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लिङ्गपुराणम् - उत्तरभागः/अध्यायः २७

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लिङ्गपुराणम् - उत्तरभागः
  1. अध्यायः १
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  3. अध्यायः ३
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  6. अध्यायः ६
  7. अध्यायः ७
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  32. अध्यायः ३२
  33. अध्यायः ३३
  34. अध्यायः ३४
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  50. अध्यायः ५०
  51. अध्यायः ५१
  52. अध्यायः ५२
  53. अध्यायः ५३
  54. अध्यायः ५४
  55. अध्यायः ५५

ऋषय ऊचुः।।
प्रभावो नंदिनश्चैव लिंगपुजाफलं श्रुतम्।।
श्रुतिभिः संमितं सर्वं रोमहर्षण सुव्रत।। २७.१ ।।

जयाभिषेक ईशेन कथितो मनवे पुरा।।
हिताय मेरुशिखरे क्षत्रियाणां त्रिशुलिना।। २७.२ ।।

तत्कथं षोडशविधं महादानं च शोभनम्।।
वक्तुमर्हसि चास्माकं सूत बुद्धिमतांवर।। २७.३ ।।

सूत उवाच।।
जीवच्छ्राद्धं पुरा कृत्वा मनुः स्वायंभुवः प्रभुः।।
मेरुमासाद्य देवेशमस्तवीन्नीललोहितम्।। २७.४ ।।

तपसा च विनीताय प्रहृष्टः प्रददौ भवः।।
दिव्यं दर्शनमीशानस्तेनापस्यत्तव्ययम्।। २७.५ ।।

नत्वा संपूज्य विधिना कृतांजलिपुटः स्थितः।।
पूजितश्च ततो देवो दृष्टश्चैव मयाधुना।।
शक्राय कथितं पूर्वं धर्मकामार्थमोक्षदम्।। २७.६ ।।

देवदेव जगन्नाथ नमस्ते भुवनेश्वर।।
जीवच्छ्राद्धं महादेव प्रसादेन विनिर्मितम्।। २७.७ ।।

पूजितश्च देवो दृष्टश्चैव मयाधुना।।
शक्राय कथितं पूर्वं धर्मकामार्थमोक्षदम्।। २७.८ ।।

जयाभिषेकं देवेश वक्तुमर्हसि मे प्रभो।।
सूत उवाच।।
तस्मै देवो महादेवो भगवान्नीललोहितः।। २७.९ ।।

जयाभिषेकमखिलमवदत्परमेश्वरः।।
श्रीभगवानुवाच।।
जयाभषेकं वक्ष्यामि नृपाणां हितकाम्यया।। २७.१० ।।

अपमृत्युजयार्थं च सर्वशत्रुजयाय च।।
युद्धकाले तु संप्राप्ते कृत्वैवमभिषेचनम्।। २७.११ ।।

स्वपतिं चाभिषिच्यैव गच्छेद्योद्धुं रणाजिरे।।
विधिना मंडपं कृत्वा प्रपांवा कूटमेव वा।। २७.१२ ।।

नवधा स्तापयेद्वह्निं ब्राह्मणो वेदपारगः।।
ततः सर्वाभिषेकार्थं सूत्रपातं च कारयेत्।। २७.१३ ।।

प्रागाद्यं वर्णसूत्रंच दक्षिणाद्यं तथा पुनः।।
सहस्राणां द्वयं तत्र शतानां च चतुष्टयम्।। २७.१४ ।।

शेषमेव सुभं कोष्ठं तेषु कोष्ठं तु संहरेत्।।
बाह्ये वीथ्यां पदंचैकं समंतादुपसंहरेत्।। २७.१५ ।।

अंगसूत्राणि संगृह्य विधिना पृथगेव तु।।
प्रागाद्यं वर्णसूत्रं च दक्षिणाद्यं तथा पुनः।। २७.१६ ।।

प्रागाद्यंदक्षिणाद्यं च षट्त्रिशत्संहरेत्क्रमात्।।
प्रागाद्याः पंक्तयः सप्त दक्षिणाद्यास्तथा पुनः।। २७.१७ ।।

तस्मादेकोनपंचाशत्पंक्तयः परिकीर्तिताः।।
नव पंक्तीर्हरेन्मध्ये गन्धगोमयवारिणा।। २७.१८ ।।

कमलं चालिखेत्तत्र हस्तामात्रेण शोभनम्।।
अष्टपत्रं सितं वृत्तं कर्णिकाकेसरान्वितम्।। २७.१९ ।।

अष्टांगुलप्रमाणेन कर्णिका हेमसन्निभा।।
चतुरंगुलमानेन केसरस्थानमुच्यते।। २७.२० ।।

धर्मो ज्ञानं च वैराग्यमैश्वर्यं च यथाक्रमम्।।
आग्नेयादिषु कोणेषु स्थापयेत्प्रणवेन तु।। २७.२१ ।।

अव्यक्तादीनि वै दिक्षु गात्राकारेण वै न्यसेत्।।
अव्यक्तं नियतः कालः काली चेति चतुष्टयम्।। २७.२२ ।।

सितरक्तहिरण्याभकृष्णा धर्मादयः क्रमात्।।
हंसाकारेण वै गात्रं हेमाभासेन सुव्रताः।। २७.२३ ।।

आधारशक्तिमध्ये तु कमलं सृष्टिकारणमा।।
बिंदुमात्रं कलामध्ये नादाकारमतः परम्।। २७.२४ ।।

नादोपरि शिवं ध्यायेदोंकारख्यं जगद्गुरुम्।।
मनोन्मनीं च पद्माभंमहादेवं च भावयेत्।। २७.२५ ।।

वामादयः क्रमेणैव प्रागाद्याः केसरेषु वै।।
वामा ज्येष्ठा तथा रौद्री काली विकरणी तथा।। २७.२६ ।।

बला प्रमथिनी देवी दमनी च यथांक्रमम्।।
वामदेवादिभिः सार्धं प्रणवेनैव विन्यसेत्।। २७.२७ ।।

नमोऽस्तु वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय शूलिने।। २७.२८ ।।

रुद्राय कालरूपाय कलाविकरणाय च।।
बलाय च तथा सर्वभूतस्य दमनाय च।। २७.२९ ।।

मनोन्मनाय देवाय मनोन्मन्यै नमोनमः।।
मंत्रैरेतैर्यथान्यायं पूजयेत्परिमंडलम्।। २७.३० ।।

प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रुणु।।
द्वितीयावरणे चैव शक्तयः षोडशैव तु।। २७.३१ ।।

तृतीयावरणे चैव चतुर्विशदनुक्रमात्।।
पिशाच वीर्थिर्वै मध्ये नाभिवीथिः समंततः।। २७.३२ ।।

