तां तां व्यनीनशत्। न्यपातयत कौन्तेयो गिरीन्वज्र इवोत्तमान्। इति क.ख.पाठः।। 9-15-67 मुहूर्तमिव तान्हत्वा नर्दमीने युधिष्ठिरे इति क.ख.पाठः।। 9-15-15 पञ्चदशोऽध्यायः।।
| शल्यपर्व-014 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शल्यपर्व-016 |