महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-001
दिखावट
← आश्रमवासिकपर्व | महाभारतम् पञ्चादशपर्व महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-001 वेदव्यासः |
आश्रमवासिकपर्व-002 → |
युधिष्ठिरेण राज्यपरिपालनम्।। 1 ।।
कुन्तीद्रौपद्यादिभिर्गान्धार्यां श्वश्रूवद्वर्तनम्।। 2 ।।
भीमवर्जमर्जुनादिभिर्युधिष्ठिरशासनेन विशेषतो धृतराष्ट्रानुवर्तनम्।। 3 ।।
श्रीवेदव्यासाय नमः। | 15-1-1x |
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।। | 15-1-1a 15-1-1b |
जनमेजय उवाच। | 15-1-1x |
प्राप्य पैतामहं राज्यं मम पूर्वपितामहाः। कथमासन्महाराजे धृतराष्ट्रे महात्मनि।। | 15-1-1a 15-1-1b |
स तु राजा हतामात्यो हतपुत्रो निराश्रयः। कथमासीद्धतैश्वर्यो गान्धारी च तपस्विनी।। | 15-1-2a 15-1-2b |
कियन्तं चैव कालं ते मम पूर्वपितामहाः। स्थिता राज्ये महात्मानस्तन्मे व्याख्यातुमर्हसि।। | 15-1-3a 15-1-3b |
वैशम्पायन उवाच। | 15-1-4x |
प्राप्य राज्यं महात्मानः पाण्डवा हतशत्रवः। धृतराष्ट्रं पुरस्कृत्य पृथिवीं पर्यपालयन्।। | 15-1-4a 15-1-4b |
धृतराष्ट्रमुपातिष्ठद्विदुरः संजयस्तथा। वैश्यापुत्रश्च मेधावी युयुत्सुः कुरुसत्तम।। | 15-1-5a 15-1-5b |
पाण्डवाः सर्वकार्येषु पर्यपृच्चन्त तं नृपम्। चक्रुस्तेनाभ्यनुज्ञाता वर्षाणि दश पञ्च च।। | 15-1-6a 15-1-6b |
सदाऽभिगम्य ते वीराः पर्युपासन्त तं नृपम्। पादाभिवादनं कृत्वा धर्मिराजमते स्थिताः।। | 15-1-7a 15-1-7b |
ते मूर्ध्नि समुपाघ्राताः सर्वकार्याणि चक्रिरे। कुन्तिभोजसुता चैव गान्धारीमन्ववर्तत।। | 15-1-8a 15-1-8b |
द्रौपदी च सुभद्रा च याश्चान्याः पाण्डवस्त्रियः। समां वृत्तिमवर्तन्त तयोः श्वश्र्वोर्यथाविधि।। | 15-1-9a 15-1-9b |
शयनानि महार्हाणि वासांस्याभरणानि च। राजार्हाणि च सर्वाणि भक्ष्यभोज्यान्यनेकशः।। | 15-1-10a 15-1-10b |
युधिष्ठिरो महाराज धृतराष्ट्रेऽभ्युपाहरत्। तथैव कुन्ती गान्धार्यां गुरुवृत्तिमवर्तत।। | 15-1-11a 15-1-11b |
विदुरः संजयश्चैव युयुत्सुश्चैव कौरव। उपासते स्म तं वृद्धं हतपुत्रं जनाधिपम्।। | 15-1-12a 15-1-12b |
श्यालो द्रोणस्य यश्चासीद्दयितो ब्राह्ममो महान्। स च तस्मिन्महेष्वासः कृपः समभवत्तदा।। | 15-1-13a 15-1-13b |
व्यासश्च भगवान्नित्यमासांचक्रे नृपेण ह। कथाः कुर्वन्पुराणर्षिर्देवर्षिपितृरक्षसाम्।। | 15-1-14a 15-1-14b |
