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महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-031

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महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-031
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धृतराष्ट्राश्रमे भ्रात्रादिभिः सैन्येन च सह मासमेकं निवसति युधिष्ठिरे कदाचन व्यासधृतराष्ट्रौ परिवार्य नारादादिभिर्गान्धार्यादिभिः पाण्डवैश्च समुपवेशनम्।। 1 ।। तत्र गान्धार्या व्यासम्प्रति धृतराष्ट्रस्य पुत्रदिदृक्षानिवेदने व्यासेन कुन्तींप्रति तदभीष्टनिवेदनचोदना।। 2 ।।

जनमेजय उवाच। 15-31-1x
वनवासं गते विप्र धृतराष्ट्रे महीपतौ।
सभार्ये नृपशार्दूले वध्वा कुन्त्या समन्विते।।
15-31-1a
15-31-1b
विदुरे चापि धर्मज्ञे धर्मराजं व्यपश्रिते।
वसत्सु पाण्डुपुत्रेषु सर्वेष्वाश्रममण्डले।।
15-31-2a
15-31-2b
यत्तदाश्चर्यमिति वै करिष्यामीत्युवाच ह।
व्यासः परमतेजस्वी महर्षिस्तद्वदस्व मे।।
15-31-3a
15-31-3b
वनवासे च कौरव्याः कियन्तं कालमच्युतः।
युधिष्ठिरो नरपतिर्न्यवसत्सजनस्तदा।।
15-31-4a
15-31-4b
किमाहाराश्च ते तत्र ससैन्या न्यवसन्प्रभो।
सान्तःपुरा महात्मान एतदिच्छामि वेदितुम्।।
15-31-5a
15-31-5b
वैशम्पायन उवाच। 15-31-6x
`वनवासगतं राजन्धृतराष्ट्रं महीपतिम्।
युधिष्ठिरोऽभ्ययाद्द्रष्टुं ससैन्यो भ्रातृभिः सह।।
15-31-6a
15-31-6b
प्रथमे दिवसे चैषामापो मूलं फलं तथा।
भोजनं भूमिशय्या च तत्रासीद्भरतर्षभ।।
15-31-7a
15-31-7b
तेऽनुज्ञातास्तदा राजन्कुरुराजेन पाण्डवाः।
विविधान्यन्नपानानि शय्याश्चैवाभजन्वने।।
15-31-8a
15-31-8b
मासमेकं विजह्रुस्ते ससैन्यान्तःपुरो वने।
अथ तत्रागमद्व्यासो यथोक्तं ते मयाऽनघ।।
15-31-9a
15-31-9b
तथा च तेषां सर्वेषां कथाभिर्नृपसन्निधौ।
व्यासन्वास्य तं राजन्नाजग्मुर्मुनयोऽपरे।।
15-31-10a
15-31-10b
नारदः पर्वतश्चैव देवलश्च महातपाः।
विश्वावसुस्तुंबुरुश्च चित्रसेनश्च भारत।।
15-31-11a
15-31-11b
तेषामपि यथान्यायं पूजां चक्रे महातपाः।
धृतराष्ट्राभ्यनुज्ञातः कुरराजो युधिष्ठिरः।।
15-31-12a
15-31-12b
निषेदुस्ते ततः सर्वे पूजां प्राप्य युधिष्ठिरात्।
आसनेषु च पुण्येषु बर्हिणेषु वरेषउ च।।
15-31-13a
15-31-13b
तेषु तत्रोपविष्टेषु स तु राजा महामतिः।
पाण्डुपुत्रैः परिवृतो निषसाद कुरूद्वह।।
15-31-14a
15-31-14b
गान्धारी चैव कुन्ती च द्रौपदी सात्वती तथा।
स्त्रियश्चान्यास्तथाऽन्याभिः सहोपविविशुस्ततः।।
15-31-15a
15-31-15b
तेषां तत्र कथा दिव्या धर्मिष्ठाश्चाभवन्नृप।
राजर्षीणां पुराणानां देवासुरविभिश्रिताः।।
15-31-16a
15-31-16b