मंत्रैरेतैर्यथान्यायं पिशाचानां प्रकीर्तिता।।
अष्टोत्तरसहस्रं तु पदमष्टारसंयुतम्।। २७.३३ ।।

तेषुतेषु पृथक्त्वेन पदेषु कमलं क्रमात्।।
कल्पयेच्छालिनीवारगोधूमैश्च यवादिभिः।। २७.३४ ।।

तंडुलैश्च तिलैर्वाथ गौरसर्षपसंयुतैः।।
अथवा कल्पयेदेतैर्यथाकालं विधानतः।। २७.३५ ।।

अष्टपत्रं लिखेत्तेषु कर्णिकाकेसरान्वितम्।।
शालीनामाढकं प्रोक्तं कमलानां पृथक् पृथक्।। २७.३६ ।।

तंडुलानां तदर्धं स्यात्तदर्धं च यवादयः।।
द्रोणं प्रधानकुंभस्य तदर्धं तंडुलाः स्मृताः।। २७.३७ ।।

तिलानामाढकं मध्ये यवानां च तदर्धकम्।।
अथांभसा समभ्युक्ष्य कमलं प्रणवेन तु।। २७.३८ ।।

तेषु सर्वेषु विधिना प्रणवं विन्यसेत्क्रमात्।।
एवं समाप्य चाभ्युक्ष्य पदसाहस्रमुत्तमम्।। २७.३९ ।।

कलशानां सहस्राणि हैमानि च शुभानि च।।
उक्तलक्षणयुक्तानु कारयेद्राजतानि वा।। २७.४० ।।

ताम्रजानि यतान्यायं प्रणवेनार्घ्यवारिणा।।
द्वादशांगुलविस्तारमुदरे समुदाहृतम्।। २७.४१ ।।

वर्तितं तु तदर्धेन नाभिस्तस्य विधीयते।।
कंठं तु द्व्यंगुलोत्सेधं विस्तरं चतुरंगुलम्।। २७.४२ ।।

ओष्ठं च द्व्यंगुलोत्सेधं निर्गमं द्व्यगुलंस्मृतम्।।
तत्तद्वै द्विगुणं दिव्यं शिवकुंभे प्रकीर्तितम्।। २७.४३ ।।

यवामात्रांतरं सम्यक्तंतुना वेष्टयेद्धि वै।।
अवगुंठ्य तथाभ्युक्ष्य कुशोपरियताविधि।। २७.४४ ।।

पूर्ववत्प्रणवेनैव पूरयेद्गंधवारिणा।।
स्थापयेच्छिवकुंभाढ्यं वर्धनीं च विदानतः।। २७.४५ ।।

मध्यपद्मास्य मध्ये तु सकूर्चं साक्षतं क्रमात्।।
आवेष्ट्य वस्त्रयुग्मेन प्रच्छाद्य कमलेन तु।। २७.४६ ।।

हैमेन चित्ररत्नेन सहस्रकलशं पृथक्।।
शिवकुंभे शिवं स्थाप्य गायत्र्या प्रणवेज च।। २७.४७ ।।

विद्महं पुरुषायैव महादेवाय धीमहि।।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।। २७.४८ ।।

मंत्रेणानेन रुद्रस्य सान्निध्यं सर्वदा स्मृतम्।।
वर्धन्यां देविगायत्र्या देवीं संस्थाप्य पूजयेत्।। २७.४९ ।।

गणांबिकायै विद्महे महातपायै धीमहि।।
तन्नो गौरी प्रचोदयात्।। २७.५० ।।

प्रथमावरणे चैव वामाद्याः परिकीर्तिताः।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रुणु।। २७.५१ ।।

शक्तयः षोडशैवात्र पूर्वाद्यांतेषु सुव्रत।।
ऐंद्रव्यूहस्य मध्ये तु सुभद्रां स्थाप्य पूजयेत्।। २७.५२ ।।

भद्रामाग्नेयचक्रे तु याम्ये तु कनकांडजाम्।।
अंबिकां नैर्ऋते व्यूहे मध्यकुंभे तु पूजयेत्।। २७.५३ ।।

श्रीदेवीं वारुणे भागे वागीशां वायुगोचरे।।
गोमुखीं सौम्यभागे तु मध्यकुंभे तु पूजयेत्।। २७.५४ ।।

रुद्रव्यूहस्य मध्ये तु भद्रकर्णां समर्चयेत्।।
ऐंद्राग्निविदिसोर्मध्ये पूजयेदणिमां शुभाम्।। २७.५५ ।।

याम्यपावकयोर्मध्ये लघिमां कमले न्यसेत्।।
राक्षसांतकयोर्मध्ये महिमां मध्यतो यजेत्।। २७.५६ ।।

वरुणासुरयोर्मध्ये प्राप्तिं वै मध्यतो यजेत्।।
वरुणानिलयोर्मध्ये प्राकाम्यं कमले न्यसेत्।। २७.५७ ।।

वित्तेशानिलयोर्मध्ये ईशित्वं स्थाप्य पूजयेत्।।
वित्तेशेशानयोर्मध्ये वशित्वं स्थाप्य पूजयेत्।। २७.५८ ।।

ऐंद्रेशेशानयोर्मध्ये यजेत्कामावसायकम्।।
द्वितीयावरणं प्रोक्तं तृतीयावरणं शुणु।। २७.५९ ।।

शक्तयस्तु चतुर्विशत्प्रदानकलशेषु च।।
पूजयेद्व्यूहमध्ये तु पूर्ववद्विधिपूर्वकम्।। २७.६० ।।

दीक्षां दीक्षायिकां चैव चंडां चंडांशुनायिकाम्।।
सुमतिं सुमत्यायीं च गोपां गोपायिकां तथा।। २७.६१ ।।

अथ नंदं च नंदायीं पितामहमतः परम्।।
पितामहायीं पूर्वाद्यं विधिना स्थाप्य पूजयेत्।। २७.६२ ।।

एर्व संपूज्य विधिनातृतीयावरणं शुभम्।।
सौभद्रं व्यूहमासाद्य प्रथमावरणे क्रमात्।। २७.६३ ।।

प्रागाद्यं विधिना स्थाप्य शक्त्यष्टकमनुक्रमात्।।
द्वितीयावरणे चैव प्रागाद्यं श्रृणु शक्तयः।। २७.६४ ।।

षोडशैव तु अभ्यर्च्य पद्ममुद्रां तु दर्शयेत्।।
बिंदुका बिंदुगर्भा च नादिनी नादगर्भजा।। २७.६५ ।।

शक्तिका शक्तिगर्भा च परा चैव परापरा।।
प्रतमावरणेऽष्टौ च शक्तयः परिकीर्तिताः।। २७.६६ ।।

