महाभारतम्-09-शल्यपर्व-006
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दुर्योधनेन शल्यस्य सैनापत्येऽमिषेचनम्।। 1 ।।
कृष्णेन युधिष्ठिरम्प्रति शल्यवधविधानम्।। 2 ।।
सञ्जय उवाच। | 9-6-1x |
एतच्छ्रुत्वा वचो राज्ञो मद्रराजः प्रतापवान्। दुर्योधनं तदा राजन्वाक्यमेतदुवाच ह।। | 9-6-1a 9-6-1b |
दुर्योधन महाबाहो शृणु वाक्यविदां वर। यावेतौ मन्यसे कृष्णौ रथस्थौ रथिनांवरौ। न मे तुल्यावुभावेतौ बाहुवीर्ये कथञ्चन।। | 9-6-2a 9-6-2b 9-6-2c |
उद्यतां पृथिवीं सर्वां ससुरासुरमानवाम्। योधयेयं रणमुखे सङ्क्रुद्धः किमु पाण्डवान्।। | 9-6-3a 9-6-3b |
विजेष्यामि रणे पार्थान्सोमकांश्च समागतान्। अहं सेनाप्रमेता ते भविष्यामि न संशयः।। | 9-6-4a 9-6-4b |
तं च व्यूहं विधास्यामि न क (त) रिष्यन्ति यं परे। इति सत्यं ब्रवीम्येष दुर्योधन न संशयः।। | 9-6-5a 9-6-5b |
`अद्यैवाहं रणे सर्वान्पाञ्चालान्सह पाण्डवैः। निहनिष्यामि वा राजन्स्वर्गं यास्यामि वा हतः।। | 9-6-6a 9-6-6b |
अद्य पश्यन्तु मां लोका विचरन्तमभीतवत्।। | 9-6-7a |
अद्य पाण्डुसुताः सर्वे वासुदेवः ससात्यकिः। पाञ्चालाश्चेदयश्चैव द्रौपदेयाश्च सर्वशः। धृष्टद्युम्नः शिखण्डी च सर्वे चापि प्रभद्रकाः।। | 9-6-8a 9-6-8b 9-6-8c |
विक्रमं मम पश्यन्तु धनुषश्च महद्बलम्। लाघवं चास्त्रवीर्यं च भुजयोश्च बलं युधि।। | 9-6-9a 9-6-9b |
अद्य पश्यन्तु मे पार्थाः सिद्धाश्च सह चारणैः। यादृशं मे बलं बाह्वोः सम्पदस्त्रेषु या च मे।। | 9-6-10a 9-6-10b |
अद्य मे विक्रमं दृष्ट्वा पाण्डवानां महारथाः। प्रतीकारपरा भूत्वा चेष्टन्ते विविधाः क्रियाः।। | 9-6-11a 9-6-11b |
अद्य सैन्यानि पाण्डूनां द्रावयिष्ये समन्ततः।। | 9-6-12a |
द्रोणभीष्मावति विमो सूतपुत्रं च संयुगे। विचरिष्ये रणमुखे प्रियार्थं तव कौरव।। | 9-6-13a 9-6-13b |
सञ्जय उवाच। | 9-6-14x |
एवमुक्तस्ततो राजा मद्राधिपतिमञ्जसा। अभ्यषिञ्चत सेनाया मध्ये भरतसत्तम। विधिना शास्त्रदृष्टेन क्लिष्टरूपो विशाम्पते।। | 9-6-14a 9-6-14b 9-6-14c |
अभिषिक्ते ततस्तस्मिन्सिंहनादो महानभूत्। तव सैन्येऽभ्यवाद्यन्त वादित्राणि च भारत।। | 9-6-15a 9-6-15b |
हृष्टाश्चासंस्तथा योधा मद्रकाश्च महारथाः। तुष्टुवुश्चैव राजानं शल्यमाहवशोभिनम्।। | 9-6-16a 9-6-16b |
जय राजंश्चिरं जीव जहि शत्रून्समागतान्। तव बाहुबलं प्राप्य धार्तराष्ट्रो महाबलः। निखिलां पृथिवीं सर्वां प्रशास्तु निहतद्विषम्।। | 9-6-17a 9-6-17b 9-6-17c |
त्वं हि शक्तो रणे जेतुं ससुरासुरमानवान्। मर्त्यधर्माण इह तु किमु सृञ्जयसोमकान्।। | 9-6-18a 9-6-18b |
एवं सम्पूज्यमानस्तु मद्राणामधिपो बली। हर्षं प्राप तदा वीरो दुरापमकृतात्मभिः।। | 9-6-19a 9-6-19b |
सञ्जय उवाच। | 9-6-20x |
अभिषिक्ते तथा शल्ये तव सैन्येषु मानद। न कर्णव्यसनं किञ्चिन्मेनिरे तत्र भारत।। | 9-6-20a 9-6-20b |
हृष्टाः सुमनसश्चैव बभूवुस्तत्र सैनिकाः। मेनिरे निहतान्पार्थान्मद्रराजवशङ्गतान्।। | 9-6-21a 9-6-21b |
प्रहर्षं प्राप्य सेना तु तावकी भरतर्षभ। तां रात्रिं सुखिता सुप्ता हर्षचित्ता च साभवत्।। | 9-6-22a 9-6-22b |