ततः कथान्ते व्यासस्तं प्रज्ञाचक्षुषमीश्वरम्।
प्रोवाच वदतांश्रेष्ठः पुनरेव स तद्वचः।।
15-31-17a
15-31-17b
प्रीयमाणो महातेजाः सर्ववेदविदांवरः।
विदितं मम राजेन्द्र यत्ते हृदि विवक्षितम्।।
15-31-18a
15-31-18b
दह्यमानस्य शोकेन तव पुत्रकृतेन वै।
गान्धार्याश्चैव यद्दुःखं हृदि तिष्टति नित्यदा।।
15-31-19a
15-31-19b
कुन्त्याश्च यन्महाराज द्रौपद्याश्च हृदि स्थितम्।
यच्च धारयते तीव्रं दुःखं पुत्रविनाशजम्।
सुभद्रा कृष्णभगिनी तच्चापि विदितं मम।।
15-31-20a
15-31-20b
15-31-20c
श्रुत्वा समागममिमं सर्वेषां वस्ततो नृप।
संशयच्छेदनार्थाय प्राप्तः कौरवनन्दन।।
15-31-21a
15-31-21b
इमे च देवगन्धर्वाः सर्वे चेमे महर्षयः।
पश्यन्तु तपसो वीर्यमद्य मे चिरसम्भृतम्।।
15-31-22a
15-31-22b
तदुच्यतां महाप्राज्ञ कं कामं प्रददामि ते।
प्रवणोस्मि वरं दातुं पश्य मे तपसो बलम्।।
15-31-23a
15-31-23b
एवमुक्तः स राजेन्द्रो व्यासेनामितबुद्धिना।
मुहूर्तमिव संचिन्त्य वचनायोपचक्रमे।।
15-31-24a
15-31-24b
धन्योस्म्यनुगृहीतश्च सफलं जीवितं च मे।
यन्मे समागमोऽद्येह भवद्भिः सह साधुभिः।।
15-31-25a
15-31-25b
अद्य चाप्यवगच्छामि गतिमिष्टामिहात्मनः।
ब्रह्मकल्पैर्भवद्भिर्यत्समेतोऽहं तपोधनाः।।
15-31-26a
15-31-26b
दर्शनादेव भवतां पूतोऽहं नात्र संशयः।
विद्यते न भयं चापि परलोके ममानघाः।।
15-31-27a
15-31-27b
किंतु तस्य सुदुर्बुद्धेर्मन्दस्यापनयैर्भृशम्।
दूयते मे मनो नित्यं स्मरतः पुत्रगृद्धिनः।।
15-31-28a
15-31-28b
अपापाः पाण्डवा येन निकृताः पापबुद्धिना।
घातिता पृथिवी येन सहया सनरद्विपा।।
15-31-29a
15-31-29b
राजानश्च महात्मानो नानाजनपदेश्वराः।
आगम्य मम पुत्रार्थे सर्वे मृत्युवशं गताः।।
15-31-30a
15-31-30b
ये ते पितॄश्चं दारांश्च प्राणांश्च मनसः प्रियान्।
परित्यज्य गताः शूराः प्रेतराजनिवेशनम्।।
15-31-31a
15-31-31b
का नु तेषां गतिर्ब्रह्मन्मित्रार्थे ये हता मृधे।
तथैव पुत्रपौत्राणां मम ये निहता युधि।।
15-31-32a
15-31-32b
दूयते मे मनोऽभीक्ष्णं घातयित्वा महाबलम्।
भीष्मं शान्तनवं वृद्धं द्रोणं च द्विजसत्तमम्।।
15-31-33a
15-31-33b
मम पुत्रेण मूढेन पापेनाकृतबुद्धिना।
क्षयं नीतं कुलं दीप्तं पृथिवीराज्यमिच्छता।।
15-31-34a
15-31-34b
`एते मदर्थे पुत्रांश्च दारांश्च मनसः प्रियान्।
भोगांश्च विविधांस्तात इष्टापुर्तांस्तथैव च।
परित्यज्य गताः शूराः प्रेतराजनिवेशनम्।।'
15-31-35a
15-31-35b
15-31-35c
एतत्सर्वमनुस्मृत्य दह्यमानो दिवानिशम्।
न शान्तिमधिगच्छामि दुःखशोकसमाहतः।।
15-31-36a
15-31-36b
इति मे चिन्तयानस्य पितः शान्तिर्न विद्यते।। 15-31-37a
वैशम्पायन उवाच। 15-31-38x
