महाभारतम्-09-शल्यपर्व-059
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भीमसेनेन दुर्योधनस्योरुभेदनम्।। 1 ।।
सञ्चय उवाच। | 9-59-1x |
समुदीर्णं ततो दृष्ट्वा सङ्ग्रामं कुरुमुख्ययोः। अब्रवीदर्जुनस्तत्र वासुदेवं यशस्विनम्।। | 9-59-1a 9-59-1b |
अनयोर्वीरयोर्युद्धे को ज्यायान्भवतो मतः। कस्य वा को गुणो ज्यायानेतद्वद जनार्दन।। | 9-59-2a 9-59-2b |
वासुदेव उवाच। | 9-59-3x |
उपदेशोऽनयोस्तुल्यो भीमस्तु बलवत्तरः। कृती यत्नपरस्त्वेष धार्तराष्ट्रो वृकोदरात्।। | 9-59-3a 9-59-3b |
भीमसेनस्तु धर्मेण युध्यमानो न जेष्यति। अन्यायेन तु युध्यन्वै हन्यादेव सुयोधनम्।। | 9-59-4a 9-59-4b |
मायया निर्जिता देवैरसुरा इति नः श्रुतम्। विरोचनस्तु शक्रेण मायया निर्जितः स वै।। | 9-59-5a 9-59-5b |
मायया चाक्षिपत्तेजो वृत्रस्य बलसूदनः। तस्मान्मायामयं वीर आतिष्ठतु वृकोदरः।। | 9-59-6a 9-59-6b |
प्रतिज्ञातं च भीमेन द्यूतकाले धनञ्जय। ऊरू भेत्स्यामि ते सङ्ख्ये गदयेति सुयोधनम्।। | 9-59-7a 9-59-7b |
सोऽयं प्रतिज्ञां तां चापि पारयत्वरिकर्शनः। मायाविनं तु राजानं माययैव निकृन्ततु।। | 9-59-8a 9-59-8b |
यद्येष बलमास्थाय न्यायेन प्रहरिष्यति। विषमस्थस्ततो राजा भविष्यति युधिष्ठिरः।। | 9-59-9a 9-59-9b |
पुनरेव तु वक्ष्यामि पाण्डवेय निबोध मे। धर्मराजापराधेन भयं नः पुनरागतम्।। | 9-59-10a 9-59-10b |
कृत्वा हि सुमहत्कर्म हत्वा भीष्ममुखान्कुरून्। जयः प्राप्तो यशः प्राग्र्यं वैरं च प्रतियातितम्। तदेवं विजयः प्राप्तः पुनः संशयितः कृतः।। | 9-59-11a 9-59-11b 9-59-11c |
अबुद्धिरेषां महती धर्मराजस्य पाण्डव। यदेकविजये वीर पणितं कृतमीदृशम्।। | 9-59-12a 9-59-12b |
सुयोधनः कृती वीर एकायनगतस्तथा।। | 9-59-13a |
अपि चोशनसा गीतः श्रूयतेऽयं पुरातनः। श्लोकस्तत्त्वार्थसहितस्तन्मे निगदतः शृणु।। | 9-59-14a 9-59-14b |
पुनरावर्तमानानां भग्नानां जीवितैषिणाम्। भेतव्यमरिशेषाणामेकायनगता हि ते।। | 9-59-15a 9-59-15b |
[साहसोत्पतितानां च निराशानां च जीविते। न शक्यमग्रतः स्थातुं शक्रेणापि धनञ्जय]।। | 9-59-16a 9-59-16b |
सुयोधनमिमं भग्नं हतसैन्यं हदं गतम्। पराजितं वनप्रेप्सुं निराशं राज्यलम्भने। कोऽन्विष्य संयुगे प्राज्ञः पुनर्द्वन्द्वे समाह्वयेत्।। | 9-59-17a 9-59-17b 9-59-17c |
अपि नो निर्जितं राज्यं न हरेत सुयोधनः। यस्त्रयोदशवर्षाणि गदया कृतनिश्रमः। चरत्यूर्ध्वं च तिर्यक्व भीमसेनिघांसया।। | 9-59-18a 9-59-18b 9-59-18c |
एनं चेन्न महाबाहुरन्यायेन हनिष्यति। एष वः कौरवो राजा धार्तराष्ट्रो भविष्यति।। | 9-59-19a 9-59-19b |
सञ्जय उवाच। | 9-59-20x |
धनञ्जयस्तु श्रुत्वैतत्केशवस्य महात्मनः। प्रेक्षतो भीमसेनस्य सव्यमूरुमताडयत्।। | 9-59-20a 9-59-20b |
