लिङ्गपुराणम् - उत्तरभागः/अध्यायः २९

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लिङ्गपुराणम् - उत्तरभागः
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सनत्कुमार उवाच।।
तुला ते कथिता ह्येषा आद्या सामान्यरूपिणी।।
हिरण्यगर्भं वक्ष्यामि द्वितीयं सर्वसिद्धिदम्।। २९.१ ।।

अधः पात्रं सहस्रेण हिरण्येन विधीयते।।
ऊर्ध्वपात्रं तदर्धेन मुखं संवेशमात्रकम्।। २९.२ ।।

हैममेवं शुभं कुर्यात्सर्वाकारसंयुतम्।।
अधः पात्रे स्मरेद्देवीं गुणत्रयसमन्विताम्।। २९.३ ।।

चतुर्विशतिकां देवीं ब्रह्मविष्ण्वग्निरूपिणीम्।।
ऊर्ध्वपात्रे गुणातीतं षड्विशकमुमापतिम्।। २९.४ ।।

आत्मानं पुरुषं ध्यायेत्पंचविशकमग्रजम्।।
पूर्वोक्तस्थानमध्येऽथ वेदिकोपरि मंडले।। २९.५ ।।

शालीमध्ये क्षिपेन्नीत्वा नववस्त्रैश्च वेष्टयेत्।।
माषकल्केन चालिष्य पंचद्रव्येण पूजयेत्।। २९.६ ।।

ईशानाद्यैर्यथान्यायं पंचभिः परिपूजयेत्।।
पूर्ववच्छिवपूजा च होमश्चैव यथक्रमम्।। २९.७ ।।

देवीं गायत्रिकां जप्त्वा प्रविशेत्प्राङ्मुखः स्वयम्।।
विधिनैव तु संपाद्य गर्भाधानादिकां क्रियाम्।। २९.८ ।।

कृत्वा षोडशमार्गेण विधिना ब्राह्मणोत्तमः।।
दूर्वाकुरैस्तु कर्तव्या सेचना दक्षिणे पुटे।। २९.९ ।।

औदुंबरफलैः सार्धकविंशत्कुशोदकम्।।
ईशान्यां तावदेवात्र कुर्यात्सीमंतकर्मणि।। २९.१० ।।

उद्वहेत्कन्यकां कृत्वा त्रिंशन्निष्केण शोभनाम्।।
अलंकृत्य तथा हुत्वा शिवाय विनिवेदयेत्।। २९.११ ।।

अन्नप्राशनके विद्वान् भोजयेत्पायसादिभिः।।
एवं विश्वजितांता वै गर्भाधानादिकाः क्रियाः।। २९.१२ ।।

शक्तिबीजेन कर्तव्या ब्राह्मणैर्वेदपारगैः।।
शेषं सर्वं च विधिवत्तुलाहेमवदाचरेत्।। २९.१३ ।।

इति श्रीलिंगमहापुराणे उत्तरभागे एकोनत्रिंशोऽध्यायः।। २९ ।।