चंडा चंडमुखी चैव चंडवेगा मनोजवा।।
चंडाक्षीचंडनिर्घोषा भृकुटी चंडनायिका।। २७.६७ ।।

मनोत्सेधा मनोध्यक्षा मानसी माननायिका।।
मनोहरी मनोह्लादी मनःप्रीतिर्महेश्वरी।। २७.६८ ।।

द्वितीयावरणे चैव षोडशैव प्रकीर्तिताः।।
सौभद्रः कथितो व्यूहो भद्रं व्यूहं श्रृणुष्व मे।। २७.६९ ।।

ऐंद्री हौताशनी याम्या नैर्ऋती वारुणी तथा।।
वायव्या चैव कौबेरी ऐशानी चाष्टशक्तयः।। २७.७० ।।

प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।।
हरिणा च सुवर्णा च कांचनी हाटकी तथा।। २७.७१ ।।

रुक्मिणी सत्यभामा च सुभगा जंबुनायिका।।
वाग्भवा वाक्पथा वाणी भीमा चित्ररथा सुधीः।। २७.७२ ।।

वेदमाता हिरण्याक्षी द्वितीयावरणे स्मृता।।
भद्राख्यः कथितो व्यूहः कनकाख्यं श्रृणुष्व मे।। २७.७३ ।।

वज्रं शक्तिं च दंडं च खड्गं पाशं ध्वजं तथा।।
गदां त्रिशुलं क्रमशः प्रथमावरणे स्मृताः।। २७.७४ ।।

युद्धा प्रबुद्धा चंडा च मुंडा चैव कपालिनी।।
मृत्युहंत्री विरूपाक्षी कपर्दा कमलासना।। २७.७५ ।।

दंष्ट्रिणी चैव लंबाक्षी कंकभूषमी।।
संभावा भाविनी चैव षोडशैव प्रकीर्तिताः।। २७.७६ ।।

कथितः प्रथकव्यूहो ह्यम्बिकाख्यं श्रृणुष्व मे।।
खेचरी चात्मना सा च भवानी वह्निरूपिणी।। २७.७७ ।।

वह्निनी वह्निनाभा च महिमामृतलालसा।।
प्रथमावरणे चाष्टौ शक्तयः सर्वसंमताः।। २७.७८ ।।

क्षमा च शिखरा देवी ऋतुरत्ना सिला तथा।।
छाया भूतपनी धन्या इंद्रमाता च वैष्णवी।। २७.७९ ।।

तृष्णा रागवती मोहा कामकोपा महोत्कटा।।
इंद्रा च बधिरा देवी षोडशैताः प्रकीर्तिताः।। २७.८० ।।

कथितश्चांबिकाव्यूहः श्रीव्यूहं श्रृणु सुव्रत।।
स्वर्शा स्वर्शवती गंधा प्राणापाना समानिका।। २७.८१ ।।

उदाना व्याननामा च प्रथमावरणे स्मृताः।।
तमोहता प्रभामोघा तेजिनी दहिनी तथा।। २७.८२ ।।

भीमास्या जालिनी चोषा शोषिणी रुद्रनायिका।।
वरिभद्रा गणाध्यक्षा चंद्रहासा च गह्वरा।। २७.८३ ।।

गणमातांबिका चैव शक्तयः सर्वसंमताः।।
द्वितीयावरणे प्रोक्ताः षोडशैव यथाक्रमात्।। २७.८४ ।।

श्रीव्यूहः कथितो भद्रंवागीशं श्रृणु सुव्रत।।
धारा वारिधरा चैव वह्निकी नाशकी तथा।। २७.८५ ।।

मर्त्यातीता महामाया वज्रिणी कामदेनुका।।
प्रथमावरणेऽप्येवं शक्तयोऽष्टौ प्रकीर्तिताः।। २७.८६ ।।

पयोष्णी वारुणी शांता जयंती च वरप्रदा।।
प्लाविनी जलमाता च पयोमाता महांबिका।। २७.८७ ।।

रक्ता कराली चंडाक्षी महोच्छुष्मा पयस्विनी।।
माया विद्येश्वरी काली कालिका च यथाक्रमम्।। २७.८८ ।।

षोडशैव समाख्याताः शक्तयः सर्वसंमताः।।
व्यूहो वागीश्वरः प्रोक्तो गोमुखो व्यूह उच्यते।। २७.८९ ।।

शंकीनी हालिनी चैव लंकावर्णा च कल्किनी।।
यक्षिणी मालिनी चैव वमनी च रसात्मनी।। २७.९० ।।

प्रथमावरणे चैव शक्तयोऽष्टौ प्रकीर्तिताः।।
चंडा घंटा महानादा सुमुखी दुर्मुखी बला।। २७.९१ ।।

रेवती प्रथमा घोरा सैन्या लीना महाबला।।
जया च विजया चैव अपरा चापराजिता।। २७.९२ ।।

द्वितीयावरणे चैव शक्तयः षोडशैव तु।।
कथितो गोमुखीव्यूहो भद्रकर्णी श्रृणुष्व मे।। २७.९३ ।।

महाजया विरुपाक्षी शुक्लाभाकाशमातृका।।
संहारि जातहारी च दंष्ट्राली सुष्करेवती।। २७.९४ ।।

प्रथमावरणे चाष्टौ शक्तयः परिकीर्तिताः।।
पिपीलिका पुण्यहारी अशनी सर्वहारिणी।। २७.९५ ।।

भद्रहा विश्वहारी च हिमायोगेश्वरी तथा।।
छिद्रा भानुमती छिद्रा सैंहिकी सुरभी समा।। २७.९६ ।।

सर्वभव्या च वेगाख्या शक्तयः षोडशैव तु।।
महाव्यूहाष्टकं प्रोक्तमुपव्युहाष्टकं श्रृणु।। २७.९७ ।।

अणिमाव्यूहमावेष्ट्य प्रथमावरणे क्रमात्।।
ऐंद्रा तु चित्रभानुश्च वारुणी दंडिरेव च।। २७.९८ ।।

प्राणरूपी तथा हंसः स्वात्मशक्तिः पितामहः।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.९९ ।।

केशवो भगवान् रुद्रश्चंद्रमा भास्करस्तथा।।
महात्मा च तथा ह्यात्मा ह्यंतरात्मा महेश्वरः।। २७.१०० ।।

परमात्मां ह्यणुर्जीवः पिंगलः पुरुषः पशुः।।
भोक्ता भूतपतिर्भीमो द्वितीयावरणे स्मृताः।। २७.१०१ ।।

कथितश्चाणिमाव्यूहो लघिमाख्यं वदामि ते।।
श्रीकंठोंतश्च सूक्ष्मश्च त्रिमूर्तिः शशकस्तथा।। २७.१०२ ।।