गृह्य संज्ञां ततो भीमो गदया व्यचरद्रणे। मण्डलानि विचित्राणि यमकानीतराणि च।। | 9-59-21a 9-59-21b |
दक्षिणं मण्डलं सव्यं गोमूत्रिकमथापि च। व्यचरत्पाण्डवो राजन्नरिं सम्मोहयन्निव।। | 9-59-22a 9-59-22b |
तथैव तव पुत्रोऽपि गदामार्गविशारदः। व्यचरल्लघु चित्रं च भीमसेनजिघांसया।। | 9-59-23a 9-59-23b |
आधुन्वन्तौ गदे घोरे चन्दनागरुरूषिते। वैरस्यान्तं परीप्सन्तौ रणे क्रुद्धाविवान्तकौ।। | 9-59-24a 9-59-24b |
अन्योन्यं तौ जिघांसन्तौ प्रवीरौ पुरुषर्षभौ। युयुधाते गरुत्मन्तौ यथा नागामिषैषिणौ।। | 9-59-25a 9-59-25b |
मण्डलानि बिचित्राणि चरतोर्नृपभीमयोः। गदासम्पातजास्तत्र प्रजज्ञुः पावकार्चिषः।। | 9-59-26a 9-59-26b |
समं प्रहरतोस्तत्र शूरयोर्बलिनोर्मृधे। क्षुब्धयोर्वायुना राजन्द्वयोरिव समुद्रयोः।। | 9-59-27a 9-59-27b |
तयोः प्रहरतोस्तुल्यं मत्तकुञ्जरयोरिव। गदानिर्घातसं हादः प्रहाराणामजायत।। | 9-59-28a 9-59-28b |
तस्मिंस्तदा सम्प्रहारे दारुणे सङ्कुले भृशम्। उभावपि परिश्रान्तौ युध्यमानावरिन्दमौ।। | 9-59-29a 9-59-29b |
तौ मुहूर्ते समाश्वस्य पुनरेव परन्तप। अभ्यहारयतां क्रुद्धौ प्रगृह्य महती गदे।। | 9-59-30a 9-59-30b |
तयोः समभवद्युद्धं घोररूपमसंवृतम्। गदानिपातै राजेन्द्र तक्षतोर्वै परस्परम्।। | 9-59-31a 9-59-31b |
समरे प्रद्रुतौ तौ तु वृषभाक्षौ तरस्विनौ। अन्योन्यं जघ्नतुर्वीरौ पङ्कस्थौ महिषाविव।। | 9-59-32a 9-59-32b |
जर्झरीकृतसर्वाङ्गौ रुधिरेणाभिसंप्लुतौ। ददृशाते हिमवति पुष्पिताविव किंशुकौ।। | 9-59-33a 9-59-33b |
दुर्योधनस्तु पार्थेन विवरे सम्प्रदर्शिते। ईषदुत्स्मयमानस्तु सहसा प्रससार ह।। | 9-59-34a 9-59-34b |
तमभ्याशगतं प्राज्ञः क्षणे प्रेक्ष्य वृकोदरः। अवाक्षिपद्गदां तस्मिन्वेगेन महता बती।। | 9-59-35a 9-59-35b |
अवक्षेपं तु तं दृष्ट्वा पुत्रस्तव विशाम्पते। अपासर्पत्ततः स्थानात्सा मोघा न्यपतद्भुवि।। | 9-59-36a 9-59-36b |
मोक्षयित्वा प्रहारं तं सुतस्तव सुसम्भ्रमात्। भीमसेनं च गदया प्राहरत्कुरुसत्तम।। | 9-59-37a 9-59-37b |
तस्य विस्यन्दमानेन रुधिरेणामितौजसः। प्रहारगुरुपाताच मूर्छेव समजायत।। | 9-59-38a 9-59-38b |
तन्नावुध्यत पुत्रस्ते पीडितं पाण्डवं रणे। धारयामास भीमोऽपि शरीरमतिपीडितम्।। | 9-59-39a 9-59-39b |
अमन्यत स्थितं ह्येनं प्रहरिष्यन्तमाहवे। अतो न प्राहरत्तस्मै पुनरेव तवात्मजः।। | 9-59-40a 9-59-40b |
ततो मुहूर्तनाश्वस्य दुर्योधनमुपस्थितम्। देगेनाभ्ययतद्राजन्गदामादाय पाण्डवः।। | 9-59-41a 9-59-41b |
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य संरब्धगमितौजसम्। मोधमस्य प्रहारं तं चिकीर्षुर्भरतर्षभ।। | 9-59-42a 9-59-42b |