सैन्यस्य तव तं शब्दं श्रुत्वा राजा युधिष्ठिरः। वार्ष्णेयमब्रवीद्वाक्यं सर्वक्षत्रस्य पश्यतः।। | 9-6-23a 9-6-23b |
मद्रराजः कृतः शल्यो धार्तराष्ट्रेण माघव। सेनापतिर्महेष्वासः सर्वसैन्येषु पूजितः।। | 9-6-24a 9-6-24b |
एतज्ज्ञात्वा यथाभूतं कुरु माधव यत्क्षमम्। भवान्नेता च गोप्ता च विधत्स्व यदनन्तरम्।। | 9-6-25a 9-6-25b |
तमब्रवीन्महाराज वासुदेवो जनाधिपम्। आर्तायनिमहं जाने यथातत्त्वेन भारत।। | 9-6-26a 9-6-26b |
वीर्यवांश्च महातेजा महात्मा च विशेषतः। कृती च चित्रयोधी च संयुक्तो लाघवेन च।। | 9-6-27a 9-6-27b |
यादृग्भीष्मस्तथा द्रोणो यादृक्कर्णश्च संयुगे। तादृशृस्तद्विशिष्टो वा मद्रराजो मतो मम।। | 9-6-28a 9-6-28b |
युध्यमानस्य तस्याहं चिन्तयानश्च भारत। योद्धारं नाधिगच्छामि तुल्यरूपं जनाधिप।। | 9-6-29a 9-6-29b |
शिखण्ड्यर्जुनभीमानां सात्वतस्य च भारत। धृष्टद्युम्नस्य च तथा बलेनाभ्यधिको रणे।। | 9-6-30a 9-6-30b |
मद्रराजो महाराजः सिंहद्विरदविक्रमः। विचरिष्यत्यभीः काले कालः क्रुद्धः प्रजास्विव।। | 9-6-31a 9-6-31b |
तस्याद्य न प्रपश्यामि प्रतियोद्धारमाहने। त्वामृते पुरुषव्याघ्र शार्दूलसमविक्रमम्।। | 9-6-32a 9-6-32b |
स त्वमेको हि लोकेऽस्मिन्नान्यस्त्वत्तः पुमान्भवेत्। मद्रराजं रणे क्रुद्धं यो हन्यात्कुरुनन्दन।। | 9-6-33a 9-6-33b |
अहन्यहनि युध्यन्तं क्षोभयन्तं बलं तव। तस्माज्जहि रणे शल्यं मघवानिव शम्बरम्।। | 9-6-34a 9-6-34b |
सौतेः पश्चादसौ वीरो धार्तराष्ट्रेण सत्कृतः। तवैव हि जयो नूनं हते मद्रेश्वरे युधि। | 9-6-35a 9-6-35b |
तस्मिन्हते हतं सर्वं धार्तराष्ट्रबलं महत्।। एतच्छ्रुत्वा महाराज वचनं मम साम्प्रतम्। | 9-6-36a 9-6-36b |
प्रत्युद्याहि रणे पार्थ मद्रराजं महारथम्।। जहि चैनं महाबाहो वासवो नमुचिं यथा।। | 9-6-37a 9-6-37b |
न चैवात्र दया कार्या मातुलोऽयं ममेति वै। क्षत्रवर्म पुरस्कृत्य जहि मद्रजनेश्वरम्।। | 9-6-38a 9-6-38b |
द्रोणभीष्मार्णवं तीर्त्वा कर्णपातालसम्भवम्। मा निमज्जस्व सगणः शल्यमासाद्य गोष्पदम्। | 9-6-39a 9-6-39b |
यच्च ते तपसो वीर्यं यच्च क्षात्रं बलं तव। तद्दर्शय रणे सर्वं जहि चैनं महारथम्।। | 9-6-40a 9-6-40b |
सञ्जय उवाच। | 9-6-41x |
एतावदुक्त्वा वचनं केशवः परवीरहा। जगाम शिबिरं सायं पूज्यमानोऽथ पाण्डवैः।। | 9-6-41a 9-6-41b |
केशवे तु तदा याते धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। विसृज्य सर्वान्भ्रातॄंश्च पाञ्चालानथ सोमकान्। सुष्वाप रजनीं तां तु विशल्य इव कुञ्जरः।। | 9-6-42a 9-6-42b 9-6-42c |
ते च सर्वे महेष्वासाः पाञ्चालाः पाण्डवास्तथा। कर्णस्य निधने हृष्टाः सुषुपुस्तां निशां तदा।। | 9-6-43a 9-6-43b |
गतज्वरं महेष्वासं तीर्णपारं महारथम्। बभूव पाण्डवेयानां सैन्यं च मुदितं निशि। सूतपुत्रस्य निधनाज्जयं लब्ध्वा च मारिष।। | 9-6-44a 9-6-44b 9-6-44c |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि शल्यवधपर्वणि षष्ठोऽध्यायः।। 6 ।। |
9-6-14 क्लिष्टरूपः पराजयनिश्चयात्।। 9-6-18 मर्त्यधर्माणः मर्त्यधर्मणः।। 9-6-6 षष्ठोऽध्यायः।।
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