अमरेशः स्थितीशश्च दारतश्च तथाष्टमः।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.१०३ ।।

स्थाणुर्हरश्च दंडेशो भौक्तीशः सुरपुंगवः।।
सद्योजातोऽनुग्रहेशः क्रूरसेनः सुरेश्वरः।। २७.१०४ ।।

क्रोधीशश्च तथा चंडः प्रचंडः शिवएव च।।
एकरुद्रस्तथा कूर्मश्चैकनेत्रश्चतुर्मुखः।। २७.१०५ ।।

द्वितीयावरणे रुद्राः षोडशैव प्रकीर्तिताः।।
कथितो लघिमाव्यूहो महिमां श्रृणुसुव्रत।। २७.१०६ ।।

अजेशः क्षेमरुद्रश्च सोमोंऽशौ लांगली तथा।।
दंडारुश्चार्धनारी च एकांतश्चांत एव च।। २७.१०७ ।।

पाली भुजंगनामा च पिनाकी खड्किरेव च।।
काम ईशस्तथा श्वेतो भृगुः षोडश वै स्मृताः।। २७.१०८ ।।

कथितो महिमाव्यूहः प्राप्तिव्यूहं श्रृणुष्व मै।।
संवर्तो लकुलीशश्च वाडवो हस्तिरेव च।। २७.१०९ ।।

चंडयक्षो गणपतिर्महात्मा भृगुजोऽष्टमः।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.११० ।।

त्रिविक्रमो महाजिह्वो ऋक्षः श्रीभद्र एव च।।
महादेवो दधीचश्च कुमारश्च परावरः।। २७.१११ ।।

महादंष्ट्रः करालश्च सूचकश्च सुवर्धनः।।
महाध्वांक्षो महानंदो दंडी गोपालकस्तथा।। २७.११२ ।।

प्राप्तिव्यूहः समाख्यातः प्राकाम्यं श्रृणु सुव्रत।।
पुष्पदंतो महानागो विपुलानंदकारकः।। २७.११३ ।।

शुक्लो विशालः कमलो बिल्वश्चारुम एव च।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रुणु।। २७.११४ ।।

रतिप्रियः सुरेशानश्चित्रांगश्च सुदुर्जयः।।
विनायकः क्षेत्रपालो महामोहश्च जंगलः।। २७.११५ ।।

वत्सपुत्रो महापुत्रो ग्रामदेशाधिपस्तथा।।
सर्वावस्थाधिपो देवो मेघनादः प्रचंडकः।। २७.११६ ।।

कालदूतश्च कथितो द्वितीयावरणं स्मृतम्।।
प्राकाम्यः कथितो व्यूह ऐश्वर्यं कथयामि ते।। २७.११७ ।।

मंगला चर्चिका चैव योगेशा हरदायिका।।
भासुरा सुरमाता च सुंदरी मातृकाष्टमी।। २७.११८ ।।

प्रथमावरणे प्रोक्ता द्वितीयावरणे श्रृणु।।
गणाधिपश्च मंत्रज्ञो वरदेवः षडाननः।। २७.११९ ।।

विदग्धश्च विचित्रश्च अमोघोमोघ एव च।।
अश्वीरुद्रश्च सोमेशश्चोत्तमोदुंबरस्तथा।। २७.१२० ।।

नारसिंहश्च विजयस्तथा इंद्रगुहः प्रभुः।।
अपांपतिश्च विधिना द्वितीयावरणं स्मृतम्।। २७.१२१ ।।

ऐश्वर्यः कथितो व्यूहो वशित्वं पुनरुच्यते।।
गगनो भवनश्चैव विजयो ह्यजयस्तथा।। २७.१२२ ।।

महाजयस्तथां गारो व्यंगारश्च महायशाः।।
प्रथमावरणे प्रोक्ता द्वितीयावरणे श्रृणु।। २७.१२३ ।।

सुंदरश्च प्रचंडेशो महावर्णो महासुरः।।
महारोमा महागर्भः प्रथमः कनकस्तथा।। २७.१२४ ।।

खरजो गरुडश्चैव मेघनादोऽथ गर्जकः।।
गजश्च च्छेदको बाहुस्त्रिशिखो मारिरेव च।। २७.१२५ ।।

वशित्वं कथितो व्यूहः श्रृणु कामावसायिकम्।।
विनादो विकटश्चैव वसंतोऽभय एव च।। २७.१२६ ।।

विद्युन्महाबलश्चैव कमलो दमनस्तथा।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.१२७ ।।

धर्मश्चातिबलः सर्पो महाकायो महाहनुः।।
सबलश्चैव भस्मांगी दुर्जयो दुरतिक्रमः।। २७.१२८ ।।

वेतालो रौरवश्चैव दुर्धरो भोग एव च।।
वज्रः कालाग्निरुद्रश्च सद्योनादो महागुहः।। २७.१२९ ।।

द्वितीयावरणं प्रोक्तं व्यूहश्चैवावसायिकः।।
कथितः षोडशो व्यूहो द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.१३० ।।

द्वितीयावरणे चैव दक्षव्यूहे च शक्तयः।।
प्रथमावरणे चाष्टौ बाह्ये षोडश एव च।। २७.१३१ ।।

मनोहरा महानादा चित्रा चित्ररथा तथा।।
रोहिणी चैव चित्रांगी चित्ररेखा विचित्रिका।। २७.१३२ ।।

प्रथमावरणे प्रोक्ता द्वितीयावरणं श्रृणु।।
चित्रा विचित्ररूपा च शुभदा कामदा सुभा।। २७.१३३ ।।

क्रूरा च पिंगला देवी खड्गिका लंबिकासती।।
दंष्ट्राली राक्षसीध्वंसी लोलुपा लोहितामुखी।। २७.१३४ ।।

द्वितीयावरणे प्रोक्तोः षोडशैव समासतः।।
दक्षव्यूहः समाख्यातो दाक्षव्यूहं श्रृणुष्व मे।। २७.१३५ ।।

सर्वासती विश्वरूपा लंपटा चामिषप्रिया।।
दीर्घदंष्ट्रा च वज्रा च लंबोष्ठी प्राणहारिणी।। २७.१३६ ।।

प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।।
गजकर्णाश्वकर्णा च महाकाली सुभीषण।। २७.१३७ ।।

वातवेगरवा घोरा घानाघनरवा तथा।।
वरघोषा महावर्णा सुघंटा घंटिका तथा।। २७.१३८ ।।

घंटश्वरी महाघोरा घोरा चैवातिघोरिका।।
द्वितीयावरणे चैव षोडशैव प्रकीर्तिताः।। २७.१३९ ।।