अवस्याने मतिं कृत्वा पुत्रन्तव महामनाः। इयेषोत्पतितुं राजञ्छलयिष्यन्वृकोदरम्।। | 9-59-43a 9-59-43b |
अबुध्यद्भीमसेनस्तु राज्ञस्तस्य चिकीर्षितम्। अचास्य सममिद्रुत्य समुत्पत्य च सिंहवत्।। | 9-59-44a 9-59-44b |
सत्या वञ्चवतो राजन्पुनरेवोत्पतिष्यतः। ऊरुभ्यां प्राहिणोद्राजन्गदां वेगेन पाण्डवः।। | 9-59-45a 9-59-45b |
सा वज्रनिष्पेषसमा प्रहिता भीमकर्मणा। ऊरू दुर्योधनस्याथ बभञ्ज प्रियदर्शनौ।। | 9-59-46a 9-59-46b |
स पपात नरव्याघ्रो वसुधामनुनादयन्। भग्नोरुर्भीमसेनेन पुत्रस्तव महीपते।। | 9-59-47a 9-59-47b |
ववुर्वाताः सनिर्घाताः पांसुवर्षं पपात च। चचाल पृथिवी चापि सवृक्षक्षुपपर्वता।। | 9-59-48a 9-59-48b |
तस्मिन्निपतिते वीरे पत्यौ सर्वमहीक्षिताम्। महास्वना पुनर्दीप्ता सनिर्घाता भयङ्करी। पपात चोल्का महती पतिते पृथिवीपतौ।। | 9-59-49a 9-59-49b 9-59-49c |
तथा शोणितवर्षं च पांसुवर्षं च भारत। ववर्ष मघवांस्तत्र तव पुत्रे निपातिते।। | 9-59-50a 9-59-50b |
यक्षाणां राक्षसानां च पिशाचानां तथैव च। अन्तरिक्षे महान्नादस्तत्र भारत शुश्रुवे।। | 9-59-51a 9-59-51b |
तेन शब्देन घोरेण मृगाणामथ पक्षिणाम्। जज्ञे घोरतरः शब्दो बहूनां सर्वतोदिशम्।। | 9-59-52a 9-59-52b |
ये तत्र वाजिनः शेषा गजाश्च मनुजैः सह। मुमुचुस्ते महानादं तव पुत्रे निपातिते।। | 9-59-53a 9-59-53b |
बेरीशङ्खमृदङ्गानामभवच्च स्वनो महान्। अन्तर्भूमिगतश्चैव तव पुत्रे निपातिते।। | 9-59-54a 9-59-54b |
[बहुपादैर्बहुभुजैः कबन्धैर्घोरदर्शनैः। नृत्यद्भिर्भयदैर्व्याप्ता दिशस्तत्राभवन्नृप।। | 9-59-55a 9-59-55b |
ध्वजवन्तोऽस्त्रवन्तश्च शस्त्रवन्तस्तथैव च। प्राकम्पन्त ततो राजंस्तव पुत्रे निपातिते]।। | 9-59-56a 9-59-56b |
हदाः कूपाश्च रुधिरमुद्वेमुर्नृपसत्तम। नद्यश्च सुमहावेगाः प्रतिस्रोतोवहाऽभवन्।। | 9-59-57a 9-59-57b |
पुल्लिङ्गा इव नार्यस्तु स्त्रीलिङ्गाः पुरुषाऽभवन्। दुर्योधने तदा राजन्पतिते तनये तव।। | 9-59-58a 9-59-58b |
दृष्ट्वा तानद्भुतोत्पातान्पाञ्चालाः पाण्डवैः सह। आविग्नमनसः सर्वे बभूवुर्भरतर्षभ।। | 9-59-59a 9-59-59b |
ययुर्देवा यथाकामं गन्धर्वाप्सरसस्तथा। कथयन्तोऽद्भुतं युद्धं सुतयोस्तव भारत।। | 9-59-60a 9-59-60b |
तथैव सिद्धा राजेन्द्र तथा वातिकचारणाः। नरसिंहौ प्रशंसन्तौ विप्रजग्मुर्यथागतम्।। | 9-59-61a 9-59-61b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि गदायुद्धपर्वणि एकोनषष्टितमोऽध्यायः।। 59 ।। |
9-59-15 अरिशेषाणो पञ्चम्यर्थे षष्ठी।। 9-59-34 सहसैवाभिसारित इति क.छ.पाठः।। 9-59-45 धृत्या वञ्चयत इति क.छ.पाठः।। 9-59-48 क्षुपः क्षुद्रवृक्षः।। 9-59-59 एकोनषष्टितमोऽध्यायः।।
शल्यपर्व-058 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शल्यपर्व-060 |