धर्मयुक्तानि कार्याणि व्यवहारान्वितानि च। धृतराष्ट्राभ्यनुज्ञातो विदुरस्तान्यकारयत्।। | 15-1-15a 15-1-15b |
सामन्तेभ्यः प्रियाण्यस्य कार्याणि सुबहून्यपि। प्राप्यन्तेऽर्थेः सुलघुभिः सुनयाद्विदुरस्य वै।। | 15-1-16a 15-1-16b |
अकरोद्बन्धमोक्षं च वध्यानां मोक्षणं तथा। न च धर्मसुतो राजा कदाचित्किञ्चिदब्रवीत्।। | 15-1-17a 15-1-17b |
विहारयात्रासु पुनः कुरुराजो युधिष्ठिरः। सर्वान्कामानुपस्थाप्य धृतराष्ट्रे न्यवेदयत्।। | 15-1-18a 15-1-18b |
आरालिकाः सूपकारा रागषाडविकास्तथा। उपातिष्ठन्त राजानं धृतराष्ट्रं यथापुरम्।। | 15-1-19a 15-1-19b |
वासांसि च महार्हाणि माल्यानि विविधानि च। उपाजह्रुर्यथाकालं धृतराष्ट्रस्य पाण्डवाः।। | 15-1-20a 15-1-20b |
मैरेयमधुमांसानि पानकानि लघूनि च। चित्रान्भक्ष्यविकारांश्च चक्रुस्तस्य यथा पुरा।। | 15-1-21a 15-1-21b |
ये चापि पृथिवीपालाः समाजग्मुस्ततस्ततः। उपातिष्ठन्त ते सर्वे कौरवेन्द्रं यथापुरा।। | 15-1-22a 15-1-22b |
कुन्ती च द्रौपदी चैव सात्वती च यशस्विनी। उलूपी नागकन्या च देवी चित्राङ्गदा तथा।। | 15-1-23a 15-1-23b |
धृष्टकेतोश्च भगिनी जरासन्धसुता तथा। एताश्चान्याश्च बह्व्यो वै योषितः पुरुषर्षभ। किंकराः पर्युपातिष्ठन्सर्वाः सुबलजां तथा।। | 15-1-24a 15-1-24b 15-1-24c |
यथा पुत्रवियुक्तोऽयं न किञ्चिद्दुःखमाप्नुयात्। इति तानन्वशाद्भातॄन्नित्यमेव युधिष्ठिरः।। | 15-1-25a 15-1-25b |
एवं ते धर्मराजस्य श्रुत्वा वचनमर्थवत्। सविशेषमवर्तन्ति भीममेकं तदा विना।। | 15-1-26a 15-1-26b |
न हि तत्तस्य वीरस्य हृदयादपसर्पति। धृतराष्ट्रस्य दुर्बुद्ध्या यद्वृत्तं द्यूतमण्डले।। | 15-1-27a 15-1-27b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि आश्रमवासपर्वणि प्रथमोऽध्यायः।। 1 ।। |
15-1-2 गान्धारी च यशस्विनीति झ.थ.पाठः।। 15-1-5 उपातिष्ठदाराधितवान्।। 15-1-9 सतां वृत्तिमवर्तन्तेति थ.पाठः।। 15-1-13 तस्मिन्धृतराष्ट्रे समभवत्तन्निकटे अभवत्।। 15-1-14 वासं चक्रे नृपेण हेति क.थ.पाठः।। 15-1-16 प्रभावाद्विदुरस्य वै इति क.थ.पाठः।। 15-1-19 अरया शस्त्रविशेषेण लूनं छिन्नं शाकादि अरालु तत्संस्कुर्वन्ति ते आरालिकाः शाकविशेषकर्तारः रागखाण्डविकास्तथेति झ.पाठः। रागषाडवं पिप्पलीशुठीशर्करोपेतो मुद्गयूषस्तत्कर्तारो रागषाडविकाः।।
आश्रमवासिकपर्व | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आश्रमवासिकपर्व-002 |