दाक्षव्यूहः समाख्यातश्चांडव्यूहं श्रृणुष्वमे।।
अतिघंटा चातिघोरा कराला करभा तथा।। २७.१४० ।।

विभूतिर्भोगदा कांतिः शंखिनी चाष्टमी स्मृता।।
प्रथमावरणे प्रोक्ता द्वितीयावरणे श्रृणु।। २७.१४१ ।।

पत्रिणी चैव गांधारी योगमाता सुपीवरा।।
रक्ता मालांशुका वीरा संहारी मांसहारिणी।। २७.१४२ ।।

फलहारी जीवहारी स्वेच्छाहारी च तुंडिका।।
रेवती रंगिणी संगा द्वितीये षोडशैव तु।। २७.१४३ ।।

चंडव्यूहः समाख्यातश्चंडाव्यूहस्तथोच्यते।।
चंडी चंडमुखी चंडा चंडवेगा महारवा।। २७.१४४ ।।

भ्रुकुटी चंडभूश्चैव चंडरूपाष्टमी स्मृता।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.१४५ ।।

चंद्रघ्राणा बला चैव बलजिह्वा बलेश्वरी।।
बलवेगा महाकाया महाकोपा च विद्युता।। २७.१४६ ।।

कंकाली कलशी चैव विद्युता चंडघोषिका।।
महाघोषा महारावा चंडभाऽनंगचंडिका।। २७.१४७ ।।

चंडायाः कथितो व्यूहो हरव्यूहं श्रृणुष्व मे।।
चंडाक्षी कामदा देवी सूकरी कुक्कुटानना।। २७.१४८ ।।

गांधारी दंदुभी दुर्गा सौमित्रा चाष्टमी स्मृता।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.१४९ ।।

मृतोद्भवा महालक्ष्मीर्वर्णदा जीवरक्षिणी।।
हरिणी क्षीणजीवा च दंडवक्त्रा चतुर्भुजा।। २७.१५० ।।

व्योमचारी व्योमरूपा व्योमव्यापी शुभोदया।।
गृहचारी सुचारी च विषाहारी विषर्तिहा।। २७.१५१ ।।

हरव्यूहः समाख्यातो हराया व्यूह उच्यते।।
जंभाच्युता च कंकारी देविका दुर्धरावहा।। २७.१५२ ।।

चंडिका चपला चेति प्रथमावरणे स्मृताः।।
चंजिका चामरी चैव भंडिका च शुभानना।। २७.१५३ ।।

पिंडिका मुंडिका मुंडा शाकिनी शाङ्करी तथा।।
कर्तरी भर्तरी चैव भागिनी यज्ञदायिनी।। २७.१५४ ।।

यमदंष्ट्रा महादंष्ट्रा कराला चेति शक्तयः।।
हरायाः कथितो व्यूहः शौंडव्यूहं शृणुष्व मे।। २७.१५५ ।।

विकराली कराली च कालजंघा यशस्विनी।।
वेगा वेगवती यज्ञा वेदांगा चाष्टमी स्मृता।। २७.१५६ ।।

प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं शृणु।।
वज्रा शंखातिशंखा वा बला चैवाबला तथा।। २७.१५७ ।।

अंजनी मोहिनी माया विकटांगी नली तथा।।
गंडकी दडकी घोणा शोणा सत्यवती तथा।। २७.१५८ ।।

कल्लोला चेति ऋमशः षोडशैव यथाविधि।।
शौंडव्यूहः समाख्यातः शौंडाया व्यूह उच्यते।। २७.१५९ ।।

दंतुरा रौद्रभागा च अमृता सकुला शुभा।।
चलजिह्वार्यनेत्रा च रूपिणी दारिका तथा।। २७.१६० ।।

प्रथमा वरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।।
खादिका रूपनामा च संहारी च क्षमांतका।। २७.१६१ ।।

कंडिनी पेषिणी चैव महात्रासा कृतांतिका।।
दंडिनी किंकरी बिंबा वर्णिनी चामलांगिनी।। २७.१६२ ।।

द्रविणी द्राविणी चैव शक्तयः षोडशैव तु।।
कथितो हि मनोरम्यः शौंडाया व्यूहउत्तमः।। २७.१६३ ।।

प्रथमाख्यं प्रवक्ष्यामि व्यूहं परमशोभनम्।।
प्लविनी प्लावनी शोभा मंदा चैव मदोत्कटा।। २७.१६४ ।।

मंदाऽक्षेपा महादेवी प्रथमावरणे स्मृताः।।
कामसंदीपिनी देवी अतिरूपा मनोहरा।। २७.१६५ ।।

महावशा महाग्राहा विह्वला मदविह्वला।।
अरुणा शोषणा दिव्या रेवती भांडनायिका।। २७.१६६ ।।

स्तंभिनी घोररक्ताक्षी स्मररूपा सुघोषणा।।
व्यूहः प्रथम आख्यातः स्वायंभुव यथा तथा।। २७.१६७ ।।

कथितं प्रथमव्यूहं प्रवक्ष्यामि श्रृणुष्व मे।।
घोरा घोरतराघोरा अतिघोराघनायिका।। २७.१६८ ।।

धावनी क्रोष्टुका मुंडा चाष्टमी परिकीर्तिता।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.१६९ ।।

भीमा भीमतरा भीमा शस्ता चैव सुवर्तुला।।
स्तंभिनी रोदनी रौद्रा रुद्रवत्यचला चला।। २७.१७० ।।

महाबला महाशांतिः शाला शांता शिवाशिवा।।
बृहत्कक्षा महानासा षोडशैव प्रकीर्तिताः।। २७.१७१ ।।

प्रथमायाः समाख्यातो मन्मथव्यूह उच्यते।।
तालकर्णी च बाला च कल्याणी कपिला शिवा।। २७.१७२ ।।

इष्टिस्तुष्टिः प्रतिज्ञा च प्रथमावरणे स्मृताः।।
ख्यातिः पुष्टिकरी तुष्टिर्जला चैव श्रुतिर्धृतिः।। २७.१७३ ।।

कामदा शुभदा सौम्या तेजिनी कामतंत्रिका।।
धर्मा धर्मवशा शीला पापहा धर्मवर्धिनी।। २७.१७४ ।।

मन्मथः कथितो व्यूहो मन्मथायाः श्रृणुष्व मे।।
धर्मरक्षा विधाना च धर्मा धर्मवती तथा।। २७.१७५ ।।

सुमतिर्दुर्मतिर्मेधा विमला चाष्टमी स्मृता।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.१७६ ।।

शुद्धिर्बुद्धिर्द्युतिः कांतिर्वर्तुला मोहवर्धिनी।।
बला चातिबला भीमा प्राणवृद्धिकरी तथा।। २७.१७७ ।।

