महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-026
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युधिष्ठिरादिभिः शतयूपाश्रमे धृतराष्ट्रादीनुपेत्य स्वस्वनामकीर्तनपूर्वकं तत्पादाभिवादनम्।। 1 ।। धृतराष्ट्रेण स्वावा स्यादर्शनेन शोचतां तेषां समाश्वासनम्।। 2 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 15-26-1x |
ततस्ते पाण्डवा दूरादवतीर्य पदातयः। अभिजग्मुर्नरपतेराश्रमं विनयानताः।। | 15-26-1a 15-26-1b |
स च योधजनः सर्वो ये च राष्ट्रनिवासिनः। स्त्रियश्च कुरुमुख्यानां पद्भिरेवान्वयुस्तदा।। | 15-26-2a 15-26-2b |
आश्रमं ते ततो जग्मुर्धृतराष्ट्रस्य पाण्डवाः। शून्यं मृगगणाकीर्णं कदलीवनशोभितम्।। | 15-26-3a 15-26-3b |
ततस्तत्र समाजग्मुस्तापसा नियतव्रताः। पाण्डवानागतान्द्रष्टुं कौतूहलसमन्विताः।। | 15-26-4a 15-26-4b |
तानपृच्छत्ततो राजा क्वासौ कौरववंशभृत्। पिता ज्येष्ठो गतोऽस्माकमिति बाष्पपरिप्लुतः।। | 15-26-5a 15-26-5b |
ते तमूचुस्ततो वाक्यं यमुनामवगाहितुम्। पुष्पाणामुदकुंभस्य चार्थे गत इति प्रभो।। | 15-26-6a 15-26-6b |
तैराख्यातेन मार्गेण ततस्ते जग्मुरञ्जसा। ददृशुश्चाविदूरे तान्सर्वानथ पदातयः।। | 15-26-7a 15-26-7b |
ततस्ते सत्वरा जग्मुः वितुर्दर्शनकाङ्क्षिणः। सहदेवस्तु वेगेन प्राधावद्यत्र सा पृथा।। | 15-26-8a 15-26-8b |
सुस्वरं रुरुदे धीमान्मातुः पादावुपस्पृशन्। सा च बाष्पाकुलमुखी ददर्शक दयितं सुतम्।। | 15-26-9a 15-26-9b |
बाहुभ्यां सम्परिष्वज्य समुन्नाम्य च पुत्रकम्। गान्धार्याः कथयामास सहद्रेवमुपस्थितम्।। | 15-26-10a 15-26-10b |
अनन्तरं च राजानं भीमसेनमथार्जुनम्। नकुलं च पृथा दृष्ट्वा त्वरमाणोपचक्रमे।। | 15-26-11a 15-26-11b |
सा ह्यग्रे गच्छति तयोर्दपत्योर्हतपुत्रयोः। कर्षन्ती तौ ततस्ते तां दृष्ट्वा संन्यपतन्भुवि। `तयोस्तु पादयो राजन्न्यपतन्हतपुत्रयोः।।' | 15-26-12a 15-26-12b 15-26-12c |
राजा तान्स्वरयोगेन स्पर्शेन च महामनाः। प्रत्यभिज्ञाय मेधावी समाश्वासयत प्रभुः।। | 15-26-13a 15-26-13b |
ततस्ते बाष्पमुत्सृज्य गान्धारीसहितं नृपम्। उपतस्थुर्महात्मानो मातरं च यथाविधि।। | 15-26-14a 15-26-14b |
सर्वेषां तोयकलशाञ्जगृहुस्ते स्वयं तदा। पाण्डवा लब्धसंज्ञास्ते मात्रा चाश्वासिताः पुनः।। | 15-26-15a 15-26-15b |
तथा नार्यो नृसिंहानां सोऽवरोधजनस्तदा। पौरजानपदाश्चैव ददृशुस्तं जनाधिपम्।। | 15-26-16a 15-26-16b |
निवेदयामास तदा जनं तन्नामगोत्रतः। युधिष्ठिरो नरपतिः स चैनं प्रत्यपूजयत्।। | 15-26-17a 15-26-17b |
स तैः परिवृतो मेने हर्षबाष्पाविलेक्षणः। राजाऽऽत्मानं गृहगतं पुरेवि गजसाह्वये।। | 15-26-18a 15-26-18b |
अभिवादितो वधूभिश्च कृष्णाद्याभिः स पार्थिवः। गान्धार्या सहितो धीमान्कुन्त्या च प्रत्यनन्दत।। | 15-26-19a 15-26-19b |
ततश्चाश्रममागच्छत्सिद्धचारणसेवितम्। दिदृक्षुभिः समाकीर्णं नभस्तारागणैरिव।। | 15-26-20a 15-26-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि आश्रमवासपर्वणि षड्विंशोऽध्यायः।। 26 ।। |
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