महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-015
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धृतराष्ट्रेण भीष्मदुर्योधनाद्युद्देश्यकश्राद्धे धनवस्रान्नादिना ब्राह्मणादिसंतर्पणम्।। 1 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 15-15-1x |
विदुरेणैवमुक्तस्तु धृतराष्ट्रो जनाधिपः। प्रीतिमानभवद्राजन्राज्ञो जिष्णोश्च कर्मणा।। | 15-15-1a 15-15-1b |
ततोऽभिरूपान्भीष्माय ब्राह्मणानृषिसत्तमान्। पुत्रार्थे सुहृदां चैव स समीक्ष्य सहस्रशः।। | 15-15-2a 15-15-2b |
कारयित्वाऽन्नपानानि यानान्याच्छादनानि च। सुवर्णमणिरत्नानि दासीदासपरिच्छदान्।। | 15-15-3a 15-15-3b |
कंबलानि च रत्नानि ग्रामान्क्षेत्रं तथा धनम्। सालङ्कारान्गजानश्वान्कन्याश्चैव वरस्त्रियः।। | 15-15-4a 15-15-4b |
आदिश्यादिश्य सर्वेभ्यो ददौ स नृपसत्तमः। द्रोणं संकीर्त्य भीष्मं च सोमदत्तं च बाह्लिकम्।। | 15-15-5a 15-15-5b |
दुर्योधनं च राजानं पुत्रांश्चैव पृथक्पृथक्। जयद्रथपुरोगांश्च सुहृदश्चापि सर्वशः।। | 15-15-6a 15-15-6b |
स श्राद्धयज्ञो ववृते बहुगोधनदक्षिणः। अनेकधनरत्नौघो युधिष्ठिरमते तदा।। | 15-15-7a 15-15-7b |
अनिशं यत्र पुरुषा गणका लेखकास्तदा। युधिष्ठिरस्य वचनादपृच्छन्त स्म तं नृपम्।। | 15-15-8a 15-15-8b |
आज्ञापय किमेतेभ्यः प्रदेयं दीयतामिति। तदुपस्थितमेवात्र वचनान्ते ददुस्तदा।। | 15-15-9a 15-15-9b |
शते देये दशशतं सहस्रं चायुतं तथा। दीयते वचनाद्राज्ञः कुन्तीपुत्रस्य धीमतः।। | 15-15-10a 15-15-10b |
एवं स वसुधाराभिर्वर्षमाणो नृपांबुदः। तप्रयामास विप्रांस्तान्वर्षन्भूमिमिवांबुदः।। | 15-15-11a 15-15-11b |
ततोऽन्तन्तरमेवात्र सर्ववर्णान्महामते। अन्नपानरसौघेण प्लावयामास पार्थिवः।। | 15-15-12a 15-15-12b |
सवस्त्रधनरत्नौघो मृदङ्गनिनदस्वनः। गवाश्वमकरावर्तो नानारत्नमहाकरः।। | 15-15-13a 15-15-13b |
ग्रामाग्रहारद्वीपाढ्यो मणिहेमजलार्णवः। जगत्संप्लावयामास धृतराष्ट्रोडुपोद्धतः।। | 15-15-14a 15-15-14b |
एवं स पुत्रपौत्राणां पितॄणामात्मनस्तथा। गान्धार्याश्च महाराज प्रददावौर्द्वदेहिकम्।। | 15-15-15a 15-15-15b |
परिश्रान्तो यदासीत्स ददद्दानान्यनेकशः। निवर्तयामास तदा दानयज्ञं नराधिपः।। | 15-15-16a 15-15-16b |
एवं स राजा कौरव्यश्चक्रे दानमहाक्रतुम्। नटनर्तकलास्याढ्यं बह्वन्नरसदक्षिणम्।। | 15-15-17a 15-15-17b |
दशाहमेवं दानानि दत्त्वा राजांऽबिकासुतः। बभूव पुत्रपौत्राणामनृणो भरतर्षभ।। | 15-15-18a 15-15-18b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि आश्रमवासपर्वणि पञ्चदशोऽध्यायः।। 15 ।। |
15-15-13 सवस्त्रफेनरतौघ इति क.थ.पाठः।।
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