निर्लज्जा निर्घृणा मंदा सर्वपापक्षयंकरी।।
कपिला चातिविधुरा षोडशैताः प्रकीर्तिताः।। २७.१७८ ।।

मन्मतायिक उक्तस्ते भीमव्यूहं वदामि च।।
रक्ता चैव विरक्ता च उद्वेगा शोकवर्धिनी।। २७.१७९ ।।

कामा तृष्णा क्षुधा मोहा चाष्टमी परिकीर्तिता।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रुणु।। २७.१८० ।।

जया निद्रा भयालस्या जलतृष्णोदरी दरा।।
कृष्णा कृष्णांगिनी वृद्धा शुद्धोच्छिष्टाशनी वृषा।। २७.१८१ ।।

कामना शोभिनी दग्धा दुःखदा सुखदावली।।
भीमव्यूहः समाख्यातो भीमायीव्यूह उच्यते।। २७.१८२ ।।

आनंदा च सुनंदा च महानंदा सुभंकरी।।
वतिरागा महोत्साहा जितरागा मनोरता।। २७.१८३ ।।

प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं शुणु।।
मनोन्मनी मनःक्षोभा मदोन्मत्ता गदाकुला।। २७.१८४ ।।

मंदगार्भा महाभासा कामानंदा सुवुह्वला।।
महावेगा सुवेगा च महाभोगा क्षयावहा।। २७.१८५ ।।

क्रमिणी क्रमिणी वक्रा द्वितीयावरणे स्मृताः।।
कथितं तव भीमायीव्यूहं परमशोभनम्।। २७.१८६ ।।

शाकुनं कथयाम्याद्य स्वायंभुव मनोत्सुकम्।।
योगा वेगा सुवेगा च अतिवेगा सुवासिनी।। २७.१८७ ।।

देवी मनोरया वेगा जलावर्ता च धीमती।।
प्रथमावरंणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.१८८ ।।

रोधिनी क्षोभिणी बाला विप्राशेषासुशोषिणी।।
विद्युता भासिनी देवी मनोवेगा च चापला।। २७.१८९ ।।

विद्युज्जिह्वा महाजिह्वा भृकुटीकुटिलानना।।
फुल्लज्वाला महाज्वाला सुज्वाला च क्षयांतिका।। २७.१९० ।।

शाकुनः कथितो व्यूहः शाकुनायाः श्रृणुष्वमे।।
ज्वालिनी चैव भस्मांगी तथा भस्मांतगा तता।। २७.१९१ ।।

भाविनी च प्रजा विद्या ख्यातिश्चैवाष्टमी स्मृता।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.१९२ ।।

उल्लेखा च पताका च भोगाभोगवती खगा।।
भोगभोगव्रता योगा भोगाख्या योगपारगा।। २७.१९३ ।।

ऋद्धिर्बुद्धिर्धृतिः कांतिः स्मृतिः साक्षाच्छ्रुतिर्धरा।।
शाकुनाया महाव्यूहः कथितः कामदायकः।। २७.१९४ ।।

स्वायंभुव श्रृणु व्यूहं सुमत्याख्यं सुशोभनम्।।
परेष्टा च परा दृष्टा ह्यमृता फलनाशिनी।। २७.१९५ ।।

हिरण्याक्षी सुवर्णाक्षी देवी साक्षात्कपिंजला।।
कामरेखा च कथितं प्रथमावरणं श्रृणु।। २७.१९६ ।।

रत्नद्वीपा च सुद्वीपा रत्नदा रत्नमालिनी।।
रत्नशोभा सुशोभा च महाशोभा महाद्युतिः।। २७.१९७ ।।

शांबरी बंधुरा ग्रंथिः पादकर्णा करानना।।
हयग्रीवा च जिह्वा च सर्वभासोति शक्तयः।। २७.१९८ ।।

कथितः मुमतिव्यूहः समुत्या व्यूह उच्यते।।
सर्वाशी च महाभक्षा महादंष्ट्रातिरौरवा।। २७.१९९ ।।

विस्फुलिंगा विलिंगाच कृतांता भास्करानना।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.२०० ।।

रागा रंगावती श्रेष्ठा महाक्रोधा च रौरवा।।
क्रोधनी वसनीचैव कलहा च महाबला।। २७.२०१ ।।

कलंतिका चतुर्भेदा दुर्गा वै दुर्गमानिनी।।
नाली सुनाली सौम्या च इत्येवं कथितं मया।। २७.२०२ ।।

गोपव्यूहं वदाम्यत्र श्रृणु स्वायंभुवाखिलम्।।
पाटली पाटवी चैव पाटी विदिपिटा तथा।। २७.२०३ ।।

कंकटा सुपटा चैव प्रघटा च घटोद्भवा।।
प्रथमावरणं चात्र भाषया कथितं मया।। २७.२०४ ।।

नादाक्षी नादरूपा च सर्वकारी गमाऽगमा।।
अनुचारी सुचारी च चंडनाडी सुवाहिनी।। २७.२०५ ।।

सुयोगा च वियोगा च हंसाख्या च विलासिनी।।
सर्वगा सुविचारा च वंचनी चेति शक्तयः।। २७.२०६ ।।

गोपव्यूहः समाख्यातो गोपायीव्यूह उच्यते।।
भेदिनी च्चेदिनी चैव सर्वकारी क्षुधाशनी।। २७.२०७ ।।

उच्छुष्मा चैव गांधारी भस्माशी वडवानला।।
प्रथमावरणं चैव द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.२०८ ।।

अंधा बाह्वासिनी बाला दीक्षपामा तथैव च।।
अक्षात्र्यक्षा च हृल्लेखा हृद्गता मायिकापरा।। २७.२०९ ।।

आमयासादिनीभिल्ली सह्यासह्या सरस्वती।।
रुद्रसक्तिर्महाशक्तिर्महामोहा च गोनदी।। २७.२१० ।।

गोपायी कथितो व्यूहो नंदव्यूहं वदामि ते।।
नंदिनी च निवृत्तिश्च प्रतिष्ठा च यथाक्रमम्।। २७.२११ ।।

विद्यानासा खग्रसिनी चामुंडा प्रियदर्शिनी।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.२१२ ।।

गृह्या नारायणी मोहा प्रजा देवी च चक्रिणी।।
कंकटा च तथा काली शिवाद्योषा ततः परम्।। २७.२१३ ।।

विरामा या च वागीशी वाहिनीभीषणी तथा।।
सुगमा चैव निर्दिष्टा द्वितयिवरणे स्मृता।। २७.२१४ ।।

नंदव्यूहो मया ख्यातो नंदाया व्यूह उच्यते।।
विनायकी पूर्णिमा च रंकारी कुंडली तथा।। २७.२१५ ।।