तच्छ्रुत्वा विविधं तस्य राजर्षेः परिदेवितम्।
पुनर्नवीकृतः शोको गान्धार्या जनमेजय।।
15-31-38a
15-31-38b
कुन्त्या द्रुपदपुत्र्याश्च सुभद्रायास्तथैव च।
तासां च वरनारीणां वधूनां कौरवस्य ह।।
15-31-39a
15-31-39b
पुत्रशोकसमाविष्टा गान्धारी त्विदमब्रवीत्।
श्वशुरं बद्धनयना देवी प्राञ्जलिरुत्थिता।।
15-31-40a
15-31-40b
`लोकान्तरगतान्पुत्रानयं काङ्क्षति मानद।
तच्चास्य मासं ज्ञातं भगवंस्तपसा त्वया।।'
15-31-41a
15-31-41b
षोडशेमानि वर्षाणि गतानि मुनिपुङ्गव।
अस्य राज्ञोहतान्पुत्राञ्शोचतो न शमो विभो।।
15-31-42a
15-31-42b
पुत्रशोकसमाविष्टो निःश्वसन्ह्येष भूमिपः।
न शेते वसतीः सर्वा धृतराष्ट्रो महामुने।।
15-31-43a
15-31-43b
लोकानन्यान्समर्थोसि स्रष्टुं सर्वांस्तपोबलात्।
किमु लोकान्तरगतान्राज्ञो दर्शयितुं सुतान्।।
15-31-44a
15-31-44b
इयं च द्रौपदी कृष्णा हतज्ञातिसुता भृशम्।
शोचत्यतीव सर्वासां स्नुषाणां दयिता स्नुषा।।
15-31-45a
15-31-45b
तथा कृष्णस्य भगिनी सुभद्रा भद्रभाषिणी।
सौभद्रकवधसंतप्ता भृशं शोचति भामिनी।।
15-31-46a
15-31-46b
इयं च भूरिश्रवसो भार्या परमसम्मता।
भर्तृव्यसनशोकार्ता भृशं शोचति भामिनी।।
15-31-47a
15-31-47b
यस्यास्तु श्वशुरो धीमान्बाह्लिकः स कुरूद्वहः।
निहतः सोमदत्तश्च पित्रा सह महारणे।।
15-31-48a
15-31-48b
श्रीमतोस्य महाबुद्धेः सङ्ग्रामेष्वपलायिनः।
पुत्रस्य ते पुत्रशतं निहतं यद्रणाजिरे।।
15-31-49a
15-31-49b
तस्य भार्याशतमिदं दुःखशोकसमाहतम्।
पुनःपुनर्वर्धयानं शोकं रोज्ञो ममैव च।
हताहारेण महता मामुपास्ते महामुने।।
15-31-50a
15-31-50b
15-31-50c
ये च शूरा महात्मानः श्वशुरा मे महारथाः।
सोमदत्तप्रभृतयः का नु तेषां गतिः प्रभो।।
15-31-51a
15-31-51b
तव प्रसादाद्भगवन्विशोकोऽयं महीपतिः।
कुर्यात्कालमहं चेयं वधूस्तव महामुने।।
15-31-52a
15-31-52b
इत्युक्तवत्यां गान्धार्यां कुन्ती व्रतकृशानना।
प्रच्चन्नजातं पुत्रं तु सस्मारादित्यसन्निभम्।।
15-31-53a
15-31-53b
तामृषिर्वरदो व्यासो दूरश्रवणदर्शनः।
अपश्यद्दुःखितां देवीं मातरं सव्यसाचिनः।।
15-31-54a
15-31-54b
तामुवाच ततो व्यासो यत्ते कार्यं विवक्षितम्।
तद्बूहि त्वं महाभागे यत्ते मनसि वर्तते।।
15-31-55a
15-31-55b
श्वशुराय तत कुन्ती प्रणम्य शिरसा तदा।
उवाच वाक्यं सव्रीडा विवृण्वाना पुरातनम्।।
15-31-56a
15-31-56b
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि
पुत्रदर्शनपर्वणि एकत्रिंशोऽध्यायः।। 31 ।।

15-31-13 बर्हिणेषु पक्षिबर्हजतूलिकामयेषु।। 15-31-50 मामुपास्ते भार्याशतं रोदनं कुर्वत् मामेव परिवार्य तिष्ठतीत्यर्थः

आश्रमवासिकपर्व-030 पुटाग्रे अल्लिखितम्। आश्रमवासिकपर्व-032