इच्छा कपालिनी चैव द्वीपिनी च जयंतिका।।
प्रथमावरणे चाष्टौ शक्तयः परिकीर्तिताः।। २७.२१६ ।।

प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं शृणु।।
पावनी चांबिका चैव सर्वात्मा पूतना तथा।। २७.२१७ ।।९

छगली मोदिनी साक्षाद्देवी लंबोदरी तथा।।
संहारि कालिनी चैव कुसुमा च यताक्रमम्।। २७.२१८ ।।

शुक्रा तारा तथा ज्ञाना क्रिया गायत्रिका तथा।।
सावित्री चेति विधिना द्वितीया वरणं स्मृतम्।। २७.२१९ ।।

नंदायाः कथितो व्यूहः पैतामहमतः परम्।।
नंदिनी चैव फेत्कारी क्रोधा हंसा षडंगुला।। २७.२२० ।।

आनंदा वसुदुर्गा च संहारा ह्यमृताष्टमी।।
प्रथमावरणं प्रोक्तं द्वितीयावरणं श्रृणु।। २७.२२१ ।।

कुलांतिकानला चैव प्रचंडा मर्दिनी तथा।।
सर्वभूताभया चैव दया च वडवामुखी।। २७.२२२ ।।

लंपटा पन्नगा देवी कुसुमा विपुलांतका।।
केदारा च तथा कूर्मा दुरिता मंदरोदरी।। २७.२२३ ।।

खड्गचक्रोतिविधिना द्वितीयावरणं स्मृतम्।।
व्यूहः पैतामहः प्रोक्तो धर्मकामार्थमुक्तिदः।। २७.२२४ ।।

पितामहाया व्यूहं च कथयामि श्रृणुष्व मे।।
वज्रा च नंदना शावराविका रिपुभेदिनी।। २७.२२५ ।।

रूपा चतुर्था योगा च प्रथमावरणे स्मृताः।।
भूता नादा महाबाला खर्परा च तथा परा।। २७.२२६ ।।

भस्मा कांता तथा वृष्टिर्द्विभुजा ब्रह्मरूपिणी।।
सैह्या वैकारिका जाता कर्ममोटी तथापरा।। २७.२२७ ।।

महामोहा महामाया गांधारी पुष्पमालिनी।।
शब्दापी च महाघोषा षोडशैव तथांतिमे।। २७.२२८ ।।

सर्वाश्च द्विभुजा देव्यो बालभास्करसन्निभाः।।
पद्मशंखधराः शांता रक्तस्रग्वस्त्रभूषणाः।। २७.२२९ ।।

सर्वाभरणसंपूर्णा मुकुटाद्यैरलंकृताः।।
मुक्ताफलमयैर्दिव्यै रत्नचित्रैर्मनोरमैः।। २७.२३० ।।

विभूषिता गौरवर्णाध्येया देव्यः पृथक्पृथक्।।
एवं सहस्रकलशं ताम्रजं मृन्मयं तु वा।। २७.२३१ ।।

पूर्वोक्तलक्षणैर्युक्तं रुद्रक्षेत्रे प्रतिष्ठितम्।।
भवाद्यैर्विष्णुना प्रोक्तैर्नाम्नां चैव सहस्रकैः।। २७.२३२ ।।

संपूज्य विन्यसेदग्रे सेचयेद्बाणविग्रहम्।।
अभिषिच्य च विज्ञाप्य सेचयेत्पृथिवीपतिम्।। २७.२३३ ।।

एवं सहस्रकलशं सर्वसिद्धिफलप्रदम्।।
चत्वारिंशन्महाव्यूहं सर्वलक्षणलक्षितम्।। २७.२३४ ।।

सर्वेषां कलशं प्रोक्तं पूर्ववद्धेमनिर्मितम्।।
सर्वे गंधांबुसंपूर्णपंचरत्नसमन्विताः।। २७.२३५ ।।

तथा कनकसंयुक्ता देवस्य घृतपूरिताः।।
क्षीरेण वाथ दध्ना वा पंचगव्येन वा पुनः।। २७.२३६ ।।

ब्रह्मकूर्चेन वा मध्यमभिषेको विधीयते।।
रुद्राध्यायेन रुद्रस्य नृपतेःश्रृणु सत्तम।। २७.२३७ ।।

अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरगोरतरेभ्यः।।
सर्वेभ्यः सर्वशर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्यः।। २७.२३८ ।।

मंत्रेणानेन राजानं सेचयेदभिषेचितम्।।
होमं च मंत्रणानेन अघोरेणाघहारिणा।। २७.२३९ ।।

प्रागाद्यं देवकुंडे वा स्थांडिले वा घृतादिभिः।।
समिदाज्यचरुं लाजशालिनीवारतंडुलैः।। २७.२४० ।।

अष्टोत्तरशतं हुत्वा राजानमधिवासयेत्।।
पुण्याहं स्वस्ति रुद्राय कौतुकं हेमनिर्मितम्।। २७.२४१ ।।

भसितं च मृणालेन बंधयेद्दक्षिणे करे।।
त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।। २७.२४२ ।।

उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
मंत्रेणानेन राजानं सेचयेद्वाथ होमयेत्।। २७.२४३ ।।

सर्वद्रव्याभिषेकं च होमद्रव्यैर्यथाक्रमम्।।
प्रागाद्यं ब्रह्मभिः प्रोक्तं सर्वद्रव्यैर्यथाक्रमम्।। २७.२४४ ।।

तत्पुरषाय विद्महे महादेवाय धीमहि।।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।। २७.२४५ ।।

स्वाहांतं पुरुषेणैवं प्राक्कुण्डं होमयोद्द्विजः।।
अघोरेण च याम्ये च होमयेत्कृष्णवाससा।। २७.२४६ ।।

वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः।।
इत्याद्युक्तक्रमेणैव जुहुयात्पश्चिमे नरः।। २७.२४७ ।।

सद्येन पश्चिमे होमः सर्वद्रव्यैर्यथाक्रमम्।।
सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमः।। २७.२४८ ।।

भवे भवेनाति भवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः।।
स्वाहादं जुहुयादग्नौ मंत्रेणानेन बुद्धिमान्।। २७.२४९ ।।

आग्नेय्यां च विधानेन ऋचा रौद्रेण होमयेत्।।
जातवेदसे सुनवाम सोममित्यादिना ततः।।
नैर्ऋते पूर्ववद्द्रव्यैः सर्वैर्होमो विधीयते।। २७.२५० ।।

मंत्रेणानेन दिव्येन सर्वसिद्धिकरेण च।।
निमि निशि दिश स्वाहा खड्ग राक्षस भेदन।। २७.२५१ ।।

रुधिराज्यार्द्र नैर्ऋत्यै स्वाहा नमः स्वधानमः।।
यथेष्टं विधिना द्रव्यैर्मत्रेणानेन होमयेत्।। २७.२५२ ।।

यम्यां हि विविधैर्द्रव्यैरीशानेन द्विजोत्तमाः।।
ईशान्यामथ पूर्वेक्तैर्द्रव्यैर्होममताचरेत्।। २७.२५३ ।।

इशानाय कद्रुद्राय प्रचेतसे त्र्यंबकाय शर्वाय तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।। २७.२५४ ।।

प्रधानं पूर्ववद्द्रव्यैरीशानेन द्विजोत्तमाः।।
प्रतिद्रव्यं सहस्रेण जुहुयान्नृपसन्निधौ।। २७.२५५ ।।

स्वयं वा जुहुयादग्नौ भूपतिः शिवात्सलः।।
ईशानः सर्वविद्यानामीश्वीरः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपतिर्ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदा शिवोम्।। २७.२५६ ।।

प्रायाश्चित्तमघोरेण शेषं सामान्यमाचरेत्।।
कृताधिवासं राजानं शंखभेर्यादिनिस्वनैः।। २७.२५७ ।।

जयशब्दरवैर्दिव्यैर्वेदघोषैः सुशोभनैः।।
सेचयेत्कूर्चतोयेन प्रोक्षयेद्वा नृपोत्तमम्।। २७.२५८ ।।

रुद्राध्यायेन विधिना रुद्रभस्मांगधारिणम्।।
शंखचामरभेर्याद्यं छत्रं चंद्रसमप्रभम्।। २७.२५९ ।।

शिबिकां वैजयंतीं च साधयेन्नृपतेः शुभाम्।।
राज्याभिषेकयुक्ताय क्षत्रियायेश्वराय वा।। २७.२६० ।।

नृपचिह्नानि नान्येषां क्षत्रियाणां विधीयते।।
प्रमाणं चैव सर्वेषां द्वादशांगुलमुच्यते।। २७.२६१ ।।

पलाशोदुंबराश्वत्थवटाः पूर्वादितः क्रमात्।।
तोरणाद्यानि वै तत्र पट्टमात्रेण पट्टिकाः।। २७.२६२ ।।

अष्टमांगुलसंयुक्तदर्भमालासमावृतम्।।
दिग्ध्वजाष्टकसंयुक्तं द्वारकुंभैः सुशोभनम्।। २७.२६३ ।।

हेमतोरणकुंभैश्च भूषितं स्नापयेन्नृपम्।।
सर्वोपरि समासीनं शिवकुंभेन सेचयेत्।। २७.२६४ ।।

तन्महेशाय विद्महे वाग्विशुद्धाय धीमहि।।
तन्नः शिवः प्रचोदयात्।। २७.२६५ ।।

मंत्रेणानेन विधिना वर्धन्या गौरिगीतया।।
रुद्राध्यायेन वा सर्वमघोरायाथ वा पुनः।। २७.२६६ ।।

दिव्यैराभरणैः शुक्लैर्मुकुटाद्यैः सुकल्पितैः।।
क्षौमवस्त्रैश्च राजानं तोषयेन्नियतं शनैः।। २७.२६७ ।।

अष्टषष्टिपलेनैव हेम्ना कृत्वा सुदर्शनम्।।
नवरत्नैरलंकृत्य दद्याद्वै दक्षिणाः गुरोः।। २७.२६८ ।।

दशधेनु सवस्त्रं च दद्यात्क्षेत्रं सुशोभनम्।।
शतद्रोणतिलं चैव शतद्रोणांश्च तंडुलान्।। २७.२६९ ।।

शयनं वाहनं शय्यां सोपधानां प्रदापयेत्।।
योगिनां चैव सर्वेषां त्रिंशत्पलमुदाहृतम्।। २७.२७० ।।

अशेषांश्च तदर्धेन शिवभक्तांस्तदर्धतः।।
महापूजां ततः कुर्यान्महादेवस्य वै नृपः।। २७.२७१ ।।

एवं समासतः प्रोक्तं जयसेचनमुत्तमम्।।
एवं पुराभिषिक्तस्तु शक्रः शक्रत्वमागतः।। २७.२७२ ।।

ब्रह्मा ब्रह्मत्वमापन्नो विष्णुर्विष्णुत्वमागतः।।
अंबिका चांबिकात्वं च सौभाग्यमतुलं तथा।। २७.२७३ ।।

सावित्री च तथा लक्ष्मीर्देवी कात्यायनी तथा।।
नंदिनाथ पुरा मृत्यू रुद्राध्यायेन वै जितः।। २७.२७४ ।।

अभिषिक्तोऽसुरः पूर्वं तारकाख्यो महाबलः।।
विद्युन्माली हिरण्याक्षो विष्णुना वै विनिर्जितः।। २७.२७५ ।।

नृसिंहेन पुरा दैत्यो हिरण्यकशिपुर्हतः।।
स्कंदेन तारकाद्याश्च कौशिक्या च पुरांबया।। २७.२७६ ।।

सुंदोपसुंदतनयौ जितौ दैत्येंद्रपूजितौ।।
वसुदेवसुदेवौ तु निहतौ कृतकृत्यया।। २७.२७७ ।।

स्नानयोगेन विधिना ब्रह्मणा निर्मितेन तु।।
दैवासुरे दितिसुता जिता देवैरनिंदिताः।। २७.२७८ ।।

स्नाप्यैव सर्वभूपैश्च ततान्यैरपि भूसुरैः।।
प्राप्ताश्च सिद्धयो दिव्यानात्र कार्या विचारणा।। २७.२७९ ।।

अहोऽभिषेकमाहात्म्यमहो शुद्धसुभाषितम्।।
येनैवमभिषिक्तेन सिद्धैर्मृत्युर्जितस्त्विति।। २७.२८० ।।

कल्पकोटिशतेनापि यत्पापं समुपार्जितम्।।
स्नात्वैवं मुच्यते राजा सर्वपापैर्न संशयः।। २७.२८१ ।।
व्या
धितो मुच्यते राजा क्षयकुष्ठादिभिः पुनः।।
स नित्यं विजयी भूत्वा पुत्रपौत्रादिभिर्युतः।। २७.२८२ ।।

जनानुरागसंपन्नो देवराज इवापरः।।
मोदते पापहीनश्च प्रियया धर्मनिष्ठया।। २७.२८३ ।।

उद्देसमात्रं कथितं फलं परमशोभनम्।।
नृपाणामुपकाराय स्वायंभुव मनो मया।। २७.२८४ ।।

इति श्रीलिंङ्गमहापुराणे उत्तरभागे अभिषेकविधिर्नाम सप्तविंशोऽध्यायः।। २७ ।।